Kedarnath : जहां हर अमावस्या को होता है एक चमत्कार|
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वाराणस्यां तु विश्वेशं, त्रयम्बकं गोमती तटे
हिमालये तु केदारं, घुश्मेशं च शिवालये॥
भावार्थ – वाराणसी में बाबा विश्वनाथ के रूप में, गोमती नदी के तट पर त्रयम्बकेश्वर के रूप में, हिमालय में केदारनाथ तथा घृष्णेश्वर में भगवान शिव विराजमान हैं।
नमस्कार दोस्तों, हमारे ब्लॉग पोस्ट Kedarnath में आपका हार्दिक अभिनंदन है। दोस्तों कहा जाता है कि मनुष्य को अपने जीवन में चार धामों की यात्रा अवश्य ही करनी चाहिए। भगवान शंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं में सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए चार धाम स्थापित किये।
इसके अतिरिक्त उत्तराखंड में भी चार धाम स्थित हैं जहां प्रत्येक वर्ष श्रद्धालु भारी संख्या में दर्शन करने आते हैं। उन्हीं चार धामों में एक है श्री केदारनाथ धाम जो भगवान शिव को समर्पित धार्मिक स्थल है। इस पोस्ट में हम इसी धाम पर प्रकाश डालेंगे तथा साथ ही जानेंगे इसका पौराणिक महत्व तथा अन्य जानकारियां। तो आईये, पोस्ट शुरू करते हैं –
kedarnath : प्राचीनता व इतिहास
ऐसी मान्यता है कि यहां पर भगवान भोलेनाथ साथात पिण्डी रूप में विद्यमान रहते हैं तथा अपने भक्तों का कल्याण करते हैं। यह दिव्य स्थान उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है जो लगभग 3800 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
केदारनाथ में स्थित शिवलिंग के सम्बन्ध में ऐसी मान्यता है कि यह आदि कल्प से ही यहां पर स्थित है। वैज्ञानिक साक्ष्य तथा कार्बन डेटिंग तकनीक से भी यह विदित होता है कि इस दिव्य शिवलिंग की स्थापना आज से लगभग ढाई लाख वर्ष पूर्व की गई होगी।kedarnath
इस शिवलिंग की आदि कल्प में भगवान नर-नारायण ने सबसे पहले पूजा की थी। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना पर सदा के लिए इस दिव्य ज्योतिर्लिंग में विद्यमान रहने का वर दिया। यही नर-नारायण प्रभु द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन हुए।
केदारनाथ मन्दिर का जो भीतरी गर्भ आज विद्यमान है उसका निर्माण आज से लगभग 5000 हजार वर्ष पूर्व पांडवों के पौत्र परीक्षित के पुत्र जनमेजय द्वारा किया गया था। फिर 8वीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य जी ने इसका जीर्णोद्धार करवाया।
kedarnath Temple : पौराणिक कथा
भगवान शिव का यह विश्वप्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग धाम कितना पौराणिक है यह इस बात से ही ज्ञात हो जाता है कि महाभारत के समय में भी इसका उल्लेख मिलता है। महाभारत के युद्ध की समाप्ति पर पांडव कुरुक्षेत्र के युद्ध में अपने गुरुओं तथा भाई-बंधुओं की हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इससे मुक्ति पाने के लिए पांचों पाण्डव भगवान शिव को प्रसन्न करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करना सर्वाधिक उपयुक्त लगा।
शिवजी यह जानते थे किन्तु वह उन्हें इस पाप से मुक्त नहीं करना चाहते थे क्योंकि पाण्डवों को विजय का अहंकार हो गया था। इसलिए जब पाण्डव भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के उद्देश्य से काशी पहुंचे तो शिवजी अन्तर्धान हो गये और केदारनाथ जा पहुंचे। ये जानकर वे सभी काशी से केदारनाथ पहुंच गये।
जब शिवजी ने यह देखा कि वे यहां तक पहुंच गये हैं तो एक बैल का रूप धारण कर लिया और वहीं पास खड़े बैलों के झुंड में जाकर शामिल हो गये। जब पाण्डवों को भगवान शिव नहीं मिले तो वे निराश हो गये और भगवान वासुदेव को स्मरण करके प्रार्थना करने लगे। तब भगवान श्री कृष्ण ने उनकी सहायता करते हुए पास ही खड़े बैलों के झुंड की ओर संकेत कर दिया। kedarnath
संकेत पाकर भी जब वे उन बैलों में छिपे भगवान शंकर को नहीं पहचान सके तो भीम को एक युक्ति सूझी।
भीम ने अपना शरीर पर्वत के समान विशालकाय बना लिया। उनके उस भीमकाय शरीर को देखकर अन्य बैल तो डर कर भागने लगे किन्तु बैल का वेश धारण किये भोलेनाथ अपने स्थान पर अडिग रहे।
पाण्डवों ने उन्हें पहचान लिया और जब उनकी ओर बढ़े तो बैल रूपी शिव वहां से जाने लगे। वह अंतर्धान होने ही वाले थे कि भीम ने भाव विभोर होकर उनकी पीठ को पकड़ लिया। वही हिस्सा आज भी केदारनाथ के मंदिर स्थल पर एक विशाल काले पत्थर के रूप में स्थित है तथा बैल की पीठ का अगला सिरा यानी की धड़ नेपाल के काठमांडू में प्रकट हुआ। उसी स्थान पर विश्वप्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर स्थित है।kedarnath
उस बैल का मुख रुद्रनाथ में, नाभि मणिमहेश में, पूंछ कल्पेश्वर में तथा भुजाएं तुंगनाथ में प्रकट हुई। तब पांडव दुखी हुये तथा अन्न-जल का त्यागकर निराहार होकर केदारनाथ शिवलिंग की पूजा करने लगे। कई वर्ष बीतने के बाद जब पाण्डवों का अहंकार नष्ट हो गया तथा शरीर लकड़ी की भांति हो गया तब भोलेनाथ उनकी दृढ़ भक्ति से प्रसन्न हो गये तथा दर्शन देकर वर मांगने को कहा।
पाण्डवों ने शिवजी को प्रणाम करके उनसे उसी स्थान अर्थात केदारनाथ में सदा वास करने की याचना की।
भगवान उनकी भक्ति भावना से प्रसन्न हुए तथा बोले कि वह पंचकेदारों में सदैव वास करेंगे तथा अपने भक्तों का उद्धार करेंगे।
यात्रा का महत्व
केदारनाथ मंदिर की यात्रा भक्त भारत में हजारों वर्षों से करते आ रहे हैं इसका वर्णन भारत में समय-समय पर भारत आये कई लेखकों ने किया है। इस यात्रा का वर्णन बौद्ध ग्रंथों, जैन ग्रंथों तथा मौर्य काल आदि में भी मिलता है। एक मान्यता के अनुसार बिना केदारनाथ की यात्रा किये बदरीनाथ की यात्रा भी पूर्ण नहीं मानी जाती। इसलिए भक्त जब भी बदरीनाथ की यात्रा करते हैं तो बाबा केदारनाथ के दर्शन अवश्य करते हैं। यह 12 ज्योतिर्लिंगो में से एक है।
वर्ष 2013 की बाढ़ में हुआ चमत्कार
बादल फटने के कारण जब वर्ष 2013 में जब मन्दाकिनी नदी में बाढ़ आई तब उसने केदारनाथ धाम में बहुत तबाही मचाई। बहुत बड़ी संख्या में यहां लोगों को जान माल की क्षति पहुंची थी। मंदिर को छोड़कर आस-पास की सारी इमारते नष्ट हो गईं किन्तु बाबा भोलेनाथ के मंदिर का बाल भी बांका न हुआ। यह शिवजी की कृपा का ही चमत्कार था कि जो भक्त मंदिर प्रांगण में थे वे सकुशल बच गये।
प्रत्येक अमावस्या को होता है चमत्कार
स्थानीय लोगों तथा साधु संतो का दावा है कि आज भी प्रत्येक अमावस्या के दिन स्वयंभू शिवलिंग में एक दिव्य ज्योत समाती हुई दिखाई देती है जिसे भक्त भगवान शिव का ही साक्षात स्वरूप मानते हैं।
केदारनाथ यात्रा का समय
धाम में नवम्बर से लेकर अप्रैल तक भारी बर्फबारी होती है जिस कारण यह यात्रा रोक दी जाती है साथ ही मंदिर के कपाट भी बंद कर दिये जाते हैं। मई से अक्टूबर तक का समय केदारनाथ धाम की यात्रा लिए उपयुक्त समय है। शास्त्र कहते हैं कि मानव देह अत्यंत ही दुर्लभ है तथा बड़े ही पुण्य से प्राप्त होती है। इसलिए जीवन में एक बार अवश्य ही इस धाम की यात्रा करनी चाहिए क्या पता फिर मानव देह प्राप्त हो या नहीं।
॥समाप्त॥
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