Shiv Stuti in Hindi : शिव-स्तुति (हिंदी अर्थ सहित)
नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Shiv Stuti in hindi में आपका हार्दिक अभिनंदन है। दोस्तों, बाबा भोलेनाथ जितने सरल हैं उतना ही विचित्र उनकी वेश-भूषा। महादेव का स्वरूप अदभुत है क्योंकि वो उन वस्तुओं को धारण करते हैं जिनसे सांसारिक लोग दूर भागते हैं।
शिव जी विषैले सर्प धारण करते हैं, शमशान में वास करते हैं, वे स्वयं औघड़ वेश धारण करते हैं किन्तु अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर समस्त धन-सम्पत्ति क्षणभर में प्रदान कर देते हैं। आज के लेख में हम भगवान शिव जी की स्तुति हिन्दी अर्थ सहित पढ़ेंगे। इस स्तुति में बाबा भोलेनाथ के स्वरूप का वर्णन तथा उनकी आराधना एवं वंदना की गई है।
तो आईये, हम भी शिव भक्ति में लीन होकर उनकी स्तुति का पाठ करें –
Shiv Stuti in hindi : शिव-स्तुति (हिंदी अर्थ सहित)
॥ऊं श्री गणेशाय नम:॥
Shiv Stuti in hindi
श्री गिरिजापति वंदिकर, चरण मध्य शिरनाय।
कहत अयोध्यादास तुम, मो पर होहु सहाय।।
अर्थ- हे पार्वतीनाथ भगवान शंकर! अयोध्यादास आपके चरणों में शीश नवाकर प्रार्थना करते हैं कि आप मेरी सहायता करें।
नंदी की सवारी नाग अंगीकार धारी, नित संत सुखकारी नीलकंठ त्रिपुरारी हैं।
गले मुण्डमाला धारी सिर सोहे जटाधारी, वाम अंग में बिहारी गिरिजा सुतवारी हैं।
दानी देख भारी शेष शारदा पुकारी, काशीपति मदनारी कर त्रिशूल चक्रधारी हैं।
कला उजियारी, लख देव सो निहारी, यश गावें वेदचारी सो हमारी रखवारी हैं।।
अर्थ- नंदी आपका वाहन है, नाग को आपने गले में धारण किया हुआ है। संतों-सज्जनों को सुख देने वाले तथा असुरों का संहार करने वाले आप को नीलकंठ कहा जाता है। जिनके गले में मुण्डों की माला है और सिर पर सुन्दर जटाएं हैं, बाईं ओर पार्वतीजी विराजमान हैं, और साथ में पार्वती पुत्र गणेशजी भी सुशोभित हैं।
महान दानी जानकर शेषनाग और सरस्वतीजी भी जिनका स्मरण करते हैं। भगवान काशीपति हैं, कामदेव पर विजय प्राप्त करने वाले शंकर भगवान त्रिशूल तथा चक्र धारण करते हैं। भगवान शिव की उज्ज्वल कला को देवता भी निहारा करते हैं। जिनका यश चारों वेद गाते हैं, वे भगवान शंकर हमारी रक्षा करें।
Shiv Stuti in hindi
शम्भू बैठे हैं विशाला भंग पीवें सो निराला, नित रहें मतवाला अहि अंग पै चढ़ाए हैं।
गले सोहे मुण्डमाला कर डमरू विशाला, अरु ओढ़े मृगछाला भस्म अंग में लगाए हैं।
संग सुरभी सुतशाला करें भक्त प्रतिपाला, मृत्यु हरें अकाला शीश जटा को बढ़ाए हैं।
कहैं रामलाला मोहि करो तुम निहाला अब, गिरिजापति आला जैसे काम को जलाए हैं।
अर्थ- प्रतिदिन निराली भांग पीकर समाधि में लीन रहते हैं, उन भगवान शंकर के शरीर पर सांप वास करते हैं। उनके गले में मुण्डों की माला है, हाथ में डमरू है, मृगछाला ओढ़ रखी है और शरीर पर विभूति रमा रखी है। जिनके साथ समस्त देवता हैं, वे भक्तों का पालन करते हैं।
वे अकाल-मृत्यु को रोक देते हैं। उनके सिर पर लम्बी जटाएं हैं। यह स्तुति रचनेवाले रामलाल कहते हैं कि जैसे आपने कामदेव को भस्म किया, उसी प्रकार मेरी तृष्णाओं को भी नष्ट कर दीजिए।
मारा है जलंधर और त्रिपुर को संहारा जिन, जारा है काम जाके शीश गंगधारा है।
धारा है अपार जासु महिमा है तीनों लोक, भाल में है इन्दु जाके सुषमा की सारा है।
सारा है अहिबात सब, खायो हलाहल जानि, जगत के अधारा जाहि वेदन उचारा है।
चरा हैं भांग जाके द्वारा हैं गिरीश कन्या, कहत अयोध्या सोई मालिक हमारा है।
अर्थ- जिन्होंने एक अन्य अवतार में मगरमच्छ रूपी असुर का संहार किया, त्रिपुर नामक राक्षस का वध किया, कामदेव को भस्म किया, जिनकी जटाओं में से गंगा की धारा बहती है। ऐसे शिव की महिमा अपरम्पार है। जिस प्रकार गंगाजी की विशाल धारा है, उसी प्रकार उनका यश तीनों लोकों में फैला हुआ है।
जिनके माथे पर चन्द्रमा सुशोभित हैं, वह समस्त सुखों के स्वामी हैं। जिन्होंने बातों ही बातों में हलाहल विष पी लिया। वेदों में भी जगत का आधार कहा गया है। अयोध्यादासजी कहते हैं कि जो भोजन के रूप में भांग को ग्रहण करते हैं और गिरिराज की पुत्री जिनके साथ हैं, वे ही हमारे स्वामी हैं।
Shiv Stuti in hindi
अष्ट गुरु ज्ञानी जाके मुख वेदबानी शुभ, सोहै भवन में भवानी सुख सम्पत्ति लहा करैं।
मुण्डन की माला जाके चन्द्रमा ललाट सोहैं, दासन के दास जाके दारिद दहा करैं।
चारों द्वार बन्दी जाके द्वारपाल नन्दी, कहत कवि अनन्दी नर नाहक हा हा करैं।
जगत रिसाय यमराज की कहा बसाय, शंकर सहाय तो भयंकर कहा करैं।
अर्थ- आठों गुरु जानते हैं कि उनकी वाणी में वेद विराज रहे हैं। जिनके भवन की स्वामिनी स्वयं भवानीजी हैं, उनकी कृपा से सुख-सम्पत्ति प्राप्त होती और बढ़ती है। मुण्डों की माला और चन्द्रमा जिनके मस्तक पर शोभित हैं -वे सेवकों के दुखों को भी समाप्त कर देते हैं।Shiv Stuti in hindi
जिन्होंने नरक के चारों द्वार बन्द कर दिये हैं और जिनके द्वारपाल नन्दी हैं, वे तो सबको आनन्दित करने वाले हैं। कवि कहता है कि ऐसी स्थिति में भी लोग क्यों हाय-हाय करते हैं ? संसार के लोग थोड़ी-सी पूजा करके जिन्हें प्रसन्न कर लेते हैं-ऐसे शंकर भगवान ही स्वयं जिसके सहायक हों, यमराज भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
सवैया- गौर शरीर में गौरि विराजत, मौर जटा सिर सोहत जाके।
नागन को उपवीत लसै, अयोध्या कहे शशि भाल में ताके।
दान करै पल में फल चारि, और टारत अंक लिखे विधना के।
शंकर नाम निशंक सदा ही, भरोसे रहैं। निशिवासर ताके।।
अर्थ- गौर वर्ण पार्वतीजी जिनके साथ विराजती हैं और जिनके सिर पर जटाएं मुकुट के समान शोभायमान हैं। जिन्होंने सांपों को ही जनेऊ बना रखा है और माथे पर चन्द्रमा शोभित हैं, ऐसे शंकर भगवान की महिमा अपरम्पार है। एक क्षण में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष आदि चारों फल दे देते हैं और भाग्य को भी बदल देते हैें। भगवान शंकर का नाम ही ऐसा है जिस पर बिना किसी प्रकार की शंका के भरोसा किया जा सकता है।Shiv Stuti in hindi
||दोहा||
मंगसर मास हेमन्त ऋतु छठ दिन है शुभ बुद्ध।
कहत अयोध्यादास तुम, शिव के विनय समुद्ध।।
अर्थ- अयोध्यादास जी कहते हैं कि भगवान शिव की कृपा से उनकी स्तुति लिखने का यह कार्य मार्गशीर्ष मास की छठी तिथि को बुधवार के दिन समाप्त हुआ।
।। इति ।।
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