Shri Ganesh chalisa: श्री गणेश चालीसा हिंदी अर्थ सहित

Shri Ganesh chalisa:श्री गणेश चालीसा हिंदी अर्थ सहित।

 

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ:।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

भावार्थ — जो घुमावदार सूंड वाले हैं, जिनका शरीर विशालकाय है तथा जो करोड़ सूर्य के समान महान प्रतिभाशाली हैं ऐसे मेरे प्रभु,  सदैव मेरे समस्त कार्यों को  बिना किसी विघ्न के पूर्ण करने की कृपा करें ।

 

नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट shri ganesh chalisa में आपका हार्दिक अभिनंदन है। दोस्तों, गणेश जी को प्रथम पूज्य देवता होने का वरदान प्राप्त है। यह वरदान स्वयं माता पार्वती तथा भगवान भोलेनाथ ने इन्हें प्रदान किया है। यही कारण है कि सनातन धर्म में किसी भी नये कार्य को करने से पूर्व तथा प्रत्येक मांगलिक अवसरों पर सर्वप्रथम इनका आवाहन किया जाता है।

यह शुभता का प्रतीक माने जाते हैं तथा केवल दूर्वा अर्पित कर देने मात्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं। आज की पोस्ट में हम श्री गणेश चालीसा का हिन्दी सहित अर्थ जानेंगे जिसे पढ़ने से कोई भी प्राणी श्री गजानन का कृपा पात्र बन सकता है। तो आईये, पोस्ट शुरू करते हैं।

Ganesh chalisa in hindi: श्री गणेश चालीसा हिंदी अर्थ सहित प्रारंभ

  Shri Ganesh Chalisa

॥दोहा

जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥

भावार्थ — हे सद्गुणों के धाम भगवान श्री गणेश आपकी जय हो, कवि भी आपको कृपालु बताते हैं। आप कष्टों का हरण कर सबका कल्याण करते हो, माता पार्वती के लाडले श्री गणेश जी महाराज आपकी जय हो।

॥चौपाई॥

जय जय जय गणपति गणराजू।
मंगल भरण करण शुभ काजू॥

भावार्थ — हे देवताओं के स्वामी, देवताओं के राजा, प्रत्येक कार्य को शुभ व कल्याणकारी करने वाले भगवान श्री गणेश जी आपकी जय हो, जय हो, जय हो।

जय गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्घि विधाता॥

वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥

भावार्थ — घर-घर सुख प्रदान करने वाले हाथी के समान विशालकाय शरीर वाले गणेश भगवान आपकी जय हो। श्री गणेश आप समस्त विश्व के विनायक यानि विशिष्ट नेता हैं, आप ही बुद्धि के विधाता हैं। हाथी के सूंड सा मुड़ा हुआ आपका नाक सुहावना है, पवित्र है। आपके मस्तक पर तिलक रुपी तीन रेखाएं भी मन को भा जाती हैं अर्थात आकर्षक हैं।

राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥

आपकी छाती पर मणि मोतियां की माला है आपके शीष पर सोने का मुकुट है व आपकी आखें भी बड़ी बड़ी हैं। आपके हाथों में पुस्तक, कुठार और त्रिशूल हैं। आपको मोदक का भोग लगाया जाता है व सुगंधित फूल चढाए जाते हैं।

सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥

धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विख्याता॥

भावार्थ — पीले रंग के सुंदर वस्त्र आपके तन पर सज्जित हैं। आपकी चरण पादुकाएं भी इतनी आकर्षक हैं कि ऋषि मुनियों का मन भी उन्हें देखकर खुश हो जाता है। हे भगवान शिव के पुत्र व षडानन अर्थात कार्तिकेय के भ्राता आप धन्य हैं। माता पार्वती के पुत्र आपकी ख्याति समस्त जगत में विख्यात है।

ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे। मूषक वाहन सोहत द्वारे॥

कहौ जन्म शुभ-कथा तुम्हारी। अति शुचि पावन मंगलकारी॥

भावार्थ — ऋद्धि-सिद्धि आपकी सेवा में रहती हैं , आपके द्वार पर आपका वाहन मूषक खड़ा रहता है। हे प्रभु आपकी जन्मकथा को कहना व सुनना बहुत ही शुभ तथा मंगलकारी है।

एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी॥

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा॥

भावार्थ — एक समय गिरिराज कुमारी यानि माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए भारी तप किया। जब उनका तप व यज्ञ अच्छे से संपूर्ण हो गया तो ब्राह्मण के रुप में आप वहां उपस्थित हुए।shri ganesh chalisa

अतिथि जानि कै गौरि सुखारी। बहुविधि सेवा करी तुम्हारी॥

अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥

भावार्थ — आपको अतिथि मानकर माता पार्वती ने आपकी अनेक प्रकार से सेवा की, जिससे प्रसन्न होकर आपने माता पार्वती को वर दिया।

मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण, यहि काला॥

गणनायक, गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम, रुप भगवाना॥

भावार्थ — आपने कहा कि हे माता ! आपने पुत्र प्राप्ति के लिए जो तप किया है, उसके फलस्वरूप आपको अत्यंत ही बुद्धिमान बालक की प्राप्ति होगी और बिना गर्भ धारण किए इसी समय आपको प्राप्त होगा। वह सभी देवताओं का नायक कहलाएगा, जो गुणों व ज्ञान का निर्धारण करने वाला होगा तथा समस्त जगत भगवान के प्रथम रुप में जिसकी पूजा करेगा।

Shri Ganesh Chalisa

अस कहि अन्तर्धान रुप है। पलना पर बालक स्वरुप है॥

बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥

भावार्थ — इतना कहकर आप अंतर्धान हो गए व पालने में बालक के स्वरुप में प्रकट हो गए। माता पार्वती के उठाते ही आपने रोना शुरु किया, माता पार्वती आपके अति सुन्दर मुख को देखती रह गईं।

सकल मगन, सुखमंगल गावहिं। नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं॥

शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं। सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥

भावार्थ —सभी मगन होकर खुशियां मनाने तथा नाचने गाने लगे। देवता भी आकाश से पुष्प वर्षा करने लगे। भगवान शंकर व माता उमा दान करने लगी। देवता, ऋषि, मुनि सभी आपके दर्शन करने के लिए आने लगे।

लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आये शनि राजा॥

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक, देखन चाहत नाहीं॥

भावार्थ — आपको देखकर हर कोई बहुत आनंदित हुआ। आपको देखने के लिए भगवान शनिदेव भी आये। लेकिन वह मन ही मन घबरा रहे थे तथा बालक को देखना नहीं चाह रहे थे।

गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो। उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो॥

कहन लगे शनि, मन सकुचाई। का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥

भावार्थ — शनिदेव को इस तरह बचते हुए देखकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं व शनि को कहा कि आप हमारे यहां बच्चे के आने से व इस उत्सव को मनता हुआ देखकर खुश नहीं हैं। इस पर शनि भगवान ने कहा कि मेरा मन सकुचा रहा है, मुझे बालक को दिखाकर क्या करोगी? कुछ अनिष्ट हो जाएगा।

नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ। शनि सों बालक देखन कहाऊ॥

पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा। बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा॥

भावार्थ — लेकिन माता पार्वती को विश्वास नहीं हुआ व उन्होंनें शनि को बालक देखने के लिए कहा। जैसे ही शनि की नजर बालक पर पड़ी तो बालक का सिर आकाश में उड़ गया।

गिरिजा गिरीं विकल हुए धरणी। सो दुख दशा गयो नहीं वरणी॥

हाहाकार मच्यो कैलाशा। शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा॥

भावार्थ — अपने शिशु को सिर विहिन देखकर माता पार्वती दुखी होकर बेहोश होकर गिर गईं। उस समय दुख के मारे माता पार्वती की जो स्थिती हुई उसका वर्णन भी नहीं किया जा सकता। तत्पश्चात पूरे कैलाश पर्वत पर हाहाकार मच गया कि शनि ने शिव-पार्वती के पुत्र को देखकर उसे नष्ट कर दिया।

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो। काटि चक्र सो गज शिर लाये॥

बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण, मंत्र पढ़ि शंकर डारयो॥

भावार्थ — उसी समय भगवान विष्णु गरुड़ पर सवार होकर वहां पंहुचे व अपने सुदर्शन चक्र से हाथी का शीश काटकर ले आये  तथा बालक के धड़ के ऊपर धर दिया। उसके बाद भगवान शंकर ने मंत्रों को पढ़कर उसमें प्राण डाले।

Shri Ganesh Chalisa

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे॥

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥

भावार्थ — उसी समय भगवान शिव ने आपका नाम गणेश रखा व वरदान दिया कि संसार में सर्वप्रथम आपकी पूजा की जाएगी। अन्य देवताओं ने भी आपको बुद्धि निधि सहित अनेक वरदान दिये। जब भगवान शंकर ने कार्तिकेय व आपकी बुद्धि परीक्षा ली तो पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाने को कहा।

चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई॥

धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे। नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥

भावार्थ — आदेश होते ही कार्तिकेय तो पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए निकल पड़े, किन्तु आपने एक उपाय खोजा तथा अपने माता पिता के पैर छूकर उनके ही सात चक्कर लगाये।

तुम्हरी महिमा बुद्ध‍ि बड़ाई। शेष सहसमुख सके न गाई॥

मैं मतिहीन मलीन दुखारी। करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी॥

भावार्थ — हे श्री सिद्धीविनायक !  आपकी बुद्धि व महिमा का गुणगान तो हजारों मुखों से भी नहीं किया जा सकता। हे प्रभु मैं तो मूर्ख हूं, पापी हूं, दुखिया हूं मैं किस विधि से आपकी प्रार्थना करुं ?

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा। जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा॥

अब प्रभु दया दीन पर कीजै। अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै॥

भावार्थ — हे प्रभु ! आपका दास रामसुंदर आपका ही स्मरण करता है। इसकी दुनिया तो प्रयाग का ककरा गांव हैं जहां पर दुर्वासा जैसे ऋषि हुए हैं। हे प्रभु, दीन दुखियों पर अब दया करें और अपनी शक्ति व अपनी भक्ति देनें की कृपा करें।

॥ दोहा॥

श्री गणेश यह चालीसा। पाठ करै कर ध्यान

नित नव मंगल गृह बसै। लहे जगत सन्मान॥

सम्वत अपन सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।

पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश॥

ganesh ji chalisa श्री गणेश की इस चालीसा का जो कोई पूर्ण श्रद्धाभाव से ध्यानपूर्वक पाठ करता है उसके घर में दिन-प्रतिदिन मंगल होता है अर्थात प्रतिदिन उत्सव की भांति वातावरण रहता है। ऋषि पंचमी अर्थात गणेश चतुर्थी से अगले दिन भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की यह चालीसा पूर्ण हुई।

Shri Ganesh Chalisa

Ganesh Chalisa Benefits : गणेश चालीसा के लाभ

 

• श्री गणेश चालीसा का पाठ करने से  भगवान श्री गणेश की कृपा से सिद्धि-बुद्धि, ज्ञान-विवेक की प्राप्ति होती है ।

• इस चालीसा का पाठ करने से घर मे सुख-संपन्नता आती है ।

• श्री गणेश चालीसा का पाठ करने से मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है

• भगवान गणेश की पूजा कार्य के आरम्भ में की जाती है जिससे सभी कार्यों में सफलता मिलती है।

• व्यापार में उन्नति, किसी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिये  तथा साथ ही अपने जीवन में शुभ फल पाने के लिए प्रतिदिन श्री गणेश चालीसा का पाठ (Ganesh Chalisa Path) अवश्य करना चाहिए।

Ganesh ji aarti : श्री गणेश जी की आरती

 

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥

एक दंत दयावंत,
चार भुजा धारी ।
माथे सिंदूर सोहे,
मूसे की सवारी ॥

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥

पान चढ़े फल चढ़े,
और चढ़े मेवा ।
लड्डुअन का भोग लगे,
संत करें सेवा ॥

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥

अंधन को आंख देत,
कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत,
निर्धन को माया ॥

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥

‘सूर’ श्याम शरण आए,
सफल कीजे सेवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥

Shri Ganesh Chalisa

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥

दीनन की लाज रखो,
शंभु सुतकारी ।
कामना को पूर्ण करो,
जाऊं बलिहारी ॥

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥

॥ इति ॥

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