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7 Kand of Ramayana : क्या कहते हैं रामायण के 7 काण्ड ?

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7 Kand of Ramayana : क्या कहते हैं रामायण के 7 काण्ड ?

 

7 Kand of Ramayana : क्या कहते हैं रामायण के 7 काण्ड संक्षिप्त में जानें-

 

7 Kand of Ramayana

मित्रों आज पोस्ट में हम जानेंगे रामायण के 7 काण्ड के बारे में। रामायण में कुल काण्ड की संख्या सात है हर एक काण्ड का अपना अलग महत्व है वैसे तो इस महाकाव्य का सबसे चर्चित काण्ड सुन्दर काण्ड है जो हनुमान जी को समर्पित है लेकिन इसके अलावा जो काण्ड हैं इस पोस्ट में हम उनके बारे में भी बतायेंगे । 

१- बालकाण्ड :- जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि यह काण्ड बताता है कि प्रभु की भक्ति उसी मन से बिना किसी स्वार्थ या छल तथा कपट से करनी चाहिए जिस प्रकार एक अबोध बालक का मन होता है।

Balkand, 7 Kand of Ramayana

बालक प्रभु को इसीलिये प्रिय होता है क्योंकि उसमें छल तथा कपट नहीं होता। विद्या, धन तथा प्रतिष्ठा के बढ़ने पर भी जो व्यक्ति निर्मल बना रहता है तथा उसमें घमण्ड नहीं होता वही ईश्वर को प्राप्त कर सकता है।

एक बालक की तरह अपने मान-अपमान का फर्क न पड़ने से मनुष्य के जीवन में सरलता आती है एक बच्चे की तरह सादगीपूर्ण जीवन बिताने से यह शरीर श्री राम की स्थली पावन अयोध्या बन जायेगा जिसमें श्री राम निवास करेंगे।

Ayodhyakand, 7 Kand of Ramayana

२- अयोध्याकाण्ड :- यह काण्ड मनुष्य को निर्विकार अर्थात विकारों या बुराईयों से रहित बनाता है। जब जीव भक्ति रूपी सरयू नदी के तट पर सदैव निवास करता है तभी मनुष्य निर्विकारी बनता है।

यह काण्ड भक्ति अर्थात प्रेम को प्रदान करता है। राम का भरत प्रेम, माता कौशल्या के अलावा अन्य माताओं से प्रेम तथा अपनी प्रजा के प्रति सम्मान आदि की चर्चा इस काण्ड में की गई है।

अयोध्या काण्ड का पाठ यदि कोई पूर्ण श्रद्धा भाव के साथ करता है तो परिवार में प्रेम तथा समाज में प्रतिष्ठा बढ़ती है। घर में कलह आदि नहीं होती तथा घर अयोध्या की तरह बन जाता है। यह काण्ड हमें सिखाता है कि आपसी बैर को मिटाकर प्रेम से सौहार्दपूर्ण जीवन बिताना चाहिये।

Aranyakand, 7 Kand of Ramayana

३- अरण्यकाण्ड :- इस काण्ड का अध्ययन करने से मन से वासना का अंत होता है। यह काण्ड हमें शिक्षा देता है कि मनुष्य को संयमित तरीके से अपना जीवन बिताना चाहिये तथा कभी भी दूसरे के प्रति ईर्ष्या, द्वेष-भाव नहीं रखना चाहिये। हर एक मनुष्य को अपने प्रारब्ध कर्मों के हिसाब से फल मिलता है।

श्रीराम तो राजा थे लेकिन फिर भी उन्हें माता सीता के साथ वनवास करना पड़ा। कहते हैं कि बिना अरण्यवास अर्थात जंगल में समय बिताने से जीवन में दिव्यता नहीं आती, वनवास व्यक्ति के हृदय को कोमल बनाता है तथा तप के द्वारा ही काम रूपी रावण का अंत होता है। इस काण्ड में सूपर्णखा को मोह तथा शबरी को भक्ति की संज्ञा दी गई है, श्री राम कहते हैं कि हमें मोह को त्यागकर सदा भक्ति को ही अपनाना चाहिये।

kishkindhakand, 7 Kand of Ramayana

४- किष्किन्धाकाण्ड :- यह काण्ड हमें शिक्षा देता है कि जो मनुष्य दूसरों से द्वेष भाव नहीं रखेगा सभी के अंदर ईश्वर का अंश देखेगा, जिसका मन निर्मल तथा विकारों से रहित होगा वही ईश्वर को प्राप्त होगा।

इस काण्ड में उदाहरण देकर समझाया गया है कि वानरराज सुग्रीव जीव तथा श्री राम ईश्वर हैं। जिस प्रकार सुग्रीव ने हनुमान जी का सहारा लेकर श्री राम की कृपा को प्राप्त किया था ठीक वैसे ही जीव रूपी सुग्रीव को हनुमान जी रूपी संयम/ब्रह्मचर्य का सहारा लेकर राम रूपी ईश्वर को प्राप्त करना होगा।

जिसका कण्ठ अर्थात ग्रीह्वा सुंदर है वही सुग्रीव है। ज्ञानीजन कहते हैं कि कण्ठ की शोभा आभूषणों से नहीं बल्कि राम नाम का निरंतर जाप करते रहने से है। आशय यह है कि जिसका कण्ठ सुन्दर है उसी की मित्रता राम से होती है लेकिन इसके लिये उसे हनुमान यानी ब्रह्मचर्य की सहायता लेनी ही पड़ेगी। बिना हनुमानजी की सहायता के सुग्रीव प्रभु राम से नहीं मिल सकते थे।

Ashta Siddhi

५- सुन्दरकाण्ड :- इस काण्ड में हनुमान जी द्वारा समुद्र लांघने, लंका में प्रवेश करने, माता सीता से मिलने का वर्णन मिलता है।
जब जीव की मैत्री या  संबंध राम यानी परमात्मा से हो जाती है तो वह सुन्दर हो जाता है इस काण्ड में हनुमान जी समुद्र लांघ कर सीता जी के दर्शन करते हैं यानी संसार समुद्र को पार करने वाले जीव को ही पराभक्ति सीता के दर्शन होते हैं तथा संयमित जीवन तथा राम नाम का आश्रय लेने वाला व्यक्ति संसार रूपी सागर को पार कर जाता है।

Ashta Siddhi

सीताजी पराभक्ति हैं इसलिये जिसका जीवन हनुमान जी की तरह सुंदर होता है उसे ही माता सीता रूपी भक्ति के दर्शन होते हैं क्योंकि जहां सीता है वहां शोक नहीं रहता, जहां सीता है वहां अशोकवन है।

हनुमान रूपी जीव को संसार सागर को पार करते समय मार्ग में सुरसा रूपी वासनायें बाधा डालती है। अतः जीव को हनुमान जी की ही भांति संयमित रहते हुये तथा इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण रखकर ईश्वर का सहारा लेते हुये इस बाधा को पार करना होगा।

 

Lankakand,, 7 Kand of Ramayana

६- लंकाकाण्ड :- यह काण्ड हमें शिक्षा देता है कि यदि जीव भक्तिपूर्ण जीवन बिताता है तो राक्षसों का संहार होता है क्योंकि कलयुग में काम-क्रोधादि को ही राक्षस की संज्ञा दी गई है। जो इन्हें मार सकता है उसे काल का डर नहीं रहता, कालं और लंका में बस शब्दों का ही हेर-फेर है।

काल सबको मारता है लेकिन हनुमान जी क्योंकि ब्रह्मचारी हैं तथा हमेशा प्रभु भक्ति में लीन रहते हैं इसलिए काल भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाया अर्थात नहीं मार पाया।

Uttarkand, 7 Kand of Ramayana

७- उत्तरकाण्ड :- कागभुसुण्डि तथा गरुड़ के मध्य संवाद इस काण्ड का प्रमुख संवाद है। पाठकों को इसे ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिये क्योंकि इससे उनकी सभी आशंकाओं का समाधान होता है।

इस काण्ड में भक्त और भगवान के संबंधों के बारे में चर्चा की गई है और बताया गया है कि भक्त कौन है। भक्त वही है जो अपने भगवान से एक क्षण के लिये भी अलग नहीं हो सकता तथा हर समय हर सांस के साथ अपने ईश्वर को सुमिरता यानी याद करता रहता है।

काम रूपी रावण को मारने के बाद ही उत्तरकाण्ड में प्रवेश होता है इसके पीछे शिक्षा यह दी गई है कि अपने जीवन को सुधारने और ईश्वर की प्राप्ति का प्रयास हमें युवावस्था से ही शुरू कर देना चाहिये यह नहीं सोचना चाहिये कि आगे जाकर भक्ति कर लेंगे। क्योंकि जीवन का समय तय नहीं है। पता नहीं कब आखिरी घड़ी आ जाये और हम पछताते रहें। कहा भी गया है कि- 

राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट,
अंत समय पछितायेगा जब प्राण जायेंगे छूट।।

*-*-* 7 Kand of Ramayana “JAI SRI RAM” *-*-*


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