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Parshuram : जानिये भगवान श्री विष्णु के अनोखे अवतार को

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Parshuram : जानिये भगवान श्री विष्णु के अवतार को।

नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट parshuram में आपका हार्दिक अभिनंदन है। दोस्तों, हम बचपन से ही भगवान श्रीराम तथा माता सीता के स्वयंवर की कथा सुनते आये हैं। इस पावन स्वयंवर की क्रमवार घटित घटनाओं में जो एक चर्चित संंवाद है, वह है भगवान शिवजी के धनुष टूटने के बाद भगवान श्री राम तथा परशुराम के मध्य हुआ संवाद।

कहा जाता है कि परशुराम जी ने अनेकों बार धरती को क्षत्रियों से विहीन किया था। परशुराम कौन थे ? इन्होंने अपनी ही माता का वध क्यों किया आज की पोस्ट में हम इन्हीं प्रश्नों के संबंध में विस्तार से जानेंगे। तो आईये, पोस्ट शुरू करते हैं।

Parshuram : जानें परशुराम का शाब्दिक अर्थ

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परशु, कुल्हाड़ी को कहते हैं इस  प्रकार परशुराम का अर्थ हुआ कुल्हाड़ी धारण किये हुए राम। जिस प्रकार श्रीराम, भगवान विष्णु के अवतार हैं, उसी प्रकार परशुराम भी भगवान विष्णु के ही 6वें अवतार माने जाते हैं। इन्हें रामभद्र, भार्गव, भृगुपति, भृगुवंशी (ऋषि भृगु के वंशज), जमदग्न्य (जमदग्नि के पुत्र) के नाम से भी जाना जाता है।

कौन हैं परशुराम ?

भगवान श्री परशुराम ऋषि जमदग्नि तथा रेणुका के पांचवें पुत्र थे। ध्यातव्य है कि ऋषि जमदग्नि सप्तऋषियों में से एक ऋषि थे। परशुराम वीरता के साक्षात उदाहरण थे, इनके बारे में यह मान्यता है, कि वे त्रेता युग एवं द्वापर युग से अमर हैं।  त्रेता युग के रामायण काल में तथा द्वापर युग के महाभारत काल में परशुराम जी की अहम भूमिका है। सीता स्वयंवर में भगवान राम द्वारा शिवजी का पिनाक धनुष तोड़ने पर परशुराम सबसे अधिक क्रोधित हुए थे। parshuram

शिवजी ने प्रदान की अस्त्र – शस्त्र की विद्या

परशुराम जी का जन्म तो ब्राह्मण कुल में हुआ, परंतु उनकी युद्ध आदि में अधिक रुचि थी। इसीलिए उनके पूर्वज च्यवण, भृगु ने उन्हें भगवान शिव की तपस्या करने की आज्ञा दी। अपने पूर्वजों कि आज्ञा से परशुराम ने शिवजी की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया। शिवजी ने उन्हें वरदान मांगने को कहा, तब परशुराम ने भगवान शिव से दिव्य अस्त्र तथा युद्ध में निपुण होने कि कला का वर मांगा।

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शिवजी ने परशुराम को युद्धकला में निपुणता के लिए उन्हें अस्त्र – शस्त्र विद्या प्रदान की,  तब परशुराम ने उड़ीसा के महेन्द्रगिरी के महेंद्र पर्वत पर शिवजी की कठिन एवं घोर तपस्या की। इस तपस्या से शिवजी ने प्रसन्न होकर उन्हें  दानवों को मारने में सक्षमता का वरदान दिया, विजया नामक धनुष कमान उन्हें शिवजी ने प्रदान किया था ।

कौन थे परशुराम जी के शिष्य ?

भगवान परशुराम ने महाभारत के समय में भीष्म पितामाह, गुरु द्रोणाचार्य एवं कर्ण आदि को शस्त्र एवं अस्त्र की शिक्षा प्रदान की थी इसलिए वे इनके शिष्य कहे जाते हैं ।

इस कारण किया अपनी माता का वध

parshuram परशुराम अपने माता–पिता के प्रति पूरी तरह से समर्पित थे। एक बार परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि की पत्नी रेणुका मिट्टी के घड़े को लेकर पानी भरने नदी किनारे गयीं, किन्तु  किसी कारण उन्हें आश्रम लौटने में देरी हो गयी। ऋषि जमदग्नि ने अपनी शक्ति से रेणुका के देर से आने का कारण जान लिया और वे उन पर क्रोधित हो गए। 

उन्होंने क्रोध में आकर अपने सभी पुत्रों को बुलाकर अपनी माता का वध करने की आज्ञा दी किन्तु ऋषि के चारों पुत्र वासु, विस्वा वासु, बृहुध्यणु तथा ब्रूत्वकन्व ने अपनी माता के प्रति प्रेम भाव व्यक्त करते हुए, अपने पिता की आज्ञा को मानने में अपनी असमर्थता प्रकट की। इससे ऋषि जमदग्नि ने क्रोधवश अपने सभी पुत्रों को पत्थर बनने का श्राप दे डाला।parshuram

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इसके बाद ऋषि जमदग्नि ने परशुराम को अपनी माता का वध करने की आज्ञा दी। परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए अविलम्ब अपना फरसा उठाया, और उनके चरणों में सिर नवाकर तुरंत ही अपनी माता रेणुका का वध कर दिया। इस पर जमदग्नि अपने पुत्र से संतुष्ट हुए एवं उन्होने परशुराम से मनचाहा वरदान मांगने को कहा।

तब परशुराम ने अपनी माता रेणुका तथा अपने भाइयों के प्रेमवश होकर सभी को पुनः जीवित करने का वरदान मांग लिया। माता-पिता के प्रति समर्पण भाव देख प्रसन्न होकर उनके पिता ने वरदान को पूर्ण करते हुए पत्नी रेणुका तथा चारों पुत्रों को फिर से नवजीवन प्रदान किया। 

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कुंड में स्नान कर किया मातृ हत्या का प्रायश्चित

अपनी माता का वध करने के बाद परशुराम ने कुंड में स्नान कर अपने पाप का प्रायश्चित किया था जो कालांतर में परशुराम कुंड के नाम से विख्यात हुआ।  वर्तमान में यह अरुणाचल प्रदेश के लोहित जिले में स्थित है।

21बार क्षत्रियों को किया था धरती से विहीन

पृथ्वी पर क्षत्रियों के राजा किर्तवीर्य सहस्रजुन ने परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि तथा उनकी गाय कामधेनु का वध कर दिया। इससे परशुराम को बहुत क्रोध आया एवं उन्होंने क्रोध में सभी क्षत्रियों को मारने एवं पूरी पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन करने का प्रण लिया। जब पृथ्वी पर सभी क्षत्रियों को इस बात का पता चला, तब वे पृथ्वी छोड़–छोड़ कर भागने लगे।

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पृथ्वी की रक्षा के लिए कोई भी क्षत्रिय नहीं बचा इसलिए कश्यप मुनि ने परशुराम को पृथ्वी छोड़ने का आदेश दे दिया। मुनि कश्यप की आज्ञा का पालन करते हुए परशुराम महेन्द्रगिरी के महेंद्र पर्वत पर रहने चले गए तथा वहाँ  कई वर्ष तक तपस्या की तब से लेकर आजतक महेन्द्रगिरी को परशुराम का निवास स्थान माना जाता है। महेन्द्रगिरी, उड़ीसा के गजपति जिले में स्थित है।

गणेश जी को बनाया एकदंत

भगवान परशुराम जी के गुरू शिवजी हैं। एक बार अपने गुरू भगवान शिव  के दर्शन के लिए जब वे कैलाश पहुंचे तो गणेश जी ने उन्हें नहीं पहचाना तथा शिवजी के दर्शनों की अनुमति नहीं दी। इससे रुष्ट होकर परशुराम जी ने श्री गणेश पर अपने फरसे से प्रहार कर दिया जिससे गणपति का एक दांत टूट गया।
जब उन्हें अपनी भूल का आभास हुआ तो उन्होंने क्षमा मांगी तथा गणेश जी को आशीर्वाद देते हुए एकदंत के नाम से पूजे जाने का वरदान दिया।

Bhagwan Parshuram : भगवान परशुराम जयंती

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परशुराम जयंती हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है, इसे परशुराम द्वादशी भी कहा जाता है। अक्षय तृतीया को भी परशुराम जयंती के रूप में  मनाया जाता है इसी दिन से त्रेतायुग का आरंभ माना जाता है। 

परशुराम जयंती का महत्व

इस दिन  कई स्थानों पर शोभायात्राओं का आयोजन किया जाता है, भक्तगण भंडारे का आयोजन करते हैं और सभी श्रद्धालु इस भोजन प्रसाद का लाभ उठाते हैं। इनमें भगवान परशुराम को मानने वाले सभी वर्गों के लोग भारी संख्या में सम्मिलित होते हैं।  परशुराम भगवान के  मंदिरों में हवन–पूजन का आयोजन किया जाता है इस दिन अक्षय तृतीया भी मनाई जाती है।

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कुछ लोग इस दिन उपवास रखकर वीर एवं निडर ब्राह्मण रूप भगवान परशुराम की भांति संंतान की कामना करते हैं वे मानते हैं कि परशुराम जी के आशीर्वाद से उन्हें पराक्रमी संंतान की प्राप्ति होगी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन उपवास रखने एवं परशुराम जी को पूजने से अगले जन्म में राजा बनने का योग प्राप्त होता है।

॥ समाप्त ॥

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