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Auspicious Symbols of Lord Shiva : जानिये शिवजी के रहस्यमयी 13 प्रतीक

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Auspicious Symbols of Lord Shiva : जानिये शिवजी के रहस्यमयी 13 प्रतीक

नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Auspicious Symbols of Lord Shiva में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, भगवान शिव सभी के आदर्श हैं। वे सभी को अपनाते हैं चाहे सांप, बिच्छुओं जैसे जहरीले जीव हों अथवा चन्द्रमा तथा गंगा जैसे मानव का कल्याण करने वाले देवता। उनके द्वारा अपनाये गये प्रत्येक तत्व हमें अभीष्ट ज्ञान की शिक्षा प्रदान करते हैं।

आज की पोस्ट में हम जानेंगे भगवान शिव के उन 13 प्रतीकों के बारे में जिनसे हम शिक्षा प्राप्त कर तथा अपने जीवन में अपनाकर अपना व समाज का कल्याण सुनिश्चित कर सकते हैं। तो आईये, पोस्ट आरंभ करते हैं –

Auspicious Symbols Of Lord Shiva

1. कैलाश

ज्ञान तथा आदर्शों का शिखर प्रतीक कैलाश पर्वत स्वयं में कई रहस्यों को समेटे रहने वाला पर्वत है। जो श्रद्धालु कैलाश मानसरोवर की यात्रा कर चुके हैं उनका अनुभव है कि वहां पर दिव्य वातावरण है तथा आध्यामिक तरंगे हमेशा बहती रहती हैं। यह संकेत करता है कि शिव एक दिव्य तथा अलौकिक देवता हैं तथा उन्हें एकान्तवास प्रिय है।

2. श्मशान

Auspicious Symbols of Lord Shiva

भौतिक संसाधनों से वैराग्य का प्रतीक (Shiv Ke Prateek)। शिव संकेत करते हैं कि मनुष्य को अपना जीवन निर्मलता तथा स्वच्छता के साथ व्यतीत करना चाहिये। छल, कपट तथा प्रपंच रहित जीवन-यापन करने में ही मानव मात्र का कल्याण है उसे सदैव स्मरण रखना चाहिए कि उसका अन्तिम पड़ाव मृत्यु है। अतः जिस प्रकार कमल का फूल कींचड़ में रहकर भी उससे अलग रहता है उसी प्रकार मनुष्य को मायारूपी संसार में रहते हुये भी मोह के बन्धनों में नहीं फंसना चाहिये।

3. गोल पिण्डी

ज्ञानी की दृष्टि संसार से परे अपने आत्मिक उद्धार पर रहती है। पिण्डी सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को इंगित करती है ब्रह्माण्ड का स्वरूप पिण्डी की भांति है। यह भगवान शिव तथा माता पार्वती के अर्धनारीश्वर स्वरूप को भी दर्शाती हैै क्योंकि इन दोनों का ज्योतिर्मयस्वरूप पिण्डी में समाहित रहता है।

4. चन्द्रमा

चंद्र मन का संकेतक है। मन चंचल होता है कभी भी एक स्थान पर टिककर नहीं रहता। शिवजी द्वारा इसे धारण करने का अर्थ है कि उन्होंने मन को अपने नियंत्रण में किया है। इसके अतिरिक्त भगवान शम्भु ने गुजरात में सोमनाथ नामक स्थान पर चन्द्रदेव को मिले श्राप का निवारण किया था इस घटना के बाद वहां पर सोमनाथ ज्योतिर्लिंंग की स्थापना हुई। सोमनाथ को भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिगों में प्रथम ज्योतिर्लिंग का स्थान प्राप्त है।

5. तीसरा नेत्र

Auspicious Symbols of Lord Shiva

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भगवान शिव त्रिनेत्रधारी हैं। तीसरा नेत्र विवेक दृष्टि से सम्बन्धित है यह उत्पन्न हो जाने पर मनुष्य प्रत्येक सुख-दुःख को समान भाव से देखता है उसके लिये संसार में न कोई छोटा है तथा न कोई बड़ा तथा न कोई धनी होता है न कोई निर्धन।

6. त्रिशूल

भगवान शंकर का अस्त्र है त्रिशूल। यह तीनों कालों- भूत, भविष्य तथा वर्तमान के साथ ही मनुष्यों के दैहिक, दैविक तथा भौतिक तीन तापों से भी सम्बन्धित है। इसके साथ ही हमारी देह में स्थित तीन नाड़ियों इड़ा, पिंगला तथा सुषुम्ना नाड़ी का भी प्रतीक है।

7. भस्म

भस्म अर्थात संयम से स्वास्थ्य संवर्धन, बाहरी अलंकारों की कोई आवश्यकता नहीं। शिवजी बाहरी अलंकारों से मुक्त हैं उनका अपने सौन्दर्य की प्रति कोई अनुराग नहीं है वे कहते हैं यदि मनुष्य अपने भीतर से सुन्दर हो तो उसे किसी बाहरी संसाधनों की आवश्यकता नहीं रह जाती। भस्म का प्रयोग भगवान आशुतोष के मनुष्य की मृत्यु हो जाने के पश्चात भी उसके प्रति प्रेम दर्शाता है। मृत्यु होने पर वे उसकी भस्म को शरीर पर लगाकर उसका उद्धार करते हैं।

8. गंगा

Auspicious Symbols of Lord Shiva

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अपनी गुंथी हुई जटाओं में शिव, गंगाजी को धारण करते हैं। जब देवलोक से मां गंगा अपने पूर्ण वेग से पृथ्वी पर अवतरित हो रही थीं तब प्रश्न उठा कि कौन इनके वेग को रोकेगा? उस समय शंकर जी ने उन्हें अपनी बड़ी-बड़ी जटाओं में समाहित कर लिया। गंगा सदैव ही शिव जी को शीतलता प्रदान करती रहती हैं।

9. नाग

शिवजी के गले में लिपटा भयंकर विषधर सर्पों का राजा वासुकी है। नाग कुल के वासी भगवान शिव को अपना आराध्य देव मानते हैं। नागवंश का स्थान भी शिव के स्थान हिमालय के समीप ही था इसलिए नाग वंश प्रारम्भ से ही इनकी सेवा करता आया है जिस कारण शिवजी की इस वंश पर विशेष कृपा रहती है।

वासुकी के वंशज शेषनाग जो कि श्री विष्णु के सेवक हैं वे वासुकी के बडे़ भाई हैं। विषैले विषधर को अपने गले में धारण करके शिव यह संदेष देते हैं कि प्रेम भाव होने पर भयंकर से भयंकर शत्रु को भी अपने गले का हार बनाया जा सकता है।Auspicious Symbols of Lord Shiva

10. नीलकण्ठ/विषपान

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समुद्र मंथन के समय भगवान शंकर ने चराचर जगत की रक्षा हेतु विषपान किया था जो उनके परमार्थी होने के व्यक्तित्व को दर्शाता है भयंकर कालकूट विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया जिससे उनका नाम नीलकण्ठ पड़ा। इसके द्वारा शिव शिक्षा देते हैं कि परमार्थी अर्थात दूसरों के हित के लिए हमेशा अग्रणी रहने वाले जो विषपान करने, कष्ट सहने से कतराते नहीं तथा इसी कारण उन पर विषपान का प्रभाव भी नहीं होता।

11. व्याघ्र चर्म

महादेव वस्त्रों के स्थान पर हाथी की खाल को धारण करते हैं। उन्होंने व्याघ्र चर्म अर्थात शेर की खाल को अपना सिंहासन बनाया हुआ है। शेर जहां हिंसा का वाहक है वहीं हाथी शक्ति के अभिमान का। इस तरह शिव ने इन दोनों को धारण कर हिंसा तथा बल को अपने नियंत्रण में कर लिया है।

12. डमरू

डमरू की डम-डम से नाद उत्पन्न होता है। नाद अर्थात वहीं शब्द जो इस सृष्टि के प्रारम्भ में उत्पन्न हुआ था। इससे पूर्व सम्पूर्ण ब्रह्मांड में शून्यता थी कोई भी संगीत न था इसी नाद से संगीत एवं सुरों की रचना हुई।

13. वृषभ वाहन

Auspicious Symbols of Lord Shiva

 भोले बाबा का वाहन वृषभ अर्थात बैल है जिसके चार पैर धर्म के चार स्तम्भों यानी धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष को इंगित करते हैं। इन्हें नंदी के नाम से जाना जाता हैै एक मान्यता के अनुसार नंदी ने चारों स्तम्भ शास्त्रों की रचना भी की थी।

यह शिवजी को अपने गणों में सर्वाधिक प्रिय हैं यही कारण है कि जहां भी शिव मंदिर होगा नंदी की प्रतिमा अवश्य ही उनके सामने स्थित होगी। ये शिव के द्वारपाल भी हैं इनकी अनुमति के बिना कोई भी प्रभु के निवास स्थान में प्रवेश नहीं कर सकता।

॥इति॥

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