Shiv Manas Puja Stotra : शिव मानस पूजा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित
नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट shiv manas puja में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, जब भी हम कोई धार्मिक अनुष्ठान जैसे यज्ञ, हवन आदि करते हैं तो उसमें समिधा, हवन सामग्री, घी, दूध तथा नाना प्रकार की सामग्रियों की आवश्यकता होती है किन्तु कभी— कभी परिस्थितियां ऐसी होती हैं कि धन के अभाव में अथवा शारीरिक असमर्थता के कारण हम सभी सामग्रियां जुटा पाने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं।
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कई बार हम किसी लंबी यात्रा पर होते हैं तो भी हम प्रतिदिन की भांति अपनी पूजा-पाठ नहीं कर पाते उस स्थिति में हम यात्रा करते हुये ही एक स्थान पर बैठकर ईश्वर की मानसिक आराधना कर सकते हैं तथा अपने आराध्य की समीपता का सुखद एवं अलौकिक अनुभव कर सकते हैं।
शास्त्रों में हमारे ऋषि-मुनियों ने मानस पूजा के विधान का उल्लेख किया है। यदि हम पूर्ण समर्पण भाव के साथ अपने आराध्य का ध्यान लगाकर मानस पूजा करते हैं तो हमें वैसा ही फल प्राप्त होता है जैसा सभी सामग्रियों के जुटाने से होता है क्योंकि प्रायः कहा भी जाता है कि भगवान तो हमारे भाव देखते हैं धनी अथवा निर्धन व्यक्ति को नहीं। इस पोस्ट में हम शिव मानस पूजा का हिंदी सहित अर्थ समझेंंगे। तो आईये, पोस्ट आरंभ करते हैं-
shiv manas puja
Shiv Manas Puja : शिव मानस पूजा
रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं।
नाना रत्न विभूषितम् मृग मदामोदांकितम् चंदनम॥
जाती चम्पक बिल्वपत्र रचितं पुष्पं च धूपं तथा।
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितम् गृह्यताम्॥१॥
अर्थ — हे पशुपति देव, हे करूणा के सागर (श्री शिव को पशुपति अर्थात समस्त प्राणियों के देव कहते हैं) मेरी यह मानसिक (मन से) आराधना स्वीकार करें। रत्नों से जड़ित सिंहासन पर आप विराजमान हो जाइए। मैं हिमालय से लाए गए जल से आपको स्नान करवा रहा हूं और आप पवित्र/दिव्य वस्त्रों को धारण कीजिये। आपको कस्तूरी से मिश्रित चन्दन से तिलक लगा रहा हूं। जूही, चंपा, बिल्वपत्र आदि पुष्प भी आपको समर्पित करता हूं। धूप और दीपक भी अर्पित करता हूं जो मेरे हृदय से निर्मित हैं। हे शिव, दयानिधे आप मेरी सामग्री को ग्रहण कीजिये।
सौवर्णे नवरत्न खंडरचिते पात्र धृतं पायसं।
भक्ष्मं पंचविधं पयोदधि युतं रम्भाफलं पानकम्॥
शाका नाम युतं जलं रुचिकरं कर्पूर खंडौज्ज्वलं।
ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥२॥
अर्थ— हे पशुपति नाथ (भगवान शिव) मेरी आधना को स्वीकार कीजिये। मैं आपको घी, खीर को नौ रत्न जड़ित स्वर्ण पात्र में अर्पित करता हूं। मैं आपको पांच प्रकार के व्यंजन के साथ विशेष तरह से तैयार दूध, दही और रम्भाफलं से निर्मित व्यंजन अर्पित करता हूं। इसके साथ ही पीने के लिए विभिन्न फलों कदलीफल (केला), शर्बत, शाक, कपूर से सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मीठा (शीतल) जल अर्पित करता हूं। इसके साथ ही मैं ताम्बूल पत्र भी अर्पित करता हूं। हे प्रभु इन्हें स्वीकार करो।
छत्रं चामर योर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निमलं।
वीणा भेरि मृदंग काहलकला गीतं च नृत्यं तथा॥
साष्टांग प्रणतिः स्तुति-र्बहुविधा ह्येतत्समस्तं ममा।
संकल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो॥३॥
अर्थ — हे पशुपति नाथ ! मेरी मानसिक आराधना को स्वीकार कर मुझे कृतार्थ करें। मैं आपको छाया प्रदान करने के लिए मानसिक रूप से एक छत्र और चामर से निर्मित दो चंवर भी समर्पित करता हूं। मैं आपको पंखा झला ( हाथ के पंखे से हवा करना) रहा हूं। हे सर्वव्याप्त ईश्वर ! मैं आपको निर्मल दर्पण, जिसमें आपका दिव्य स्वरूप सुंदरतम व भव्य दिखाई दे रहा है, अर्पित करता हूं जो मेरे ह्रदय की भक्ति को प्रदर्शित करता है। मैं वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभि आदि की मधुर ध्वनियां आपको प्रसन्न करने के लिए अर्पित करता हूं। आपके प्रिय नृत्य को करते हुये मैं आपको साष्टांग प्रणाम अर्थात आठ अंगों से प्रणाम करता हूं। विभिन्न तरह से की गई मेरी यह मानसिक पूजा आप कृपया कर सवीकार करें।
आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं.
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः॥
संचारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो.
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्॥४॥
shiv manas puja
अर्थ — हे शंकरजी, मेरी आत्मा आप हैं। मेरी बुद्धि आपकी शक्ति पार्वतीजी हैं। मेरे प्राण आपके गण हैं। मेरा यह पंच भौतिक शरीर आपका मंदिर है। संपूर्ण विषय भोग की रचना आपकी पूजा ही है। मैं जो सोता हूँ, वह आपकी ध्यान समाधि है। मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है। मेरी वाणी से निकला प्रत्येक उच्चारण आपके स्तोत्र व मंत्र हैं। इस प्रकार मैं आपका भक्त जिन-जिन कर्मों को करता हूँ, वह आपकी आराधना ही है।
कर चरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा
श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व
जय जय करणाब्धे श्री महादेव शम्भो॥५॥
अर्थ — हे परमेश्वर! मैंने हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कर्म, कर्ण, नेत्र अथवा मन से अभी तक जो भी अपराध किए हैं, वे विहित हों अथवा अविहित, उन सब पर आपकी क्षमापूर्ण दृष्टि प्रदान कीजिए। हे करुणा के सागर भोले भंडारी श्री महादेवजी, आपकी जय हो ! जय हो !
॥इति॥
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