Narayana Stotram: नारायण स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित

Narayana Stotram: नारायण स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित

Narayana Stotram 1

 

श्रीमन नारायण नारायण नारायण,
लक्ष्मीनारायण नारायण नारायण।

नमस्कार दोस्तों । हमारे ब्लॉग पोस्ट narayana stotram में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, नारायण अर्थात श्री विष्णु हिंदू धर्म के सबसे प्रचलित देवताओं में से एक हैं । भारत देश में युगों-युगों से श्री सत्यनारायण भगवान की कथा तथा पूजा का घर—घर में प्रचलन रहा है।

केरल में भगवान विष्णु श्री पद्मनाभ के रूप में विराजित हैं तो पुरी में जगन्नाथ के रूप में। उत्तराखंड में यह चार धामों में से एक श्री बद्रीविशाल के रूप में विराजते हैं। जिस प्रकार शिव जी के भक्त शैव कहलाते हैं उसी तरह वैष्णव जो कि मुख्य रूप से इनके भक्त हैं इन्हें नारायण कहकर पुकारते हैं।

दोस्तों, आज की पोस्ट में हम भगवान श्री विष्णु जी के स्तोत्र को हिन्दी अर्थ सहित जानेंगे जिसका नाम है “नारायण स्तोत्र।”  इसके नियमित जाप से भगवान् श्री विष्णु जी को प्रसन्न किया जा सकता है। किसी भी प्रकार के अभीष्ट की सिद्धि  के लिए श्री नारायण स्त्रोतम का पाठ बहुत लाभदायक हैं। श्री लक्ष्मी जी की कृपा भी तभी आती है जब श्री विष्णु जी प्रसन्न हों। कहा जाता है कि इस स्तोत्र की रचना आदि गुरू शंकराचार्य जी ने की है। तो आईये, पोस्ट शुरू करते हैं।

Narayana Stotram : स्तोत्र पाठ

हरिः ॐ नमो भगवते श्रीनारायणाय नमो नारायणाय विश्वमूर्तये नमः श्री पुरुषोत्तमाय पुष्पदृष्टिं प्रत्यक्षं वा परोक्षं अजीर्णं पञ्चविषूचिकां हन हन ऐकाहिकं द्वयाहिकं त्र्याहिकं चातुर्थिकं ज्वरं नाशय नाशय चतुरशितिवातानष्टादशकुष्ठान् अष्टादशक्षय रोगान् हन हन सर्वदोषान् भंजय भंजय तत्सर्वं नाशय नाशय आकर्षय आकर्षय शत्रून् शत्रून् मारय मारय उच्चाटयोच्चाटय विद्वेषय विदे्वेषय स्तंभय स्तंभय निवारय निवारय विघ्नैर्हन विघ्नैर्हन दह दह मथ मथ विध्वंसय विध्वंसय चक्रं गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ चक्रेण हत्वा परविद्यां छेदय छेदय भेदय भेदय चतुःशीतानि विस्फोटय विस्फोटय अर्शवातशूलदृष्टि सर्पसिंहव्याघ्र द्विपदचतुष्पद पद बाह्यान्दिवि भुव्यन्तरिक्षे अन्येऽपि केचित् तान्द्वेषकान्सर्वान् हन हन विद्युन्मेघनदी पर्वताटवीसर्वस्थान रात्रिदिनपथचौरान् वशं कुरु कुरु हरिः ॐ नमो भगवते ह्रीं हुं फट् स्वाहा ठः ठं ठं ठः नमः ।। narayana stotram

 

विधानम

एषा विद्या महानाम्नी पुरा दत्ता मरुत्वते । असुराञ्जितवान्सर्वाञ्च्छ क्रस्तु बलदानवान् ।।1।।

यः पुमान्पठते भक्त्या वैष्णवो नियतात्मना । तस्य सर्वाणि सिद्धयन्ति यच्च दृष्टिगतं विषम् ।।2।।

अन्यदेहविषं चैव न देहे संक्रमेद्ध्रुवम् । संग्रामे धारयत्यङ्गे शत्रून्वै जयते क्षणात् ।।3।।

अतः सद्यो जयस्तस्य विघ्नस्तस्य न जायते । किमत्र बहुनोक्तेन सर्वसौभाग्यसंपदः ।।4।।

लभते नात्र संदेहो नान्यथा तु भवेदिति । गृहीतो यदि वा येन बलिना विविधैरपि ।।5।।

शतिं समुष्णतां याति चोष्णं शीतलतां व्रजेत् । अन्यथां न भवेद्विद्यां यः पठेत्कथितां मया ।।6।।

भूर्जपत्रे लिखेन्मंत्रं गोरोचनजलेन च । इमां विद्यां स्वके बद्धा सर्वरक्षां करोतु मे ।।7।।

पुरुषस्याथवा स्त्रीणां हस्ते बद्धा विचेक्षणः । विद्रवंति हि विघ्नाश्च न भवंति कदाचनः ।।8।।

न भयं तस्य कुर्वंति गगने भास्करादयः । भूतप्रेतपिशाचाश्च ग्रामग्राही तु डाकिनी ।।9।।

शाकिनीषु महाघोरा वेतालाश्च महाबलाः । राक्षसाश्च महारौद्रा दानवा बलिनो हि ये ।।10।।

असुराश्च सुराश्चैव अष्टयोनिश्च देवता । सर्वत्र स्तम्भिता तिष्ठेन्मन्त्रोच्चारणमात्रतः ।।11।।

सर्वहत्याः प्रणश्यंति सर्व फलानि नित्यशः । सर्वे रोगा विनश्यंति विघ्नस्तस्य न बाधते ।।12।।

उच्चाटनेऽपराह्णे तु संध्यायां मारणे तथा । शान्तिके चार्धरात्रे तु ततोऽर्थः सर्वकामिकः ।।13।।

इदं मन्त्ररहस्यं च नारायणास्त्रमेव च । त्रिकालं जपते नित्यं जयं प्राप्नोति मानवः ।।14।।

आयुरारोग्यमैश्वर्यं ज्ञानं विद्यां पराक्रमः । चिंतितार्थ सुखप्राप्तिं लभते नात्र संशयः ।।15।।

Narayana Stotram: नारायण स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित प्रारंभ

Narayana Stotram 2

नारायण नारायण जय गोविन्द हरे ॥
नारायण नारायण जय गोपाल हरे ॥

भगवान नारायण की जय, जो गोविंद हैं और जो सबके रक्षक हैं।

करुणा-पारावार , वरुणा-लय-गम्भीर नारायण ॥ 1 ॥

भावार्थ — हे नारायण ! आप दया और करुणा के सागर हैं। आप समुद्र के समान गंभीर तथा प्रतापी हैं । मैं नारायण को प्रणाम करता हूँ।

घन-नीरद-सङ्काश
कृत-कलि-कल्मष-नाशन नारायण ॥ 2 ॥

भावार्थ — हे नारायण! आप जल भरे काले मेघों तथा आकाश के समान नील तथा श्याम वर्ण के हो। आप ही हैं जो कलियुग (कलि युग) के सभी दोषों को नष्ट कर देते हैं। मैं  आपको प्रणाम करता हूँ।

यमुना-तीर-विहार
धृत-
कौस्तुभ-मणि-हार नारायण ॥ 3 ॥

भावार्थ — हे भगवान नारायण ! आपने यमुना के तट पर विहार किया तथा अपनी लीलाएं की। आप ही हैं जो कौस्तुभ नाम के कीमती रत्न का हार पहनते हैं। मैं नारायण को प्रणाम करता हूँ।

पीताम्बर-परिधान
सुर-कल्याण-निधान नारायण ॥ 4 ॥

भावार्थ — हे नारायण ! आप पीतांबर अर्थात स्वर्ण सदृश पीले रेशमी वस्त्र धारण करते हैं। आप सदैव देवों का भला करते हैं और उनके कल्याण के विषय में सोचते हैं। मैं आपको प्रणाम करता हूँ।

मञ्जुल-गुञ्जा-भूष
माया-मानुष-वेष नारायण ॥ 5 ॥

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भावार्थ — हे नारायण ! आप गुंजा के बीजों का अप्रतिम हार धारण करते हैं । आप अपनी माया शक्ति से पृथ्वी पर मानव के रूप में अवतार लेते हैं अर्थात मानव वेश धारण करते हैं । 

राधा- अधर-मधु-रसिक
रजनी-कर-कुल-तिलक नारायण ॥ 6 ॥

भावार्थ — हे नारायण ! आपको श्रीराधा के अधरों का मधु प्रिय है। आप ही चंद्रवंश के कुल तिलक हैं। 

मुरली-गान-विनोद
वेद-स्तुत-भू-पाद नारायण ॥ 7 ॥

भावार्थ — हे  नारायण ! आपको बांसुरी वादन अच्छा लगता है। वेदों द्वारा आपके पवित्र चरण कमलों की  स्तुति की जाती है। वेद आपकी महिमा गाते हैं।

बर्हि-निबर्हा-पीड नट-नाटक-
फणि-क्रीड नारायण ॥ 8 ॥

भावार्थ — हे नारायण ! आप मोर पंख धारण करते हैं। आप ही हैं जिसने विषैले कालिया नाग के फन पर नृत्य किया था ।

वारिज-भूषा-भरण
राजीव-रुक्मिणी-रमण नारायण ॥ 9 ॥

भावार्थ — हे नारायण ! आप कमल को आभूषण के रूप में तथा कमल के पुष्पों के आभूषण भी धारण करते हैं। आप ही समुद्र की पुत्री अर्थात देवी लक्ष्मी के पति हैं और सदैव उनके साथ रमन करते हैं । 

जल-रुह-दल-निभ-नेत्र
जगदारम्भक-सूत्र नारायण ॥ 10 ॥

भावार्थ — हे भगवान नारायण ! आपके नेत्र कमल के समान हैं। आप इस संसार के मूल कारण हैं। आपने ही इस ब्रह्मांड को जन्म दिया है।

Narayana Stotram 3

पातक-रजनी-संहार
करुणालय मामुद्धर नारायण ॥ 11 ॥

भावार्थ — हे भगवान नारायण ! आप अँधेरी रात के समान काले पापों का भी नाश करने वाले हैं ।आप अपनी करुणा भरी दया दृष्टि से मेरा उद्धार कीजिये।

अघ बक-हय-कंसारे
केशव कृष्ण मुरारे नारायण ॥ 12 ॥

भावार्थ — हे भगवान नारायण ! आपने अघासुर और कंस जैसे राक्षसों का वध किया। हे केशव! हे कृष्ण ! हे मुरारी ! मैं आपको नमन करता हूं।

हाटक-निभ-पीताम्बर
अभयं कुरु मे मावर नारायण ॥ 13 ॥

भावार्थ — हे नारायण ! आप स्वर्ण के समान पीला रेशमी पीताम्बर वस्त्र धारण करते हैं। हे भगवान! कृपया मेरी रक्षा करे । मुझे अभय प्रदान करें। 

दशरथ-राजकुमार
दानव-मद-संहार नारायण ॥ 14 ॥

भावार्थ — हे नारायण ! आप ही ने राजा दशरथ के पुत्र के रूप में अवतार ग्रहण किया । आपने राक्षसों के अभिमान और अहंकार को नष्ट कर दिया।

गोवर्धन-गिरि रमण
गोपी-मानस-हरण नारायण ॥ 15 ॥

भावार्थ — हे भगवान नारायण ! आपने गोवर्धन पर्वत को अपनी एक अंगुली पर धारण किया। आपने ही गोपियों के चित्त का हरण किया। narayana stotram

सरयू-तीर-विहार
सज्जन‌-ऋषि-मन्दार नारायण ॥ 16 ॥

भावार्थ — हे भगवन ! आपने सरयू नदी के तट पर विहार किया है, अपनी लीलाएं की हैं । आप सज्जनों और संतों के लिए मनोकामना पूर्ण करने वाले वृक्ष हैं। हे नारायण! मैं आपको नमन करता हूँ।

विश्वामित्र-मखत्र
विविध-वरानु-चरित्र नारायण ॥ 17 ॥

भावार्थ — हे भगवान नारायण ! आप ऋषि विश्वामित्र के यज्ञ के रक्षक हैं। आप ने विविध प्रकार के चरित्र धारण किये हैं। आपका इतिहास , लीलाएं , कथाएं , चरित्र अनंत हैं । 

ध्वज-वज्राङ्कुश-पाद
धरणी-सुत-सह-मोद नारायण ॥ 18 ॥

भावार्थ — हे भगवान नारायण! आपके पावन चरणों में ध्वज, वज्र, कुश आदि के प्रतीक चिह्न अंकित हैं। आपने पृथ्वी की पुत्री यानी देवी सीता के चित्त को प्रसन्न किया। मैं आपको नमन करता हूँ।

जनक-सुता-प्रति-पाल
जय जय संस्मृति-लील नारायण ॥ 19 ॥

भावार्थ —हे नारायण ! आप राजा जनक की पुत्री अर्थात देवी जानकी के रक्षक है। हे नारायण ! उस व्यक्ति की सदैव विजय हो जो आप की लीलाओं और चरित्रों का आनंद लेता है। 

दशरथ-वाग्धृति-भार
दण्डक वन-सञ्चार नारायण ॥ 20 ॥

भावार्थ — हे नारायण ! आपने राजा दशरथ के वचन तथा आदेश का पालन किया। हे भगवान ! आप ही हैं जिन्होंने दंडकारण्य वन में यात्रा की थी। 

मुष्टिक-चाणूर-संहार
मुनि-मानस-विहार नारायण ॥ 21 ॥

भावार्थ — हे नारायण ! आपने मुष्टिक और चाणूर का संहार किया। हे भगवान ! आप संत जनों और ऋषि – मुनियों के चित्त पटल में विहार करते हैं अर्थात विराजमान रहते हैं। 

Narayana Stotram 4

वालि-विनिग्रह-शौर्य
वर-सुग्रीव-हितार्य नारायण ॥ 22 ॥

भावार्थ — हे भगवान नारायण! आपने वीर बाली का संहार किया। आपने श्री हनुमान जी के मित्र सुग्रीव की सहायता की और उसके हितों की रक्षा की। 

मां मुरली-कर धीवर
पालय पालय श्रीधर नारायण ॥ 23 ॥

भावार्थ — हे वीर नारायण ! हे बांसुरी वादक ! हे लक्ष्मी के स्वामी ! कृपया हमारी रक्षा करें, हमारा पोषण करें तथा हमारी सहायता करें। 

जल-निधि बन्धन धीर
रावण-कण्ठ-विदार नारायण ॥ 24 ॥

भावार्थ — प्रभु ! आपने समुद्र पर सेतु का निर्माण किया। आपने रावण की गर्दन का विच्छेद किया। मैं नारायण को नमन करता हूँ।

ताटक-मर्दन राम
नट-गुण-विविध सुराम नारायण ॥ 25 ॥

भावार्थ — आपने ताटका राक्षसी के अभिमान को नष्ट कर दिया। हे नारायण ! नृत्य और गायन से देवताओं द्वारा आपकी स्तुति की जाती है। 

गौतम-पत्नी-पूजन
करुणा-घनाव-लोकन नारायण ॥ 26 ॥

भावार्थ — हे नारायण ! आपका पूजन तथा वंदन गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या ने किया। आप दया की मूर्ति हैं।  मैं आपको नमन करता हूं।

सम्भ्रम-सीता-हार
साकेत-पुर-विहार नारायण ॥ 27 ॥

भावार्थ — आपने देवी सीता के चित्त का हरण किया। आप ही हैं जो साकेत पुर में विहार करते है और जिन्होंने अयोध्या में लीलाएं कीं।

अचलोद्धृत-चञ्चत्कर
भक्तानु-ग्रह-तत्पर नारायण ॥ 28 ॥

भावार्थ — प्रभु  ! आपने अपनी छोटी अंगुली पर पर्वत को उठा लिया ।  आप हमेशा भक्तों पर कृपा और आशीर्वाद देने वाले हैं। 

नैगम-गान-विनोद
रक्षित सुप्रह्लाद नारायण ॥ 29 ॥

भावार्थ — आप साम गान से प्रसन्न होता है।  आपने दैत्य के पुत्र प्रह्लाद की सदैव रक्षा की । मैं नारायण को प्रणाम करता हूँ।

भारत यत-वर-शङ्कर
नामामृतमखिलान्तर नारायण ॥ 30 ॥

भावार्थ — स्वयं भगवान शिव भी आपको भजते हैं । जो अखिल विश्व में अमृत रूपी कई नामों से जाने जाते हैं ऐसे प्रभु श्री नारायण को मैं नमन करता हूं ।

नारायण नारायण जय गोविन्द हरे ॥
नारायण नारायण जय गोपाल हरे ॥

Narayana stotram

Narayana Stotram Benefits : नारायण स्तोत्र के लाभ

 

1- नारायण स्तोत्र के नियमित पाठ से जातक को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।

2- इसके पाठ से जीवन से सभी बुराई दूर होती है तथा आप स्वस्थ, धनवान और समृद्ध बनते हैं। 

3- यह स्तोत्र अत्यधिक पवित्र व शक्तिशाली है।

4- नारायण स्तोत्र narayana stotram को  विश्वास के साथ जप करने से माता लक्ष्मी का आशीर्वाद सहज ही प्राप्त हो जाता है।

5- जो व्यक्ति नियमित रूप से असफल होता है तथा समाज में मान सम्मान की हानि होती हो, उसे वैदिक नियमों के अनुसार नारायण स्तोत्र का पाठ करना चाहिए ।

Narayana Stotram 5

॥ इति ॥

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