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Garud Puran : गरुड़ पुराण के ये 9 दण्ड जानकर चौंक जायेंगे

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Garud Puran :  गरुड़ पुराण के ये 9 दण्ड जानकर चौंक जायेंगे

नमस्कार दोस्तों, हमारे ब्लॉग पोस्ट garud puran में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों , हम जैसा कर्म करते हैं वैसा ही फल हमें भोगना पड़ता है। जहां पुण्य कर्मों का फल हमें सुख प्रदान करता है वहीं बुरे कर्म हमें दुःख आदि सांसारिक समस्याओं के रूप में पीड़ा देते हैं।

पाप तथा पुण्य के इसी लेखे-जोखे के आधार पर जीव का जन्म 84 लाख योनियों के अन्तर्गत भिन्न-भिन्न योनियों में होता है। 18 पुराणों में से एक गरुड़ पुराण में जीव द्वारा किये गये बुरे कर्मों के परिणामस्वरूप मिलने वाले दण्ड की विस्तार से व्याख्या की गई है। यह पुराण हमें बताता है कि कौन-सा कर्म करने से जीव को कौन-सा दण्ड भोगना पड़ता है।
इस पोस्ट में हम गरुड़ पुराण में जीव द्वारा किये गये अपराध तथा उसके फलस्वरूप मिलने वाले दण्ड की संक्षिप्त में चर्चा करेंगे। तो आईये, पोस्ट आरंभ करते हैं –

Garud Puran : किस पाप से कौन सी योनि में होता है अगला जन्म ?

Garud Puran

गरुड़ पुराण  में भगवान विष्णु ने पक्षीराज गरुड़ को विभिन्न प्रकार के पापों और उसके फलस्वरूप  विभिन्न योनियों में मिलने वाले जन्म के बारे में विस्तार से बताया है। गरुड़ पुराण में बड़े ही विस्तार से वर्णित है की प्राणी अपने सतकर्म एवं दुष्कर्म के फलों को भोगने के लिए ही इस संसार में जन्म लेता है तथा विभिन्न नर्कों के भोगों को भोगकर पुनः इस पृथ्वी पर जन्म लेता है।

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पाप कर्म और उसके अनुसार मिलने वाला जन्म

आईये, अब जानते हैं जीव के कर्म के अनुसार मिलने वाले जन्म के बारे में —

1. स्वर्ण की चोरी करने वाला क्रिमी, कीट, और पतंग की योनि में जन्म लेता है, जबकि गुरु पत्नीगामी चर्म रोगी होता है।

2. घर का सामान चुराने वाला गिद्ध, मधु की चोरी करने वाला मधुमक्खी, गाय की चोरी करने वाला गुह, कासे की चोरी करने वाला हंस और दूसरे का धन हरने वाला अपस्मार रोग से ग्रस्त होता है।

3. ब्राह्मण की हत्या करने वाले मनुष्य को मृग, अस्व, शुकर और ऊंट की योनि प्राप्त होती है।

4. जो मनुष्य जिस प्रकार के महा पापियों का साथ करता है उसे भी उसी प्रकार का रोग होता है, रत्न की चोरी करने वाला निकृष्ट योनि में जन्म लेता है, धान्य चोरी करने वाला चूहा, यान चुराने वाला ऊँट तथा फल की चोरी करने वाला बन्दर की योनी में जाता है। garud puran

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5. भक्ष और अभक्ष का विचार ना रखने वाला अगले जन्म में गंड माल नामक महा रोग से पीड़ित होता है।

6. जो दूसरे की धरोहर का अपहरण करता है वह काना होता है।

7. जो मनुष्य पति परायणा अपनी पत्नी का परित्याग करता है वह दूसरे जन्म में दुर्भाग्यशाली होता है।

8. मित्र की हत्या करने वाला अगले जन्म में उल्लू होता है।

9. असत्य बोलने वाला हकला और झूठी गवाही देने वाला जलोदर रोग से पीड़ित होता है।

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विवाह तथा स्त्रियों आदि से सम्बन्धित पाप के लिये दण्ड

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1. विवाह में विघ्न पैदा करने वाला पापी मच्छर की योनि में जाता है यदि कदाचित उसे पुनः मनुष्य की योनी प्राप्त भी होती है तो उसका ओंठ कटा हुआ होता है, जो मनुष्य चतुश पथ पर मल-मूत्र का परित्याग करता है वह वृषल होता है।

2. कन्या को दूषित करने वाले प्राणी को नपुंसकता का विकार होता है, स्त्रियों के वस्त्र चुराने पर श्वेत कुष्ठ गुरुहन्ता क्रूरकर्मा बौना होता है।

3. दूसरे का मांस खाने वाला और ब्राह्मण के धन का अपहरण करने वाला पांडु रोगी होता है तथा मात्सर्य दोष से युक्त प्राणी को भ्रमर की योनि मिलती है।

4. घर आदि में आग लगाने वाला कोढ़ी, और किसी और की कोई प्रिय वस्तु छीनने वाला जो वह देना नहीं चाहता ऐसा व्यक्ति बैल बनता है, गायों की चोरी करने पर सर्प तथा अन्य की चोरी करने पर प्राणी को अजीर्ण रोग होता है, दूध की चोरी करने वाला और ब्राह्मणों को दान में बासी भोजन देने से कुबड़े की योनी प्राप्त होती है। garud puran

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5. बिना किसी को दिए अकेले भोजन करने वाला व्यक्ति संतान हीन होता है, जो मनुष्य फल चुराता है उसकी संतति मर जाती है, पुस्तक की चोरी करने वाला प्राणी जन्मांत होता है तथा संन्यास आश्रम का परित्याग करने वाला पिशाच होता है।

6. झूठी निंदा करने वाले लोगों को कछुए की योनि में जाना पड़ता है, अग्नि को पैर से स्पर्श करने पर प्राणी बिलौटा और जीवो का मांस खाने पर रोगी होता है, जो मनुष्य जल के स्रोत को नष्ट करता है वह मछली होता है।

7. जो लोग भगवान हरी की कथा और साधू जनों की प्रसस्ति नहीं सुनते उन मनुष्य को कारण मूल रोग होता है, जो व्यक्ति परायों के मुंह में स्थित अन्न का अपहरण करता है वह मंदबुद्धि होता है।

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8. अहंकार के वशीभूत होकर जो प्राणी धर्म आचरण करता है उसको गज चर्म का रोग होता है।

9. विश्वासघाती मनुष्य के शरीर में शिरोत्तरी रोग होता है, ब्राह्मण को देने की प्रतिज्ञा करके जो नहीं देते उन्हें सियार की योनि प्राप्त होती है और उनकी स्त्रियां भी पाप की भागनी होती हैं और इन्हें उन्ही जंतुओं की भार्या होना पड़ता है।

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उक्त कर्मों के कुफल से प्राप्त नर्क का भोग करने के बाद मनुष्य इन्ही सब योनियों में प्रविष्ट होता है जिस प्रकार इस संसार में नाना भांति के द्रव्य विद्वमान है उसी प्रकार प्राणियों की विभिन्न जातियां भी है वह सभी अपने-अपने विभिन्न कर्मों के प्रतिफल रूप में सुख-दुख एवं नाना योनियों का भोग करते हैं तात्पर्य यही है कि प्राणी को शुभ कर्म करने से शुभ फल की प्राप्ति और अशुभ कर्म करने से शुभ फल की प्राप्ति होती।

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॥ इति ॥

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