Hanuman Ji : हनुमान जी के 10 आश्चर्यजनक रहस्य
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नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Hanuman Ji के रहस्य में आपका हार्दिक अभिनंदन है। दोस्तों, हनुमान जी से संबंधित अनेक रचनायें तथा स्तोत्र को हम अपने जीवनकाल में पढ़ते आये हैं इनकी भक्ति में अनगिनत रचनायें हमें प्राप्त होती हैं। जो कोई भी निष्काम भाव से अपने ईष्ट की सेवा करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता हो, उसे बजरंगबली का अनुसरण अवश्य करना चाहिये।
आज की पोस्ट में हम आपको बतायेंगे श्री हनुमान जी से जुड़े 10 रहस्यों के बारे में जिन्हें जानकर आप भी चौंक जायेंगे। तो आईये, बिना विलम्ब किये पोस्ट आरंभ करते हैं –
Hanuman Ji : श्री हनुमान जी के आश्चर्यजनक रहस्य
1. हनुमान जी का जन्म स्थान
कर्नाटक के कोपल जिले में स्थित हम्पी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा मानते हैं। तुंगभद्रा नदी को पार करनेपर अनेगुंदी जाते समय मार्ग में पंपा सरोवर आता है। यहां स्थित एक पर्वत में शबरी गुफा है जिसके निकट शबरी के गुरु ऋषि मतंग के नाम पर प्रसिद्ध मतंगवन स्थित था।
हम्पी में ऋष्यमूक के राम मंदिर के पास स्थित पहाड़ी आज भी मतंग पर्वत के नाम से जानी जाती है। कहते हैं कि मतंग ऋषि के आश्रम में ही हनुमान जी का जन्म हुआ था। एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि प्रभु श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमान जी का जन्म हुआ था। प्रभु श्री राम का जन्म 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। हनुमान जी का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पूर्णिमा के दिन हुआ था।
2. कल्प के अंत तक सशरीर रहेंगे हनुमानजी
देवताओं के राजा तथा स्वर्ग के स्वामी इंद्र से बजरंगबली को इच्छा मृत्यु का वरदान मिला है। अर्थात में स्वयं जब चाहेंगे तभी मृत्यु को अंगीकार यानी धारण कर सकते हैं। प्रभु श्रीराम के वरदान स्वरूप कल्प का अंत होने पर उन्हें उनके सायुज्य की प्राप्ति होगी। माता सीता के वरदान के अनुसार वे चिरंजीवी रहेंगे।
इसी वरदान के चलते द्वापर युग में हनुमान जी भीम तथा अर्जुन की परीक्षा लेते हैं तथा कलियुग में वे तुलसीदास जी को दर्शन देते हैं। एक बार प्रभु श्री राम के दर्शन के अभिलाषी तुलसीदास जी के समक्ष जब श्री राम बालरूप धारण करके उनके निकट पहुंचे तब हनुमान जी ने यह वचन उनसे कहे थे —
चित्रकूट के घाट पै, भई संतन की भीर,
तुलसीदास चंदन घिसें तिलक करें रघुबीर॥
विश्वविख्यात ग्रंथ श्रीमद्भागवत के अनुसार श्री हनुमान जी महाराज कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं।
3. कपि नामक वानर जाति में जन्म
हनुमान जी का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। रामायणादि ग्रंथों में हनुमानजी और उनके सजातीय बांधव सुग्रीव, अंगद आदि के नाम के साथ वानर, कपि, शाखामृग, प्लवंगम आदि विशेषण का प्रयोग किया गया। उनकी पुच्छ, लांगूल, बाल्धी तथा लाम से लंकादहन इसका प्रमाण है कि वे वानर थे।
रामायण में वाल्मीकिजी ने जहां उन्हें विशिष्ट पंडित, राजनीति में धुरंधर तथा वीर-शिरोमणि कहकर सम्बोधित किया है, वहीं उनको लोमश तथा पुच्छधारी भी शतशः प्रमाणों में व्यक्त किया है जिससे सिद्ध होता है कि वे वानर जाति से संबंध रखते थे।
4. हनुमान जी का परिवार
पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री हनुमान जी की माता अंजनी पूर्वजन्म में पुंजिकस्थला नामक एक अप्सरा थीं तथा पिता थे कपिराज केसरी। उनके पारिवारिक सदस्यों की बात करें तो ब्रह्माण्डपुराण के अनुसार हनुमानजी अपने भाईयों में सबसे बड़े भाई हैं उनके पश्चात मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान तथा धृतिमान थे।
मान्यता है कि जब वर्षों तक महाराज केसरी तथा माता अंजना के कोई संतान नहीं हुई तब पवनदेव के आशीर्वाद से उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई जिस कारण हनुमान जी का एक नाम पवनपुत्र भी है। हनुमान जी रुद्रावतार हैं। पराशर संहिता के अनुसार सूर्यदेव की शिक्षा देने की शर्त के अनुसार हनुमान जी को सुवर्चला नामक स्त्री से विवाह करना पड़ा था।
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5. संकट निवारण बजरंगबली
श्री हनुमान जी का एक नाम संकटमोचन भी है। रोग तथा शोक, भूत-पिशाच, शनि, राहु-केतु तथा अन्य ग्रह बाधाओं से रक्षा करते हैं। कोर्ट-कचहरी, जेल, मंगलदोष-पितृदोष, कर्ज, बेरोजगारी, तनाव तथा शत्रु बाधा आदि परिथितियां से भी हनुमान जी रक्षा करते हैं।
6. हनुमान जी के कार्य
श्री हनुमान सर्वशक्तिमान तथा सर्वज्ञ हैं, ज्ञानिनामाग्रगण्यम अर्थात ज्ञानियों में अग्रणी हैं। अपने बाल्यकाल में उन्होंने सूर्य को निगल लिया था, माता सीता की खोज हेतु एक ही छलांग में समुद्र को लांघ गये थे तथा लंका प्रवेश के समय लंकिनी नामक राक्षसी का अंत कर दिया था।
माता सीता से भेंट के पश्चात अशोक वाटिका उजाड़कर अक्षय कुमार का वध कर दिया, जब उन्हें पकड़कर उनकी पूंछ में आग लगाई गई तो उन्होंने सम्पूर्ण लंका नगरी को जला डाला। श्रीराम से वन में भेंट के पश्चात उन्होंने एक से एक कठिन कार्य किये किन्तु इसका श्रेय स्वयं को न देकर सदैव भगवान श्रीराम को ही दिया।
आगे चलकर उन्होंने सत्यभामा, गरूढ़, सुदर्शन, भीम तथा अर्जुन का घमंड भी चूर कर डाला। इस प्रकार हनुमाज जी के पराक्रम सैकड़ों की संख्या में हैं।
7. हनुमान जी पर लिखित ग्रंथ
कहा जाता है कि तुलसीदास जी को प्रभु श्रीराम से मिलवाने का श्रेय भी हनुमान जी को ही जाता है जिस कारण इनकी भक्ति तथा आराधना हेतु तुलसीदास जी ने हनुमान चालिसा, बजरंग बाण, हनुमान बाहुक, हुनमान साठिका, संकटमोचन हनुमानाष्टक आदि स्तोत्र की रचना की।
तुलसीदास जी के अतिरिक्त अन्य संतों ने भी इनकी स्तुति में कई स्तोत्रों की रचना की। महाराज विभीषण जो रावण की मृत्यु के पश्चात लंका के राजा बने हनुमान जी की स्तुति में हनुमान वाडवानल स्तोत्र की रचना की, समर्थ रामदास ने मारुति स्तोत्र लिखा। आनंद रामायण में हनुमान स्तुति एवं उनके द्वादश नाम मिलते हैं। सिद्ध गुरू गोरखनाथ जी ने इनसे संबंधित साबर मंत्रों की रचना भी की है।
8. मां भगवती के भैरव हनुमान
श्री राम के अनन्य भक्त श्री हनुमान जी माता जगदम्बा के भी सेवक हैं वे माता के आगे-आगे चलते हैं तथा भैरव पीछे। माता के देश भर में विद्यमान मंदिरों तथा शक्तिपीठों के आस-पास हनुमान जी तथा भैरव अवश्य होते हैं।
हनुमान जी की प्रतिमा खड़ी मुद्रा में तथा भैरव जी की मुंड मुद्रा में प्रतिमा स्थित होती है।
9. अतुलित बल के धाम हैं श्री हनुमान
यूं तो हनुमान जी के पास कई वरदानी शक्तियां हैं किंतु वे जन्म से ही अत्यधिक शक्तिशाली हैं। इसका प्रमाण हमें रामायण में मिलता है जब संजीवनी बूटी की पहचान न होने पर वे सारा पर्वत ही उठा लाये थे। राम-रावण युद्ध में उन्होंने एक से एक भीमकाय राक्षसों को घुमा-घुमाकर पटक डाला। इनके समक्ष किसी भी प्रकार की कोई मायावी शक्ति नहीं ठहर सकती।
10. हनुमान जी के साक्षात दर्शन
मान्यताओं के अनुसार 13 वीं शताब्दी में माध्वाचार्य, 16वीं शताब्दी में तुलसीदास, 17वीं शताब्दी में समर्थ रामदास, राघवेन्द्र स्वामी हनुमान जी के प्रत्यक्ष दर्शन किये हैं। प्रत्येक युग में श्री हनुमान जी अपने भक्तों की रक्षा करते हैं तथा उनके संकटों का निवारण करते हैं। माता सीता ने स्वयं उन्हें अजर तथा अमर होने का वरदान प्रदान किया है।
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