Sudarshan Chakra : कैसे हुई भगवान श्री विष्णु को सुदर्शन चक्र की प्राप्ति ?
भगवान श्री हरि विष्णु अपने हाथ में सुदर्शन चक्र Sudarshan Chakra धारण करते हैं जिससे मानव तथा देवों का अहित करने वाले राक्षस सदा ही भयभीत रहते हैं। इस चक्र की विशेषता यह है कि इसका वार कभी भी खाली नहीं जाता तथा यह अपने लक्ष्य को भेदकर ही वापस लौटता है। श्री विष्णु Shree Vishnu का अवतार होने के कारण १६ कलाओं से युक्त सच्चिदानंद भगवान श्री कृष्ण भी इसे धारण करते हैं जिससे उन्होंने कई राक्षसों सहित शिशुपाल का वध भी किया था।
भगवान विष्णु को यह सुदर्शन चक्र Sudarshan Chakra कैसे और किन देवता की अराधना से मिला आइये, जानें इस लेख में।
यूं तो जब से इस सृष्टि की रचना हुई है तभी से देवता तथा राक्षसों के मध्य युद्ध होता चला आ रहा है। कभी राक्षस देवताओं को तो कभी देवता राक्षसों को युद्ध में पराजित करते रहते थे। किंतु एक समय संसार में असुरों की शक्ति अत्यधिक बढ़ गई तथा अपने पराक्रम से उन्होंने देवताओं पर विजय प्राप्त कर लिया।
समस्त पृथ्वी पर उन्होंने अपना एकछत्र राज्य स्थापित कर लिया जिससे तीनों लोकों के जीव-जन्तुओं के साथ ही अन्य प्राणियों में भी हाहाकार मच गया। सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा तथा अनुशासन अस्त-व्यस्त हो गयाअसुरों की शक्ति इतनी अधिक बढ गई कि उस समय देवताओं की सहायता करने गए भगवान विष्णु के अस्त्र शस्त्र भी असुरों पर विफल होने लगे।
इस प्रकार असुर निरंकुश हो गए और असुरों के निरंकुश होने से धर्म का लोप होने लगा और अधर्म की वृद्धि होने लगी। भगवान शिव ही समस्त आयुध और अस्त्र शस्त्रों के स्वामी हैं अतः भगवान विष्णु ने देवताओं की रक्षा और असुरों के नाश के लिए कैलाश पर जाकर देवाधिदेव भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनकी अराधना करने लगे।
वे शिवजी के हजार नामों से उनकी स्तुति करते और प्रत्येक नाम पर एक कमल का फूल शिवलिंग पर चढ़ाते थे। भगवान विष्णु एक हजार कमल पुष्पों से नित्य शिवजी की पूजा करने लगे। इस प्रकार बहुत समय बीत जाने पर एक दिन भगवान शिव ने विष्णु भगवान की परीक्षा लेने के उद्देश्य से उनके द्वारा लाए हुए एक हजार कमलों में से एक कमल को अपनी माया से छिपा दिया।
भोलेनाथ की माया से भगवान विष्णु को इस घटना का पता नहीं चला और वे अपने नियम के अनुसार शिव पूजा में संलग्न हो गए। एक एक नाम पर एक एक कमल चढ़ाते चढ़ाते जब अंत में भगवान विष्णु को एक कमल कम होने का पता चला तो उन्होंने उसकी खोज आरम्भ की पर उन्हें कहीं भी वह फूल नहीं मिला।
भगवान शिव की माया से उस दिन भगवान विष्णु को पूरे संसार में कहीं भी कमल का फूल नहीं मिला। तब अपने नियम में दृढ़ भगवान विष्णु को स्मरण आया कि उन्हें कमल नयन अर्थात कमल के समान नेत्र वाला भी कहा जाता है। तब उन्होंने भगवान का स्मरण कर अपने नेत्र को निकाला और शिवलिंग पर अर्पित करते हुये भगवान शिव से प्रार्थना की कि —“ हे महादेव ! मेरे इस कमल रूपी नयन को ही आप कमल पुष्प जानकर अपने चरणों में स्वीकार करने की कृपा करें।”
उनका ऐसा करना था कि भक्तों के प्रति दयालु भगवान भोलेनाथ तुरंत प्रकट हो गये तथा उनके चक्षु को पुनः स्थापित कर उनसे वरदान मांगने को कहा।
यह सुनकर विष्णु भगवान बोले – “हे महादेव, आप सर्वव्यापक हैं, आपसे इस संसार में क्या छिपा है आप तो सबकुछ जानते ही हैं पर फिर भी आपसे कहता हूँ, असुरों ने सारे जगत को पीड़ित कर रखा है। मेरे अस्त्र—शस्त्र भी उन पर विफल हो रहे हैं इसलिए मैं आपकी शरण में आया हूँ, कृपा कीजिये।”
तब भगवान शिव ने विष्णु भगवान को परम तेजमय Sudarshan Chakra सुदर्शन चक्र दिया। उसी सुदर्शन चक्र से भगवान विष्णु ने समस्त दैत्यों का संहार किया। इस प्रकार असुरों के भयंकर अनाचार से सारे संसार की रक्षा हुई।
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