Lingashtakam Stotram : लिंगाष्टकम स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित
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नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Lingashtakam Stotram में आपका स्वागत है। दोस्तों, आज की पोस्ट में हम चर्चा करेंगे भगवान शिव को समर्पित श्री लिंगाष्टकम स्तोत्र के संबंध में। इस रचना में कुल 8 श्लोक हैं जिनमें महादेव की आराधना की गई है।
इस रचना के नाम से ही ज्ञात हो जाता है कि इसमें शिवजी के लिंगस्वरूप की पूजा-अर्चना की गई है। यह स्तोत्र शिवभक्तों में अत्यंत लोकप्रिय है जिसका पाठ करने से भगवान शिवजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
आप सभी की सुविधा के लिए पोस्ट में इस स्तोत्र के साथ-साथ इसका हिन्दी अर्थ भी दिया गया है।
ऐसी मान्यता भी है कि यदि किसी मंत्र, श्लोक अथवा स्तोत्र का अर्थ भी ज्ञात होता है तो उसका विशेष लाभ जातक को प्राप्त होता है। तो आइए, पोस्ट शुरू करते हैं –
किसने की लिंगाष्टकम स्तोत्र की रचना ?
भगवान शिव को प्रिय इस स्तोत्र की रचना आदि गुरू शंकराचार्य जी ने की थी। सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए इन्होंने देश के चारों कोनों पर चार धामों की स्थापना की जिनमें बद्रीनाथ (उत्तराखंड), द्वारका (गुजरात), जगन्नाथपुरी (उड़ीसा) तथा रामेश्वरम (तमिलनाडू) हैं।
Lingashtakam Stotram :अथ श्री लिंगाष्टकम स्तोत्र प्रारंभ
ब्रह्ममुरारि सुरार्चित लिंगम्
निर्मलभासित शोभित लिंगम्।
जन्मज दुःख विनाशक लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥1॥
भावार्थ :— ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवगणों के जो इष्टदेव हैं, जो परम पवित्र, निर्मल, तथा सभी जीवों की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं और जो लिंग रूप में चराचर जगत में विद्यमान हैं, जो संसार के संहारक हैं तथा जन्म और मृत्यु के दुखों का विनाश करते हैं, ऐसे भगवान भोलेनाथ को नित्य निरंतर प्रणाम है ।
देवमुनि प्रवरार्चित लिंगम्
कामदहन करुणाकर लिंगम्।
रावणदर्प विनाशन लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥2॥
भावार्थ :— भगवान सदाशिव जो मुनियों और देवताओं के परम आराध्य देव हैं, तथा देवों और मुनियों द्वारा पूजे जाते हैं, जो काम (वह कर्म जिसमें विषयासक्ति हो) का विनाश करते हैं, जो दया और करुणा के सागर हैं तथा जिन्होंने लंकापति रावण के अहंकार का विनाश किया था, ऐसे परमपूज्य महादेव के लिंग रूप को मैं कोटि-कोटि प्रणाम करता हूँ ।
सर्वसुगन्धि सुलेपित लिंगम्
बुद्धि विवर्धन कारण लिंगम्।
सिद्ध सुरासुर वन्दित लिङ्गम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥3॥
भावार्थ :— शिव जी का लिंगमय स्वरूप जो सभी तरह के सुगन्धित इत्रों से लेपित है, और जो बुद्धि तथा आत्मज्ञान में वृद्धि का कारण है, शिवलिंग जो सिद्ध मुनियों और देवताओं तथा दानवों सभी के द्वारा पूजा जाता है, ऐसे अविनाशी शिव के लिंग स्वरुप को प्रणाम है ।
कनक महामणि भूषित लिंगम्
फणिपति वेष्टित शोभित लिंगम् ।
दक्ष सुयज्ञ विनाशन लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥4॥
भावार्थ :— लिंगरुपी आशुतोष जो सोने तथा रत्नजड़ित आभूषणों से सुसज्जित हैं, जो चारों ओर से सर्पों से घिरे हुए हैं, तथा जिन्होंने प्रजापति दक्ष (माता सती के पिता) के यज्ञ का विध्वंस किया था, ऐसे माता पार्वती के पति सदा शिव के लिंगस्वरूप को हम प्रणाम करते हैं Lingashtakam Stotram।
कुंकुम चन्दन लेपित लिंगम्
पंकज हार सुशोभित लिंगम् ।
सञ्चित पाप विनाशन लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥5॥
भावार्थ :— देवों के देव जिनका लिंगस्वरूप कुंकुम तथा चन्दन से लीपा गया है साथ ही कमल के सुंदर हार से शोभायमान है, तथा जो संचित पापकर्मों का लेखा-जोखा मिटाने में सक्षम हैं, ऐसे आदि-अनंंत भगवान शिव के लिंगस्वरूप को मैं नमन करता हूँ ।
देवगणार्चित सेवित लिंगम्
भावैर्भक्तिभिरेव च लिंगम्।
दिनकर कोटि प्रभाकर लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥6॥
भावार्थ :— जो सभी देवताओं तथा देवगणों द्वारा पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति भाव से परिपूर्ण तथा पूजित हैं, जो करोड़ों सूर्य के समान तेजस्वी हैं, ऐसे लिंगस्वरूप भगवान शिव को प्रणाम है ।
अष्टदलो परिवेष्टित लिंगम्
सर्व समुद्भव कारण लिंगम्।
अष्टदरिद्र विनाशित लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥7॥
भावार्थ :— जो पुष्प के आठ दलों (कलियाँ) के मध्य में विराजमान हैं, जो सृष्टि में सभी घटनाओं (उचित-अनुचित) के रचयिता हैं, तथा जो आठों प्रकार की दरिद्रता का हरण करने वाले हैं ऐसे लिंगस्वरूप भगवान शिव को मैं प्रणाम करता हूँ ।
सुरगुरु सुरवर पूजित लिंगम्
सुरवन पुष्प सदार्चित लिंगम्।
परात्परं परमात्मक लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥8॥
भावार्थ :— जो देवताओं के गुरुजनों तथा सर्वश्रेष्ठ देवों द्वारा पूजनीय हैं, और जिनके लिंगस्वरूप की पूजा दिव्य-उद्यानों के पुष्पों से की जाती है, तथा जो परमब्रह्म हैं जिनका न आदि है और न ही अंत। ऐसे अनंत अविनाशी भगवान शिव के लिंगस्वरूप को मैं सदैव अपने ह्रदय में स्थित कर प्रणाम करता हूँ ।
लिंगाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥
भावार्थ :— जो मनुष्य श्री शिव लिंगाष्टकम का पाठ भगवान शिव के विग्रह अथवा शिवलिंग के समीप पूर्ण श्रद्धा तथा शुद्ध ह्रदय से करता है उसे निश्चित ही शिवलोक की प्राप्ति होती है तथा भगवान भोलेनाथ उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
Lingashtakam stotram benefits : लिंगाष्टकम स्तोत्र के लाभ (फायदे)
• यदि आपके पारिवारिक जीवन, कैरियर आदि में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है तथा आपको लग रहा है जैसे आपका बुरा समय चल रहा है, तो भगवान शिव के लिंगाष्टकम का पाठ आपको सभी समस्याओं से मुक्ति दिलवा सकता है।
• शिवपुराण में शिवलिंग की उपासना के लिए लिंगाष्टकम स्तोत्र का विस्तार से वर्णन किया गया है। इस पाठ को अत्यंंत चमत्कारी व शक्तिशाली माना जाता है।
• ऐसी मान्यता है कि यदि नियमित रूप से शिवलिंग पर जल तथा बेलपत्र अर्पित करके लिंगाष्टकम स्तोत्र का पाठ किया जाए तो व्यक्ति को हर परेशानी से मुक्ति प्राप्त हो जाती है Lingashtakam in hindi।
• इस पाठ को करने से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं और अनन्य कृपा बरसाते हैं।
• लिंगाष्टकम स्तोत्र के पाठ को करने से कुछ ही समय में सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और बुरे से बुरा समय भी समाप्त हो जाता है।
• शिव जी को प्रसन्न करने का यह सबसे सरल माध्यम है। शिव जी देवों के देव हैं इनकी कृपा से प्रत्येक कष्ट क्षण भर में दूर हो जाता है।
• भगवान शिव को प्रिय पवित्र माह श्रावण/सावन अथवा प्रत्येक सोमवार को इस स्तोत्र का पाठ करने वाले व्यक्ति पर शिवजी की विशेष कृपा होती है तथा वह जीवन की सभी बाधाओं को सुगमता से हल कर लेता है।
॥ इति श्री लिंगाष्टकम स्तोत्रं सम्पूर्णम॥
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