Maa Durga : जानिये मां दुर्गा का संक्षिप्त परिचय

Maa Durga : जानिये मां दुर्गा का संक्षिप्त परिचय|

नमस्कार दोस्तों! हमारे ब्लाग पोस्ट maa durga में आपका स्वागत है। दोस्तों, जब-जब इस जगत में आसुरी प्रवृत्तियां बाधा उत्पन्न करती हैं, चारों ओर अनीति, अत्याचार फैल जाता है तब-तब देवी पराअम्बा विभिन्न नाम तथा रूप धारण कर प्रकट होती हैं और समाज विरोधी तत्वों का नाश करती हैं।

जिस समय भी हम देवी दुर्गा का ध्यान करते हैं तब मां भगवती की जो छवि हमारे ध्यान में आती है, वह है- सिंह पर सवार, लाल वस्त्रों में सजी, माथे पर लाल बिंदिया और मांग में लाल सिंदूर लगाए, गुड़हल और गुलाब के पुष्प धारण किए, हाथ के त्रिशूल तथा खड़ग से असुरों का मर्दन करती हुई देवी,  जिनका प्रिय भोग हलुआ, चना, मेवा तथा लौंग का जोड़ा है और जिनका मन्दिर जगमग ज्योति और लालध्वजा से सुशोभित रहता है। 

आज की पोस्ट में हम देवी दुर्गा का संक्षिप्त परिचय जानेंगे । तो आइये, पोस्ट शुरू करते हैं —

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Maa Durga : देवी के प्रादुर्भाव की कथा।

 

दुर्गा सप्तशती के अनुसार एक समय जब धरती असुरों के अत्याचारों से कराह उठी थी जब त्रिदेव श्री ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश अन्य देवतागणों के साथ एक स्थान पर इकट्ठा हुये तथा उन तीनों के मुख से एक ज्वाला उत्पन्न हुई उस ज्वाला के तथा समस्त देवताओं के तेज से देवी का जन्म हुआ। maa durga

सभी देवताओं ने उस देवी को अस्त्र तथा शस्त्र प्रदान किये तथा उन्हें आशीर्वाद प्रदान कर उनसे आसुरिक शक्तियों का विनाश करने की प्रार्थना की तब देवी ने अपनी शक्ति से सभी असुरों का संहार कर डाला।

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देवी पुराण के अनुसार दुर्गा शब्द में “ ” कार दैत्यनाशक, “ ” कार विघ्ननाशक, “ ” कार रोगनाश, “ ” कार पापनाशक तथा “ ” कार भयशत्रुनाशक है। अतः दुर्गा शब्द का अर्थ ही है दुर्गा दुर्गतिनाशिनी अर्थात जो दुर्गति का नाश करे क्योंकि यही पराशक्ति पराम्बा दुर्गा ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश की शक्ति है।

ब्रह्माण्ड की संचालिका शक्ति मां दुर्गा  के नौ स्वरूप

. शैलपुत्री

२. ब्रह्मचारिणी

३. चंद्रघण्टा

४. कूष्माण्डा

५. स्कन्दमाता

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६. कात्यायनी

७. कालरात्री

८. महागौरी

९. सिद्धिदात्री।

यह नव दुर्गा के नौ रूप हैं जिनकी आराधना नवरात्रि के नौ दिनों में की जाती है।

दक्ष प्रजापति का यज्ञ विध्वंस करने के लिए भगवती भद्रकाली का अवतार अष्टमी तिथि को ही हुआ था, अतः अष्टमी तिथि के दिन देवी के पूजन का विशेष महत्व है। maa durga देवी दुर्गा को महिषामर्दिनी, मधु-कैटभ हारिणी और चण्ड-मुण्ड विनाशनी आदि नामों से भी जाना जाता है। देवी के मन्दिरों में लाल ध्वजा शत्रुओं व आसुरी प्रवृत्तियों पर विजय-पताका के रूप में चढ़ाई जाती है।

मां दुर्गा की पूजा में लाल रंग का महत्व

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मां शक्ति को लाल रंग के चमकदार वस्त्रों से सज्जित किया जाता है। लाल रंग बल, उत्साह, स्फूर्ति, तेज, शौर्य तथा पराक्रम का प्रतीक माना जाता है साथ ही यह रंग नारी की मर्यादा की भी रक्षा करता है और उसका सौभाग्य चिन्ह है। जब असुरराज शुम्भ-निशुम्भ के सेवक चण्ड तथा मुण्ड ने देवी की सुन्दरता का वर्णन उनसे किया तो शुम्भ ने मां भगवती पर कुदृष्टि डालते हुए उन्हें प्राप्त करने का प्रयास किया।

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मां ने सेना सहित सभी शत्रुओं का नाश कर डाल तथा नारी जाति के गौरव तथा उनकी मर्यादा तथा सम्मान करने का पाठ जगत को पढ़ाया। यही कारण है कि विवाहित स्त्रियां अपने पातिव्रत धर्म की रक्षा के लिए मांग में सिंदूर तथा लाल बिन्दी का प्रयोग करती हैं।

दुर्गति नाशिनी हैं मां दुर्गा

maa durga मां दुर्गा, दुर्गति नाशिनी हैं। दुर्गुणों तथा दुर्गति के नाश के लिए साहस तथा वीरता की आवश्यकता होती है सिंह के समान वीर ही अपने शत्रुओं को वश में रख सकता है यही कारण है कि मां का वाहन सिंह है जो कि अतुल बल तथा शक्ति का प्रतीक है।

मां भगवती को प्रिय हैं पुष्प

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 देवी दुर्गा की आराधना में पुष्प का प्रयोग बहुलता से किया जाता है। लाल रंग का गुलाब, गुड़हल, कनेर के साथ ही अन्य सुगंधित पुष्पों का प्रयोग भी माता की पूजा-अर्चना में किया जाता है। इसी प्रकार जपाकुसुम बहुत ही ऊर्जावान पुष्प माना जाता है, गुड़हल पुष्प का संबंध गर्भाशय से है तथा देवी जगतजननी है अतः उन्हें जपाकुसुम अर्पित किया जाता है।

क्यों लगता है चने-हलुए का भोग ?

माता का सबसे प्रिय भोग हलुआ और चना है। मां भगवती की उत्पत्ति असुरों के संहार हेतु हुई है इस कार्य में अत्यंत बल तथा स्फूर्ति की आवश्यकता होती है। हलुआ से अधिक शक्तिवर्धक और कोइ व्यंजन नहीं है क्योंकि इसमें सूजी, देसी घी, चीनी तथा मेवों का प्रयोग किया जाता है जो कि तुरंत शक्ति प्रदान करने वाला तथा त्रिदोषों को शांत करने वाला होता है।

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इसी प्रकार काले चने में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फाइबर, कैल्शियम, मैग्नीशियम तथा दूसरे मिनरल्स होते हैं। चने का प्रयोग तुरंत शक्ति प्रदान करता है। माता को पंचमेवा जैसे – अखरोट, बादाम, छुआरा, काजू, पिस्ता/मखाने का भोग लगाया जाता है यदि स्वास्थ्य की दृष्टि से देखें तो यह अत्यंत लाभदायक होता है तथा शरीर को शक्ति, बल देने के साथ ही फुर्तिला बनाये में सहायक होता है।

नारी को अबला न समझने का संदेश

देवी अपने विकराल रूप में मुण्डमाला धारण करती हैं इसके पीछे उनका संदेश दुष्ट प्रवृत्ति रखने वाले लोगों के लिये है कि स्त्री को कभी भी अबला न समझा जाये क्योंकि स्त्री यदि ममतामयी होती है तो अपनी मर्यादा तथा गौरव की रक्षा के लिये दुष्टों का संहार भी कर सकती है।

क्या है पशु-बलि के पीछे का रहस्य  ? 

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कई स्थानों पर आज भी पशु बलि देने की प्रथा चलन में है जबकि maa durga देवी तो सभी चर-अचर जीव जिसमें मनुष्य, पशु, पक्षी आदि आते हैं इन सभी की माता है तथा कौन मां अपने पुत्र की बलि चाहेगी ? पशु बलि का वास्तविक अर्थ अपने दुर्गुणों की बलि देना है। पांच विकार जिनमें काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार आते हैं, इन तामसिक गुणों की बलि देना है जिन्हें पशु तुल्य माना गया है।

• कबूतर में कामवासना की प्रबलता होती है इसीलिये कामासक्ति को त्यागना कबूतर की बलि देने के समान है।

• भैंसे में क्रोध की अधिकता होती है अतः क्रोध को त्यागना भैंसे की बलि देने के समान है।

• बिलाव को लोभ अधिक होता है, लोभ को त्यागना ही बलि है।

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• भेड़ में मोह का तत्व प्रबल होता है अतः मोह त्यागना भेड़ की बलि देने के समान है।

• ऊंट को ईर्ष्या का प्रतीक माना गया है, इसीलिये ईर्ष्या त्यागना ऊंट की बलि देने के समान है।

अत: बलि का वास्तविक अर्थ हमारे अंदर विद्यमान दुर्गुणों का त्याग करने से है। यदि हम इनका त्याग कर पाते हैं तो और किसी जीव जंंतु की बलि देने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यदि हमें जीवन देने  का अधिकार नहीं है तो किसी का जीवन लेने का अधिकार भी नहीं है।

॥इति॥

तो दोस्तों, यह थी जानकारी maa durga मां दुर्गा के सम्बन्ध में। आपको जानकारी कैसी लगी हमें कमेंट करके अवश्य बतायें जिससे कि हमें प्रोत्साहन मिले और हम आपके लिये और भी ज्ञानवर्धक जानकारी लेकर आ सकें। आपका दिन शुभ तथा मंगलमय हो।