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Pashupati Vrat : पशुपति व्रत की महिमा | विधि तथा नियम-Jagurukta

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Pashupati Vrat : पशुपति (पाशुपत) व्रत की महिमा | विधि तथा नियम | Katha | Aarti

Table of Contents

 

अंग विभूति रमाय मसान की, विषय भुजंगनि को लपटावैं।
नर कपाल कर मुण्डमाल गल, भालु चर्म सभी अंग उढावैं।
घोर दिगंबर लोचन तीन, भयानक देखि कै सब थर्रावैं।
बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब सदाशिव को नित ध्यावैं।

Pashupati Vrat Mahima

Pashupati Vrat

 

नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Pashupati Vrat में आपका स्वागत है। दोस्तों, आज की पोस्ट में हम बात करेंगे पशुपति व्रत के बारे में। शिवजी से संबंधित इस व्रत की महिमा अपरंपार है ऐसी मान्यता है कि यदि सच्चे हृदय से इस उपवास को  पूर्ण विधि-विधान के साथ किया जाता है तो ऐसा करने वाले व्यक्ति की सभी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं ।

दोस्तों, यह उपवास लगातार 5 सोमवार किया जाता है तथा पांचवे सोमवार को इस व्रत का उद्यापन किया जाता है। तो आईये, जानते हैं कि क्या है इस व्रत का विधान।

पशुपति व्रत की विधि/सामग्री तथा नियम :-

 

Avdhoot Avtar

 

पशुपति अर्थात पशुओं के स्वामी। भगवान शिव समस्त चर-अचर जगत तथा सभी जीव-जंतुओं के भी स्वामी अर्थात पति कहे जाते हैं इसी कारण से इनका एक नाम पशुपति नाम हुआ। पशुपतिनाथ जी का विश्व प्रसिद्ध मंदिर नेपाल में स्थित है। ये हैं पशुपति व्रत की विधि तथा नियम :‌-

१. इस उपवास को रखने का नियम यह है कि जिस सोमवार से यह उपवास रखना है उससे एक दिन पहले से ब्रह्मचर्य का पालन करें। सोमवार के दिन सूर्योदय से पूर्व उठें, दैनिक कार्यों के पश्चात यदि आपके घर के पास ही कोई पवित्र नदी बहती हो तो जाकर उसमें स्नान करें अन्यथा घर पर ही स्नान के जल में थोड़ा-सा गंगाजल मिलाकर स्नान कर लें।

Pashupat vrat

२. स्नान के पश्चात पूजा की थाली बना लें जिसमें धूप-दीप, शमी पत्र, बेलपत्र, भांग धतूरा, मंदार पुष्प , पंचामृत आदि लेकर शिवजी के मंदिर जायें।

३. स्मरण रहे कि जिस मंदिर में आप अपने उपवास के प्रथम दिन जायें  उसी मंदिर में शेष चारों सोमवार को जायें।

४. शिव मंदिर जाकर घी का एक दीपक जलायें। यदि हो सके तो मिट्टी का अथवा आटे का दीपक भी बना सकते हैं।  यदि संभव हो सके तो शिवलिंग के आस-पास की सफाई भली प्रकार से कर दें। अब शिवलिंग पर सर्वप्रथम जल अर्पण करें।

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५. जल अर्पण करते हुए  मन ही मन शिवजी का कोई मंत्र जपते रहें। उसके बाद पंचाभिषेक अर्थात दूध, दही, घी, शहद तथा सबसे अंत में पुनः जल अर्पित कर दें। 

६. पंचाभिषेक करने के उपरांत शिवलिंग पर बेल-पत्र, मंदार पुष्प आदि पूजा सामग्री अर्पित करके मिष्ठान्न अर्पित कर दें।

Shiv Ji Ke 108 Naam

 

७. ध्यान रखें कि धूप, दीप आदि सामग्री को सदैव शिवलिंग से कुछ दूरी पर ही रखें। देखा गया है कि प्रायः भक्त शिवलिंग पर ही धूप आदि लगा देते हैं जो कि सर्वथा अनुचित है। तत्पश्चात घर आ जायें , कुछ फलाहार कर लें।

८. शाम के समय पुनः मंदिर जायें तथा साथ ही 6 दीपक अपने साथ ले जायें। इनमें से 5 दीपकों को मंदिर में ही प्रज्ज्वलित कर दें तथा अंतिम यानी छठे दीपक को अपने साथ घर ले आयें। इस दीपक को घर आकर प्रवेश द्वार पर अपने सीधे हाथ अर्थात दाईं ओर द्वार पर जलायें।

९. जो  मिष्ठान्न  आप मंदिर ले गये थे इस मिष्ठान्न को तीन भागों में बांट लें दो भागों का मंदिर में ही भोग लगा दें तथा तीसरे भाग को घर पर लाकर शिवजी को भोग लगाकर प्रसाद रूप में ग्रहण कर लें। अब व्रत का परायण कर सकते हैं किन्तु ध्यान रहे कि नमक का प्रयोग न करें।

१०. यही क्रम लगातार पांच सोमवार करें। पांचवें सोमवार को पशुपति व्रत का उद्यापन किया जाता है।

Pashupati Vrat Katha : भगवान पशुपति नाथ की कथा

 

108 Naam Shiv ji Ke

कथा शुरू करने से पहले अपने साथ में कुछ अक्षत (चावल के दाने) ले लीजिये और जितने भी लोग साथ में इसे सुन रहे हैं उन्हें भी यह अक्षत दे दीजिये और कथा समाप्त होने के बाद इन अक्षतों को मंदिर में चढ़ा दें।

एक बार की बात है भगवान् शिव, नेपाल की सुन्दर तपोभूमि के प्रति आकर्षित होकर, एक बार कैलाश छोड़ कर यहीं आकर रम गये। इस क्षेत्र में वह 3 सींग वाले मृग (चिंकारा) बन कर, विचरण करने लगे। अतः इस क्षेत्र को पशुपति क्षेत्र, या मृगस्थली भी कहते हैं। शिव को इस प्रकार अनुपस्थित देख कर ब्रह्मा, विष्णु को चिंता हुई और दोनों देवता भगवान शिव की खोज में निकले।

इस सुंदर क्षेत्र में उन्होंने एक देदीप्यमान, मोहक 3 सींग वाले मृग को विचरण करते देखा। उन्हें मृग रूप में शिव होने की आशंका होने लगी। ब्रह्मा जी ने योग विद्या से तुरंत पहचान लिया कि यह मृग नहीं, बल्कि भगवान आशुतोष ही हैं। ब्रह्मा जी ने तत्काल ही उछल कर उन्होंने मृग का सींग पकड़ने का प्रयास किया। इससे मृग के सींग के 3 टुकड़े हो गये।

उसी सींग का एक टुकड़ा इस पवित्र क्षेत्र में गिरा और यहां पर महारुद्र उत्पन्न हुए, जो श्री पशुपति नाथ के नाम से प्रसिद्ध हुए। शिव जी की इच्छानुसार भगवान् विष्णु ने नागमती के ऊंचे टीले पर,भगवान शिव को मुक्ति दिला कर, लिंग के रूप में स्थापना की, जो पशुपति के रूप में विख्यात हुआ।

 

Bhagwan Shiv Ke 108 Naam

 

Pashupati Vrat: पशुपति मंत्र क्या है ?

संजीवय संजीवय फट । विद्रावय विद्रावय फट । सर्वदुरितं नाशय नाशय फट

Pashupati Vrat: कैसे करें व्रत का उद्यापन ?, उद्यापन की विधि

Shiv Ke 108 Naam

पांचवें सोमवार यानी उद्यापन वाले दिन वही पूजा विधि अपनाई जाती है जो अन्य चार सोमवारों में की जाती है किन्तु उद्यापन वाले दिन एक पानी वाले नारियल का प्रयोग पूजा में किया जाता है। इस सोमवार को मंदिर जाकर पूजा विधि संपन्न करने के बाद एक पानी वाला नारियल लेकर उस पर कलावा बांधे तथा अपनी मनोकामना मन में दोहरायें तथा इसे शिव मंदिर में ही शिवलिंग के पास रख कर वापस आ जायें। 

• विख्यात शिव कथावाचक श्री प्रदीप मिश्रा जी कहते हैं कि शिवलिंग पर अर्पित किये जाने वाले बिल्व पत्र अथवा कोई अन्य पुष्पों की संख्या यदि 108 हो तो उत्तम होता है। इन्हें एक साथ नहीं अपितु एक-एक करके शिवलिंग पर चढ़ाना चाहिए तथा मन ही मन भगवान शंकर के किसी भी मंत्र का जाप करते रहना चाहिए।

• इस प्रकार यह व्रत पूर्ण हो जाता है। 

• यदि सामर्थ हो तो व्रत के समापन के बाद  ब्राह्मण भोज भी करा सकते हैं।

• उपवास वाले दिन मन ही मन शिवजी से संबंधित किसी-न-किसी मंत्र का जाप करते रहना चाहिये।

• पुरूषों को “ऊँ नमः शिवाय” का जाप करना चाहिये तथा महिलाओं को चाहिये कि वे केवल “नमः शिवाय” का जाप करें।

Pashupati Vrat: उद्दापन कब करना चाहिए ?

व्रत का समय पूरा होने के बाद जो अंतिम पूजा होती है उसे उद्दापन कहा जाता है ।  उद्दापन शाम के समय प्रदोष काल में किया जाता है। देखा जाता है कि कई बार लोग व्रत तो कर लेते हैं लेकिन जानकारी के अभाव या समयाभाव के कारण व्रत का उद्यापन नहीं करते। इसी कारण उन्हें व्रत का फल प्राप्त नहीं होता और व्रत निष्फल हो जाता है

 

Pashupati Vrat: पशुपति व्रत के उद्दापन में कितनी दक्षिणा भेंट करनी चाहिए ?

इस व्रत के अन्तर्गत दक्षिणा की कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी सामर्थ्य तथा अनुसार 11, 21, 51 आदि जो भी भेंट करना चाहे कर सकता है। वैसे भी भोले बाबा भाव तथा अपने भक्त की भावना से प्रेम करते हैं।

Pashupati Vrat : उपवास के दौरान रखें ये सावधानियां :-

 

Shiv Ji Ke 108 Naam

 

१. पूजन सामग्री में शुद्धता का विशेष रूप से ध्यान रखें।

२. शिवलिंग पर चढ़ाये जाने वाले पत्र, मंदार पुष्प आदि स्वच्छ होने चाहिये तथा पत्ते कटे-फटे न हों इसका ध्यान रखें।
कुछ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बेल पत्र को सोमवार के दिन नहीं तोड़ना चाहिए इसके लिए एक दिन पहले अर्थात रविवार को पत्ते तोड़कर सुरक्षित रख लें।

३. शिवजी को प्रिय यह पशुपति व्रत निश्चित रूप से सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है। उपवास की अवधि में काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार आदि विकारों से दूर रहें। व्रत के दौरान कभी भी तामसिक/ मांसाहार पदार्थों का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिये।

४. वैसे तो हिंसा कभी नहीं करनी चाहिये किन्तु इस अवधि में मनुष्य अथवा किसी भी जीव-जंतु के साथ हिंसक व्यवहार कभी नहीं करना चाहिये।

५. महिलाओं तथा बच्चों को सम्मान दें तथा किसी प्रकार के अनावश्यक वाद-विवाद तथा कलह में न पड़ें।

६. उपवास मे यदि संभव हो तो दिन में सोने से बचना चाहिये।  

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Pashupati Vrat Kab Nahi Karna Chahiye : किन स्थितियों में न करें यह व्रत।

 

Shiv Panchakshar Stotra

 

यूं तो कोई भी व्यक्ति इस व्रत को अपनी पूर्ण श्रद्धा भाव के साथ कर सकता है लेकिन यदि कोई बीमार है अथवा अपनी वृद्धावस्था के चलते यह व्रत या उपवास करने में असमर्थ हो तो उसे यह व्रत नहीं करना चाहिए।

गर्भवती महिला इस उपवास को न करे तथा मासिक धर्म के दौरान ऐसी स्त्रियां अपने पति द्वारा, यदि पति न हो तो अपने पुत्र से पूजा का कार्य संपन्न करा सकती हैं। उनके लिये केवल पूजन विधि निषेध है अन्यथा वे उपवास रख सकती हैं।

Pashupati Vrat: पशुपति व्रत के फायदे/ लाभ

पशुपति व्रत भगवान शिव को अत्यधिक प्रिय है। इस व्रत को पूरे विधि-विधान तथा नियम के साथ श्रद्धापूर्वक करने से महादेव अत्यंत प्रसन्न होते हैं। वैसे भी शिवजी शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले देव के रूप में जाने जाते हैं तथा मात्र एक लोटा जल से भी प्रसन्न हो जाते हैं। जो भी इस पशुपति व्रत को धारण करता है महादेव उसकी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण कर देते हैं तथा वह सांसारिक सुख-समृद्धि के साथ-साथ सहज ही भगवान शिव का सान्निध्य प्राप्त कर लेता है।

Pashupati Vrat: पशुपति व्रत में क्या खाना चाहिए ?

पशुपति व्रत में फलाहार का सेवन करना चाहिए। यूं तो उपवास का अर्थ ही कुछ नहीं खाकर केवल अपने आराध्य की भक्ति में लीन रहना है किंतु अधिक उम्र या फिर स्वास्थ्य संबंधि कारणों से अल्पाहार लिया जा सकता है।
स्मरण रहे उपवास की अवधि में नमक का सेवन कदापि न करें किंतु सेंधा नमक का प्रयोग किया जा सकता है। दिन में फल तथा रात को कुट्टू के आटे का प्रयोग किया जा सकता है। भोग लगाने के बाद ही प्रसाद रूप में भोजन ग्रहण करना चाहिए।

क्या कहते हैं परम शिव भक्त श्री प्रदीप मिश्रा जी

दोस्तों, जाने माने विद्वान कथावाचक तथा परम शिव भक्त श्री प्रदीप मिश्रा जी जिनकी कथायें वर्तमान समय में अत्यंत प्रासंगिक मानी जाती हैं, उन्होंने महादेव की भक्ति को अत्यंत ही सरल तथा सहज दृष्टिकोण से प्रकट किया है।
वे कहते हैं कि बाबा भोलेनाथ ही समस्त सृष्टि में एकमात्र ऐसे देवता हैं जिनकी भक्ति अत्यंत सरल है। साधक अपनी क्षमता के अनुसार इन्हें जटिल तथा सरल दोनों रूप से भज सकते हैं।

मिश्रा जी कहते हैं कि मेरे बाबा इतने भोले हैं कि मात्र एक लोटा जल चढ़ाने मात्र से ही अपने भक्त की समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति कर डालते हैं। वो भजन है ना कि “रावण को दे डाली सोने की लंका किया आप पर्वत पर डेरा।”     श्री प्रदीप मिश्रा जी अपनी कथाओं में इस व्रत की सम्पूर्ण जानकारी तथा इसका प्रभाव बताते हैं, तो आप भी इस व्रत को पूरे विधि-विधान तथा पूर्ण विश्वास के साथ कीजिये, महादेव आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करेंगे।

पशुपति व्रत की आरती :-
श्री पशुपति नाथ जी की आरती | Shri Pashupati Nath Ji Ki Aarti:-

 

Sawan

 

ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा ।
त्वं मां पालय नित्यं कृपया जगदीशा ॥ ॐ जय गंगाधर …

कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रमविपिने ।
गुंजति मधुकरपुंजे कुंजवने गहने ॥ ॐ जय गंगाधर …

कोकिलकूजित खेलत हंसावन ललिता ।
रचयति कलाकलापं नृत्यति मुदसहिता ॥ ॐ जय गंगाधर …

तस्मिंल्ललितसुदेशे शाला मणिरचिता ।
तन्मध्ये हरनिकटे गौरी मुदसहिता ॥ ॐ जय गंगाधर …

क्रीडा रचयति भूषारंचित निजमीशम्‌ ।
इंद्रादिक सुर सेवत नामयते शीशम्‌ ॥ ॐ जय गंगाधर …

बिबुधबधू बहु नृत्यत नामयते मुदसहिता ।
किन्नर गायन कुरुते सप्त स्वर सहिता ॥ ॐ जय गंगाधर …

धिनकत थै थै धिनकत मृदंग वादयते ।
क्वण क्वण ललिता वेणुं मधुरं नाटयते॥ ॐ जय गंगाधर …

 

Sawan

रुण रुण चरणे रचयति नूपुरमुज्ज्वलिता ।
चक्रावर्ते भ्रमयति कुरुते तां धिक तां ॥ ॐ जय गंगाधर …

तां तां लुप चुप तां तां डमरू वादयते ।
अंगुष्ठांगुलिनादं लासकतां कुरुते ॥ ॐ जय गंगाधर …

कपूर्रद्युतिगौरं पंचाननसहितम्‌ ।
त्रिनयनशशिधरमौलिं विषधरकण्ठयुतम्‌ ॥ ॐ जय गंगाधर …

सुन्दरजटायकलापं पावकयुतभालम्‌ ।
डमरुत्रिशूलपिनाकं करधृतनृकपालम्‌ ॥ ॐ जय गंगाधर …

मुण्डै रचयति माला पन्नगमुपवीतम्‌ ।
वामविभागे गिरिजारूपं अतिललितम्‌ ॥ ॐ जय गंगाधर …

सुन्दरसकलशरीरे कृतभस्माभरणम्‌ ।
इति वृषभध्वजरूपं तापत्रयहरणं ॥ ॐ जय गंगाधर …

शंखनिनादं कृत्वा झल्लरि नादयते ।
नीराजयते ब्रह्मा वेदऋचां पठते ॥ ॐ जय गंगाधर …

अतिमृदुचरणसरोजं हृत्कमले धृत्वा ।
अवलोकयति महेशं ईशं अभिनत्वा ॥ ॐ जय गंगाधर …

ध्यानं आरति समये हृदये अति कृत्वा ।
रामस्त्रिजटानाथं ईशं अभिनत्वा ॥ ॐ जय गंगाधर …

संगतिमेवं प्रतिदिन पठनं यः कुरुते ।
शिवसायुज्यं गच्छति भक्त्या यः श्रृणुते ॥ ॐ जय गंगाधर …

॥ इति ॥

॥जय शिव शंंभू , हर-हर महादेव॥

Shiv Tandav Stotram

दोस्तों, आशा करते हैं कि आपको पशुपति व्रत Pashupati Vrat की जानकारी देने वाली यह पोस्ट पसंद आई होगी। यदि पसंद आई हो तो कमेंट करके हमें अवश्य बता सकते हैं यदि आपने अभी तक हमारे ब्लॉग को सब्सक्राइब नहीं किया है तो जल्दी से सब्सक्राइब कर लें जिससे कि इसी तरह की धार्मिक तथा अन्य जानकारियां आपको उपलब्ध होती रहें।

आपका दिन शुभ तथा मंगलमय हो।


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