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Ramayana : जानें रामायण और रामचरितमानस में अंतर 

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Ramayana : रामायण और रामचरितमानस में अंतर

नमस्कार दोस्तों! हमारे ब्लॉग पोस्ट ramayana में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, हम बचपन से ही श्री रामचरित मानस तथा रामायण के संबंध में सुनते तथा पढ़ते आयें हैं। प्रायः मन में यह प्रश्न उठता है कि क्या ये दोनों ग्रंथ एक ही हैं अथवा इनमें कोई भिन्नता भी है। इस पोस्ट में हम इसी भ्रम को दूर करने का प्रयास करेंगे। तो आईये, पोस्ट शुरू करते हैं।

Ramayana : रामायण और रामचरितमानस एक दृष्टि में

वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण प्राचीन भारत के इतिहास में साहित्य की सबसे बड़ी कृतियों में से एक है। यह विश्व साहित्य के मानकों में मील का पत्थर साबित हुई है और 300 से अधिक भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया है। यह शब्द-साहित्य के अंतर्गत सबसे बड़े प्राचीन महाकाव्यों में से एक है, जिसमें लगभग 24,000 छंद हैं, जो सात पुस्तक खण्डों (कांडों) में विभाजित हैं, जिसमें 500 सर्ग (अध्याय) शामिल हैं।

भारतीय तथा विश्व साहित्य दोनों में रामायण का महत्व भारत की समृद्ध व विविध विरासत के लिए अत्यंत गर्व की बात है। सभी पीढ़ियों के लेखकों को वाल्मीकि जी की प्रतिभा से बहुत प्रेरणा मिली है और उन्होंने उनके महान महाकाव्य के आधार पर कई काम किए हैं।

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रामायण की सबसे लोकप्रिय प्रतिलिपियों में से एक श्री रामचरितमानस है। रामचरितमानस, 16वीं शताब्दी के भारतीय भक्ति कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित है। रामचरितमानस शब्द का अर्थ है, राम के कर्मों की झील।  इसमें मधुर ढंग से कविताओं का समावेश है। पूरी कहानी भगवान शिव द्वारा देवी पार्वती को सुनाई जाने वाली कथा है।

‘मानस’ शब्द का अर्थ शिव के मन में कल्पनाओं की झील से है। रामचरितमानस वाल्मीकि जी की रामायण जितनी ही लोकप्रिय साबित हुई है। इसे हिंदू पौराणिक कथाओं के साहित्यिक कार्यों में से एक माना जाता है। रामायण और रामचरितमानस महान भारतीय महाकाव्य हैं, जो हमें भगवान श्रीराम ( भगवान विष्णु के पृथ्वी पर सातवें अवतरण) की यात्रा बताते हैं।

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who wrote ramayana : वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास की रामचरितमानस कब लिखी गई?

वाल्मीकि जी ने मूल रूप से 1500 से 500 ईसा पूर्व के बीच संस्कृत में रामायण लिखी थी। पुस्तक के उत्पादन की सटीक तिथि अज्ञात है, अनुमान तो नेपाल में पाए गए सबसे पुराने पांडुलिपियों से लेकर, 11 वीं शताब्दी तक के हैं। रामचरितमानस को गोस्वामी तुलसीदास ने 16वीं शताब्दी ईस्वी में हिंदी की अवधी बोली में लिखा था।

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यद्यपि तुलसीदास जी संस्कृत के बहुत बड़े विद्वान थे। उन्होंने अवधी बोली में रामायण का संस्करण लिखने का निर्णय किया, ताकि महान नायक श्री राम की कहानी को स्थानीय भाषा में सुनाया जा सके, जिससे सभी के लिए इसे सुलभ बनाया जा सके। अवधी, उस समय मध्य और उत्तर भारत के प्रमुख हिस्सों में सामान्य भाषा में प्रयुक्त होने वाली भाषा थी।Ramayana

संस्कृत, तब विद्वानों तथा उच्च वर्ग द्वारा उपयोग की जाती व समझी जाती थी। कुछ इतिहासकारों की मानें तो उस समय कई संस्कृत विद्वानों ने अवधि भाषा में लिखने के लिए तुलसीदास जी की अवहेलना की थी। हालाँकि, तुलसीदास जी महर्षि वाल्मीकि द्वारा कृत रामायण की कहानियों में निहित महान ज्ञान को सरल बनाने तथा जन—जन तक प्रसारित करने के अपने निर्णय पर अटल रहे।

रामायण  तथा  रामचरितमानस के 7 कांड

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वाल्मीकि की रामायण सात कांडों में लिखी गई है, जिन्हें बाल कांड, अयोध्या कांड, अरण्य कांड, किष्किन्धा कांड, सुंदर कांड, युद्ध कांड और उत्तर कांड के नाम से जाना जाता है। यहां तक कि तुलसीदास जी ने भी रामचरितमानस को सात कांडों में विभाजित किया है। हालांकि, तुलसीदास जी ने युद्ध कांड का नाम बदलकर लंका कांड रखा है जो रामायण और रामचरितमानस के प्रमुख अंतरों में से एक है।

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रामायण को त्रेता युग में संस्कृत भाषा में ऋषि वाल्मीकि ने लिखा, था ऋषि वाल्मीकि भगवान राम के समकालीन थे। रामचरितमानस को कलयुग में महान अवधी कवि गोस्वामी तुलसीदास ने अवधी भाषा में लिखा था। तुलसीदास 15वीं शताब्दी ईस्वी (1511-1623) में रहे।

रामायण शब्द दो शब्दों से बना है – राम और अयनम (कहानी), इस प्रकार रामायण का अर्थ हुआ भगवान श्री राम की कहानी । वहीं रामचरितमानस शब्द तीन शब्दों से बना है – राम, चरित्र (अच्छे कर्म) और मानस (झील), इस प्रकार रामचरितमानस का अर्थ है राम के अच्छे कर्मों की झील।

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रामायण को श्लोकों के प्रारूप में लिखा गया है, जबकि रामचरितमानस को ‘चौपाई’ प्रारूप में लिखा गया है। रामायण भगवान राम तथा उनकी यात्रा की मूल कहानी है तो वहीं रामचरितमानस रामायण का मूलमंत्र है। 

रामायण  तथा  रामचरितमानस के अनुसार, राजा दशरथ की पत्नियां

रामायण के अनुसार, राजा दशरथ की 350 से अधिक पत्नियां थीं, जिनमें से तीन प्रमुख पत्नियां थीं – कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा जबकि रामचरितमानस के अनुसार राजा दशरथ की केवल तीन पत्नियां थीं। रामायण के अनुसार, भगवान हनुमान को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है जो वानर जनजाति से हैं। वानर दो शब्दों से बना है – वान (वन) और नर (मनुष्य)। वन में रहने वाली जनजातियों को रामायण में वानर के रूप में संदर्भित किया गया था।

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रामचरितमानस में उन्हें एक बंदर के रूप में दिखाया गया है और ‘वानर’ का प्रयोग बंदरों की अपनी प्रजाति का उल्लेख करने के लिए किया जाता है। रामायण के अनुसार, राजा जनक ने कभी सीता स्वयंवर का आयोजन एक बड़े समारोह के रूप में नहीं किया। इसके अनुसार जब भी कोई शक्तिशाली राजकुमार राजा जनक से मिलने जाता था, तो वह उन्हें शिवजी का धनुष  दिखाते थे और उन्हें इसे उठाने के लिए कहते थे।

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रामायण के अनुसार, एक बार जब विश्वामित्र राम और लक्ष्मण के साथ जनक के पास गए, तब जनक ने राम को धनुष दिखाया तथा उठाने को कहा भगवान राम ने धनुष उठाया और उनका विवाह सीताजी से हुआ। रामचरितमानस के अनुसार, स्वयंवर का आयोजन राजा जनक द्वारा सीता के विवाह के लिए किया गया था और शिव के धनुष को उठाने की प्रतियोगिता थी। 

माता सीता का अपहरण

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रामायण के अनुसार सीताजी का अपहरण तथा कष्ट वास्तविक थे उन्हें रावण द्वारा बलपूर्वक अपने रथ पर खींचकर  अपहरण किया गया था। प्रभु श्रीराम ने माता सीता को बचाया और उनसे अग्नि परीक्षा लेकर दुनिया के समक्ष अपनी पवित्रता साबित करने के लिए कहा, जबकि रामचरितमानस के अनुसार, माता सीता का अपहरण कभी नहीं हुआ था श्री राम को सीताजी के अपहरण का पूर्वाभास पहले ही हो चुका था और उन्होंने अग्नि देव से सीता को सुरक्षित रखने के लिए आग्रह करते हुए, माता सीता की छायाप्रति बनवा ली थी। अग्नि परीक्षा ही वास्तविक सीताजी के साथ उनकी छायाप्रति का आदान-प्रदान करने की एक पूर्व नियोजित योजना थी।

रावण युद्ध प्रसंग

रामायण के अनुसार रावण दो बार रणभूमि में प्रभु श्री राम से लड़ने आया था। सर्वप्रथम वह युद्ध  के प्रारंभ में आया तथा फिर वह युद्ध के अंत में आया व श्रीराम द्वारा मृत्यु को प्राप्त हुआ था। तो वहीं रामचरितमानस के अनुसार रावण अंत में केवल एक बार युद्ध के मैदान में आया।

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रामायण में, राम को “मर्यादा पुरुषोत्तम” के रूप में दर्शाया गया है, जिसका अर्थ है उत्कृष्ट आचरण वाले श्रेष्ठ पुरुष। उन्हें असाधारण गुणों वाले मानव के रूप में दिखाया गया है जबकि रामचरितमानस में राम को भगवान के अवतार के रूप में दर्शाया गया है तथा उनके कार्यों को धार्मिक बुराइयों को दूर करने व धर्म की स्थापना करने के रूप में वर्णित किया गया है।

रामायण में कहानी तब समाप्त होती है, जब राम ने सीता जी के वियोग  तथा लक्ष्मण की अनुपस्थिति में दुखी होकर सरयू नदी में जल समाधि द्वारा अपने नश्वर शरीर की यात्रा पूर्ण की थी। तो वहीं रामचरितमानस में कहानी प्रभु श्रीराम तथा माता सीता को जुड़वां पुत्रों  लव और कुश के जन्म के साथ समाप्त होती है। 

निष्कर्ष

दोनों ग्रन्थों में अंतर मुख्य पात्र के चरित्र चित्रण का है। रामायण के राम एक सरल साधारण मानव हैं जो हर मानवीय भावना से प्रेरित हैं, जबकि तुलसी के राम  दैवीय शक्ति से युक्त  हैं जो स्वयं एक महाशक्ति का रूप हैं। तुलसी के राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और बाल्मीकी के राम मानवीय भावनाओं के संतुलित रूप हैं।

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सबसे बड़ा अंतर है वाल्मीकि के रामायण की रचना ऐतिहासिक घटना पर आधारित ग्रंथ है तो वहीं तुलसीदास ने वाल्मीकि रामायण को ही आधार मानकर अपने आदर्श चरित्र ‘राम’ को गढ़ा है। अंतर चाहे जो भी हो, जन—जन के आराध्य प्रभु श्रीराम वाल्मीकि के साधारण मानव और तुलसी के दैवीय शक्तियों से युक्त मानव, दोनों  ही रूपों में लोकप्रिय तथा वंदनीय हैं।

॥इति॥

तो दोस्तों, आपको पोस्ट Ramayana में हमने दोनों ग्रंथों में अंतर तथा संबंधित भ्रम को दूर करने का प्रयास किया। आशा करते हैं कि आपको आज की पोस्ट पसंद आई होगी कृपया इसे अधिक-से-अधिक शेयर करें तथा इसी प्रकार की ज्ञानवर्धक पोस्ट पाने के लिए ब्लॉग को सब्सक्राइब कर लें जिससे हम नवीनतम पोस्ट आप तक सबसे पहले पहुंचा  सकें। आपका अमूल्य समय हमें देने के लिए धन्यवाद। आपका दिन शुभ तथा मंगलमय हो।

 


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