Ganesh Ji : जानिये भगवान गणेश के 8 अवतार
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नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Ganesh Ji के 8 अवतार में आपका हार्दिक स्वागत है। श्री गणेश, सनातन हिंदू धर्म के सर्वमान्य तथा सबसे लोकप्रिय देवता। लोग इन्हें प्यार से बप्पा बुलाते हैं विशेषकर महाराष्ट्र् राज्य में। किसी भी शुभ कार्य से पहले अथवा धार्मिक अनुष्ठान में सर्वप्रथम इन्हीं की पूजा की जाती है या यूं कहें कि सभी देवी-देवताओं में सबसे पहला निमंत्रण इन्हें दिया जाता है साथ ही अपने कार्य के सफल होने की कामना तथा प्रार्थना की जाती है।
पुराणों के अनुसार श्री गणेश जी ने हर युग में असुरी शक्ति को खत्म करने के लिए आठ अवतार लिए थे।
गणेश जी ने अधर्म का नाश करने के लिए हर युग में समय-समय पर अवतार लिए। इन्हीं अवतारों के अनुसार उनकी पूजा की जाती है।
पुराणों के अनुसार हर युग में आसुरि शक्तियों को नष्ट करने को लिए गए अवतार मनुष्य के आठ प्रकार के दोषों का निवारण करते हैं। इन आठ दोषों का नाम है काम, क्रोध, मद, लोभ, ईर्ष्या, मोह, अहंकार तथा अज्ञान। गणपति जी का कौन-सा अवतार किस दोष का नाश करता है वह इन अवतारों में बताया गया है।
इस पोस्ट में हम अपने प्यारे बप्पा के इन्हीं आठ अवतारों पर चर्चा करेंगे। तो आईये, पोस्ट का श्री गणेश करते हैं –
Ganesh Ji : गणेश जी के 8 अवतार
1. वक्रतुण्ड
वक्रतुण्ड यानी टेढी सूण्ड वाले। भगवान श्री गणेश ने इस रूप में राक्षस मत्सरासुर के पुत्रों का नाश किया था। ये राक्षस शिवभक्त था तथा उसने शिवजी की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया तथा उनसे यह वरदान प्राप्त कर लिया कि उसे किसी का भय नहीं रहेगा। मत्सरासुर ने दैत्यगुरू शुक्राचार्य की आज्ञा से देवताओं को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। उसके दो पुत्र थे सुंदरप्रिय तथा विषयप्रिय। Ganesh Ji
इन सभी से भयभीत तथा प्रताड़ित देवता महादेव की शरण में पहुंचे तथा उपाय पूंछा। शिवजी ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे गणेश जी का आह्वान करें वह वक्रतुण्ड अवतार में प्रकट होंगे। देवताओं की आराधना करने पर भगवान वक्रतुण्ड ने मत्सरासुर के दोनों पुत्रों का संहार कर सभी को भयमुक्त कर दिया तथा मत्सरासुर को भी पराजित कर दिया। बाद में मत्सरासुर इनका भक्त बन गया ।
2. महोदर अवतार
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार जब देवताओं के सेनापति कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तब अपनी शक्ति के बल से दैत्यगुरू शुक्राचार्य ने मोहासुर नामक दैत्य को उत्पन्न किया। इस असुर के अंत के लिए पुनः भगवान गणपति ने महोदर अवतार धारण किया, महोदर अर्थात बड़े पेट वाले।
यह अवतार धारण कर वे अपने वाहन मूषक पर सवार होकर मोहासुर के नगर में पहुंचे। इस स्वरूप से मोहित होकर दैत्य महोसुर ने बिना युद्ध किये ही गणपति को अपना इष्ट बनाकर इनकी आराधना की।
3. एकदंत अवतार
महर्षि च्यवन ने अपने तपोबल से मद नाम के राक्षस की रचना की। वह च्यवन का पुत्र कहलाया। मद ने शुक्राचार्य से दीक्षा ली जिन्होंने उसे हर प्रकार की विद्या में निपुण कर दिया। वरदान पाकर जब असुर ने अत्याचार आरंभ कर दिया तो सभी ने मिलकर विघ्नविनाशन का ध्यान किया।
भगवान गणेश एकदंत रूप में प्रकट हुए जिनकी चार भुजाएं, एक दांत, बड़ा पेट तथा सिर हाथी के समान था। उनके हाथ में पाश, परशु, अंकुश व एक खिला हुआ कमल था। भगवान गणेश जी के एकदंत अवतार ने मदासुर को युद्ध में पराजित कर दिया तथा समस्त देवताओं को अभयदान दिया।
4. गजानन अवतार
धन के स्वामी कुबेर से एक असुर लोभासुर का जन्म हुआ। जिसने गुरू शुक्राचार्य के परामर्श पर शिवजी की तपस्या की तथा उसे अभय का वरदान प्रदान किया। वरदान पाकर दैत्य ने समस्त लोकों पर कब्जा कर लिया। देवताओं को पराजित देखकर देवगुरू ब्रहस्पति ने सभी को गणेश जी की उपासना के लिए कहा।
तब भगवान ने गजानन रूप में दर्शन देकर देवताओं को आश्वासन दिया कि वे दैत्य के अत्याचारों से मुक्ति दिलायेंगे।
गणेश जी ने लोभासुर को युद्ध का संदेश भेजा किंतु भयभीत लोभासुर ने बिना युद्ध के अपनी पराजय स्वीकार कर ली साथ ही देवताओं को उनका लोक वापस कर दिया।
5. लंबोदर अवतार
क्रोधासुर नामक दैत्य ने एक समय सूर्यदेव की उपासना करके उनसे ब्रह्माण्ड विजय का वरदान ले लिया जिससे सभी देवता भयभीत हो गये। यह देखकर गणपति लंबोदर रूप में प्रकट हुये तथा क्रोधासुर से कहा कि वह कभी भी अजय योद्धा नहीं हो सकता। उन्होंने दैत्य को उचित परामर्श प्रदान किया जिससे उसने अपनी विजय योजना को टाल दिया तथा पाताल लोक को चला गया।
6. विघ्नराज
Ganesh Ji एक समय माता पार्वती की हंसी से एक पुरूष की उत्पत्ति हुई जिसका नाम उन्होंने मम रखा तथा तप के लिए भेज दिया। मार्ग में उसे शंबरासुर नामक दैत्य मिला जिसने उसे आसुरी शक्तियों का ज्ञान प्रदान किया उसकी सलाह पर मम ने ऋणहर्ता गणेश जी की उपासना कर समस्त संसार पर अधिपत्य का वरदान मांग लिया।
तत्पश्चात शम्बर ने अपनी पुत्री का विवाह मम से करवा दिया। दैत्यगुरू शुक्राचार्य ने उसे दैत्यराज के पद से सुशोभित कर दिया। तब दैत्य ने सभी देवताओें को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया। भगवान गणपति ने विघ्नेश्वर का रूप धारण कर उसका अंत किया।
7. विकट अवतार
भगवान विष्णु ने जलंधर नाम के दैत्य के विनाश के लिए उसकी पत्नि वृंदा का सतीत्व भंग किया जिससे कामासुर नामक राक्षस उत्पन्न हुआ। इसने भगवान शिव की आराधना करके त्रिलोक विजय का वरदान प्राप्त कर लिया तथा स्वर्ग को भी देवताओं से छीनकर उन्हें निष्कासित कर दिया।
देवताओं की आराधना करने पर भगवान गणेश ने विकट रूप में अवतार लिया। इस अवतार में प्रभु मोर पर विराजित होकर अवतरित हुए तथा कामासुर के अत्याचारों का अंत कर दिया।
8. धूम्रवर्ण अवतार
अहंतासुर नामक अत्यंत शक्तिशाली दैत्य ने जब पूरी पृथ्वी पर अत्याचार मचाना शुरू कर दिया तब गणेश जी ने इस अवतार को धारण किया। भगवान का यह अवतार बड़ा विचित्र था जिसमें उनका रंग धुंए की तरह था उनका स्वरूप विकराल था तथा उन्होंने अपने हाथ में भीषण पाश ले रखा था जिससे भयंकर ज्वालायें निकल रही थीं। धूम्रवर्ण अवतार ने भगवान ने अहंतासुर का अंत कर दिया तथा उसे अपनी भक्ति प्रदान की।
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