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Shiv Avtar : कौन से हैं शिवजी के अवतार? | शिव के दसावतार | रुद्र अवतार

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Shiv Avtar : कौन से हैं शिवजी के अवतार? | शिव के दसावतार | रुद्र अवतार

 

Bhagwan Shiv Ke Avtar

 

Shiv Ji Avatar

 

नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Shiv Avtar  में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, जैसा कि हम जानते हैं कि राक्षसों द्वारा प्रत्येक युग में पृथ्वी पर उत्पात मचाया जाता था वे ऋषियों-मुनियों के यज्ञ-हवन आदि धार्मिक अनुष्ठानों में विघ्न डाला करते थे तथा आए दिन पृथ्वीवासियों को सताया करते थे।

इन सभी से मुक्ति पाने के लिए भगवान श्री हरि विष्णु ने समय-समय पर भांति-भांति के अवतार लिये और सभी को संकट से मुक्त कराया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान विष्णु की तरह शिवजी ने भी आवश्यकता पड़ने पर कई अवतार तथा रूप धारण किये हैं ?

यदि नहींं, तो यह पोस्ट आपके लिये महत्वपूर्ण सिद्ध होने वाली है क्योंकि इस पोस्ट में हम महादेव के उन्हीं Shiv Avtar अवतारों पर चर्चा करेंगे। तो आइये, पोस्ट आरंभ करते हैं।

Shiv Ji Avatar

 

भैरव अवतार :-

Bhairav Avtar

 

शिवमहापुराण में भैरव बाबा को शिवजी का अवतार बताया गया है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शंकर की माया से प्रभावित होकर ब्रह्मा तथा विष्णु स्वयं को एक-दूसरे से श्रेष्ठ मानने लगे थे। उस समय वहां पर एक ज्योति पुंज प्रकट हुआ जिसमें एक पुरूषाकृति दिखाई दी उसे देखकर अभिमानवश ब्रह्मा जी ने कहा चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो सो मेरी शरण में आओ।

ऐसा वचन सुनकर शंकर जी को क्रोध आ गया तथा उन्होंने भैरव रूप धारण करके जो की काल और क्रोध का स्वरूप है से ब्रह्मा जी का पांचवां सिर काट दिया। ऐसा करने से वे ब्रह्म हत्या के पाप के दोषी हो गये। ऐसी मान्यता है कि काशी में ही भैरव को इस पाप से मुक्ति मिली थी।

 

वीरभद्र अवतार :-

Veerbhadra Avtar

 

माता सती के पिता तथा शंकर जी के ससुर प्रजापति दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में शिवजी का अपमान होने से क्षुब्ध होकर देवी सती ने अपनी देह का त्याग कर दिया था। शिवजी को जब यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने क्रोध में भरकर अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे पर्वत पर पटक दिया जिसके पूर्वभाग से ही महाभयंकर वीरभद्र प्रगट हुये और उन्होंने दक्ष यज्ञ का विध्वंस कर दिया साथ ही दक्ष को भी मृत्युदंड दिया।

 

पिप्लाद अवतार :-

 

Piplad Avtar

 

महर्षि दधीचि, जिन्होंने देवराज इंद्र को वज्र प्रदान करने के लिए अपनी देह का त्याग कर दिया था उन्हीं के पुत्र का नाम पिप्पलाद था। एक बार पिप्पलाद ने देवताओं से अपने पिता की मृत्यु का कारण पूछा तो देवताओं ने बताया कि शनि ग्रह की दृष्टि के कारण ही ऐसा कुयोग बना।

ऐसा सुनकर पिप्पलाद ने शनि को नक्षत्र मंडल से गिरने का श्राप दे डाला जिससे शनी उसी समय आकाश से गिरने लगे। देवताओं ने ऋषि पिप्पलाद से प्रार्थना की तब उन्होंने इस बात पर शनि को क्षमा किया कि शनिदेव जन्म से लेकर १६ वर्ष की आयु तक किसी प्राणी को कष्ट नहीं देगें।

मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने ही शिवजी के इस अवतार का नामकरण किया था। पिप्पलाद का स्मरण करने मात्र से शनि ग्रह की पीड़ा से मुक्ति मिल जाती है।

 

Shiv Avtar : नंदी अवतार :-

 

Nandi Avtar

 

भगवान शिव का नंदीश्वर अवतार उनके द्वारा सभी जीव-जंंतुओं से प्रेम करने का संदेश देता है। नंदी अर्थात बैल कर्म का प्रतीक है जिसका अर्थ है कि कर्म ही जीवन है। इस अवतार की कथा इस प्रकार है – मुनि शिलाद एक ब्रह्मचारी थे। अपने वंश को समाप्त होते देखकर उनके पितरों ने शिलाद से संतान उत्पन्न करने को कहा तो,

मुनि ने भगवान शिव की तपस्या की तथा वरदान में एक अयोनिज तथा मृत्युहीन संतान की कामना की। प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने शिलाद मुनि के यहां स्वयं पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया।

वरदान प्राप्ति के कुछ समय बाद भूमि जोतते हुये शिलाद को भूमि से उत्पन्न एक बालक की प्राप्ति हुई तथा शिलाद ने उस बालक का नाम नंदी रख दिया। नंदी बालपन से ही शिवजी की भक्ति किया करते थे जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें अपना गणाध्यक्ष नियुक्त किया तथा वे नंदीश्वर हो गये। नंदी का विवाह मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ हुआ।

 

अश्वत्थामा अवतार :-

 

Ashwathama Avtar

 

महाभारत काल के अनुसार पांडवों के गुरू द्रोणाचार्य ने भगवान शंकर को पुत्र रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी और भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया था कि वे उनके पुत्र के रूप में अवतीर्ण होंगे। समय आने पर उन्होंने द्रोण के बलशाली पुत्र अश्वत्थामा के रूप में जन्म लिया। ऐसी मान्यता है कि अश्वत्थामा अमर हैं तथा वह आज अर्थात कलयुग में भी पृथ्वी पर निवास करते हैं।

 

शरभावतार :-

 

Sharbha Avtar

 

लिंगपुराण में भगवान शिव के इस अवतार का वर्णन है। भक्त प्रहलाद के पिता राक्षस हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए श्री हरि विष्णु ने नृसिंह अवतार लिया था। राक्षस के वध के पश्चात भी विष्णु जी का क्रोध शान्त नहीं हुआ  तब देवताओं ने शिवजी से प्रार्थना की।

इस पर भगवान शिव ने शरभावतार लिया यह स्वरूप अत्यंत विचित्र था। इसमें शंकर जी का आधा स्वरूप मृग यानी हिरण का तथा शेष शरभ पक्षी (पुराणों में वर्णित आठ पैरों वाला जंतु जो शेर से भी अधिक शक्तिशाली था) का था। शरभ पक्षी रूपी भगवान  शिव, विष्णु जी को अपनी पूंछ में लपेटकर आकाश में ले उड़े तथा उनके क्रोध को शांत किया।

भगवान विष्णु ने क्रोध शांत होने पर शरभावतार से क्षमा याचना करते हुये अति विनम्र भाव से उनकी स्तुति की।

 

गृहपति अवतार :-

 

Grihpati Avtar

इस अवतार की कथा इस प्रकार है – नर्मदा के तट पर धर्मपुर नाम का एक नगर था। वहां विश्वनार नाम के एक मुनि तथा उनकी पत्नी शुचिष्मती रहा करते थे। देवी शुचिष्मती ने बहुत काल तक निःसंतान रहने पर एक दिन अपने पति से शिवजी के समान पुत्र प्राप्ति की इच्छा प्रकट की।

अपनी पत्नी की यह मनोकामना पूरी करने हेतु विश्वनार मुनी काशी आ गये तथा भगवान शिव के वीरेश लिंग की आराधना की। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर शंकर भगवान ने शुचिष्मति के गर्भ से अवतार लिया तथा इस अवतार का नाम गृहपति हुआ।

 

ऋषि दुर्वासा :-

 

Rishi Durvasa Avtar

 

कम ही लोग जानते होंगे कि दुर्वासा ऋषि भी भगवान शिव का ही एक अवतार हैं। धर्म ग्रंंथों के अनुसार महासती अनुसूइया के पति महर्षि अत्रि ने ब्रह्मा जी के निर्देशानुसार पत्नी सहित ऋक्षकुल पर्वत पर घोर तप किया जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों उनके आश्रम पर आए।

त्रिदेवों ने कहा कि हमारे अंश से तुम्हारे तीन पुत्र होंगे जो कि त्रिलोकी में विख्यात तथा माता-पिता का यश बढ़ाने वाले होंगे।

कालान्तर में ब्रह्मा जी के अंश से चंद्रमा, विष्णु जी के अंश से दत्तात्रेय तथा रुद्र के अंश से महर्षि दुर्वासा ने जन्म लिया।

 

महावीर हनुमान :-

Hanuman Shiva Avtar

 

हनुमान जी को शिवजी का ११वां रुद्रावतार माना जाता है जिसमें शंकर भगवान ने एक वानर का रूप धरा। शिवमहापुराण के अनुसार देवताओं और दानवों को अमृत बांटते हुए विष्णु जी के मोहिनी रूप को देखकर लीलावश शिवजी ने कामातुर होकर अपना तेज स्खलित कर दिया।

सप्तऋषियों ने उस तेज अर्थात वीर्य को कुछ पत्तों में संग्र्हित कर लिया तथा वानरराज केसरी की पत्नी अंजनी के कान के माध्यम से उनके गर्भ में स्थापित कर दिया जिससे अत्यंत तेजस्वी तथा पराक्रमी श्री हनुमान जी का जन्म हुआ।

 

यतिनाथ अवतार :-

 

Yatinath Avtar

 

भगवान शंकर ने यतिनाथ अवतार लेकर अतिथि के महत्व पर प्रकाश डाला है। एक समय की बात है अर्ब्रदाचल पर्वत के निकट शिवभक्त आहुक तथा आहुका नामक भील दम्पत्ति निवास करते थे। एक बार भगवान शंकर यतिनाथ के वेष में उनके घर अतिथि के रूप में आए और दम्पत्ति के घर पर ही रात व्यतीत करने की इच्छा प्रकट की।

आहुका ने अपने पति को ग्रहस्थ की मर्यादा का पालन करने को कहा तथा आहुक को धनुषबाण लेकर बाहर रात बिताने और यति को घर में ठहराने को कहा। आहुक धनुषबाण लेकर बाहर पहरा देने लगा।

अगली सुबह यति और आहुक की पत्नि आहुका ने देखा कि वन्यप्रिणयों ने आहुक को मार डाला है। यतिनाथ इस पर बहुत दुःखी हुये, इस पर आहुका ने कहा कि आप शोक न करें क्योंति अतिथि सेवा में प्राण विसर्जन धर्म है और उसका पालन करके हम धन्य हुए हैं। आहुका की सेवा भावना से शिवजी प्रसन्न हुए और उसे दर्शन देकर अगले जन्म में पुनः अपने पति से मिलने का आशीर्वाद दिया।

 

अवधूत रूप :-

 

Avdhoot Avtar

 

इस अवतार का उद्देश्य इंद्र के अभिमान को चूर करना था। एक समय देवगुरु बृहस्पति इंन्द्रादि देवताओं को साथ लेकर  भगवान शंकर के दर्शनों के लिए कैलाश पर्वत पर गए। इंद्र की परीक्षा लने के लिए शंकरजी ने अवधूत रूप धारण कर उनका मार्ग रोक लिया तो इंद्र ने अभिमानवश उस पुरूष का अपमान किया और परिचय पूछा किन्तु,

जब अवधूत मौन ही रहे तो क्रोध में भरकर इंद्र ने अपना वज्र छोड़ना चाहा किन्तु उनका हाथ स्तंभित हो गया। यह देखकर देवगुरू तथा इंद्र ने  शिवजी को पहचान लिया और उनसे क्षमा याचना करते हुए शिवजी की स्तुति की इससे प्रसन्न होकर शिवजी ने इंद्र को क्षमा कर दिया।

 

भिक्षुवर्य अवतार :-

 

Bhikshuvarya Avtar

 

विदर्भ नरेश सत्यरथ को शत्रुओं ने मार डाला था उनकी गर्भवती पत्नी ने शत्रुओं से छिपकर अपने प्राण बचाए तथा भविष्य में एक पुत्र को जन्म दिया। एक समय रानी प्यास से व्याकुल अपने पुत्र के लिए जब जल लेने के लिए सरोवर गई तो उसे घड़ियाल ने अपना ग्रास बना लिया। रानी की मृत्यु होने से  वह बालक प्यास से तड़पने लगा।

इतने में शिवजी की प्रेरणा से एक भिखारिन वहां पहुंची तब शिवजी भी एक भिक्षुक का रूप धर के पहुंच गये तथा उस भिखारिन को बालक का परिचय दिया तथा उसके पालन-पोषण का निर्देश दिया। भिखारिन ने उस बालक का लालन-पालन किया जब वह बालक युवा हो गया तो शिवजी की कृपा से शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर पुनः अपना राज्य प्राप्त कर लिया।

 

सुरेश्वर रूप : –

 

Sureshwar Avtar

 

सुरेश्वर अर्थात इंद्र का रूप भक्त के प्रति शिवजी के प्रेम को दर्शाता है। इस रूप में भगवान ने एक छोटे बालक उपमन्यु की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद दिया। पौराणिक कथा के अनुसार व्याघ्रपाद का पुत्र उपमन्यु अपने मामा के घर रहता था। वह सदा दूध की इच्छा से व्याकुल रहता था यह इच्छा देखकर उपमन्यु की माता ने उसे शिवजी की भक्ति करने के लिए कहा।

बालक वन में जाकर शिवजी की भक्ति करने लगा जिससे प्रसन्न होकर शिवजी इंद्र का रूप धरकर उसके पास पहुंचे तथा शिवजी की निंदा करने लगे। इस पर बालक उपमन्यु क्रोध में भरकर इंद्र को मारने दौड़ा तब शिवजी ने उसे अपने वास्तविक दर्शन दिये तथा क्षीरसागर प्रदान किया साथ ही भोलेनाथ ने उपमन्यु को परम भक्ति का फल भी प्रदान किया।

 

किरात रूप :-

 

Kirat Avtar

 

इस अवतार में भगवान ने पाण्डुपुत्र अर्जुन की परीक्षा ली थी। महाभारत के अनुसार कौरवों ने छल-कपट से पाण्डवों का राज्य हड़प लिया जिससे पाण्डवों को वनवास जाना पड़ा। वनगमन के दौरान अर्जुन, शिवजी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या कर रहे थे, तभी दुर्योधन द्वारा भेजा हुआ मूड़ नामक दैत्य अर्जुन को मारने के लिए शूकर अर्थात सुअर का रूप धारण कर वहां पहुंचा।

अर्जुन ने उस शूकर पर अपने बाण से प्रहार किया उसी समय भगवान शंकर ने भी किरात वेश धारण कर बाण चलाया। शूकर के मरने पर अर्जुन ने कहा कि यह मेरा शिकार है जबकि किरत ने कहा कि यह मेरा शिकार है। इस पर दोनों में विवाद बढ़ गया तथा देखते ही देखते युद्ध शुरू हो गया।

अर्जुन की वीरता को देखते हुए शिवजी ने अपने दर्शन दिये तथा पाण्डवों को महाभारत युद्ध में विजयी होने का आशीर्वाद प्रदान किया।

 

Shiv Ji Ke Avtar : सुनटनर्तक रूप :-

Sunatnartak Avtar

 

पार्वती के पिता हिमाचल से उनकी पुत्री का हाथ मांगने के लिए शिवजी ने एक नट का वेश धारण किया और महल पहुंचकर नृत्य करने लगे। उनके नृत्य प्रदर्शन से सभी प्रसन्न हुये तथा पर्वतराज हिमाचल ने उनसे उपहार मांगने को कहा।
नटरूपी शिवजी ने पार्वती को ही उपहार रूप में मांग लिया जिससे वहां उपस्थित सभी क्रोधित हो गये और दण्ड देने को आतुर हो उठे।

तब नटराज वेषधारी शिवजी ने माता पार्वती को अपना असली रूप दिखाया और वहां से चले गये। उनके चले जाने पर माता पार्वती ने अपने माता-पिता को समझाया और मैना तथा हिमाचल को दिव्य ज्ञान हुआ तब उन्होंने अपनी पुत्री पार्वती का विवाह शिवजी ने करने का निश्चय किया।

 

ब्राह्मण (ब्रह्म्चारी) रूप :-

 

Brahamchari Avtar

 

माता पार्वती जब शिवजी को पति के रूप में पाने के लिये कठोर तप कर रही थीं तब उनकी परीक्षा लेने के लिए शिवजी ने सप्तऋषियों को बुलाया और उनसे कहा कि वे पार्वती के पास जायें और उनसे शिव की निंदा करें।
सप्तऋषियों ने ऐसा ही किया किन्तु पार्वती अपने निश्चय पर अडिग रहीं।

इसके पश्चात स्वयं शिवजी ब्राह्मण का रूप धरकर उनके पास पहुंचे तथा उनसे बोले कि शिव तो श्मशान निवासी हैं, कापालिक हैं तथा चिता भस्म धारण करते हैं न रहने का कोई स्थान है, न पहनने की कोई सुध। अपना जीवन नष्ट न करो और किसी धनी राजकुमार से विवाह कर लो।

ये सुनकर पार्वती क्रोधित होकर उन्हें श्राप देने को आतुर हो गईं तब शिवजी अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और उनसे विवाह करने का वचन दिया।

 

Shiv Ji Avatar : यक्ष रूप :-

Yakshroop Avtar

 

समुद्र मंथन के दौरान जब भयंकर हलाहल कालकूट विष निकला तो भगवान शंकर ने उसे ग्रहण कर अपने कंठ में रोक लिया। इसके बाद अमृत कलश निकला। अमृतपान करने से देवता अमर हो गए किंतु साथ ही उन्हें अभिमान हो गया।
देवताओं के इसी अभिमान को तोड़ने के लिए शिवजी ने यक्ष का रूप धारण किया व देवताओं के आगे एक तिनका रखकर उसे काटने को कहा।

सभी देवता मिलकर भी उस तिनके को काट नहीं पाए। तभी आकशवाणी हुई कि यह यक्ष सब गर्वां के विनाश करने वाले भगवान शंकर हैं। तब सभी देवताओं ने अपने अपराध के लिए उनसे क्षमा मांगते हुए उनकी स्तुति की।

 

कृष्णदर्शन अवतार :-

 

Krishandarshan Avtar

 

इक्ष्वाकुवंशीय श्राद्धदेव की नवमी पीढ़ी में राजा नभग का जन्म हुआ। विद्या-अध्ययन के लिये गुरुकुल गए नभग जब बहुत दिनों तक नहीं लौटे तो उनके भाइयों ने राज्य का विभाजन आपस में कर लिया। नभग को जब यह बात ज्ञात हुई तो वह अपने पिता के पास गए।

पिता ने नभग से कहा कि वह यज्ञ परायण ब्राह्मणों के मोह को दूर करते हुए उनके यज्ञ को सम्पन्न करके, उनके धन को प्राप्त करे। तब नभग ने यज्ञभूमि में पहुंचकर वैश्य देव सूक्त के स्पष्ट उच्चारण द्वारा यज्ञ संपन्न कराया। अंगारिक ब्राह्मण यज्ञ अवशिष्ट धन नभग को देकर स्वर्ग को चले गए। उसी समय शिवजी कृष्णदर्शन रूप में प्रकट होकर बोले कि यज्ञ के अवशिष्ट धन पर तो उनका अधिकार है।

विवाद होने पर कृष्णदर्शन रूपधारी शिवजी ने उसे अपने पिता से ही निर्णय कराने को कहा। नभग के पूछने पर श्राद्धदेव ने कहा-वह पुरुष शंकर भगवान हैं। यज्ञ में अवशिष्ट वस्तु उन्हीं की है। पिता की बातों को मानकर नभग ने शिवजी की स्तुति की।

 

वृषभ अवतार:-

Vrishabh Avtar

 

धर्मग्रंथों के अनुसार इस अवतार में भगवान शिव ने विष्णु पुत्रों का संहार किया था। जब भगवान विष्णु दैत्यों को मारने पाताल लोक गए तो उन्हें वहां बहुत सी चंद्रमुखी स्त्रियां दिखाई पड़ी। विष्णु ने उनके साथ रमण करके बहुत से पुत्र उत्पन्न किए। विष्णु के इन पुत्रों ने पाताल से पृथ्वी तक बड़ा उपद्रव किया।

उनसे घबराकर ब्रह्माजी ऋषिमुनियों को लेकर शिवजी के पास गए और रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे। तब भगवान शंकर ने वृषभ रूप धारण कर विष्णु पुत्रों का संहार किया।

इन अवतारों के अलावा शिव के दुर्वासा, महेश, वृषभ, पिप्पलाद, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, अवधूतेश्वर, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, ब्रह्मचारी, सुनटनतर्क, द्विज, अश्वत्थामा, किरात, नतेश्वर और हनुमान आदि अवतारों का उल्लेख भी ‘शिव पुराण’ में हुआ है जिन्हें अंशावतार माना जाता है।

 

Shiva Dashavatar : शिव के दसावतार (दशावतार):-

 

Dasaavtar

 

1. महाकाल,

2. तारा,

3. भुवनेश,

4. षोडश,

5. भैरव,

6. छिन्नमस्तक गिरिजा,

7. धूम्रवान,

8. बगलामुख,

9. मातंग और

10. कमल नामक अवतार हैं।

ये सभी दस अवतार तंत्रशास्त्र से संबंधित हैं।

 

Shiva Rudra Avtar : शिव के अन्य 11 अवतार जिन्हें रुद्र अवतार कहते हैं:-

 

Rudraavtar

 

1. कपाली,

2. पिंगल,

3. भीम,

4. विरुपाक्ष,

4. विलोहित,

6. शास्ता,

7. अजपाद,

8. आपिर्बुध्य,

9. शम्भू,

10.चण्ड तथा

11. भव।

उपर दिये गये इन रुद्रावतारों के कुछ शास्त्रों में भिन्न नाम भी मिलते हैं।

 

108 Naam Shiv ji Ke

तो दोस्तों, यह था शिवजी के स्वरूपों का वर्णन्। आपको यह पोस्ट Shiv Avtar कैसी लगी कृपया हमें बतायें और यदि आपके कुछ सुझाव हों तो हमारे साथ शेयर करें। ब्लाग को सब्सक्राइब कर लें, आपका दिन शुभ व मंगलमय हो।


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