Shiv Hridaya Stotram : पढ़िये शिव जी द्वारा रचित चमत्कारी स्तोत्र|
नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Shiv Hridaya Stotram में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, जब भी हम अपने ईष्ट की आराधना करते हैं तो उनसे सम्बन्धित चालीसा, स्तोत्र तथा आरती प्रमुख माध्यम हैं। प्रायः ये स्तोत्र, मंत्र आदि हमें वेदों के माध्यम से या फिर समय-समय पर हुये प्रकाण्ड विद्वानों अथवा श्री तुलसीदास जी तथा ऋषि वाल्मीकि जैसे संत-महात्माओं द्वारा स्वयं लिखकर हमें उपलब्ध कराई है।
लेकिन आज की पोस्ट में हम आपको एक ऐसे स्तोत्र की जानकारी देंगे जिसकी रचना स्वयं महादेव ने की है इस स्तोत्र का नाम है शिव हृदय स्तोत्र। क्या है यह स्तोत्र तथा क्या हैं इसके पढ़ने से प्राप्त होने वाले लाभ, इन सब की चर्चा इस लेख में हम आपसे करेंगे। तो आईये, पोस्ट आरंभ करते हैं —
Shiv Hriday Stotram : श्री शिव हृदय स्तोत्रम्
ऊं प्रणवो मे शिरः पातु मायाबीजं शिखां मम ।
प्रासादो हृदयं पातु नमो नाभिं सदाऽवतु ॥ 1 ॥
लिङ्गं मे शिवः पायादष्टार्णं सर्वसन्धिषु ।
धृवः पादयुगं पातु कटिं माया सदाऽवतु ॥ 2 ॥
नमः शिवाय कण्ठं मे शिरो माया सदाऽवतु ।
शक्त्यष्टार्णः सदा पायादापादतलमस्तकम् ॥ 3 ॥
सर्वदिक्षु च वर्णव्याहृत् पञ्चार्णः पापनाशनः ।
वाग्बीजपूर्वः पञ्चार्णो वाचां सिद्धिं प्रयच्छतु ॥ 4 ॥
लक्ष्मीं दिशतु लक्ष्यार्थः कामाद्य काममिच्छतु ।
परापूर्वस्तु पञ्चार्णः परलोकं प्रयच्छतु ॥ 5 ॥
मोक्षं दिशतु ताराद्यः केवलं सर्वदाऽवतु ।
त्र्यक्षरी सहितः शम्भुः त्रिदिवं सम्प्रयच्छतु ॥ 6 ॥
सौभाग्य विद्या सहितः सौभाग्यं मे प्रयच्छतु ।
षोडशीसम्पुटतः शम्भुः सर्वदा मां प्ररक्षतु ॥ 7 ॥
एवं द्वादश भेदानि विद्यायाः सर्वदाऽवतु ।
सर्वमन्त्रस्वरूपश्च शिवः पायान्निरन्तरम् ॥ 8 ॥
यन्त्ररूपः शिवः पातु सर्वकालं महेश्वरः ।
शिवस्यपीठं मां पातु गुरुपीठस्य दक्षिणे ॥ 9 ॥
वामे गणपतिः पातु श्रीदुर्गा पुरतोऽवतु ।
क्षेत्रपालः पश्चिमे तु सदा पातु सरस्वती ॥ 10 ॥
Shiv Hridaya Stotram
आधारशक्तिः कालाग्निरुद्रो माण्डूक सञ्ज्ञितः ।
आदिकूर्मो वराहश्च अनन्तः पृथिवी तथा ॥ 11 ॥
एतान्मां पातु पीठाधः स्थिताः सर्वत्र देवताः ।
महार्णवे जलमये मां पायादमृतार्णवः ॥ 12 ॥
रत्नद्वीपे च मां पातु सप्तद्वीपेश्वरः तथा ।
तथा हेमगिरिः पातु गिरिकानन भूमिषु ॥ 13 ॥
मां पातु नन्दनोद्यानं वापिकोद्यान भूमिषु ।
कल्पवृक्षः सदा पातु मम कल्पसहेतुषु ॥ 14 ॥
भूमौ मां पातु सर्वत्र सर्वदा मणिभूतलम् ।
गृहं मे पातु देवस्य रत्ननिर्मितमण्डपम् ॥ 15 ॥
आसने शयने चैव रत्नसिंहासनं तथा ।
धर्मं ज्ञानं च वैराग्यमैश्वर्यं चाऽनुगच्छतु ॥ 16 ॥
अथाऽज्ञानमवैराग्यमनैश्वर्यं च नश्यतु ।
सत्त्वरजस्तमश्चैव गुणान् रक्षन्तु सर्वदा ॥ 17 ॥
मूलं विद्या तथा कन्दो नालं पद्मं च रक्षतु ।
पत्राणि मां सदा पातु केसराः कर्णिकाऽवतु ॥ 18 ॥
मण्डलेषु च मां पातु सोमसूर्याग्निमण्डलम् ।
आत्माऽत्मानं सदा पातु अन्तरात्मान्तरात्मकम् ॥ 19 ॥
पातु मां परमात्माऽपि ज्ञानात्मा परिरक्षतु ।
वामा ज्येष्ठा तथा श्रेष्ठा रौद्री काली तथैव च ॥ 20 ॥
Shiv Hridaya Stotram
कलपूर्वा विकरणी बलपूर्वा तथैव च ।
बलप्रमथनी चापि सर्वभूतदमन्यथ ॥ 21 ॥
मनोन्मनी च नवमी एता मां पातु देवताः ।
योगपीठः सदा पातु शिवस्य परमस्य मे ॥ 22 ॥
श्रीशिवो मस्तकं पातु ब्रह्मरन्ध्रमुमाऽवतु ।
हृदयं हृदयं पातु शिरः पातु शिरो मम ॥ 23 ॥
शिखां शिखा सदा पातु कवचं कवचोऽवतु ।
नेत्रत्रयं पातु हस्तौ अस्त्रं च रक्षतु ॥ 24 ॥
ललाटं पातु हृल्लेखा गगनं नासिकाऽवतु ।
राका गण्डयुगं पातु ओष्ठौ पातु करालिकः ॥ 25 ॥
Shiv Hridaya Stotram
जिह्वां पातु महेष्वासो गायत्री मुखमण्डलम् ।
तालुमूलं तु सावित्री जिह्वामूलं सरस्वती ॥ 26 ॥
वृषध्वजः पातु कण्ठं क्षेत्रपालो भुजौ मम ।
चण्डीश्वरः पातु वक्षो दुर्गा कुक्षिं सदाऽवतु ॥ 27 ॥
स्कन्दो नाभिं सदा पातु नन्दी पातु कटिद्वयम् ।
पार्श्वौ विघ्नेश्वरः पातु पातु सेनापतिर्वलिम् ॥ 28 ॥
ब्राह्मीलिङ्गं सदा पायादसिताङ्गादिभैरवाः ।
रुरुभैरव युक्ता च गुदं पायान्महेश्वरः ॥ 29 ॥
चण्डयुक्ता च कौमारी चोरुयुग्मं च रक्षतु ।
वैष्णवी क्रोधसम्युक्ता जानुयुग्मं सदाऽवतु ॥ 30 ॥
Shiv Hridaya Stotram
उन्मत्तयुक्ता वाराही जङ्घायुग्मं प्ररक्षतु ।
कपालयुक्ता माहेन्द्री गुल्फौ मे परिरक्षतु ॥ 31 ॥
चामुण्डा भीषणयुता पादपृष्ठे सदाऽवतु ।
संहारेणयुता लक्ष्मी रक्षेत् पादतले उभे ॥ 32 ॥
पृथगष्टौ मातरस्तु नखान् रक्षन्तु सर्वदा ।
रक्षन्तु रोमकूपाणि असिताङ्गादिभैरवाः ॥ 33 ॥
वज्रहस्तश्च मां पायादिन्द्रः पूर्वे च सर्वदा ।
आग्नेय्यां दिशि मां पातु शक्ति हस्तोऽनलो महान् ॥ 34 ॥
दण्डहस्तो यमः पातु दक्षिणादिशि सर्वदा ।
निरृतिः खड्गहस्तश्च नैरृत्यां दिशि रक्षतु ॥ 35 ॥
Shiv Hridaya Stotram
प्रतीच्यां वरुणः पातु पाशहस्तश्च मां सदा ।
वायव्यां दिशि मां पातु ध्वजहस्तः सदागतिः ॥ 36 ॥
उदीच्यां तु कुबेरस्तु गदाहस्तः प्रतापवान् ।
शूलपाणिः शिवः पायादीशान्यां दिशि मां सदा ॥ 37 ॥
कमण्डलुधरो ब्रह्मा ऊर्ध्वं मां परिरक्षतु ।
अधस्ताद्विष्णुरव्यक्तश्चक्रपाणिः सदाऽवतु ॥ 38 ॥
ओं ह्रौं ईशानो मे शिरः पायात् ।
ओं ह्रैं मुखं तत्पुरुषोऽवतु ॥ 39 ॥
ओं ह्रूं अघोरो हृदयं पातु ।
ओं ह्रीं वामदेवस्तु गुह्यकम् ॥ 40 ॥
ओं ह्रां सद्योजातस्तु मे पादौ ।
ओं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः पातु मे शिखाम् ॥ 41 ॥
Shiv Hridaya Stotram
फलश्रुति
अनुक्तमपि यत् स्थानं तत्सर्वं शङ्करोऽवतु ।
इति मे कथितं नन्दिन् शिवस्य हृदयं परम् ॥ 42 ॥
मन्त्रयन्त्रस्थ देवानां रक्षणात्मकमद्भुतम् ।
सहस्रावर्तनात्सिद्धिं प्राप्नुयान्मन्त्रवित्तमः ॥ 43 ॥
शिवस्य हृदयेनैव नित्यं सप्ताभिमन्त्रितम् ।
तोयं पीत्वेप्सितां सिद्धिं मण्डलाल्लभते नरः ॥ 44 ॥
वन्ध्या पुत्रवती भूयात् रोगी रोगात् विमुच्यते ।
चन्द्र सूर्यग्रहे नद्यां नाभिमात्रोदके स्थितः ॥ 45 ॥
Shiv Hridaya Stotram
मोक्षान्तं प्रजेपेद्भक्त्या सर्वसिद्धीश्वरो भवेत् ।
रुद्रसङ्ख्या जपाद्रोगी नीरोगी जायते क्षणात् ॥ 46 ॥
उपोषितः प्रदोषे च श्रावण्यां सोमवासरे ।
शिवं सम्पूज्य यत्नेन हृदयं तत्परो जपेत् ॥ 47 ॥
कृत्रिमेषु च रोगेषु वातपित्तज्वरेषु च ।
त्रिसप्तमन्त्रितं तोयं पीत्वाऽरोग्यमवाप्नुयात् ॥ 48 ॥
नित्यमष्टोत्तरशतं शिवस्य हृदयं जपेत् ।
मण्डलाल्लभते नन्दिन् सिद्धिदं नात्र संशयः ॥ 49 ॥
किं बहूक्तेन नन्दीश शिवस्य हृदयस्य च ।
जपित्वातु महेशस्य वाहनत्वमवाप्स्यसि ॥ 50 ॥
Shiv Hridaya Stotram
shiv hridaya stotra benefits :शिव हृदय स्तोत्र के लाभ
आईये, जानते हैं इस चमत्कारी स्तोत्र के पाठ से होने वाले लाभ —
• धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने खुद शिव हृदय स्तोत्र की रचना की है, जिसके कारण शिव हृदय स्तोत्र को बहुत प्रभावशाली माना जाता है।
• जो व्यक्ति सावन के पूरे महीने शिव हृदय स्तोत्र का पाठ करता है उसके ऊपर भगवान भोलेनाथ की कृपा बरसती है।
• शिव हृदय स्तोत्र के नियमित पाठ से भक्त को भोलेनाथ के हृदय में स्थान और परम शिव भक्ति का वरदान प्राप्त होता है।
• ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जो व्यक्ति शिव हृदय स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करता है उसे मन चाहा जीवनसाथी प्राप्त होता है।
• अपने कष्टों से मुक्ति चाहते हैं तो शिव हृदय स्त्रोत का पाठ अवश्य करें।
॥ इति ॥
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