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Shiv Tandav Stotram : शिव तांडव स्तोत्रम (हिंदी अर्थ सहित)

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 Shiv Tandav Stotram : शिव तांडव स्तोत्रम

(हिंदी अर्थ सहित)|

नमस्कार दोस्तों, हमारे ब्लॉग पोस्ट Shiv Tandav Stotram में आपका हार्दिक अभिनंदन है। दोस्तों, जब हमने मर्यादा पुरूषोत्तम कहे जाने वाले भगवान श्रीराम के बारे में जाना तो हमारा परिचय लंकापति रावण से भी हुआ। रावण का एक पक्ष हम सभी जानते हैं कि वह एक महादैत्य था, जिसने माता सीता का हरण किया तथा इसी कारण उसका वध हुआ।

रावण का एक दूसरा पक्ष भी है कि वह चारों वेदों का न केवल ज्ञाता बल्कि कुशल टीकाकार भी था, वह देवों के देव महादेव का परम भक्त था। कहते हैं कि उसके जैसा शिव भक्त न पहले था न बाद में होगा। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण ने एक-एक कर अपने दस सिर काट कर अर्पित कर दिये थे।

परिणामस्वरूप शिवजी ने प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया। अपने दसों शीशों को एक-एक करके अर्पित कर देना सरल नहीं होता। दोस्तों, आज की पोस्ट में हम जानेंगे शिव ताण्डव स्तोत्र के बारे में जिसकी रचना स्वयं लंकापति रावण ने की थी। तो आईये, पोस्ट प्रारंभ करते हैं –

Shiv Tandav Stotram : कैसे हुई स्तोत्र की रचना ?

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार रावण ने अहंकारवश शिवजी को कैलाश पर्वत सहित अपने निवास स्थान लंका में स्थापित का प्रयास किया। अपने बल के गर्व से चूर रावण ने कैलाश को उठाने की कोशिश की जिससे माता पार्वती सहित कैलाश पर निवास करने वाले सभी जीव-जन्तुओं में भय व्याप्त हो गया।

यह देखकर शिवजी ने अपने पैर के अंगूठे से पर्वत पर दबाव डाला जिससे रावण कैलाश पर्वत के नीचे दब गया तथा दर्द से कराहते हुये शिवजी को प्रसन्न करने के लिए तथा क्षमा याचना करते हुये मधुर वाणी में इस स्तोत्र को गाया। इससे प्रसन्न होकर भगवान आशुतोष ने उसे क्षमा कर दिया तथा लंका ले जाने के लिए अपना एक लिंगस्वरूप भी प्रदान किया।

Shiv Tandav Stotram : रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र

(हिंदी अर्थ सहित)

जटाटवी गलज्जल प्रवाह-पा-वितस्थले गलेबलंब्य-लंबितां भुजंग-तुंग मालिकाम।
डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमयर्वयं, चकार-चण्ड-ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम।।

जटा-कटा हसंभ्रम भ्रमन्नि-लिंपनिर्झरी, विलोलवी-चिवल्लरी विराजमान-मूर्धनि।
धगद्ध-गद्ध-गज्ज्व-लल्लाट-पट्टपावके, किशोर चन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममः।।

अर्थ- शिवजी की गुंथी हुई जटाओं में से जल इस प्रकार टपक रहा है जैसे जंगल में स्रोत का पानी धीरे-धीरे रिसता हुआ आता है। उन्होंने सर्पाें की माला धारण की है, शिव जो डमरू की लय के साथ ताण्डव नृत्य करते हैं, वह मेरे जीवन में आनंद की वर्षा करें। उनका ध्यान करते हुये मैं आनंद का अनुभव करता हूं। उनके सिर पर लता के समान चंचल गंगा की लहरें विद्यमान हैं, उनके माथे पर तेज है और सिर पर युवा चंद्रमा सुशोभित हैं।

शिव तांडव स्तोत्रम

धराधरेंद्र-नंदिनी विलास-बन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपा-कटाक्ष-धोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनो-विनोद-मेतु वस्तुनि।।

अर्थ- मेरा मन भगवान शिव में अपनी खुशी खोजे, अद्भुत ब्रह्माण्ड के सारे प्राणी जिनके मन में स्थित हैं, जिनकी अर्धांगिनी पर्वतराज की पुत्री पार्वती हैं, जो अपनी करुणा दृष्टि से असाधारण आपदा को नियंत्रित करते हैं जो सर्वत्र व्यापक हैं, और जो दिव्य लोकों को अपनी पोशाक की तरह धारण करते हैं।

जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।
मदांधसिंधु रस्फरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि।

अर्थ- उनकी जटाओं में रेंगते हए सांप का फन लाल-भूरा है और मणि चमक रही है समस्त दिशाओं में विभिन्न रंग बिखेर रहा है, जो विशाल मदमस्त हाथी की खाल से बने जगमगाते दुशाले को पहने हैं।

Shiv Tandav Stotram

रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र लिरिक्स और अर्थ

सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः।

अर्थ- शिव हमें संपन्नता दें जिनका मुकुट चंद्रमा है, जिनके बाल लाल नाग के हार से बंधे हैं जिनका पायदान फूलों की धूल के बहने से गहरे रंग का हो गया है तथा जो इंद्र, विष्णु एवं अन्य देवताओं से गिरती है।

ललाट-चत्व-रज्वल द्धनंजयस्फलिंगभा निपीतपंच सायकं-नमन्निलिंप-नायकम।
सुधा-मयूखलेखया विराजमानशेखरं महा-कपालि-संपदे शिरो-जटा-लमस्तुनःं॥

अर्थ- शिव के बालों की उलझी जटाओं से हम सिद्धि की दौलत प्राप्त करें, जिन्होंने कामदेव को अपने मस्तक पर जलने वाली अग्नि की चिंगारी से नष्ट किया था, जो सारे देवलोकों के स्वामियों द्वारा आदरणीय हैं, जो अर्ध-चंद्र से सुशोभित हैं।

कराल-भाल-पट्टिका धगद्धगद्ध-गज्जवल द्धनंजया धरीकृत-प्रचंड पंचसायके।
धरा-धरेंद्र-नंदिनी कुचाग्र-चित्रपत्रक-प्रकल्पनैक-शिल्पिनी त्रिलोचने-रतिर्मम॥

अर्थ-मेरी रुचि भगवान शिव में है, जिनके तीन नेत्र हैं जिन्होंने शक्तिशाली कामदेव को अग्नि को अर्पित कर दिया उनके भीषण मस्तक की सतह डगद् डगद् की ध्वनि से जलती है। वे ही एकमात्र कलाकार हैं जो पर्वतराज की पुत्री पार्वती के स्तन की नोक पर सजावटी रेखाएं खींचने में निपुण हैं।
Shiv Tandav Stotram

रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र

नवीन-मेघ-मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्कुहु-निशीथनीतमः प्रबद्ध-बद्धकन्धरः।
कलानिधान-बंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः॥

अर्थ-भगवान शिव हमें संपन्नता दें वे ही पूरे संसार का भार उठाते हैं, जिनकी शोभा चंद्रमा है, जिनके पास अलौकिक गंगा नदी है, जिनकी गर्दन, गला बादलों की पर्ताें से ढंकी अमावस्या की अर्धरात्रि की तरह काली है।

प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्।
गजच्छिदांधकछिदं तमंतकच्छिदं भजे॥

अर्थ- मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं जिनका कंठ मंदिरों की चमक से बंधा है पूरे खिले नीले कमल के फूलों की गरिमा से लटकता हुआ, जो ब्रह्माण्ड की कालिमा सा दिखता है, जो कामदेव को मारने वाले हैं जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया है, जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया है।

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अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्।
स्मरांतकं पुरांतकं भवातकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे॥

अर्थ- मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनके चारों ओर से शुभ कदंब के फूलों के सुंदर गुच्छे से आने वाली शहद की मधुर सुगंध के कारण मधुमक्खियां उड़ती रहती हैं, जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया, अंधक दैत्य का विनाश और हाथियों को मारने वाले हैं।

जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तितः प्रचण्ड ताण्डवः शिवः॥

अर्थ- शिव जिनका तांडव नृत्य नगाड़े की ढिमिड-ढिमिड तेज आवाज श्रृंखला के साथ लय में है जिनके महान मस्तक पर अग्नि है, वो अग्नि फैल रही है नाग की सांस के कारण, गरिमामय आकाश में गोल-गोल घूमती हुई।Shiv Tandav Stotram

दृषद्विचित्र-तल्पयोर्भुजंग-मौक्किमस्र जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे॥

अर्थ- मैं भगवान साम्ब सदाशिव की पूजा कब कर सकूंगा, शाश्वत शुभ देवता, जो सम्राटों और रंकों के प्रति समभाव दृष्टि रखते हैं इसके अतिरिक्त घास के तिनके और कमल के प्रति, मित्रों और शत्रुओं के प्रति, सर्वाधिक मूल्यवान रत्न और धूल के ढेर के प्रति, सांप और हार के प्रति और विश्व में विभिन्न रूपों के प्रति सभी के लिये समान दृष्टि रखते हैं।
Shiv Tandav Stotram

शिव तांडव स्तोत्रम

कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्॥

अर्थ- मैं कब प्रसन्न हो सकता हूं, अलौकिक नदी गंगा के निकट गुफा में रहते हुये, अपने हाथों को हर समय बांधकर अपने सिर पर रखे हुए, अपने दूषित विचारों को धोकर दूर करके, शिव मंत्र को बोलते हुए, महान मस्तक और जीवंत नेत्रों वाले भगवान को समर्पित ?

इहं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम्।

अर्थ-इस स्तोत्र को जो भी पढ़ता है, याद करता है और सुनता-सुनाता है, वह सदैव के लिए पवित्र हो जाता है और महान गुरु शिव की भक्ति पाता है। इस भक्ति के लिए कोई दूसरा मार्ग या उपाय नहीं है शिव जी का विचार मात्र ही भ्रम को दूर कर देता है।

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॥इति॥

आशा करते हैं कि पोस्ट Shiv Tandav Stotram आपको पसंद आई होगी। कृपया पोस्ट को आगे भी शेयर करें तथा इस प्रकार की धार्मिक जानकारियां प्राप्त करने के लिए हमारे साथ बने रहें। अपना अमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद। आपका दिन शुभ व मंगलमय हो।


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