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Argala Stotram: अथ श्री अर्गला स्त्रोत्रम हिंदी में

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Argala Stotram: अथ श्री अर्गला स्त्रोत्रम हिंदी में

नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्टargala stotram में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, श्री दुर्गा सप्तशती के पाठों में एक पाठ श्री अर्गला स्तोत्र भी है जो इस सप्तशती का एक महत्वपूर्ण अंग है। इस स्तोत्र में माता भगवती की आराधना करते हुये अपनी रक्षा की प्रार्थना की गई है।

क्या है यह स्तोत्र ? आईये, विस्तार से जानते हैं इस पोस्ट में –

Argala stotram

महर्षी मार्कण्डेय जी कहते हैं  — जयंती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा इन नामों से प्रसिद्ध देवी! तुम्हें मैं नमस्कार करता हूँ, हे देवी! तुम्हारी जय हो।

प्राणियों के सम्पूर्ण दुःख हरने वाली तथा सब में व्याप्त रहने वाली देवी ! तुम्हारी जय हो, कालरात्रि तुम्हें नमस्कार है, मधु और कैटभ दैत्य का वध करने वाली, ब्रह्मा को वरदान देने वाली देवी! तुम्हें नमस्कार है। तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और काम क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

महिषासुर का नाश करने वाली तथा भक्तों को सुख देने वाली देवी तुम्हें नमस्कार है। तुम मुझे सुंदर स्वरुप दो, विजय दो, और मेरे शत्रुओं को नष्ट करो। हे रक्तबीज का वध करने वाली! हे चंड व मुंड का नाश करने वाली ! तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और काम क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।
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हे शुम्भ- निशुंभ और धूम्राक्ष राक्षस का मर्दन करने वाली देवी ! तुम मुझे सुंदर स्वरुप दो, विजय दो, और मेरे शत्रुओं को नष्ट करो। हे ! पूजित युगल चरण वाली देवी  ! हे सम्पूर्ण सौभाग्य प्रदान करने वाली देवी! तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और काम क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

हे देवी! तुम्हारे रूप और चरित अमित हैं। तुम सब शत्रुओं का नाश करने वाली हो। मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और काम क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो, पापों को दूर करने वाली चण्डिके ! इस संसार में जो भक्ति से तुम्हारा पूजन करते हैं उनको तुम रूप तथा विजय और यश दो तथा उनके शत्रुओं का नाश करो।

रोगों का नाश करने वाली चण्डिके ! जो भक्ति पूर्वक तुम्हारी पूजा करते हैं उन्हें तुम रूप दो, जय दो, यश दो और उनके काम क्रोध आदि शत्रओं का नाश करो। हे चण्डिके! इस संसार में जो भक्ति से तुम्हारी पूजा करते हैं उनको तुम रूप विजय और यश दो, तथा उनके शत्रुओं का नाश करो।

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Argala Stotram

हे देवि! मुझे सौभाग्य दो और आरोग्य दो, परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और काम क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। हे देवी! जो मुझे से बैर रखते हैं, उनका नाश करो और मुझे अधिक बल प्रदान कर रूप दो, जय दो, यश दो और मेरे शत्रुओं का संहार करो। दे देवी! मेरा कल्याण करो और मुझे उत्तम सम्पति प्रदान करो, रूप दो, जय दो, यश दो और मेरे काम क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। 

 हे देवता तथा राक्षसों के मुकुट रत्नों से स्पर्श किये हुए चरणों वाली देवी ! हे अम्बिके ! मुझे स्वरुप दो, विजय तथा यश दो, और मेरे शत्रुओं का संहार करो। और हे देवी! अपने भक्तो को विद्वान्, कीर्तिवान और लक्ष्मीवान बनाओ और उन्हें रूप दो, जय दो, यश दो और उनके शत्रुओं का नाश करो।

हे प्रचण्ड दैत्यों के अभिमान का नाश करने वाली चण्डिके ! मुझे शरणागत को रूप दो, जय दो, यश दो और काम क्रोध आदि शत्रुओं का  नाश करो। हे चार भुजाओं वाली ! हे ब्रह्मा द्वारा प्रशंसित परमेश्वरी ! मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और काम क्रोध आदि शत्रुओं का नष्ट करो।

निरंतर भक्ति से भगवान विष्णु से सदा स्तुति की हुई हे अम्बिके! मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और काम क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। हिमांचल कन्या पार्वती के भगवान शंकर से स्तुति की हुई ही परमेश्वरी ! मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और काम क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

इन्द्राणी के पति (इन्द्र) के द्वारा सदभाव से पूजित होने वाली परमेश्वरी ! मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और काम क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। प्रचंड भुजदंड से दैत्यों के घमण्ड को नष्ट करने वाली ! मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और काम क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

हे देवी ! तुम अपने भक्तों को सदा असीम आनंद देती हो ! मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और काम क्रोध आदि शत्रुओं का नष्ट करो। हे देवी ! मेरी इच्छानुसार चलने वाली सुंदर स्त्री मुझे प्रदान करो, जो कि संसार सागर से तारने वाली तथा उत्तम कुल में उत्पन हुई हो,

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जो मनुष्य पहले इस स्तोत्र  का पाठ करता है और फिर सप्तशती रूपी महास्तोत्र का पाठ करता है वह सप्तशती संख्या की समान श्रेष्ठ फल  को प्राप्त करता है और उसके साथ ही उसे प्रचुर धन भी प्राप्त होता है।

॥  इति  ॥

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