Ganesh Kavach : श्री गणेश कवच (हिन्दी अर्थ सहित)।
नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Ganesh Kavach में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, गजानन यानी भगवान श्री गणेश सनातन हिन्दू धर्म के प्रमुख देवता माने गये हैं यह देवताओं में प्रथम पूज्य हैं तथा सभी प्रकार के विघ्नों का हरण करने वाले भी हैं।
इस पोस्ट में हम इन्हीं मंगलकारी देवता श्री गणपति को समर्पित तथा अपनी रक्षा के लिए श्री गणपति कवच का पाठ करेंगे साथ ही इसका हिन्दी में अर्थ भी जानेंगे। कवच एक प्रकार का अदृश्य सुरक्षा चक्र है जो मनुष्य को सभी प्रकार के यंत्र तंत्र मंत्र से सुरक्षा प्रदान करता है।
जब हम किसी देव विशेष की पूजा और मन्त्र का जाप करते हैं तो मन में उसी देव का विचार होना चाहिए, मन विचलित नहीं होना चाहिए। इस कवच में अपने शरीर की रक्षा के लिए भगवान गणपति का आह्वान किया गया है। तो आईये, पोस्ट आरंभ करते हैं –
Ganesh Kavach : गणेश कवच संस्कृत (हिंदी अनुवाद सहित)
॥श्री गणेशाय नमः॥
गौरी उवाच-
एषोऽतिचपलो दैत्यान्बाल्येऽपि नाशयत्यहो ।
अग्रे किं कर्म कर्तेति न जाने मुनिसत्तम ।।1।।
भावार्थ — माता पार्वती बोलीं, हे ऋषि श्रेष्ठ (मरीचि मुनि) हमारा पुत्र गणेश अत्यधिक चपल हो गया है बचपन से इन्होंने दुष्ट व्यक्तियों को मारा है और आश्चर्यचकित कार्य कर दिखाए हैं इससे आगे क्या होगा मुझे मालूम नहीं है।
दैत्या नानाविधा दुष्टा: साधुदेवद्रुह: खला: ।
अतोऽस्य कण्ठे किंचित्त्वं रक्षार्थं बद्धुमर्हसि ।।2।।
भावार्थ — नकारात्मक प्रवृत्तियों वाले व्यक्तियों से बचने के लिए बाल गणेश के गले में ताबीज आदि बांधने के विषय में कहो।
इस प्रकार माता पार्वती के पूछने पर ऋषि ने हम सभी के कल्याण के लिये इस कवच के संबंध में बताया।
Ganesh Kavach
ऋषि उवाच-
ध्यायेत्सिंहगतं विनायकममुं दिग्बाहुमाद्यं युगे
त्रेतायां तु मयूरवाहनममुं षड्बाहुकं सिद्धिदम् ।
द्वापरे तु गजाननं युगभुजं रक्तांगरागं विभुम्
तुर्ये तु द्विभुजं सितांगरूचिरं सर्वार्थदं सर्वदा ।।3।।
भावार्थ — मुनि बोले, सतयुग में दस हाथ धारण करके सिंह पर सवार होने वाले विनायक जी का ध्यान करें। त्रेता युग में छः हाथ धारण करके व मयूर की सवारी करने वाले, द्वापर युग में चार भुजावाले, नाव में अवतरित रक्तवर्ण गजानन का ध्यान करें तथा कलयुग में दो हाथ व सुंदर श्वेत स्वरूप धारण करके अवतार लेने वाले और अपने भक्तों को सभी प्रकार के सुख देने वाले गणेश जी का ध्यान करें।
विनायक: शिखां पातु परमात्मा परात्पर: ।
अतिसुंदरकायस्तु मस्तकं सुमहोत्कट: ।।4।।
भावार्थ — परमात्मा विनायक आप शिखा स्थान में हमारी रक्षा करें। अतिशय सुंदर शरीर वाले अत्यंत समर्थवान गणेश जी मस्तक में रक्षा करें।
ललाटं कश्यप: पातु भ्रूयुगं तु महोदर: ।
नयने भालचन्द्रस्तु गजास्यस्तवोष्ठपल्लवौ ।।5।।
भावार्थ — कश्यप के पुत्र गणेश ललाट में हमारी रक्षा करें, विशाल उधर वाले गणेश जी हमारी भोहों में रक्षा करें। भालचंद्र गणेश जी हमारी आंखों की रक्षा करें और गज बदन गणेश मुख्य की एवं दोनों होठों की रक्षा करें।
जिह्वां पातु गणाक्रीडश्रिचबुकं गिरिजासुत: ।
पादं विनायक: पातु दन्तान् रक्षतु दुर्मुख: ।।6।।
भावार्थ — शिवगणों में बराबर क्रीड़ा करने वाले गणेश जी हमारे ठोडी की रक्षा करें, गिरिजेश पुत्र गणेश जी हमारे तालु की रक्षा करें, विनायक हमारी वाणी की रक्षा करें और विघ्नहर्ता गणेश जी दांतो की रक्षा करें।
श्रवणौ पाशपाणिस्तु नासिकां चिंतितार्थद: ।
गणेशस्तु मुखं कंठं पातु देवो गणञज्य: ।।7।।
भावार्थ — हाथों के मध्य पाश धारण करने वाले गणेश जी दोनों कानों की रक्षा करें, मनोवांछित फल देने वाले गणेश जी नाक की रक्षा करें। गणों के अधिपति गणेश जी हमारे मुख एवं गले की रक्षा करें।
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स्कंधौ पातु गजस्कन्ध: स्तनौ विघ्नविनाशन: ।
ह्रदयं गणनाथस्तु हेरंबो जठरं महान् ।।8।।
भावार्थ — गजस्कंध गणेश जी स्कंधों की रक्षा करें। विघ्नों के विनाशक गणेश जी हमारे स्तनों की रक्षा करें। गणनाथ गणेश हमारे हृदय की रक्षा करें और परम श्रेष्ठ हेरम्ब हमारे पेट की रक्षा करें।
धराधर: पातु पाश्र्वौ पृष्ठं विघ्नहर: शुभ: ।
लिंगं गुज्झं सदा पातु वक्रतुन्ड़ो महाबल: ।।9।।
भावार्थ — धरणीधर गणेश जी हमारे दोनों बांहों की रक्षा करें। सर्वमंगल व विघ्नहर्ता गणेश जी आप हमारे पीठ की रक्षा करें। वक्रतुंड और महा सामर्थवान गणेश जी हमारे लिंग व गुह्म की रक्षा करें।
गणाक्रीडो जानुजंघे ऊरू मंगलमूर्तिमान् ।
एकदंतो महाबुद्धि: पादौ गुल्फौ सदाऽवतु ।।10।।
भावार्थ — गणक्रीडा नाम धारण करने वाले गणेश जी आप हमारे दोनों घुटनों के जांघों की रक्षा करें। मंगलमूर्ति दोनों ऊरू की रक्षा करें। एकदंत गणेश जी आप हमारे दोनों पांव और महाबुद्धि वाले गणेश जी हमारे गुल्फों की रक्षा करें।
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क्षिप्रप्रसादनो बाहू पाणी आशाप्रपूरक: ।
अंगुलीश्च नखान्पातु पद्महस्तोऽरिनाशन ।।11।।
भावार्थ — शीघ्र प्रसन्न होने वाले गणेश जी दोनों बाहुओं की रक्षा करें, भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाले हमारे हाथों की रक्षा करें। हाथों में पदम धारण करने वाले और शत्रुओं का नाश करने वाले गणेश जी आप हमारी उंगलियों तथा नाखूनों की रक्षा करें।
सर्वांगनि मयूरेशो विश्र्वव्यापी सदाऽवतु ।
अनुक्तमपि यत्स्थानं धूम्रकेतु: सदाऽवतु ।।12।।
भावार्थ — संपूर्ण विश्वव्यापी मयूरेश सर्वांगों अर्थात सभी अंगों की रक्षा करें। जो स्थान स्त्रोत में नहीं कहे गए हो उनकी रक्षा धूम्रकेतु नामक गणेश जी महाराज करें।
आमोदस्त्वग्रत: पातु प्रमोद: पृष्ठतोऽवतु ।
प्राच्यां रक्षतु बुद्धीश आग्नेय्यां सिद्धिदायक: ।।13।।
भावार्थ — प्रसन्नचित्त नाव में विचरण करने वाले गणेश जी बाजूओं के पीछे की रक्षा करें और बाजुओं के आगे की रक्षा करें, बुद्धि के अधिपति पूर्व दिशा में हमारी रक्षा करें तथा सिद्धिदायक आग्नेय दिशा में हमारी रक्षा करें।
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दक्षिणस्यामुमापुत्रो नैर्ऋत्यां तु गणेश्वर: ।
प्रतीच्यां विघ्नहर्ताऽव्याद्वायव्यां गजगर्णक: ।।14।।
भावार्थ — उमा के पुत्र गणेश जी दक्षिण दिशा में हमारी रक्षा करें, गणों के अधिपति नेत्रत्य दिशा में हमारी रक्षा करें। विघ्नहर्ता गणेश जी पश्चिम दिशा में हमारी रक्षा करें और गजकर्ण वायव्य दिशा में हमारी रक्षा करें।
कौबेर्यां निधिप: पायादीशान्यामीशनन्दन: ।
दिवोऽव्यादेलनन्दस्तु रात्रौ संध्यासु विघ्नह्रत् ।।15।।
भावार्थ — निधि में अधिपति गणेश जी उत्तर दिशा में हमारी रक्षा करें। शिवजी के पुत्र गणेश जी ईशान दिशा में हमारी रक्षा करें, एकदंत गणेश जी आप दिन में हमारी रक्षा करें। विघ्नहर्ता रात्रि व संध्याकाल में हमारी रक्षा करें।
राक्षसासुरवेतालग्रहभूतपिशाचत:
पाशांकुशधर: पातु रज:सत्त्वतम:स्मृति: ।।16।।
भावार्थ — पाश अंकुश धारण करने वाले व सत रज तम तीन गुणों से जाने जाने वाले गणेश जी आप राक्षस, दैत्य, वैताल, ग्रह, भूत पिशाच आदि से हमारी रक्षा करें।
ज्ञानं धर्मं च लक्ष्मीं च लज्जां कीर्तिं तथा कुलम् ।
वपुर्धनं च धान्यश्र्च ग्रहदारान्सुतान्सखीन् ।।17।।
भावार्थ — ज्ञान, धर्म, लज्जा, कीर्ति, कुल, शरीर, स्त्री, पुत्र, मित्रों की रक्षा करें।
सर्वायुधधर: पौत्रान्मयूरेशोऽवतात्सदा ।
कपिलोऽजाबिकं पातु गजाश्रवान्विकटोऽवतु ।।18।।
भावार्थ — सर्व आयुध धारण करने वाले गणेश जी पोत्रों की रक्षा करें। कपिल नाम गणेश बकरी, गाय आदि की रक्षा करें। हाथी घोड़ों की रक्षा विकट नाम के गणेश जी करें।
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फलश्रुति
भूर्जपत्रे लिखित्वेदं य: कण्ठेधारयेत्सुधी: ।
न भयं जायते तस्य यक्षरक्ष:पिशाचत: ।।19।।
भावार्थ — जो उत्कृष्ट बुद्धिमान मनुष्य इस कवच को भोजपत्र पर लिखकर गले में धारण करता है। उसके सामने कभी यक्ष राक्षस व पिशाच नहीं आते।
त्रिसंध्यं जपते यस्तु वज्रसारतनुर्भवेत् ।
यात्राकाले पठेद्यस्तु निर्विघ्नेन फलं लभेत् ।।20।।
भावार्थ — जो कोई प्रातः दोपहर व संध्याकाल तीनों काल में कवच स्त्रोत का पाठ करता है तथा विधि पूर्वक जब करता है उसका शरीर वज्र जैसा कठोर बन जाता है। जो कोई यात्रा के समय इसका पाठ करता है उसकी यात्रा सफल होती है, बिना विघ्न के उसे अच्छा फल मिलता है।
युद्धकाले पठेद्यस्तु विजयं चाप्नुयाद्ध्रुवम् ।
मारणोच्चटनाकर्षस्तंभमोहनकर्मणि ।।21।।
भावार्थ — युद्ध के समय वीर पुरुष इस कवच को पढ़ने से शत्रु पर विजय पता है। मारण, उच्चाटन, आकर्षण, स्तंभन व मोहन ऐसी क्रिया करते हैं जिससे शत्रु पर विजय प्राप्त होती है।
सप्तवारं जपेदेतद्दिननामेकविशतिम ।
तत्तत्फलमवाप्नोति साधको नात्र संशय: ।।22।।
भावार्थ — जो कोई प्रतिदिन सात बार इसका पाठ करता है या इक्कीसवें दिन इस कवच का पाठ करने से साधक को अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।
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एकविंशतिवारं च पठेत्तावद्दिनानि य: ।
काराग्रहगतं सद्यो राज्ञा वध्यं च मोचयेत् ।।23।।
भावार्थ — जो कोई प्रतिदिन इक्कीस बार के नियम से इक्कीस दिन लगातार इसका पाठ करता है तो वह कारागृह एवं राज बंधन से मुक्त हो जाता है।
राजदर्शनवेलायां पठेदेतत्तत्त्रिवारत: ।
स राजानं वशं नीत्वा प्रक्रतीश्र्च सभां जयेत् ।।24।।
भावार्थ — राजा के दर्शन के समय जो कोई पुरुष इस कवच को तीन बार पाठ करें तो निश्चित ही वह राजा को वश में करके राज सभा में विजय व सम्मान प्राप्त करता है।
इदं गणेशकवचं कश्यपेन समीरितम् ।
मुद्गलाय च तेनाथ मांडव्याय महर्षये ।।25।।
भावार्थ — मरीच ऋषि पार्वती से बोले कि यह गणेश कवच कश्यप जी ने मुद्गल ऋषि को सुनाया तथा मुद्गल ऋषि ने मांडव्य ऋषि को सुनाया।
Ganesh Kavach
मज्झं स प्राह कृपया कवचं सर्वसिद्धिदम् ।
न देयं भक्तिहीनाय देयं श्रद्धावते शुभम् ।।26।।
भावार्थ — मांडव्य ऋषि ने सर्वसिद्धि देने वाली यह कवच पाठ मुझे पढ़ाया, हे देवी इसे भक्तिहीन मनुष्य को नहीं देना चाहिए। श्रद्धावान मनुष्य को यह कवच पाठ देना लाभदायक होता है।
अनेनास्य कृता रक्षा न बाधाऽस्य भवेत्कचित् ।
राक्षसासुरवेतालदैत्यदानवसंभवा ।।27।।
भावार्थ — हे देवी ! इस गणेश कवच के पाठ से बाल गणेश की रक्षा होगी। हमारे शत्रु, राक्षस, दैत्य, दानव, असुर से कोई भय नहीं रहेगा। यह सुनिश्चित समझो।
॥ इति॥
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jai ganesh ji maharaj
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