Lord Krishna : श्रीकृष्ण का सबसे लोकप्रिय मंत्र (नाम मंत्र)
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नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Lord Krishna में आपका हार्दिक अभिनंदन है। दोस्तों, भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से लेकर कुरूक्षेत्र के रण में उनके व्यापक स्वरूप तक के सभी कार्यों से हम सभी अवगत हैं। कई मंत्र तथा स्तुति उनको समर्पित हैं तथा उनकी प्रशंसा में रचित की गई हैं।
इस पोस्ट में हम श्रीकृष्ण के सर्वशक्तिशाली नाम मंत्र की महिमा को जानेंगे। दोस्तों, इस मंत्र में प्रभु के प्रसिद्ध नाम सम्मिलित हैं इन सभी नामों का पृथक-पृथक रूप में विस्तारपूर्वक अर्थ हम इस पोस्ट में जानेंगे। तो आईये, पोस्ट शुरू करते हैं –
Lord Krishna : नाम मंत्र हिन्दी अर्थ सहित
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं – अर्जुन ! जो मेरे नामों का गान करके मेरे निकट नाचने लगता है, या जो मेरे नामों का गान करके मेरे समीप प्रेम से रो उठते हैं, उनका मैं खरीदा हुआ गुलाम हूं। यह जनार्दन दूसरे किसी के हाथ नहीं बिका है, यह मैं तुमसे सच्ची बात कहता हूं। भगवान की पूजा का सबसे सरल साधन है भगवान के नामों का स्मरण। कलियुग में तो इससे अच्छा कोई दूसरा उपाय है ही नहीं।
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श्रीकृष्ण मंत्र की महिमा
भगवान के नाम मंत्र का कीर्तन करने से सैंकड़ों जन्मों में किये गये पापों की राशि उसी प्रकार जल जाती है, जिस प्रकार आग से रुई का ढेर। भगवान श्रीकृष्ण का चमत्कारी व सबसे लोकप्रिय नाम मंत्र इस प्रकार है –
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेव।।
किसी भी मंत्र का जप करने से पहले उसका अर्थ जान लेना आवश्यक है, तभी वह मंत्र अपना प्रभाव शीघ्रता से दिखाता है। आईये इस मंत्र में दिये गये प्रत्येक नाम का अर्थ जानते हैं –
श्री कृष्ण
कृष्ण शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है – कृष् तथा ण। कृष् का अर्थ है आकर्षण तथा ण का अर्थ है आनन्द। इस प्रकार अर्थ हुआ जो सभी के मन का आकर्षण करके आनन्द प्रदान करते हैं वह हैं भगवान श्री कृष्ण। महाभारत में भगवान श्री कृष्ण ने अपने नाम की बड़ी विलक्षण व्याख्या की है वे कहते हैं, मैं काले लोहे की बड़ी कील बनकर पृथ्वी का कर्षण करता हूं और मेरा वर्ण भी कृष्ण यानी काला है इसलिए मैं कृष्ण नाम से पुकार जाता हूं।
ब्रह्मवैवर्तपुराण श्री कृष्ण जन्मखण्ड, 111/57-58 में श्री राधाजी द्वारा की गई कृष्ण नाम की व्याख्या इस प्रकार है – कृष्ण ऐसा मंगल नाम है जिसकी वाणी में वर्तमान रहता है इस नाम का निरंतर जाप करने वाले मनुष्य के करोड़ों महापातक यानी महापाप तुरंत भस्म हो जाते हैं। कृष्ण नाम अकेले ही मनुष्य के सारे दोषों को दूर कर डालता है।
कृष्ण रूपी मंत्र से प्रार्थना की गयी है कि — ” हे प्रभो ! आप सभी के मन को आकर्षित करने वाले हैं, अतः आप मेरा मन भी अपनी ओर आकर्षित कर अपनी भक्ति व सेवा की ओर लगाईये तथा मेरे समस्त पापों का नाश कर दीजिये।”
गोविन्द
गोविन्द नाम का अर्थ है गायों के इन्द्र अथवा समस्त इन्द्रियों के स्वामी। जिस प्रकार आग बुझाने के लिए जल तथा अंधकार को नष्ट कर देने के लिए सूर्योदय समर्थ है, उसी प्रकार कलियुग की पापराशि का शमन करने के लिए गोविन्द नाम का कीर्तन समर्थ है।
श्रीमद्भागवत 10/44/15 में गोपियों द्वारा भगवान के स्मरण की व्याख्या इस प्रकार की गई है कि जो गोपियां गायों का दूध दुहते समय, धान आदि कूटते समय, दही बिलोते समय, आंगन लीपते समय, बालकों को झूला झुलाते समय, रोते हुए बच्चों को लोरी देते समय, घरों में छिड़काव करते तथा झाडू लगाते समय प्रेमपूर्ण चित्त से, आंखों में आंसू भरे, गद्गद् वाणी से श्रीकृष्ण के गुणगान किया करती हैं, वे श्रीकृष्ण में ही सदैव चित्त लगाये रखने वाली गोपियां धन्य हैं। Lord Krishna
मंत्र में गोविन्द नाम से यह प्रार्थना की गई है कि — ” गौओं तथा इन्द्रियों की रक्षा करने वाले भगवन ! आप मेरी इन्द्रियों को स्वयं में लीन कर लें। मेरी सभी इन्द्रियां गोपियों की तरह केवल आप ही का चिन्तन करती रहें अर्थात आप मेरे मन की चंचलता तथा पापों को दूर कीजिए।”
हरे
भगवान ने कहा है कि मैं अपना स्मरण करने वालों के पाप का हरण यानी नाश कर देता हूं, इसलिए मेरा नाम हरि है। एक अन्य अर्थ के अनुसार जो यज्ञ में हवि के भाग का हरण अर्थात ग्रहण करते हैं यानी यज्ञ के भोक्ता हैं, वे भगवान हरि कहलाते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान का रंग हरित यानी नीलमणि के समान अत्यंत कमनीय है, इसलिए भी वे हरि कहलाते हैं।
स्वयं भगवान का यह कथन है कि जिसने हरि इन दो अक्षरों का उच्चारण कर लिया, उसने मानो ऋक्, यजु, साम तथा अथर्ववेद का अध्ययन कर लिया। इस के माध्यम से प्रार्थना इस प्रकार है — ” हे प्रभु ! हरि ये दो अक्षर मृत्यु के पश्चात परलोक के रास्ते में जाने वाले जीव के लिये पाथेय हैं अतः आपके हरि नाम का संकीर्तन करने से मैं भवसागर में नहीं डूबूंगा, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है।” Lord Krishna
मुरारे
भगवान श्रीकृष्ण ने मुर नामक दैत्य का वध किया तब से उनका एक नाम मुरारी हो गया। मंत्र में मुरारी नाम से यह प्रार्थना की गयी है कि — ” हे मुर राक्षस के शत्रु को मारने वाले प्रभु ! आप मेरे मन में बसे काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य आदि राक्षसों का विनाश कीजिए।”
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हे नाथ
हे कृष्ण ! आप जगत के नाथ जगन्नाथ हैं और मैं अनाथ हूं। संसार में दीनों से प्रेम करने वाले, उनका आदर करने वाले तथा उन्हें अपनाने वाले केवल दो ही होते हैं भगवान तथा संत। इसलिए उन्हें दीनदयाल, दीनबन्धु, दीनवत्स, दीनप्रिय तथा दीनानाथ कहा जाता है।
मंत्र में हे नाथ नाम से प्रार्थना की गई है कि — “हे प्रभु ! मेरे समान इस संसार में कोई दुःखी नहीं है तथा आपके समान दुखियों का, अनाथों का, दीनों का बंधु कोई नहीं है इसलिए मुझ अनाथ का भाव आप नाथ के साथ सदा जुड़ा रहे।”
नारायण
नारायण शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – नार तथा आयन। नार का अर्थ है जल तथ अयन शब्द का अर्थ है निवास करने वाले इस प्रकार अर्थ हुआ जल या क्षीरसागर में निवास करने वाले। श्रीब्रह्मवैवर्तपुराण में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं – मैं चार स्वरूप धारण करके सदैव समस्त लोकों की रक्षा करता हूं मेरी एक मूर्ति इस भूमण्डल पर बदरिकाश्रम में नर-नारायणरूप में तपस्या में लीन रहती है। Lord Krishna
दूसरी परमात्मारूप मूर्ति अच्छे व बुरे कर्म करने वाले जगत को साक्षीरूप में देखती रहती है, तीसरी मूर्ति मनुष्यलोक में अवतरित होकर नाना प्रकार के कर्म करती है तथा चौथी मूर्ति विष्णुरूप में सहस्त्रों युगों तक एकार्णव यानी क्षीरसागर के जल में शयन करती है।
जब मेरा चौथा स्वरूप योगनिद्रा से उठता है, तब भक्तों को अनेक प्रकार के वर प्रदान करता है। मंत्र में प्रार्थना की गई है कि — ” हे प्रभु ! मैं नर हूं तथा आप नारायण हैं। आपको प्राप्त करने के लिए आपके आदर्श पर मैं तपस्या में रत हूं। कृपया आप सदैव अपनी कृपा दृष्टि मुझ पर बनाये रखिये।”
वासुदेव
वासुदेव का अर्थ है जो सभी के अंतःकरणों में प्रकाशित है, वह अन्तर्यामी परमात्मा। वसु का एक अन्य अर्थ प्राण भी है इस प्रकार वह परमात्मा जो समस्त प्राणों के देव हैं कण-कण में व्याप्त हैं। मंत्र में वासुदेव नाम से प्रार्थना है कि — ” हे प्रभु ! आप मेरे प्राणों की रक्षा कीजिए मैंने अपने मन सहित सर्वस्व आपके चरणों में अर्पित कर दिया है।”
इस प्रकार साधारण से लगने वाले श्रीकृष्ण के नामों के इस मंत्र में अपार शक्ति है इसका निरंतर जाप तथा स्मरण मनुष्य का भाग्य परिवर्तित कर देता है तथा जन्म मरण के चक्र से मुक्ति प्रदान करता है।
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