Radha Ji : जानिये युगल चरणों में स्थित चिन्हों का वर्णन।
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नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट radha ji में आपका हार्दिक अभिनंदन है। दोस्तों, ब्रह्माण्ड स्वामिनी श्रीराधा जी अपने चरण युगल में विभिन्न प्रकार के चिन्ह धारण करती हैं। कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण सहित तीनों देव भी उनके चरण में स्थित इन चिन्हों का ध्यान करते हैं।
श्री राधा तथा उनके चरणकमलों की महिमा का ज्ञान इसी से होता है कि जिन श्रीकृष्ण के ऐश्वर्य और माधुर्य पर समस्त जगत मोहित है, वे भुवनमोहन श्रीकृष्ण स्वयं अपने हाथों से तूलिका से उन पर महावर लगाते हैं। श्री राधा के चरण-चिन्हों का ध्यान करने से प्राणी को समस्त ऐश्वर्यों, भुक्ति-मुक्ति तथा भक्ति की अक्षयनिधि की प्राप्ति होती है।
इस पोस्ट में हम वृषभान जी की दुलारी श्री राधा रानी द्वारा धारण किये इन्हीं चिन्हों की विस्तार से व्याख्या करेंगे। तो आईये, पोस्ट आरंभ करते हैं –
Radha Ji : युगल चरणों में स्थित चिन्हों का वर्णन
श्री राधा की आराधना करते हुए किस प्रकार उनके अधीन रहकर सुख का अनुभव करते हैं इसका श्रीव्यासजी ने अपने पद में अत्यंत सुन्दर वर्णन किया है वे कहते हैं –
चंपत चरन मोहनलाल।
पलंग पौढ़ी कुंवरि राधा नागरी नव बाल॥
समस्त सुखों की खान, कमल से भी कोमल श्रीराधा के चरणों की रज की चाह ब्रह्मा, शिव, सनकादिक, नारद, व्यास आदि भी करते हैं। श्री राधा के चरणकमलों में ऐसा क्या है जो उनका ध्यान करने पर मनुष्य को प्राकृत तथा अप्राकृत वैभव देने के साथ ही श्रीकृष्ण की प्राप्ति करा देते हैं। इसी का वर्णन इस भाग में किया गया है।radha ji
श्रीराधा के वाम चरणकमलों के चिन्ह
श्रीराधा ने अपने चरणकमलों में सुख देने वाले 19 चिन्हों को धारण किया है। इन चिन्हों के ध्यान से मन तथा हृदय पवित्र होते हैं तथा सांसारिक क्लेश, पीड़ा व भय का नाश होता है। श्रीराधा के चरणकमलों के 19 पवित्र चिन्हों का भक्तकवि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने जो वर्णन किया है, इस प्रकार है —
छत्र
श्री राधा जू के बांये चरण में छत्र का चिन्ह यह दर्शाता है कि यदुपति, व्रजपति, गोपपति व त्रिभुवनपति श्रीकृष्ण की स्वामिनी श्रीराधा हैं। वे समस्त गोपीयूथ की भी स्वामिनी हैं। इस चिन्ह का ध्यान करने मात्र से ही मनुष्य को राज्यसुख तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति व त्रिविध तापों से रक्षा होती है।
चक्र
बृजभूमि में एकछत्र व्रजेश्वरी श्रीराधा का ही राज है। तेज-तत्व का प्रतीक चक्र-चिन्ह ध्यान करने पर भक्तों के मन के कामरूपी निशाचर को मारकर अज्ञान का नाश कर देता है।
ध्वज
कलियुग की कुटिल गति देखकर मनुष्य शीघ्र ही भयभीत हो जाता है। अतः उसे निर्भयता तथा सभी कार्यों में विजय दिलाने के लिए श्रीराधा ने अपने चरण में ध्वज-चिन्ह धारण किया है।
लता-चिन्ह
radha ji श्रीराधा के वाम-चरण में लता चिन्ह है तथा श्रीकृष्ण के चरण में वृक्ष चिन्ह है। जिस प्रकार लता वृक्ष का आश्रय लेकर सदैव ऊपर चढ़ती चली जाती है, उसी प्रकार श्रीराधा सदैव श्रीकृष्णाश्रय में रहती हैं। लता चिन्ह का ध्यान करने से साधक की सदैव उन्नति होती है और भगवान श्रीराधा कृष्ण में प्रीति बढ़ती है।
पुष्प
रूठी हुई श्री राधिका जी को मनाते समय भगवान श्रीकृष्ण उनके पांव सहलाते हैं। श्रीराधा के चरण श्रीकृष्ण को कठोर न लगें इसलिए श्री राधाजी अपने चरणों मेंं पुष्प चिन्ह धारण करती हैं। इसका ध्यान करने से मनुष्य श्रीराधाजी की भक्ति प्राप्त करता है, उसका यश बढ़ता है तथा मन प्रसन्न रहता है।
कंकण अर्थात कंगन
निकुंजलीला में कंकणों के मुखरित होने से श्रीराधा ने कंकण उतारकर रख दिये और उनका चिन्ह अपने चरणकमल में धारण कर लिया है। इनका ध्यान जीव के लिए मंगलकारक है।
कमल
श्री राधा के चरणकमल में कमलचिन्ह का भाव है कि लक्ष्मी जी इन चरणों का सदा ध्यान करती हैं, उन पर बलिहार जाती हैं। इस चिन्ह का ध्यान समस्त वैभव तथा नवनिधि का प्रदायक है।
ऊर्ध्व रेखा
संसाररूपी सागर अपार है, इसलिए श्रीराधा ने वाम-चरण में ऊर्ध्व रेखा धारण कर पुल बांध दिया है। भक्त श्रीराधा के चरणों में ऊर्ध्व रेखा का ध्यान करने से सहज ही संसार-सागर से पार हो जाते हैं। जो श्री राधा के चरणों की भक्ति करते हैं उनकी कभी अधोगति नहीं होती।
अंकुश
मनरूपी उन्मत्त हाथी किसी भी प्रकार वश में नहीं आता। अतः मन को अपने अधीन करने के लिए श्रीराधा के चरणों में अंकुश चिन्ह का सदैव ध्यान करना चाहिए।
अर्धचन्द्र
अर्धचन्द्र को निष्कलंक माना जाता है। यह शिवजी व गणेशजी के मस्तक पर विराजमान रहता है तथा एक-एक दिन करके वृद्धि को प्राप्त करता है। श्रीराधा के चरण में अर्धचन्द्र के चिन्ह का ध्यान त्रिताप को नष्ट करके भक्ति और समृद्धि को बढ़ाता है। चन्द्रमा मन के देवता हैं, भक्तों का मन श्रीराधा के चरणों में लगा रहे इसलिए श्रीराधा इसे अपने चरणों में धारण करती हैं।
जौ
radha ji श्रीराधा के चरणकमल में यव अर्थात जौ का चिन्ह है। यह बताता है कि भोजन की चिन्ता तथा सांसारिक मोहमाया को छोड़कर इन चरणकमलों की शरण लेने से सारे पाप-तापों का अंत हो जाता है। जौ चिन्ह सर्वविद्या तथा सिद्धियों का दाता है, इसका ध्यान करने वालों को सुमति, सुगति, विद्या के साथ सुख-सम्पत्ति की प्राप्ति होती है।
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श्री राधा जी के दायें चरण में स्थित चिन्हों का वर्णन
पाश
श्रीराधा जी के अपने चरण में इस चिन्ह को धारण करने का भाव यह है कि जो जीव उनकी शरण लेता है वह श्रीराधा जी के ममतामयी प्रेमपाश में फंसकर भवसागर से तर जाता है।
गदा
भगवान श्रीकृष्ण अपने विष्णुस्वरूप में गदा धारण करते हैं इसी कारण राधा जी के चरणों में गदा का चिन्ह विद्यमान है। इस का ध्यान करने से शत्रुओं का नाश तथा पितरों को सदगति की प्राप्ति होती है।
रथ
radha ji श्रीराधा के चरण में स्थित रथ के चिन्ह का भाव यह है कि यह संसार रथरूप है जो कि निरंतर आगे बढ़ रहा है तथा उसके सारथी युगलस्वरूप में श्रीराधाकृष्ण हैं। इसका ध्यान करने से जीव इस रथ में सवार होकर ईश्वर धाम की प्राप्ति करता है।
वेदी
जहां श्रीकृष्ण यज्ञरूप हैं वहीं राधा स्वधा हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने यज्ञ की वेदी से महाप्रभु वल्लभाचार्य जी के रूप में अग्नि अवतार लेकर संसार को पुष्टिरस का दान दिया।
कुण्डल
श्रीराधा के चरणों के नूपुर से जो कलरव होता है वही विश्व में शब्द ब्रह्मरूप में व्याप्त है। उन्हीं नूपुरों की मधुर झंकार सुनने के लिए श्री कृष्ण के कान सदैव तरसते रहते हैं इसीलिए श्रीकृष्ण के कुंडल के चिन्ह श्रीराधा के चरणों में है। इनके ध्यान से साधक को सुख प्राप्त होता है।
मत्स्य
जिस प्रकार जल के बिना मछली जीवित नहीं रहती उसी प्रकार श्रीराधा श्रीकृष्ण से अभिन्न हैं। श्रीराधा के चरण में मछली का चिन्ह इसी भाव को प्रकट करता है।
पर्वत
बृज के देवता गिरिगोवर्धननाथ अर्थात श्रीकृष्ण हैं, वे निरंतर प्रभु के ध्यान में मग्न रहते हैं। इसी भक्ति के महिमामण्डन करने हेतु राधा जी के चरणों में पर्वत चिन्ह विराजमान है।
शंख
शंख को जल तत्व का रूप माना जाता है। राधा जी को अपने प्रियतम श्रीकृष्ण के विरह की अग्नि कभी न सताये इसीलिए उन्होंने जल तत्वरूपी शंख को अपने चरण में धारण किया है।
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