Mahabharat : जानिये कैसे हुआ द्वापर युग का अंत ?
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नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट mahabharat में आपका हार्दिक अभिनंदन है। दोस्तों, महाभारत का युद्ध द्वापर युग की एक महत्वपूर्ण घटना थी यह बात हम सभी जानते हैं। इस युद्ध के पश्चात कालांतर में द्वापर युग का भी अंत हो गया था।
आज की पोस्ट में हम जानेंगे कि कैसे भगवान श्रीकृष्ण सहित सम्पूर्ण यदुवंश का अंत हुआ जो कलयुग के प्रारंभ की नींव बना। तो आईये, पोस्ट आरंभ करते हैं –
Mahabharat : कैसे हुआ यदुवंश का अंत ?
महाभारत का युद्ध पूरे 18 दिन चला। ऐसा कहा जाता है कि जिस स्थान अर्थात कुरूक्षेत्र में यह युद्ध हुआ था वहां इतना रक्तपात हुआ था कि आज भी वहां की मिट्टी रक्त वर्ण है। इस भयंकर युद्ध में कौरवों के कुल का समूल नाश हो चुका था तथा साथ-ही-साथ पांडवों के पक्ष के भी कई वीर योद्धा वीरगती को प्राप्त हुये थे। इस युग की जो सबसे बड़ी क्षति थी वह थी भगवान श्रीकृष्ण तथा उनके सम्पूर्ण यदुवंश का अंत।
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ऋषियों का साम्ब को श्राप
श्री कृष्ण का पुत्र साम्ब अत्यंत चंचल स्वाभाव का था, अपनी मस्ती में मस्त साम्ब और अन्य यादवगण उन महात्माओं का मजाक उड़ाने के लिए उनके पास आये। साम्ब स्त्री की वेशभूषा में था, और अपने पेट में एक मूसल छुपा के गर्भवती होने का नाटक कर रहा था। उसने ऋषियों से पूछा कि आप लोग शास्त्रों के ज्ञाता हैं। अच्छा ये बताइए कि मेरा पुत्र होगा या पुत्री?
साम्ब और अन्य यादवों के इस झूठ से ऋषियों को क्रोध आ गया। उन्होंने कहा कि इस स्त्री को एक मूसल होगा, और वही तुम्हारे कुल का नाश करेगा। यह श्राप सुनकर यादवगण चौंक गए। समय आने पर ऋषियों के कहे अनुसार स्त्री वेषधारी साम्ब के एक मूसल पैदा हुआ जो इस वंश के विनाश का कारण बना।
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गांंधारी का श्राप
पौराणिक कथाओं की मानें तो महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद जब धर्मराज युधिष्ठिर का राजतिलक हो रहा था तब कौरवों की माता गांधारी ने इस युद्ध के लिए श्रीकृष्ण को दोषी ठहराते हुए श्राप दिया कि जिस प्रकार कौरवों के वंश का नाश हुआ है ठीक उसी तरह से यदुवंश का भी नाश हो जायेगा।
गांधारी के इस प्रकार श्राप से विनाशकाल आने के कारण श्रीकृष्ण द्वारिका लौटकर यदुवंशियों को लेकर अन्यत्र स्थान पर चले गये साथ ही अपने साथ अन्न भंडार भी ले आये थे।
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यदुवंशियों द्वारा मृत्यु की प्रतीक्षा करना
श्राप को सहर्ष स्वीकार करने के पश्चात भगवान श्री कृष्ण ने ब्राह्मणों को अन्नदान दिया तथा यदुवंशियों को मृत्यु की प्रतीक्षा करने के लिए कहा। कथा कहती है कि एक दिन सात्यकि तथा कृतवर्मा में किसी बात को लेकर विवाद हो गया जो इतना बढ़ गया कि सात्यकि ने क्रोधवश कृतवर्मा का वध कर दिया।
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इससे आपसी युद्ध भड़क गया तथा वे दो समूहों में विभाजित होकर एक-दूसरे का वध करने लगे। इस प्रकार श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न तथा मित्र सात्यकि समेत सभी यदुवंशी मारे गए। यदुवंश का अंत होने के बाद कृष्ण के ज्येष्ठ भाई बलराम समुद्र तट पर बैठ गये और एकाग्रचित्त होकर परमात्मा में लीन हो गए। इस प्रकार शेषनाग के अवतार बलराम भी देह त्यागकर स्वधाम लौट गए।
बहेलिया का तीर और श्रीकृष्ण की मृत्यु
गांधारी के श्राप तथा विधि के विधान के क्रम के अनुसार एक दिन भगवान श्रीकृष्ण पीपल के नीचे ध्यान मुद्रा में बैठे हुए थे, तब उस क्षेत्र में एक जरा नाम का बहेलिया आया जो एक हिरण के शिकार की तलाश में था। श्रीकृष्ण के पैर के तलुवे में एक पद्म रेखा थी जिसकी मणि जैसी चमक उस बहेलिया को दिखाई थी। वह तलुवा उस बहेलिया को एक मृग की तरह दिखाई दिया तथा उसने बिना विचार किये उसी दिशा में एक तीर छोड़ दिया।
पास जाने पर उसे ज्ञात हुआ कि वह तो भगवान श्री कृष्ण का तलुवा है तब वह उनके चरणों में गिर गया तथा क्षमा याचना करने लगा। प्रभु ने उसे समझाया कि यह सब विधि के विधान के अनुसार हुआ है इसका दोष उसे नहीं लगेगा।
दारुक का आगमन
बहेलिए के जाने के वहां श्रीकृष्ण का सारथी दारुक वहां पहुंचा और कहा कि वह द्वारिका क्षेत्र में जाकर सभी को यह समाचार सुनाये कि यदुवंश नष्ट हो चुका है तथा बलराम के साथ ही मैं यानी कृष्ण भी स्वधाम लौट चुके हैं। शीघ्र ही समस्त नगरी जलमग्न हो जायेगी अतः द्वारिका को तुरंत छोड़कर मेरे माता-पिता तथा अन्य सभी प्रियजन इंद्रप्रस्थ को चले जायें। तब उस क्षेत्र में सभी देवता, अप्सराएं, यक्ष, किन्नर तथा गंधर्व आदि ने आकर श्रीकृष्ण की आराधना की। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी आंखे मूंद लीं तथा सशरीर अपने धाम को लौट गये।
किसने किया यदुवंशियों का पिण्डदान संस्कार ?
श्रीमद्भागवत के अनुसार श्रीकृष्ण के स्वधाम गमन की सूचना पाकर उनके प्रियजनों ने दुःखी होकर प्राण त्याग दिया। बलराम तथा भगवान कृष्ण की पत्नियों ने भी अपने-अपने प्राण त्याग दिये। इसके पश्चात अर्जुन ने यदुवंशियों के निमित्त पिण्डदान तथा श्राद्ध आदि संस्कार किये।
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पाण्डवों की हिमालय यात्रा
इन संस्कारों के बाद यदुवंश के बचे हुए लोगों को लेकर अर्जुन इंद्रप्रस्थ लौट आए। इसके बाद श्रीकृष्ण के महल को छोड़कर समस्त द्वारिका जलमग्न हो गई। इसके बाद पाण्डवों ने आध्यात्म प्राप्ति के उद्देश्य से हिमालय की यात्रा प्रारंभ कर दी तथा इसी यात्रा के अन्तर्गत एक-एक करके युधिष्ठिर को छोड़कर सभी ने प्राण त्याग दिये। बाद में अपनी सत्यवादिता तथा धर्मपरायणता के कारण युधिष्ठिर सशरीर स्वर्ग पहुंचे।
कौन था बहेलिया ?
ऐसा माना जाता है कि जिस बहेलिये के बाण से भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु हुई वह कोई और नहीं बल्कि त्रेतायुग का वानरराज बालि था। उस युग में श्रीकृष्ण के ही अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने वृ़क्ष की ओट लेकर बाण चलाकर बालि का वध किया था। तभी भगवान राम ने द्वापर युग में श्रीकृष्ण का अवतार लिया तथा बालि ने उस बहेलिया का। यानी इस समस्त घटनाक्रम की पटकथा त्रेतायुग में श्रीविष्णु के अवतार श्रीराम द्वारा लिखी जा चुकी थी।
॥ समाप्त ॥
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