Madhurashtakam : मधुराष्टकम हिन्दी अर्थ सहित
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नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Madhurashtakam में आपका स्वागत है। भगवान श्रीकृष्ण को 16 कलाओं से संपन्न माना जाता है। हमारे शास्त्रों में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-आराधना के लिए अनेक रचनायें लिखी गई हैं। आज एक ऐसी ही स्तुति की बारे में हम आपको बतायेंगे जिसका नाम है “ मधुराष्टकम। ”
इस छोटी सी स्तुति Madhuradhipaterkhilam Madhuram में भगवान मधुसूदन का अत्यंत मधुरता से वर्णन किया गया है, दूसरे शब्दों में कहें तो मानो भगवान श्रीकृष्ण के सम्पूर्ण सौन्दर्य का वर्णन इस स्तुति में एक माला की तरह पिरोकर प्रस्तुत किया गया है। इस पोस्ट में हम मधुराष्टकम स्तुति का हिन्दी सहित अर्थ जानेंगे। तो आईये, पोस्ट शुरू करते हैं।
Madhurashtakam : मधुराष्टकम के रचयिता कौन हैं ?
इस स्तुति की रचना महाप्रभु श्री बल्लभाचार्य जी ने की है। इस रचना में इन्होंने श्रीकृष्ण के बालरूप की मधुरता का बहुत ही सुंदर शब्दों में वर्णन किया है। यदि मधुराष्टकम को भगवान श्रीकृष्ण की वंदना में लिखी पृथ्वी की सर्वोच्च रचना कहा जाये तो अतिशियोक्ति न होगी।
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Meaning of Madhurashtakam : मधुराष्टकम हिन्दी अर्थ सहित
अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम् ।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥1॥
भावार्थ :— (हे कृष्ण !) आपके होंठ मधुर हैं, आपका मुख मधुर है, आपकी आंखें मधुर हैं, आपकी मुस्कान मधुर है, आपका हृदय मधुर है, आपका जाना भी मधुर है, मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है ।
वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरम् ।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥2॥
भावार्थ :— आपका बोलना मधुर है, आपका चरित्र मधुर हैं, आपके वस्त्र मधुर हैं, आपका मुड़कर देखना भी मधुर है, आपका चलना मधुर है, आपका गायों के पीछे भटकना मधुर है, मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण ! आपका सब कुछ मधुर है ।
वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥3॥
भावार्थ :— आपकी बांसुरी मधुर है, आपके लगाए हुए पुष्प मधुर हैं, आपके हाथ मधुर हैं, आपके चरण मधुर हैं, आपका नृत्य मधुर है, आपकी मित्रता मधुर है, मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है।
गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम् ।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥4॥
भावार्थ :— आपके गीत मधुर हैं, आपका पीना मधुर है, आपका खाना मधुर है, आपका सोना मधुर है, आपका रूप मधुर है, आपका टीका मधुर है, मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है ।
करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरम् ।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥5॥
भावार्थ :— आपके कार्य मधुर हैं, आपका तैरना मधुर है, आपका हरण करना मधुर है( हरण करना याने खींच लेना / हमारे अभिमान या पाप का हरण करना) ,आपका प्यार करना मधुर है, आप जो हमें सूर्य का प्रकाश, वर्षा आदि बिना किसी भेदभाव से दे रहे हैं, वह मधुर है, आपका शांत रहना मधुर है, मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण ! आपका सब कुछ मधुर है Madhurashtakam।
गुञ्जा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा ।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥6॥
भावार्थ :— आपका भक्तों से प्रेम करना और उनके बारे में चिंतन करना मधुर है (गुंजा मधुरा), आपकी माला मधुर है, आपकी यमुना मधुर है, उसकी लहरें मधुर हैं, उसका पानी मधुर है, उसके कमल मधुर हैं, मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण ! आपका सब कुछ मधुर है ।
गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम् ।
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥7॥
भावार्थ :— आपकी गोपियां मधुर हैं, आपकी लीला मधुर है, आप उनके साथ मधुर हैं, आप उनके बिना मधुर हैं, आपके दर्शन मधुर है, आपकी शिष्टता मधुर है, मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण ! आपका सब कुछ मधुर है ।
गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा ।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥8॥
भावार्थ :— आपके गोप मधुर हैं, आपकी गायें मधुर हैं, आपकी छड़ी मधुर है (आपके हाथों में जो लाठी है वह मधुर है), आपकी सृष्टि मधुर है, आपका अलग रहना, वियोग मधुर है , आपका वर देना मधुर है, मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण ! आपका सब कुछ मधुर है ।
Madhurashtakam benefits : मधुराष्टकम पढ़ने के लाभ
इस स्तुति को पढ़ने से मनुष्य को निम्न लाभ होते हैं :-
1. मधुराष्टकम भगवान कृष्ण की स्तुति करने का सबसे सरल माध्यम है।
2. कुल 8 श्लोकों के इस पद को पढ़ने से मनुष्य की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
3. भगवान श्री कृष्ण एक कुशल राजनीतिज्ञ भी थे इस स्तुति से व्यक्ति की बुद्धि तीव्र होती है तथा वह कभी भी छल, कपट तथा प्रपंच आदि में नहीं फंसता।
4. श्री कृष्ण सोलह कलाओं से युक्त हैं। जिनकी आराधना से मनुष्य में कुशलता का गुण सहज ही उत्पन्न हो जाता है।
इसका पाठ करने वाला व्यक्ति निर्भय होता है।
५. नंदलाल की यह स्तुति जो भी भक्त प्रतिदिन करता है उसके मन में कभी नकारात्मक विचार नहीं आते तथा वह सदैव सकारात्मक ऊर्जा से ओत-प्रोत रहता है।
६. मधुराष्टकम पढ़ने के पश्चात यदि श्री कृष्ण चालिसा तथा श्री कृष्ण आरती की जाये तो फल दोगुना हो जाता है।
॥ इति ॥
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