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Chaar Dham yatra : भारत के चार प्रमुख धामों की कथा

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Chaar Dham yatra : भारत के चार प्रमुख धामों की कथा|

नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Chaar Dham yatra में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, हिन्दू धर्म में चार धामों की यात्रा का अत्यधिक महत्व है सनातन धर्म में ऐसी मान्यता है कि जो भी मनुष्य अपने जीवनकाल में यदि एक बार भी चार धाम यात्रा कर लेता है तो उसका जीवन सफल हो जाता है तथा साथ ही उसे समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है।

भारत के उत्तराखण्ड राज्य से लेकर तमिलनाडु तक हमारे प्रमुख चार धामों की स्थापना जगद्गुरू शंकराचार्य जी ने की है। इन धामों की स्थापना का उद्देश्य भारत के चारों कोनों में हिन्दू साम्राज्य की पताका फहराना था। वर्तमान समय में न केवल भारत से अपितु विश्व के अन्य देशों से भी श्रद्धालु दर्शनार्थ पहुंचते हैं तथा स्वयं को अत्यंत भाग्यशाली मानते हैं।

आज की पोस्ट में हम इन्हीं चार धामों की यात्रा, इनकी विशेषता तथा इनके आस-पास स्थित अन्य दर्शनीय स्थलों पर भी प्रकाश डालेंगे तो आईये, पोस्ट शुरू करते हैं।

Chaar Dham yatra  : श्री बद्रीनाथ धाम

Chaar Dham yatra

 भारत के उत्तराखण्ड राज्य में स्थित श्री बद्रीनाथ धाम चार  धमों में प्रथम माना गया है। बद्रीनाथ धाम में विष्णु भगवान का एक अति भव्य मंदिर है। यह धाम चारों ओर से बर्फ से ढ़की पर्वत श्रंखलाओं से घिरा हुआ है।

इस धाम का हिन्दू धर्मशास्त्रों, पुराणों में कई स्थानों पर उल्लेख किया गया है। यह धाम इतना पवित्र है कि स्वयं भगवान ब्रह्मा ने यहां पर मानव एवं देवताओं के लिये पूजा का समय निर्धारित किया है। यहां पर देवता वैषाख माह के प्रारम्भ होने पर मनुष्यों को पूजा का भार सौंपकर अपने स्थान पर चले जतो हैं इसके पश्चात कार्तिक माह में वापस आकर मनुष्यों से पूजा का भार पुनः ग्रहण करते हैं।

मन्दिर के कपाट अप्रैल माह में खुलकर नवम्बर में बन्द हो जाते हैं इसका कारण यह है कि इन दिनों में यहां पर सिर्फ बर्फ ही बर्फ जमी रहती है। हिन्दु धर्म की मान्यता के अनुसार मन्दिर का पट बन्द होने से पूर्व भगवान बद्रीनाथ के लिये यहां पर 6 महीने के लिये नहाने, खाने एवं  दातून की व्यवस्था की जाती है तथा 6 माह के लिये एक अखण्ड दीपक प्रज्जवलित किया जाता है जो चमत्कारिक रूप से 6 माह के बाद भी यहां पर जलता हुआ मिलता है।

Chaar Dham yatra

भगवान बद्रीनाथ की मूर्ति को जगत गुरू शंकराचार्य ने 11 वर्ष की उम्र में नारद कुण्ड से निकालकर उसे स्थापित किया था। यह दिव्य मूर्ति एक मीटर लंबी है, यह अद्भुत मूर्ति स्वयं निर्मित है इसे किसी ने भी नहीं बनाया है। वर्तमान में नम्बूदरीपाद एवं डिमरी ब्राह्मणों द्वारा भगवान बद्रीनाथ की पूजा अर्चना की जाती है।
Chaar Dham yatra

मंदिर के कपाट खुलने के बाद हर वर्ष लाखों लोग विश्व के कोने-कोने से अपने आराध्य देव के दर्शनों के लिये यहां आते हैं तथा अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। बद्रीनाथ के निकट ब्रह्म कपाल स्थित है जहां पर अपने पित्रों के श्राद्ध की भी परंपरा है।

Chaar Dham yatra

इसके अतिरिक्त यहां पर संतोपथ सरोवर, चरण पादुका शेखनेत्र, व्यास गुफा, भविष्य बदरी, आदि बदरी आदि अन्य पवित्र एवं दर्शनीय स्थल भी हैं।

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श्री जगन्नाथपुरी धाम

 

हिन्दुओं के चार धामों में से एक गिने जाने वाला यह तीर्थ पुरी, ओड़िसा में स्थित है। यह भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। पुरि की जगन्नाथ जी रथ यात्रा विश्व प्रसिद्ध है। यह मन्दिर वैष्णव परंपराओं और संत रामानन्द से जड़ा हुआ है। गोड़ीय वैष्णव संप्रदाय के संस्थापक चैतन्य महाप्रभु ने कई वर्षों तक भगवान श्रीकृष्ण की इस नगरी में निवास किया था Chaar Dham yatra।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान की मूर्ति अंजीर वृक्ष के नीचे मिली थी। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा इस मंदिर के मुख्य देव हैं जिन्हें प्रति वर्ष अति भव्य तथा विशाल रथों में सुसज्जित करके यात्रा पर निकालते हैं। यह यात्रा रथ यात्रा के नाम से जानी जाती है जो कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीय को आयोजित की जाती है।

रथ यात्रा का उत्सव भारत के अनेकों वैष्णव कृष्ण मन्दिरों में भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है एवं भगवान की शोभा यात्रा पूरे हर्ष उल्लास एवं भक्ति भाव से निकाली जाती है। जगन्नाथ मंदिर वास्तव में एक अत्यंत विशाल परिसर का हिस्सा है जो लगभग चालीस हजार (40,000 ) वर्ग फिट में फैला हुआ है। मुख्य मंदिर के शिखर पर भगवान विष्णु का श्री चक्र स्थापित है इस आठ कोणों के चक्र को नीलचक्र भी कहते हैं जो अष्टधातु का बना है।

Chaar Dham yatra

यह मन्दिर अपने उच्च कोटि के शिल्प एवं अद्भुत उड़िया स्थापत्य कला के कारण भारत के भव्यतम मन्दिरों में गिना जाता है। मुख्य मंदिर के चारों ओर परिसर में छोटे-छोटे मंदिर स्थित हैं, जिनमें विभिन्न देवी-देवता विराजमान हैं तथा वे वे अलग-अलग समय में बने हैं। मंदिर के बारे में एक रोचक तथ्य यह भी है कि यहां विश्व का सबसे बड़ रसोई घर है जहां पर भगवान को अर्पण करने के लिए भोग तैयार किया जाता है जिसमे 500 रसोईये तथा उनके 300 सहयोगी पूर्ण मनोयोग से तैयार करते हैं।

Char dham yatra name खास बात यह भी है कि इस भोग को तैयार करने में किसी धातु पात्र का प्रयोग नहीं होता वरन् मिट्टी के पात्रों में ही सामग्री पकाई जाती है। यहां पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं देवी सुभद्रा की मूर्तियां एक रत्न मण्डित पाषाण चबूतरे पर गर्भ गृह में स्थापित हैं। इतिहास के अनुसार इन मूर्तियों की अर्चना मंदिर निर्माण के कहीं पहले से ही की जाती रही है।

मंदिर के महत्व का पता इस बात से ही चलता हे कि महान सिख सम्राट महाराजा रणजीत सिंह जी ने स्वर्ण मन्दिर से भी ज्यादा सोना इस मन्दिर को दान दिया था। आज भी विश्व के कोने-कोने से लाखों की संख्या में श्रद्धालु  यहां आकर भगवान के दर्शन कर पुण्य अर्जित करते हैं।

Chaar Dham yatra

श्री द्वारिका पुरी धाम

अब बात करते हैं द्वारिका तीर्थ स्थान की। द्वारिका भारत के पश्चिम में समुद्र के किनारे सौराष्ट्र प्रान्त में स्थित है। लगभग हजारों वर्ष पूर्व भगवान श्री कृष्ण ने इस नगरी को स्वयं बसाया था। यूं तो भगवान श्रीष्ण का जन्म मथुरा में हुआ, गोकुल में वह पले बढ़े परन्तु शासन उन्होंनें द्वारिका में ही किया था।

पहले मथुरा नगरी ही श्रीकृष्ण की राजधानी थी परन्तु कालान्तर में उन्होंने मथुरा को छोड़कर द्वारिका को अपनी राजधानी बनाया। यहीं से उन्होंने सारे देश की बागडोर संभाली, धर्म की रक्षा की, अधर्म का नाश किया तथा पापियों को दंडित किया। Chaar Dham yatra

द्वारिका एक छोटा कस्बा है जिसके एक हिस्से में चहारदीवारी के अन्दर बड़े-बड़े दिव्य मंदिर हैं। द्वारिका की सुन्दरता अद्वितीय है, द्वारिका के बारे में कहा जाता है कि इस नगर की स्थापना देवों के शिल्पी  विष्वकर्मा ने  की थी तथा उन्हीं के कहने पर श्रीकृष्ण जी ने तप करके समुद्रदेव से भूमि के लिए प्रार्थना की थी जिससे प्रसन्न होकर समुद्र देव ने उन्हें बीस योजन भूमि प्रदान की।

Chaar Dham yatra

यहां भगवान श्रीकृष्ण का द्वारिकाधीश मंदिर सुन्दरता एवं वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है। चूंकि भगवान श्रीकृष्ण को सम्पूर्ण जगत का स्वामी माना गया है इसलिये द्वारिकाधीश मंदिर को “ जगत मंदिर ”भी कहते हैं। यह मंदिर लगभग 2500 वर्ष पुराना है तथा इसक गर्भगृह में भगवान द्वारिकाधीश विराजमान हैं। यहां उनका काले रंग का विगृह चतुर्भुज विष्णु का रूप है।

इस भव्य मंदिर का भवन पांच मंजिला है तथा यह भवन 72 खम्भों पर टिका है, यह मंदिर लगभग 80 फिट ऊँचा है। गुम्बद पर सूर्य एवं चन्द्रमा के चित्र अंकित लम्बी पताका लहराती रहती है। यह अति सुन्दर मंदिर आश्चर्यजनक रूप से गोमती नदी एवं अरब सागर के संगम स्थल पर स्थित है।

इस मंदिर में एक बहुत ऊँचा शानदार दुर्ग और श्रद्धालुओं के लिए एक विशाल भवन भी बना है। मंदिर में दो खूबसूरत प्रवेश द्वार बने हैं। इसके मुख्य द्वार को मोक्ष तथा दक्षिणी द्वार को स्वर्ग द्वार कहते हैं। यहां से मात्र 12 कि0मी0 की दूरी पर नागेश्वर महादेव का मंदिर है जो भगवान शिव जी के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक माना जाता है।

इसके अतिरिक्त गोपि तालाब, रुकमणि मंदिर, निश्पाप कुण्ड, रणछोड़ जी मंदिर दुर्वासा और त्रिविक्रम मंदिर, कशेश्रर मंदिर, शारदा मठ, चक्र तीर्थ, भेट द्वारिका, कैलाश कुण्ड, शेख तालाब आदि अति पवित्र एवं दर्शनीय स्थल भी हैं।

श्री रामेश्वरम धाम

रामेश्वर धाम भारत के तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने लंका विजय के बाद अनगिनत योद्धाओं के मारे जाने तथा चारों वेदों के ज्ञाता एवं शिव भक्त रावण की मृत्यु से लगे ब्रह्म हत्या का पाप धोने के लिये यहां पर शिवलिंग की स्थापना की थी।
Chaar Dham yatra

Chaar Dham yatra

स्वयं भगवान श्रीराम द्वारा यह शिवलिंग स्थापित करने के कारण यह स्थान अत्यंत पवित्र एवं मनुष्यों के सभी पापों का नाश करने वाला है। यहां स्थापित शिवलिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है तथा रामेश्वरम धाम की गणना हिन्दुओं के पवित्रतम चारों धामों में की जाती है। कहते हैं जो स्थान उत्तर में पवित्र नगरी काशी का है वही दक्षिण में इस अति पूजनीय तीर्थ को प्राप्त है।

आज भी स्थित हैं लंका युद्ध में बने पुल के निशान

 

रामेश्वरम धाम चेन्नई से दक्षिण-पूर्व में लगभग 425 मील की दूरी पर स्थित है। यह शंख के आकार का अति सुन्दर द्वीप है जो हिन्द महासागर तथा बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा है। प्राचीन काल में यह भारत की मुख्य भूमि से जुड़ा था लेकिन धीरे-धीरे समुद्र की लहरों ने इसे काट दिया और यह एक टापू बन गया। 

यहीं पर भगवान श्रीराम ने नल–नील तथा वानर सेना के सहयोग से एक पुल बनाया था जिस पर चढ़कर उन्होंने लंका पर विजय प्राप्त की थी परंतु बाद में यह पुल धनुषकोटि नामक स्थान पर विभिषण के कहने पर तोड़ दिया गया था। आज भी इस पुल के अवशेष सागर में दिखाई देते हैं।

Chaar Dham yatra

रामेश्वर का मंदिर अत्यंत भव्य, सुन्दर  तथा विशाल है। यह मंदिर भारतीय वास्तु एवं शिल्प कला का एक उत्कर्ष नमूना है यह 6 हेक्टेयर में फैला है, इसके प्रवेश द्वार का गोपुरम अत्यंत भव्य एवं विशाल है तथा यह 38 . 4 मीटर ऊँचा है।

मंदिर के प्रांगण में सैंकड़ों विशाल खम्भे हैं जिन पर अलग-अलग अति सुन्दर बेल-बूटे उकेरे गये हैं। इस मंदिर का गलियारा विश्व का सबसे बड़ा गलियारा माना जाता है, मंदिर में कई लाख टन पत्थर लगे हैं मंदिर के अंदर भीतरी भाग में चिकना काला पत्थर लगा है, कहा जाता है कि यह पत्थर लंका से नावों पर लादकर लाये गये थे।

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रामेश्वर से लगभग 33 मील दूर रामनाथपुरम नामक स्थान है। कहते हैं मंदिर को बनाने एवं इसकी रक्षा करने में यहां के राजाओं का प्रमुख योगदान रहा है। यहां के राजभवन में एक काला पत्थर रखा हुआ है। कहा जाता है कि यह पत्थर भगवान श्री राम ने केवटराज के राजतिलक में उसके चिन्ह के रूप में प्रदान किया था इसीलिये श्रद्धालु इस पत्थर के दर्शन के लिये यहां जरूर आते हैं।

 इसके अतिरिक्त विल्लीरणि तीर्थ, सेतु माधव, बाइस कुण्ड, एकांत राम, सीता कुण्ड, आदि सेतु, राम पादुका मंदिर, कोदण्ड स्वामी मंदिर आदि प्रमुख ऐतिहासिक पवित्र एवं दर्शनीय स्थल यहां पर हैं।

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