Saraswati Chalisa |श्री सरस्वती चालीसा हिंदी अर्थ सहित|
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“या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।”
नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट saraswati chalisa में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, परमात्मा द्वारा प्रदान किया गया तत्व “विवेक” ईश्वर का सर्वोत्तम उपहार है। हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारे भीतर यह तत्व विद्यमान है क्योंकि 84 लाख योनियों में से किसी भी अन्य में यह तत्व उपलब्ध नहीं है।
विवेक से हम उस परमात्मा की आराधना कर उन्हें प्राप्त कर सकते हैं। इस तत्व की देवी हैं मां सरस्वती। हंसवाहिनी मां शारदे की आराधना करने मात्र से मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति भी ज्ञानी पण्डित बन जाता है। सरस्वती चालीसा माता सरस्वती को शीघ्र प्रसन्न करने का सबसे सरल अथवा सुगम उपाय है।
ज्ञान और बुद्धि का विकास करने के लिए माता सरस्वती चालीसा saraswati chalisa का पाठ अत्यंत ही लाभकारी सिद्ध होता है। आज की पोस्ट में हम इस चालीसा का हिन्दी सहित अर्थ समझेंगे। तो आईये, पोस्ट शुरू करते हैं।
Saraswati Chalisa in hindi Meaning : सरस्वती चालीसा|हिंदी अर्थ सहित
॥दोहा॥
जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥
भावार्थ— माता-पिता के चरणों की धूल मस्तक पर धारण करते हुए हे सरस्वती मां ! मैं आपकी वंदना करता हूं, हे दातारी मुझे बुद्धि की शक्ति दो। आपकी अमित और अनंत महिमा पूरे संसार में व्याप्त है। हे मां रामसागर (चालीसा लेखक) के पापों का हरण अब आप ही कर सकती हैं।
Saraswati Chalisa॥चालीसा॥
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी। जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥
जय जय जय वीणाकर धारी। करती सदा सुहंस सवारी॥
रूप चतुर्भुज धारी माता। सकल विश्व अन्दर विख्याता॥
जग में पाप बुद्धि जब होती। तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥
तब ही मातु का निज अवतारी। पाप हीन करती महतारी॥
भावार्थ— बुद्धि का बल रखने वाली अर्थात समस्त ज्ञान शक्ति को रखने वाली हे सरस्वती मां ! आपकी जय हो। सब कुछ जानने वाली, हे अमर अविनाशी मां सरस्वती, आपकी जय हो। हाथों में वीणा धारण करने वाली तथा श्वेत सुंदर हंस की सवारी करने वाली माता सरस्वती आपकी जय हो।
हे माता आपका चार भुजाओं वाला स्वरूप समस्त संसार में प्रसिद्ध है। जब-जब इस दुनिया में पाप बुद्धि अर्थात विनाशकारी और अपवित्र वैचारिक कृत्यों का चलन बढता है तो धर्म की ज्योति फीकी हो जाती है तब हे माता आप अवतार रूप धारण कर इस धरती को पाप से मुक्त करती हैं।
वाल्मीकि जी थे हत्यारा। तव प्रसाद जानै संसारा॥
रामचरित जो रचे बनाई। आदि कवि की पदवी पाई॥
कालिदास जो भये विख्याता। तेरी कृपा दृष्टि से माता॥
तुलसी सूर आदि विद्वाना। भये और जो ज्ञानी नाना॥
तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा। केव कृपा आपकी अम्बा॥
भावार्थ— मां शारदे ! जो वाल्मीकि जी हत्यारे हुआ करते थे, उनको आपसे जो प्रसाद मिला उसे पूरा संसार जानता है। आपकी दया दृष्टि से रामायण की रचना कर उन्होंनें आदि कवि की पदवी प्राप्त कर ली। आपकी कृपा दृष्टि से ही कालिदास जी प्रसिद्ध हुये।saraswati chalisa
तुलसीदास, सूरदास जैसे और भी कितने ही ज्ञानी हुए हैं उन्हें किसी का सहारा नहीं था, ये सब केवल आपकी ही कृपा से विद्वान हुए । सरस्वती मां को बुद्धि व ज्ञान की देवी कहते हैं इसलिए संसार में बुद्धि से, ज्ञान से, वाणी से, संगीत से जिन्होंनें जितनी उपलब्धियां हासिल की हैं, सब मां सरस्वती की कृपा मानी जाती है।
करहु कृपा सोइ मातु भवानी। दुखित दीन निज दासहि जानी॥
पुत्र करहिं अपराध बहूता। तेहि न धरई चित माता॥
राखु लाज जननि अब मेरी। विनय करउं भांति बहु तेरी॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा। कृपा करउ जय जय जगदंबा॥
भावार्थ— हे भवानी ! मुझ दीन दुखी को भी अपना दास जानकर कृपा करो। मां, पुत्र तो बहुत से अपराध, बहुत सी गलतियां करते रहते हैं, आप उन्हें अपने चित में धारण न करें अर्थात मेरी गलतियों को क्षमा करें, उन्हें भुला दें। मैं कई प्रकार से आपकी प्रार्थना करता हूं, मेरी लाज रखना। मुझ अनाथ को मात्र आपका ही सहारा है सो अविलम्ब मुझ पर दया कीजिये ।
मधुकैटभ जो अति बलवाना। बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना॥
समर हजार पाँच में घोरा। फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा॥
मातु सहाय कीन्ह तेहि काला। बुद्धि विपरीत भई खलहाला॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी। पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥
चंड मुण्ड जो थे विख्याता। क्षण महु संहारे उन माता॥
रक्त बीज से समरथ पापी। सुरमुनि हदय धरा सब काँपी॥
काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा। बारबार बिन वउं जगदंबा॥
जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा। क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा॥
भावार्थ— मधु और कैटभ जैसे शक्तिशाली दैत्यों ने भगवान विष्णु से जब युद्ध करने की ठानी, तो पांच हजार वर्ष तक युद्ध करने के बाद भी विष्णु भगवान उन्हें नहीं मार सके तब आपने ही भगवान विष्णु की सहायता की तथा राक्षसों की बुद्धि उलट दी जिससे उन राक्षसों का वध हो सका। मां आप मेरा मनोरथ भी पूरा करो।
चंड-मुंड जैसे विख्यात राक्षसों का भी आपने क्षणभर में संहार कर दिया रक्तबीज नामक पापी जिससे देवता, ऋषि-मुनि सहित पूरी पृथ्वी भय से कांपने लगी थी आपने उस दुष्ट का शीश बड़ी ही आसानी से काट कर केले की भांंति भक्षण कर लिया।
हे माता जगदंबा ! पूरे संसार में महापापी के रुप विख्यात शुंभ-निशुंभ नामक राक्षसों का भी आपने एक पल में संहार कर डाला मैं बार-बार आपकी प्रार्थना करता हूं, आपको नमन करता हूं।
भरतमातु बुद्धि फेरेऊ जाई। रामचन्द्र बनवास कराई॥
एहिविधि रावण वध तू कीन्हा। सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा॥
को समरथ तव यश गुन गाना। निगम अनादि अनंत बखाना॥
विष्णु रुद्र जस कहिन मारी। जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥
रक्त दन्तिका और शताक्षी। नाम अपार है दानव भक्षी॥
भावार्थ— मां शारदे ! आपने ही भरत की माता केकैयी की बुद्धि फेरकर भगवान श्री राम को वनवास करवाया। इसी प्रकार रावण का वध भी आपने करवाकर देवताओं, मनुष्यों, ऋषि-मुनियों सबको सुख दिया।
आपकी विजय गाथाएं तो अनादि काल से हैं, अनंत हैं इसलिए आपके यश का गुणगान करने का सामर्थ्य किसी में नहीं है। जिनकी रक्षक बनकर आप स्वयं खड़ी हों, उन्हें स्वयं भगवान विष्णु या फिर भगवान शिव भी नहीं मार सकते। रक्त दंतिका, शताक्षी, दानवभक्षी जैसे आपके अनेक नाम हैं।
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा। दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥
दुर्ग आदि हरनी तू माता। कृपा करहु जब जब सुखदाता॥
नृप कोपित को मारन चाहे। कानन में घेरे मृग नाहे॥
सागर मध्य पोत के भंजे। अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में। हो दरिद्र अथवा संकट में॥
नाम जपे मंगल सब होई। संशय इसमें करई न कोई॥
भावार्थ— दुर्गम अर्थात मुश्किल से मुश्किल कार्यों को करने के कारण समस्त संसार ने आपको दुर्गा कहा। मां !आप कष्टों का हरण करने वाली हैं, आप जब भी कृपा करती हैं, सुख की प्राप्ती होती है, अर्थात सुख देती हैं।
जब कोई राजा क्रोधित होकर मारना चाहता हो, या फिर जंगल में खूंखार जानवरों से घिरे हों, या फिर समुद्र के बीच जब साथ कोई न हो और तूफान से घिर जाएं, भूत प्रेत सताते हों या फिर गरीबी अथवा किसी भी प्रकार के कष्ट सताते हों, हे मां आपका नाप जपते ही सब कुछ ठीक हो जाता है इसमें कोई संदेह नहीं है अर्थात इसमें कोई शक नहीं है कि आपका नाम जपने से बड़े से बड़ा संकट भी टल जाता है, दूर हो जाता है।
पुत्रहीन जो आतुर भाई। सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥
करै पाठ नित यह चालीसा। होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा॥
धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै। संकट रहित अवश्य हो जावै॥
भक्ति मातु की करैं हमेशा। निकट न आवै ताहि कलेशा॥
बंदी पाठ करें सत बारा। बंदी पाश दूर हो सारा॥
रामसागर बाँधि हेतु भवानी। कीजै कृपा दास निज जानी।
भावार्थ— जो संतानहीन हैं, वे यदि सब छोड़कर आपकी पूजा करें तथा प्रतिदिन इस चालीसा saraswati chalisa का पाठ करें, तो उन्हें गुणवान व सुंदर संतान की प्राप्ति होगी। जो व्यक्ति आपको धूप आदि नैवेद्य अर्पण करता है उसके सारे संकट दूर हो जाते हैं।
जो भी माता की भक्ति करता है, कष्ट उसके पास नहीं फटकते अर्थात किसी प्रकार का दुख उनके करीब नहीं आता। जो भी सौ बार पाठ करता है, उसके पाश दूर हो जाते हैं। हे माता भवानी ! सदा अपना दास समझकर, मुझ पर कृपा करें साथ ही इस भवसागर से मुक्ति प्रदान करें।
॥दोहा॥
मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप।
डूबन से रक्षा करहु परूँ न मैं भव कूप॥
बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।
राम सागर अधम को आश्रय तू ही देदातु॥
भावार्थ— मां ! आपकी कांति सूर्य के समान है जबकि मेरा रूप अंधकार जैसा है। मुझे भवसागर रूपी कुंए में डूबने से बचाओ। हे मां सरस्वती मुझे बल, बुद्धि के साथ विद्या का दान दीजिये तथा इस पापी रामसागर को अपना आश्रय देकर पवित्र कीजिये।
saraswati chalisa padhne ke fayde: सरस्वती चालीसा के फायदे
• सरस्वती चालीसा का पाठ करने से मनुष्य की बुद्धि प्रखर बनती है।
• विद्यार्थियों को मां सरस्वती का ध्यान जरूर करना चाहिए तथा सरस्वती चालीसा का पाठ नियमित रूप से करना चाहिये।
• माँ सरस्वती ज्ञान और कला की देवी है सरस्वती चालीसा saraswati chalisa का पाठ करने से मनुष्य को ब्रह्मा ज्ञान की प्राप्ति होती है
• सरस्वती चालीसा का पाठ करने से सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है
• सरस्वती चालीसा की कृपा से सिद्धि-बुद्धि,धन-बल और ज्ञान-विवेक की प्राप्ति होती है।
• इस saraswati chalisa चालीसा का पाठ करने से मूर्ख व्यक्ति भी ज्ञानी बन जाता है।
Saraswati Mantra : माता सरस्वती के प्रभावशाली मंत्र
1- ॐ ऐं वाग्देव्यै च विद्महे कामराजाय धीमहि !
तन्नो देवी प्रचोदयात्॥
2- सरस्वति नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।
विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा।।
3- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नमः।
4- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वीणा पुस्तक धारिणीम् मम् भय निवारय निवारय अभयम् देहि देहि स्वाहा।
5- या देवी सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
नमस्कार दोस्तों, मैं सुगम वर्मा (Sugam Verma), Jagurukta.com का Sr. Editor (Author) & Co-Founder हूँ । मैं अपनी Education की बात करूँ तो मैंने अपनी Graduation (B.Com) Hindu Degree College Moradabad से की और उसके बाद मैने LAW (LL.B.) की पढ़ाई Unique College Of Law Moradabad से की है । मुझे संगीत सुनना, Travel करना, सभी तरह के धर्मों की Books पढ़ना और उनके बारे में जानना तथा किसी नये- नये विषयों के बारे में जानकारियॉं जुटाना और उसे लोगों के साथ share करना अच्छा लगता है जिससे उस जानकारी से और लोगों की भी सहायता हो सके। मेरी आपसे विनती है की आप लोग इसी तरह हमारा सहयोग देते रहिये और हम आपके लिए नईं-नईं जानकारी उपलब्ध करवाते रहेंगे। आशा है आप हमारी पोस्ट्स को अपने मित्रों एवं सम्बंधियों के साथ भी share करेंगे। और यदि आपका कोई question अथवा सुझाव हो तो आप हमें E-mail या comments अवश्य करें।