Raja Dashrath : राजा दशरथ से जुडी 10 बातें
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Raja Dashrath दशरथ अर्थात जिसने अपनी दसों रथ रूपी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर ली हो ऐसे चक्रवर्ती सम्राट राजा दशरथ सूर्य वंश के प्रतापी राजाओं में से एक थे। कहा जाता है कि देवताओं को भी युद्ध में विजय हासिल करने के लिये कभी-कभी इनकी सहायता लेनी पड़ती थी। शत्रु राजा भी इनके शिष्टाचार तथा युद्ध कौशल की प्रशंसा किया करते थे।
1- राजा दशरथ की राजधानी :-
Raja Dashrath राजा दशरथ की राजधानी का नाम अयोध्या था जो आज उ0प्र0 में स्थित है। वाल्मीकि रामायण के 5वें सर्ग में अयोध्या पुरी का विस्तार से वर्णन किया गया है। पावन नदी सरयू के किनारे बसी इस नगरी की स्थापना भगवान सूर्य देव के पुत्र वैवस्वत मनु द्वारा की गई थी।
2 -राजा दशरथ का वंश :-
वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु के कुल में राजा दशरथ का जन्म हुआ था। रामायण में दी गई जानकारी के अनुसार नहुष के पुत्र ययाति तथा ययाति के पुत्र नभ हुए। इसी क्रम में नाभाग के पुत्र हुए जिनका नाम अज था, इन्हीं अज की संतान दशरथ थे तथा इनकी माता का नाम इन्दुमती था।
3- श्रेष्ठ प्रजापालक :-
राजा दशरथ का साम्राज्य देवलोक से कम नहीं था। चारों ओर सुख-शान्ति तथा खुशहाली की वर्षा होती थी प्रजा को राजा दशरथ अपनी संतान के समान प्रेम करते थे। उनके राज्य में न कभी सूखा पड़ा न कभी बाढ़ आई किन्तु वे सदा ही कहते कि यह सब उनके पूर्वजों के आशीर्वाद का फल है।
4- राजा दशरथ की थीं तीन पत्नियां :-
कौशल्या, सुमित्रा तथ कैकेयी दशरथ जी की तीन पत्नियां थीं। जिनमें सबसे बड़ी रानी कौशल्या के पिता कोशल नरेश सुकौशल महाराज थे, कैकेयी के पिता कैकय नरेश अश्वपति तथा सुमित्रा के पिता सुमित्र देश के राजा सुमंत थे।ऐसा कहा जाता है कि राजा दशरथ Dashrath प्रायः सुमित्रा के महल में ही रहा करते थे।
5- पुत्रेष्टि यज्ञ से हुआ चारों पुत्रों का जन्म :-
Dashrath राजा दशरथ एक प्रतापी राजा थे तथा बड़े-बड़े साम्राज्यों पर उनका एकछत्र राज्य था कहते हैं कि उनके द्वारा अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा पकड़ने का साहस किसी भी राजा में नहीं होता था। सारी सुख-सुविधायें उनके पास थीं लेकिन उन्हें एक ही चिंता सताती थी कि उनके कोई संतान नहीं थी जिस कारण वे सोचते थे कि इतने बड़े राजपाट को आगे चलकर कौन सम्भालेगा।
उनकी इस चिंता को देखते हुये महर्षि वशिष्ठ ने उन्हें संतान प्राप्ति के लिये पुत्र कामेष्टि यज्ञ कराने का परामर्श दिया। राजा दशरथ ने गुरू वशिष्ठ की सलाह पर पुत्र कामेष्टि यज्ञ का आयोजन कराया जिसमें बड़े-बड़े विद्वान सम्मिलित हुये। इस यज्ञ के सफलतापूर्वक सम्पन्न होने पर स्वयं अग्नि देवत उस अग्नि कुण्ड से खीर रूपी प्रसाद लेकर प्रकट हुये जिसको खाने के बाद ही तीनों रानियों को चारों पुत्रों की प्राप्ति हुई थी।
6- महाराज दशरथ के पुत्र तथा पुत्रवधु :-
राजा दशरथ के चार पुत्र हुये जिनमें सबसे बड़े श्री राम हैंं जिनकी पत्नी का नाम सीता है, लक्ष्मण जिनकी पत्नी उर्मिला हैंं, भरत की पत्नी माण्डवी तथा शत्रुघ्न की पत्नी का नाम श्रुतकीर्ति है। इनमें सीता तथा उर्मिला राजा जनक की पुत्रियां अर्थात आपस में बहनें थीं तथा माण्डवी और श्रुतकीर्ति महाराज कुशध्वज की पुत्रियां थीं।
7- वह युद्ध जिसमें कैकई को मिले दो वर :-
देवासुर संग्राम में एक समय ऐसा आया जब देवता पराजित होने लगे तथा इंद्र का सिंहासन भी खतरे में पड़ गया तब इन्द्र ने राजा दशरथ से युद्ध में विजय पाने के लिए सहायता मांगी। इस युद्ध में रानी कैकई ने भी उनका साथ दिया था ।
उस युद्ध में एक समय ऐसा आया जब राजा दशरथ Dashrathलड़ते-लड़ेते अचेत होकर अपने रथ पर गिर पड़े उस समय रानी कैकेई ने बड़ी बहादुरी से असुरों से लड़ते हुये बड़ी कुशलतापूर्वक राजा दशरथ को युद्ध क्षेत्र से बाहर निकाल लिया।
इससे प्रसन्न होकर राजा ने कैकई से दो वर मांगने को कहा जिसे रानी कैकई ने यह कहकर टाल दिया कि समय आने पर अपने वे दोनों वर मांग लेंगी। ये वही दो वर थे जो आगे चलकर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के वनवास का कारण बने।
8- न्याय के देवता शनि के स्तोत्र की रचना :-
ऐसी मान्यता है कि राजा दशरथ ने ही शनि स्त्रोत की रचना की थी जिससे प्रसन्न होकर शनि देव ने उन पर अपनी विशेष कृपा बना रखी थी। जो मनुष्य शनि ग्रह, शनि ढैया या शनि की साढ़े साती की महादशा से पीड़ित है यदि वह पूरे विधि-विधान से यदि इस स्त्रोत का नियमित पाठ करे तो वह समस्त व्याधियों से मुक्त हो जाता है। साथ ही उसकी अन्य ग्रह जनित पीड़ायें भी शान्त होती हैं।
9 – श्रवण कुमार के माता-पिता का राजा दशरथ को शाप :-
दोस्तों, श्रवण कुमार की कहानी तो आपने सुनी ही होगी। श्रवण कुमार जिनके माता-पिता अंधे थे उन्होंने एक बार इच्छा प्रकट की कि बेटा श्रवण ! अब हमारे जीवन का अन्तिम समय चल रहा है इसलिये मरने से पहले एक बार तीर्थ पर जाना चाहते हैं यदि हो सके तो किसी तरह से हमें तीर्थ यात्रा करा दे।
आग्याकारी श्रवण ने यह सुनकर दो बड़े-बड़े टोकरे तैयार किये जिसमें एक में पिता को तथा दूसरे टोकरे में माता को बिठाया तथा एक डण्डे को कंधे पर रखकर उन्हें तीर्थ यात्रा के लिये चल दिया। रास्ते में जब माता-पिता को प्यास लगी तो श्रवण उनके लिये पास की नदी से पानी लेने चला गया।
उसी समय राजा दशरथ शिकार के लिए वहां से गुजरे । जिस समय श्रवण मटके में पानी भर रहा था तो राजा को लगा वहां पर कोई जानवर पानी पीने आया है ऐसा सोचकर उन्होंनें उसी दिशा में तीर चला दिया जो श्रवण को जाकर लगा और उसकी मृत्यु हो गई।
इससे दुःखी होकर श्रवण के माता-पिता ने महाराज दशरथ को अपनी ही तरह से पुत्र वियोग में मर जाने का शाप दिया और उसी शाप के कारण जब श्रीराम वन को गये तो उनके वियोग में दुखी होकर राजा दशरथ की मृत्यु हुई।
10- राजा दशरथ की मृत्यु :-
श्रवण कुमार के माता-पिता के शाप से श्री राम के वियोग में ही राजा दशरथ की मृत्यु हो गई। उस समय राम चित्रकूट में थे जब मंंत्री उन्हे यह समाचार देने तथा उन्हे लेने के लिये आये तो श्री राम ने उन्हें यह कहकर वापस लौटने से मना कर दिया कि पिता जी की आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकता। अतः वनवास की अवधि पूरी होने के बाद ही वापस आउंगा।
तो दोस्तों ये थी Raja Dashrath राजा दशरथ कि जीवन से जुडी 10 बातें। उम्मीद है कि आपको आज की यह पोस्ट पसंद आई होगी यदि पसंद आई हो तो शेयर जरूर करें।
धन्यवाद!
जयहिन्द ! जय भारत !
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