Mahadev (Pashupati) : महादेव सभी के आराध्य, सबसे सरल देवता
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“ हर-हर महादेव शम्भू काशी विश्वनाथ गंगे, माता पार्वती संंगे ”
नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Mahadev : महादेव सभी के आराध्य, सबसे सरल देवता में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, शिवजी के भक्त संसार में सर्वाधिक हैं जितने सीधे-साधे बाबा विश्वनाथ हैं उतने ही भोले उनके भक्त। शिवजी तथा उनके भक्तों का सम्बन्ध उतना ही प्राचीन है जितनी की यह सृष्टि।
बाबा जितने सरल हैं उतने ही अनसुलझे भी। वे दिगम्बर, श्मशान निवासी हैं तो अपने भक्तों को संसार की समस्त सम्पत्ति प्रदान करने वाले भी। यदि वे प्रलयंकारी हैं, सृष्टि के संहारकर्ता हैं तो मृतकों को तारने वाले भी।
भोलेनाथ तथा काशी अर्थात वाराणसी एक-दूसरे के पूरक हैं। कहते हैं कि काशी के कण-कण में शंकर का वास है। ऐसी मान्यता है कि काशी में कभी कोई भूखा नहीं मरता क्योंकि यहां माता पार्वती स्वयं साक्षात मां अन्नपूर्णा के रूप में वास करती हैं। बनारस में मरने वाले प्राणी को बाबा स्वयं तारक मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं यही कारण है कि प्रत्येक जीव अपने अंतिम दिनों में काशी में ही वास करना चाहता है।
आज की पोस्ट Mahadev में हम सनातन धर्म के सर्वाधिक लोकप्रिय देवता भगवान शिव पर चर्चा करेंगे। तो आईये, पोस्ट शुरु करते हैं।
सभी को अपनाते हैं शिव
भगवान शिव shiv की आराधना तो सभी करते हैं कोई शिव को आध्यात्मिक प्रतीक पुरुष मानता है तो कोई उनका सम्बन्ध विलक्षण मानवीय व्यक्तित्व से जोड़ता है। प्रश्न उठता है कि महादेव Mahadev वास्तव में हैं कौन ? कभी वे समाधि में लीन रहते हैं, तो कभी नृत्य में मग्न। कभी वे भयावह श्मशान में विराजते हैं, तो कभी अपने विराट परिवार में सर्प से लेकर बैल तक सभी हिंसक तथा अहिंसक जीव-जन्तुओं को सम्मिलित कर लेते हैं।
असभ्य कहे जाने वाले भूत-प्रेतगण तक उनके भक्तों में शामिल है। प्रश्न उठता है कि कैलाश से कन्याकुमारी तथा कच्छ से कामरूप अर्थात असम तक सभी के आराध्य माने जाने वाले महादेव, आखिर वास्तव में हैं कौन ?
Mahadev: महादेव का इतिहास में वर्णन
दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त मुद्राओं में योगी की आकृति को अनेक इतिहासकारों ने शिव माना है। ये ध्यानस्थ योगी पशुओं से घिरे हैं, यही कारण है कि इन्हें पशुपति कहा जाता है, जो भगवान शिव का प्राचीन नाम है। पशुपतिनाथ नामक विश्वप्रसिद्ध मन्दिर नेपाल में स्थित है, इसके अतिरिक्त सिंधु सभ्यता से अनेक शिवलिंग भी प्राप्त हुए हैं।
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कुछ विद्वानों का मानना है कि मध्य प्रदेश में भीमबेटका की प्राचीन गुफाओं में प्रागैतिहासिक मानवों द्वारा बनाया गया नृत्यरत देव का चित्र शिव आराधना का ही प्राचीन स्वरूप है। विश्व के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में रुद्र के रूप में शिवजी shiv shankar का उल्लेख आता है। वेदों में सबसे प्राचीन ऋग्वेद कहता है कि रुद्र की दो प्रवृत्तियां हैं – एक है उग्र तथा एक शांत।
वेद में शिव, अर्थात कल्याणकारी उनके विशेषण की तरह प्रयुक्त हुआ है। पौराणिक काल तक आते-आते भक्त उन्हें शिव नाम से ही पुकारने लगते हैं। वास्तव में ये दोनों प्रवृत्तियां विरोधी नहीं, बल्कि एक-दूसरे की पूरक हैं। आखिरकार अन्याय भी तो एक नए सृजक का आरंभ है। मृत्यु भी नए जन्म, अर्थात नई शुरुआत का मार्ग प्रशस्त करती है, इसीलिए देवताओं के एक हाथ में अस्त्र तो दूसरे हाथ में पुष्प रहता है।
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सांस्कृतिक प्रतीकों का स्वरूप हैं शिव
कश्मीरी शैव परंपरा का इतिहास सदियों पुराना है। दक्षिण की लिंगायत परंपरा का संबंध आज भी सिंधु सभ्यता की लिंग उपासना से जोड़ा जाता है। पश्चिम में वे सोमनाथ कहे जाते हैं तो पूर्व में लिंगराज के रूप में उनकी आराधना की जाती है। तुलसीदास की रामचरित मानस भी भगवान शिव की स्तुति से ही आरंभ होती है।
भगवान शिव तथा माता पार्वती को श्रद्धा तथा विश्वास के रूप में पूजा जाता है। महादेव की प्रतिमा में भारतीय संस्कृति का अद्भुत प्रतीक और प्रेरणाएं हैं। उनके शीश से निकलने वाली गंगा की तीन धाराएं वास्तव में ज्ञान की तीन धाराओं ज्ञान, भक्ति और कर्म का प्रतीक है। जहां शरीर पर धारण किया हुआ भस्म जीवन की नश्वरता को स्मरण कराता है वहीं डमरू जीवन के आनंद का।
तीसरा नेत्र विवेक का है जो काम को नियंत्रित करता है, तो वहीं त्रिशूल लोभ, मोह और अहंकार को अंत करने का अस्त्र है। समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष निकला तथा समस्त जगत मे हाहाकार मच गया तब सभी के हित के लिए एक क्षण भी गंवाये उन्होंने हलाहल विष का पान किया तथा नीलकंठ कहलाये।
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भगवान शंकर हैं सबके आराध्य देव
शंकर सभी के स्वामी हैं घोर-अघोर, गृहस्थ और तंत्र साधक, सभी इनकी आराधना करते हैं। भोले बाबा को आध्यात्मिक प्रतीक पुरुष माना जाता है, जिस पर श्रद्धा अर्पित कर साधना के मार्ग पर आगे बढ़ा जाता है। संभवतया शिव की व्याख्या (Shiv Mahima) करने वाली सभी अवधारणाएं पूर्ण या आंशिक रूप से सत्य हैं तथा एक-दूसरे के पूरक भी।
सत्य यह भी है कि शिवजी के दिव्य व्यक्तित्व को एक अवधारणा में समेटना मानवीय क्षमता से परे है, परंतु यह अवश्य सत्य है कि महादेव असुरता का नाश करने वाली एक अत्यंत पवित्र तथा परमकल्याणकारी शक्ति हैं। शिव आनंद हैं, आदि गुरु हैं, संस्कृति का साक्षात हैं तथा वह योगियों के योगी आदियोगी भी कहे गये हैं।
अंग भभूति रमाय मसान की, विषय भुजंगनि को लपटावैं।
नर कपाल कर मुण्डमाल गल भालु चर्म सभी अंग उढ़ावैं।।
घोर दिगम्बर लोचन तीन, भयानक देखि कै सब थर्रावैं।
बड़भागी नर-नारि सोई जो सांब सदाशिव को नित ध्यावैं।
॥ इति ॥
दोस्तों ! भगवान शिव shiv के विराट व्यक्तित्व को कुछ शब्दों में बांध पाना असंभव है। इस पोस्ट में हमने शिवजी के स्वरूप पर प्रकाश डालने का एक छोटा-सा प्रयास किया है यदि कोई त्रुटि हो गई हो तो हम क्षमाप्रार्थी हैं। आपको Mahadev पोस्ट कैसी लगी कृपया अपने विचार हमें कमेंट अथवा ई-मेल के माध्यम से व्यक्त करें तथा इसी प्रकार की अन्य जानकारियां प्राप्त करने के लिए हमसे जुड़े रहें। धन्यवाद, आपका दिन शुभ तथा मंगलमय हो ! भगवान श्री काशी विश्वनाथ हम सभी का कल्याण करें।
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