Shiv Ji : अर्धनारीश्वर स्तुति
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नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Shiv Ji में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों ! आज की पोस्ट में हम शिवजी के अर्धनारीश्वर स्वरूप की चर्चा करेंगे। अधिकांशतः माता शक्ति तथा शिवजी की पृथक-पृथक मूर्ति रूप में पूजा करने का विधान है। प्रायः देखा जाता है कि शिवालयों तथा अन्य मंदिरों में माता पार्वती तथा भगवान भोलेनाथ सपरिवार मूर्ति रूप में विराजते हैं।
शिव पुराण के अन्तर्गत एक श्लोक इस प्रकार है – “ शंकरः पुरुषाः सर्वे स्त्रियः सर्वा महेश्वरी। ” अर्थात समस्त पुरुष भगवान सदाशिव के अंश तथा समस्त स्त्रियां भगवती शिवा की अंश हैं, उन्हीं भगवान अर्धनारीश्वर से यह सम्पूर्ण चराचर जगत व्याप्त है। महादेव ने अर्धनारीश्वर स्वरूप क्यों धारण किया तथा इसके पीछे की पौराणिक कथा क्या है ? इन सभी प्रश्नों के उत्तर आज की पोस्ट में हम जानेंगे। तो आईये, पोस्ट शुरू करते हैं।
Shiv Ji : शक्ति के बिना शव हैं शिव
शिव तथा शक्ति एक-दूसरे से उसी प्रकार अभिन्न हैं, जिस प्रकार सूर्य से उसका प्रकाश, अग्नि से उसका ताप तथा दूध से उसकी सफेदी अभिन्न हैं अर्थात पृथक नहीं किये जा सकते। शक्ति के बिना शिव शव के समान हैं दूसरे अर्थों में कहा जा सकता है कि शिव तथा शक्ति एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं।
भगवान शिव के अर्धनारीश्वर रूप का आध्यात्मिक रहस्य
भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप जगत्पिता और जगन्माता के सम्बन्ध को दर्शाता है। सत्-चित्-आनंद , ईश्वर के तीन रूप हैं। इन तीनों आनंदस्वरूप के दर्शन अर्धनारीश्वर रूप में होते हैं, जब शिव और शक्ति दोनों मिलकर पूर्णतया एक हो जाते हैं। Shiv Ji
भगवान शिव अपने पारिवारिक सम्बन्धों से हमें इसी योग की शिक्षा देते हैं। अपनी धर्मपत्नी के साथ पूर्ण एकात्मकता अनुभव कर उसकी आत्मा में आत्मा मिलाकर ही मनुष्य आनन्दरूप शिव को प्राप्त कर सकता है।
शिवजी ने क्यों धारण किया अर्धनारीश्वर अवतार ?
पौराणिक कथा के अनुसार एक समय श्री ब्रह्माजी ने सृष्टि के सृजन हेतु चार कुमारों को अपने योगबल से प्रकट किया उनके नाम इस प्रकार थे – सनत, सनन्दन, सनातन तथा सनतकुमार। ब्रह्मा जी ने उनसे कहा कि वे सृष्टि के संचालन में सहयोग करें किन्तु उन चारों की प्रजा की वृद्धि में कोई रुचि नहीं थी। उन्होंने ब्रह्मा जी से गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने हेतु अपनी असमर्थता व्यक्त की तथा अपना जीवन परमपिता की आराधना में ही लगाने का निश्चय कर वहां से चले गये। Shiv Ji
इससे निराश होकर ब्रह्मा जी ने श्री विष्णु के परामर्श पर भगवान सदाशिव का चिंतन करते हुए तप किया। इस तप से प्रसन्न होकर भगवान सदाशिव ब्रह्माजी के समक्ष प्रकट हुये और प्रसन्न होकर अपने वामभाग से अपनी शक्ति रुद्राणी को प्रकट किया।
इस प्रकार शिवजी ने सर्वप्रथम श्री ब्रह्मा जी को अर्धनारीश्वर रूप में दर्शन दिये। ब्रह्माजी ने भगवती रुद्राणी की स्तुति करते हुए कहा – ‘‘ हे देवि ! आपके पहले नारी कुल का प्रादुर्भाव नहीं हुआ था, सो आप ही सृष्टि की प्रथम नारीरूप, मातृरूप तथा शक्तिरूप हैं। आप अपने एक अंश से इस चराचर जगत की वृद्धि हेतु मेरे पुत्र दक्ष की कन्या के रूप में जन्म लेने की कृपा करें।
इस प्रकार प्रसन्न होकर मां भगवती ने भगवान शिव की आज्ञा से दक्ष प्रजापति के घर सती के रूप में जन्म लिया। अतः भगवान सदाशिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप की उपासना में ही मनुष्य का कल्याण निहित है।
जब ऋषि श्रृंगी को हुये अर्धनारीश्वर स्वरूप के दर्शन
शीश गंग अर्द्धंग पार्वती
सदा विराजत कैलासी
नंदी-भृंगी नृत्य करत हैं
धरत ध्यान सुर सुख रासी ….’
बाबा भोले नाथ इस गुणगान से हम सभी परिचित हैं। आरती में प्रयुक्त ‘नंदी’ को तो हम सभी जानते हैं जो बाबा के वाहन हैं पर ‘भृंगी’ कौन हैं ? शिव स्तुति में प्रयुक्त ‘भृंगी’ एक पौराणिक ऋषि थे। वे भगवान शिव के परम भक्त थे, किंतु कुछ ज्यादा ही रूढ़ थे। इतना रूढ़ कि वह भगवान शिव की तो आराधना करते, पर माता पार्वती को नहीं भजते थे उनकी भक्ति अद्भुत और अनोखी थी।
भृंगी ऋषि पार्वती जी को हमेशा ही शिव से अलग समझते थे। केवल शिवजी के प्रति उनकी आसक्ति और आस्था थी। एक बार वह कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की परिक्रमा करने गये, लेकिन वह माता पार्वती की परिक्रमा नहीं करना चाहते थे।
पार्वती ने सोचा कि यह कैसा भक्त है, जो शिव और शिवा को भिन्न समझता है ? सृष्टि के कण-कण में शिव-शिवा सदैव साथ-साथ हैं। उन्होंने भृंगी को समझाय – हे ऋषिवर ! संपूर्ण ब्रह्मांड में, प्रत्येक काल में हम दोनों एक हैं, तभी पूर्ण हैं। तुम हमें अलग करने की भूल मत करो, पर भृंगी ने अज्ञानतावश माता पार्वती की बातों को अनसुना कर दिया और शिव की परिक्रमा करने आगे बढ़े।
तब मां पार्वती शिव जी से सट कर बैठ गयीं। अब प्रसंग और रोचक हो गया। भृंगी ने सर्प का रूप धर लिया और दोनों के मध्य से होते हुए शिव की परिक्रमा करने का प्रयास किया। तब शिवजी ने अर्द्धनारीश्वर रूप धारण किया। अब भृंगी क्या करते? उन्हें क्रोध आ गया। उन्होंने चूहे का रूप धारण किया और शिव और पार्वती के बीच से स्थान बनाने के लिए उन्हें कुतरने लगे। Shiv Ji
इस पर माता पार्वती (शक्ति) को क्रोध आया और उन्होंने भृंगी को शाप दिया कि जो शरीर तुम्हें अपनी मां से मिला है, वह तुरंत तुम्हारा साथ छोड़ देगा। श्राप के तुरंत प्रभाव से भृंगी ऋषि के शरीर से खून और मांस गिर गया। भृंगी निढाल होकर जमीन पर गिर पड़े, तब उन्हें अपनी अज्ञानता का आभास हुआ और उन्होंने मां पार्वती से क्षमा मांगी।
मैया पार्वती ने उन्हें खड़ा रहने के लिए सहारा स्वरूप एक अन्य (तीसरा) पैर प्रदान किया गया, जिसके सहारे वह खड़े हो सके। इस प्रकार भक्त भृंगी के कारण ही भगवान का अर्द्धनारीश्वर स्वरूप अस्तित्व में आया। इस भक्त ने भगवान के सुंदर और सौम्य स्वरूप ‘अर्द्धनारीश्वर’ से संसार को परिचित कराया।
अर्धनारीश्वर स्तोत्र/स्तुति (हिन्दी अर्थ सहित)
चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै कर्पूरगौरार्धशरीरकाय।
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नमः शिवायै च नमः शिवाय॥1॥
भावार्थ :- जिन परमपिता के आधे शरीर में चम्पा के पुष्पों जैसी गोरी पार्वती जी हैं तथा आधे शरीर में कर्पूर के समान गोरे भगवान शंकर जी सुशोभित हो रहे हैं। भगवान शंकर जो घनी तथा लंबी जटायें धारण करते हैं उन्ही के सामीप्य में मां पार्वती के सुन्दर केशपाश भी सुशोभित हो रहे हैं ऐसी जगज्जननी माता पार्वती तथा भगवान शंकर को हमारा नमस्कार है, नमस्कार है।
कस्तूरिकाकुंकुमचर्चितायै चितारजः पुजविचर्चिताय।
कृतस्मरायै विकृतस्मराय नमः शिवायै च नमः शिवाय॥2॥
भावार्थ :- माता पार्वती के शरीर में कस्तूरि तथा कुंकुम का लेप लगा है तथा भगवान शंकर के शरीर में चिता की भस्म लगी है जहां माता पार्वती कामदेव को जिलाने वाली हैं तो वहीं भगवान शंकर उसे नष्ट करने वाले हैं ऐसे युगल समूह को मेरा नमस्कार है, नमस्कार है।
चलत्क्वणत्कंकणनूपुरायै पादाब्जराजत्फणीनूपुराय।
हेमांगदायै भुजगांगदाय नमः शिवायै च नमः शिवाय॥3॥
भावार्थ :- भगवती पार्वती के हाथों में कंकण तथा पैरों में नूपुरों (घुंघरुओं) की ध्वनि हो रही है तथा भगवान शंकर के हाथों व पैरों में सर्पों के फुफकारने की ध्वनि हो रही है। जहां माता पार्वती जी की भुजाओं में बाजूबन्द सुशोभित हो रहे हैं वहीं शिवजी की भुजाओं में सर्प शोभा बढ़ा रहे हैं। ऐसे महादेव तथा मां पार्वती को मेरा नमस्कार है, नमस्कार है।
विशालनीलोत्पललोचनायै विकासिपंकेरुहलोचनाय।
समेक्षणायै विषमेक्षणाय नमः शिवायै च नमः शिवाय॥4॥
Shiv Ji
भावार्थ :- मां जगदम्बा के नेत्र प्रफुल्लित नीले कमल की भांति सुन्दर हैं तथा भगवान शंकर के नेत्र विकसित कमल के समान हैं। जहां मां पार्वती के दो अति सुन्दर नेत्र हैं वहीं शिवजी के तीन नेत्र हैं जो सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्नि का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसे माता पार्वती तथा पिता शिव को नमस्कार है, नमस्कार है।
मन्दारमालाकलितालकायै कपालमालांकितकन्धराय।
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नमः शिवायै च नमः शिवाय॥5॥
भावार्थ :- मन्दार के पुष्पों की उत्तम माला मां के केशपाशों में सुशोभित हो रही है तथा बाघाम्बर धारण करने वाले शिवजी के गले में मुण्डों की माला है। मां पार्वती के वस्त्र अति दिव्य हैं तो वहीं भगवान शंकर दिगम्बर रूप में शोभा पा रहे हैं। ऐसे अर्धनारीश्वर को मेरा नमस्कार है, नमस्कार है।
अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै तडित्प्रभाताम्रजटाधराय।
निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नमः शिवायै च नमः शिवाय॥6॥
भावार्थ :- पार्वती जी के केश जल से भरे काले मेघ के समान सुन्दर हैं और भगवान शंकर की जटा विद्युत्प्रभा के समान कुछ लालिमा लिए हुए चमकती दिखाई देती है। माता परम स्वतन्त्र हैं अर्थात उनसे बढ़कर कोई नहीं है तथा भगवान शंकर सम्पूर्ण जगत के स्वामी हैं। ऐसे शिव-पार्वती जी को नमस्कार है, नमस्कार है।
प्रपंचसृष्टयुन्मुखलास्यकायै समस्तसंहारकताण्डवाय।
जगज्जनन्यैजगदेकपित्रे नमः शिवायै च नमः शिवाय॥7॥
भावार्थ :- मां भगवती जहां अपने नृत्य से जगत की रचना करती हैं वहीं शिव जी का नृत्य सृष्टि प्रपंच का संहारक है। मां संसार की एकमात्र माता तथा शिवजी एकमात्र पिता हैं। ऐसे युगल चरणारविन्दों में मेरा नमस्कार है, नमस्कार है।
प्रदीप्तरत्नोज्जवलकुण्डलायै स्फुरमहापन्नगभूषणाय।
शिवान्वितायै च शिवान्विताय नमः शिवायै च नमः शिवाय॥8॥
भावार्थ :- मां पार्वती प्रदीप्त रत्नों के उज्जवल कुण्डल धारण किए हुए हैं तथा भगवान शंकर फुंफकारते हुए सर्पों का आभूषण धारण किए हैं। पार्वती जी भगवान शंकर की तथा भगवान शंकर मां पार्वती की शक्ति से समन्वित हैं। ऐसी जगदम्बा पार्वती तथा भगवान शंकर को मेरा नमस्कार है, नमस्कार है।
एतद् पठेदष्टकमिष्टदं यो भक्त्या स मान्यो भुवि दीर्घजीवी।
प्राप्नोति सौभाग्यमनन्तकालं भूयात् सदा तस्य समस्तसिद्धिः॥9॥
भावार्थ :- आठ श्लोकों का यह स्तोत्र अभीष्ट सिद्धि प्रदान करने वाला है। जो भी व्यक्ति भक्तिपूर्वक पूर्ण श्रद्धा के साथ इसका पाठ करता है, वह समस्त संसार में सम्मानित होता है तथा दीर्घायु होता है, वह अनन्त काल के लिए सौभाग्य व समस्त सिद्धियों को प्राप्त करता है।
इति श्री आदिशंकराचार्य विरचितं अर्धनारीश्वर स्तोत्रम सम्पूर्णम्।
अर्द्धनारीश्वर शिव स्तोत्र के लाभ
• अर्द्धनारीश्वर शिव स्तोत्र का पाठ अत्यंत फलदायी है।
• अर्द्धनारीश्वर शिव स्तोत्र का पाठ करने से मनुष्य की प्रत्येक समस्या का समाधान होता है।
• यह पाठ करने से मनुष्य की प्रत्येक मनोकामना पूर्ण होती है।
• सोमवार अथवा मासिक शिवरात्रि के दिन यह स्तुति करने से शिवजी जी प्रसन्न होते हैंं।
• इस स्तोत्र का पाठ करने से सभी प्रकार के सुख की प्राप्ति होती है
• इस स्तोत्र का पति व पत्नी द्वारा युगल रूप में पाठ करने से विवाहित दमपत्ति के सौभाग्य में वृद्धि होती है।
॥इति॥
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