Maa Annapurna Katha : मां अन्नपूर्णा की कथा | व्रत | विधि

Maa Annapurna Katha : मां अन्नपूर्णा की कथा | व्रत | विधि

 

मां अन्नपूर्णा की कथा

 

Maa Annapurna Katha

नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लाग पोस्ट Maa Annapurna Katha में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों आज की पोस्ट में हम जानेंंगे माता अन्नपूर्णा की कथा के बारे में।

बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर माता अन्नपूर्णा का मंदिर है। इन्हें तीनों लोकों की माता माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इन्होंने स्वयं भगवान शिव को खाना खिलाया था। मंदिर की दीवारों पर इस बात का चित्रण किया गया है। चित्र में देवी ने कलछी पकड़ी हुई है।

अन्नकूट महोत्सव पर मां अन्नपूर्णा की स्वर्ण प्रतिमा एक दिन के लिए भक्त दर्शन कर सकते हैं। अन्नपूर्णा मंदिर में आदि शंकराचार्य ने अन्नपूर्णा स्त्रोत की रचना कर ज्ञान वैराग्य प्राप्ति की कामना की थी।

अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकरप्राण बल्लभे।
ज्ञान वैराग्य सिद्धर्थं भिक्षां देहि च पार्वती।।

 

कब मनाई जाती हैं अन्नपूर्णा जयंती (Annapurna Jayanti Date)

 

Annapurna Katha

 

माता अन्नपूर्णा का जन्म दिवस को अन्नपूर्णा जयंती के रूप में मनाया जाता हैं। यह दिन मार्गशीर्ष हिंदी मासिक की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता हैं। इस दिन दान का महत्व होता हैं। इस वर्ष 2022 में यह दिवस 8 दिसम्बर को मनाया जायेगा।

 

Maa Annapurna Vrat : अन्नपूर्णा व्रत कब किया जाता है?

 

माता अन्नपूर्णा का 21 दिवसीय यह व्रत अत्यन्त चमत्कारी फल देने वाला है। यह व्रत (अगहन) मार्गशीर्ष मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू कर 21दिनों तक किया जाता है। इस व्रत में अगर व्रत न कर सकें तो एक समय भोजन करके भी व्रत का पालन किया जा सकता है। इस व्रत में सुबह घी का दीपक जला कर माता अन्नपूर्णा की कथा पढ़ें और भोग लगाएं ।

 

Annapurna Katha : मां अन्नपूर्णा की कथा

 

Annapurna Katha

 

 

 

अन्नपूर्णा देवी हिन्दू धर्म में मान्य देवी-देवताओं में विशेष रूप से पूजनीय हैं। इन्हें मां जगदम्बा का ही एक रूप माना गया है, जिनसे सम्पूर्ण विश्व का संचालन होता है। इन्हीं जगदम्बा के अन्नपूर्णा स्वरूप से संसार का भरण-पोषण होता है।
अन्नपूर्णा का शाब्दिक अर्थ है – धान्य अर्थात अन्न की अधिष्ठात्री। सनातन धर्म की मान्यता है कि प्राणियों को भोजन मां अन्नपूर्णा की कृपा से ही प्राप्त होता है।

भगवान शिव की अर्धांगनी, कलियुग में माता अन्नपूर्णा की पुरी काशी है, किन्तु सम्पूर्ण जगत उनके नियंत्रण में है। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी के अन्नपूर्णाजी के आधिपत्य में आने की कथा बड़ी रोचक है।

 

इसे भी पढ़ें:- Maa Annapurna Stotram : मां अन्नपूर्णा स्तोत्र हिंदी भावार्थ सहित

 

Annapurna Katha: अन्नपूर्णा की कथा

 

Annapurna Katha

 

एक समय की बात है। काशी निवासी धनंजय की पत्नी का नाम सुलक्षणा था । उसे अन्य सब सुख प्राप्त थे, केवल निर्धनता ही उसके दुःख का कारण थी। यह दुःख उसे हर समय सताता था । एक दिन सुलक्षणा पति से बोली- स्वामी! आप कुछ उद्यम करो तो काम चले । इस प्रकार कब तक काम चलेगा ?

सुलक्षण्णा की बात धनंजय के मन में बैठ और वह उसी दिन विश्वनाथ शंकर जी को प्रसन्न करने के लिए बैठ गया और कहने लगा- हे देवाधिदेव विश्वेश्वर ! मुझे पूजा-पाठ कुछ आता नहीं है, केवल तुम्हारे भरोसे बैठा हूँ । इतनी विनती करके वह दो-तीन दिन भूखा-प्यासा बैठा रहा ।

यह देखकर भगवान शंकर ने उसके कान में ‘अन्नपूर्णा ! अन्नपूर्णा!! अन्नपूर्णा!!!’ इस प्रकार तीन बार कहा। यह कौन, क्या कह गया ? इसी सोच में धनंजय पड़ गया कि मन्दिर से आते ब्राह्मणों को देखकर पूछने लगा- पंडितजी ! अन्नपूर्णा कौन है ? ब्राह्मणों ने कहा- तू अन्न छोड़ बैठा है, सो तुझे अन्न की ही बात सूझती है । जा घर जाकर अन्न ग्रहण कर ।Maa Annapurna Stotram

धनंजय घर गया, स्त्री से सारी बात कही, वह बोली-नाथ! चिंता मत करो, स्वयं शंकरजी ने यह मंत्र दिया है। वे स्वयं ही खुलासा करेंगे। आप फिर जाकर उनकी आराधना करो । धनंजय फिर जैसा का तैसा पूजा में बैठ गया। रात्रि में शंकर जी ने आज्ञा दी । कहा- तू पूर्व दिशा में चला जा । वह अन्नपूर्णा का नाम जपता जाता और रास्ते में फल खाता, झरनों का पानी पीता जाता ।

इस प्रकार कितने ही दिनों तक चलता गया । वहां उसे चांदी सी चमकती बन की शोभा देखने में आई । सुन्दर सरोवर देखने में या, उसके किनारे कितनी ही अप्सराएं झुण्ड बनाए बैठीं थीं । एक कथा कहती थीं । और सब ‘मां अन्नपूर्णा’ इस प्रकार बार-बार कहती थीं।

यह अगहन मास की उजेली रात्रि थी और आज से ही व्रत का आरम्भ था । जिस शब्द की खोज करने वह निकला था, वह उसे वहां सुनने को मिला । धनंजय ने उनके पास जाकर पूछा- हे देवियो ! आप यह क्या करती हो? उन सबने कहा हम सब मां अन्नपूर्णा का व्रत करती हैं । व्रत करने से गई पूजा क्या होता है? यह किसी ने किया भी है?

 

Annapurna Katha

 

इसे कब किया जाए? कैसा व्रत है में और कैसी विधि है? मुझसे भी कहो। वे कहने लगीं- इस व्रत को सब कोई कर सकते हैं । इक्कीस दिन तक के लिए 21 गांठ का सूत लेना चाहिए । 21 दिन यदि न बनें तो एक दिन उपवास करें, यह भी न बनें तो केवलकथा सुनकर प्रसाद लें।

निराहार रहकर कथा कहें, कथा सुनने वाला कोई न मिले तो पीपल के पत्तों को रख सुपारी या घृत कुमारी (गुवारपाठ) वृक्ष को सामने कर दीपक को साक्षी कर सूर्य, गाय, तुलसी या महादेव को बिना कथा सुनाए मुख में दाना न डालें। यदि भूल से कुछ पड़ जाए तो एक दिवस फिर उपवास करें। व्रत के दिन क्रोध न करें और झूठ न बोलें।

धनंजय बोला- इस व्रत के करने से क्या होगा ? वे कहने लगीं- इसके करने से अन्धों को नेत्र मिले, लूलों को हाथ मिले, निर्धन के घर धन आए, बांझी को संतान मिले, मूर्ख को विद्या आए, जो जिस कामना से व्रत करे, मां उसकी इच्छा पूरी करती है। वह कहने लगा- बहिनों! मेरे भी धन नहीं है, विद्या नहीं है, कुछ भी तो नहीं है, मैं तो दुखिया ब्राह्मण हूँ, मुझे इस व्रत का सूत दोगी? हां भाई तेरा कल्याण हो , तुझे देंगी, ले इस व्रत का मंगलसूत ले।

धनंजय ने व्रत किया । व्रत पूरा हुआ, तभी सरोवर में से 21 खण्ड की सुवर्ण सीढ़ी हीरा मोती जड़ी हुई प्रकट हुई। धनंजय जय ‘अन्नपूर्णा’ ‘अन्नपूर्णा’ कहता जाता था। इस प्रकार कितनी ही सीढि़यां उतर गया तो क्या देखता है कि करोड़ों सूर्य से प्रकाशमान अन्नपूर्णा का मन्दिर है, उसके सामने सुवर्ण सिंघासन पर माता अन्नपूर्णा विराजमान हैं।

 

इसे भी पढ़ें:- Annapurna Kavach : अन्नपूर्णाकवच

 

Annapurna Katha

 

सामने भिक्षा हेतु शंकर भगवान खड़े हैं। देवांगनाएं चंवर डुलाती हैं। कितनी ही हथियार बांधे पहरा देती हैं। धनंजय दौड़कर जगदम्बा के चरणों में गिर गया। देवी उसके मन का क्लेश जान गईं । धनंजय कहने लगा- माता! आप तो अन्तर्यामिनी हो। आपको अपनी दशा क्या बताऊँ ? माता बोली – मेरा व्रत किया है, जा संसार तेरा सत्कार करेगा ।

माता ने धनंजय की जिह्नवा पर बीज मंत्र लिख दिया । अब तो उसके रोम-रोम में विद्या प्रकट हो गई । इतने में क्या देखता है कि वह काशी विश्वनाथ के मन्दिर में खड़ा है। मां का वरदान ले धनंजय घर आया । सुलक्षणा से सब बात कही । माता जी की कृपा से उसके घर में सम्पत्ति उमड़ने लगी। छोटा सा घर बहुत बड़ा गिना जाने लगा।

जैसे शहद के छत्ते में मक्खियां जमा होती हैं, उसी प्रकार अनेक सगे सम्बंधी आकर उसकी बड़ाई करने लगे। कहने लगे-इतना धन और इतना बड़ा घर, सुन्दर संतान नहीं तो इस कमाई का कौन भोग करेगा? सुलक्षणा से संतान नहीं है, इसलिए तुम दूसरा विवाह करो ।

 

Maa Annapurna Stotram

 

अनिच्छा होते हुए भी धनंजय को दूसरा विवाह करना पड़ा और सती सुलक्षणा को सौत का दुःख उठाना पड़ा । इस प्रकार दिन बीतते गय फिर अगहन मास आया। नये बंधन से बंधे पति से सुलक्षणा ने कहलाया कि हम व्रत के प्रभाव से सुखी हुए हैं । इस कारण यह व्रत छोड़ना नहीं चाहिए । यह माता जी का प्रताप है। जो हम इतने सम्पन्न और सुखी हैं । सुलक्षणा की बात सुन धनंजय उसके यहां आया और व्रत में बैठ गया।

नयी बहू को इस व्रत की खबर नहीं थी। वह धनंजय के आने की राह देख रही थी । दिन बीतते गये और व्रत पूर्ण होने में तीन दिवस बाकी थे कि नयी बहू को खबर पड़ी। उसके मन में ईर्ष्या की ज्वाला दहक रही थी । सुलक्षणा के घर आ पहुँची ओैर उसने वहां भगदड़ मचा दी । वह धनंजय को अपने साथ ले गई ।

नये घर में धनंजय को थोड़ी देर के लिए निद्रा ने आ दबाया । इसी समय नई बहू ने उसका व्रत का सूत तोड़कर आग में फेंक दिया । अब तो माता जी का कोप जाग गया । घर में अकस्मात आग लग गई, सब कुछ जलकर खाक हो गया । सुलक्षणा जान गई और पति को फिर अपने घर ले आई । नई बहू रूठ कर पिता के घर जा बैठी ।

 

Annapurna Katha

 

पति को परमेश्वर मानने वाली सुलक्षणा बोली- नाथ ! घबड़ाना नहीं । माता जी की कृपा अलौकिक है । पुत्र कुपुत्र हो जाता है पर माता कुमाता नहीं होती। अब आप श्रद्धा और भक्ति से आराधना शुरू करो। वे जरूर हमारा कल्याण करेंगी । धनंजय फिर माता के पीछे पड़ गया। फिर वहीं सरोवर सीढ़ी प्रकट हुई, उसमें ‘ मां अन्नपूर्णा’ कहकर वह उतर गया। वहां जा माता जी के चरणों में रुदन करने लगा ।

माता प्रसन्न हो बोलीं-यह मेरी स्वर्ण की मूर्ति ले, उसकी पूजा करना, तू फिर सुखी हो जायेगा, जा तुझे मेरा आशीर्वाद है । तेरी स्त्री सुलक्षणा ने श्रद्धा से मेरा व्रत किया है, उसे मैंने पुत्र दिया है । धनंजय ने आँखें खोलीं तो खुद को काशी विश्वनाथ के मन्दिर में खड़ा पाया । वहां से फिर उसी प्रकार घर को आया ।

इधर सुलक्षणा के दिन चढ़े और महीने पूरे होते ही पुत्र का जन्म हुआ । गांव में आश्चर्य की लहर दौड़ गई । मानता आने लगा। इस प्रकार उसी गांव के निःसंतान सेठ के पुत्र होने पर उसने माता अन्नपूर्णा का मन्दिर बनवा दिया, उसमें माता जी धूमधाम से पधारीं, यज्ञ किया और धनंजय को मन्दिर के आचार्य का पद दे दिया ।

जीविका के लिए मन्दिर की दक्षिणा और रहने के लिए बड़ा सुन्दर सा भवन दिया। धनंजय स्त्री-पुत्र सहित वहां रहने लगा । माता जी की चढ़ावे में भरपूर आमदनी होने लगी। उधर नई बहू के पिता के घर डाका पड़ा, सब लुट गया, वे भीख मांगकर पेट भरने लगे ।

सुलक्षणा ने यह सुना तो उन्हे बुला भेजा, अलग घर में रख लिया और उनके अन्न-वस्त्र का प्रबंध कर दिया । धनंजय, सुलक्षणा और उसका पुत्र माता जी की कृपा से आनन्द से रहने लगे। माता जी ने जैसे इनके भण्डार भरे वैसे सबके भण्डार भरें।

 

Annapurna Katha : मान्यतानुसार एक अन्य कथा

 

Annapurna Katha

 

कथा के अनुसार भगवान शंकर जब पार्वती के संग विवाह करने के पश्चात उनके पिता के क्षेत्र हिमालय के अन्तर्गत कैलाश पर रहने लगे तब देवी ने अपने मायके में निवास करने के स्थान पर अपने पति की नगरी काशी में रहने की इच्छा व्यक्त की तोमहादेव उन्हें साथ लेकर अपने सनातन गृह अविमुक्त-क्षेत्र अर्थात काशी आ गए।

काशी उस समय केवल एक महाश्मशान नगरी थी। माता पार्वती को सामान्य गृहस्थ स्त्री के समान ही अपने घर का मात्र श्मशान होना नहीं भाया। इस पर यह व्यवस्था बनी कि सत्य, त्रेता और द्वापर इन तीनों युगों में काशी श्मशान रहे और कलियुग में यह अन्नपूर्णा की पुरी होकर बसे। इसी कारण वर्तमान समय में अन्नपूर्णा का मंदिर काशी का प्रधान देवीपीठ हुआ।

स्कन्दपुराण के काशीखण्ड में लिखा है कि भगवान विश्वेश्वर गृहस्थ हैं और भवानी उनकी गृहस्थी चलाती हैं। अतः काशीवासियों के योग-क्षेम का भार इन्हीं पर है। ब्रह्मवैवर्तपुराण के काशी-रहस्य के अनुसार भवानी ही अन्नपूर्णा हैं परंतु जनमानस आज भी अन्नपूर्णा को ही भवानी मानता है।

श्रद्धालुओं की ऐसी धारणा है कि मां अन्नपूर्णा की नगरी काशी में कभी कोई भूखा नहीं सोता। अन्नपूर्णा माता की उपासना से सारे पाप नष्ट हो जो हैं तथा ये अपने भक्त की सभी विपत्तियों से रक्षा करती हैं। इनके प्रसन्न हो जाने पर अनेक जन्मों से चली आ रही दरिद्रता का भी निवारण हो जाता है।

Maa Annapurna Stotram

 

ये अपने भक्त को सांसारिक सुख प्रदान करने के साथ मोक्ष भी प्रदान करती हैं। तभी तो ऋषि-मुनि इनकी स्तुति करते हुए कहते हैं –

शोषिणीसर्वपापानांचोचनी सकलापदाम्।
दारिद्रयमनीनित्यंसुख-मोक्ष-प्रदायिनी।।

काशी की पारम्परिक नवगौरी यात्रा में आठवीं भवानी गौरी तथा नवदुर्गा यात्रा में अष्टम महागौरी का दर्शन-पूजन अन्नपूर्णा मंदिर में ही होता है। अष्टसिद्धियों की स्वामिनी अन्नपूर्णाजी की चैत्र तथा आश्विन के नवरात्र में अष्टमी के दिन 108 परिक्रमा करने से अनन्त पुण्य फल प्राप्त होता है।

सामान्य दिनों में अन्नपूर्णा माता की आठ परिक्रमा करनी चाहिए। प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन अन्नपूर्णा देवी के निमित्त व्रत रखते हुए उनकी उपासना करने से घर में कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती है। भविष्यपुराण में मार्गशीर्ष मास के अन्नपूर्णा व्रत की कथा का विस्तार से वर्णन मिलता है। काशी के कुछ प्राचीन पंचांग मार्गशीर्ष की पूर्णिमा में अन्नपूर्णा जयंती का पर्व प्रकाशित करते हैं।

 

अन्नपूर्णा आरती – Annapurna Mata Ki Aarti

 

Maa Annapurna Katha

बारम्बार प्रणाम, मैया बारम्बार प्रणाम।

जो नहीं ध्यावे तुम्हें अम्बिके,कहां उसे विश्राम।
अन्नपूर्णा देवी नाम तिहारे,लेते होत सब काम॥

मैया बारम्बार प्रणाम।

प्रलय युगान्तर और जन्मान्तर,कालान्तर तक नाम।
सुर सुरों की रचना करती,कहाँ कृष्ण कहाँ राम॥

मैया बारम्बार प्रणाम।

चूमहि चरण चतुर चतुरानन,चारु चक्रधरश्याम।
चन्द्र चूड़ चन्द्रानन चाकर,शोभा लखहि ललाम॥

मैया बारम्बार प्रणाम।

देवी देव दयनीय दशा में,दया दया तव नाम।
त्राहि-त्राहि शरणागत वत्सल,शरण रूप तव धाम॥

मैया बारम्बार प्रणाम।

श्रीं, ह्रीं, श्रद्धा, श्रीं ऐं विद्या,श्रीं क्लीं कमल काम।
कान्तिभ्रांतिमयी कांति शांतिमयी वर देतु निष्काम॥

बारम्बार प्रणाम, मैया बारम्बार प्रणाम।

Annapurna Vrat Vidhi : अन्नपूर्णा माता की व्रत /पूजा कैसे करनी चाहिए?

 

Annapurna Katha

 

Annapurna Vrat अन्नपूर्णा व्रत करने के लिये इक्कीस दिन तक के लिए 21 गांठ का सूत लेना चाहिए । 21 दिन यदि न बनें तो एक दिन उपवास करें, यह भी न बनें तो केवलकथा सुनकर प्रसाद लें। निराहार रहकर कथा कहें, कथा सुनने वाला कोई न मिले तो पीपल के पत्तों को रख सुपारी या घृत कुमारी (गुवारपाठ) वृक्ष को सामने कर दीपक को साक्षी कर सूर्य, गाय, तुलसी या महादेव को बिना कथा सुनाए मुख में दाना न डालें। यदि भूल से कुछ पड़ जाए तो एक दिवस फिर उपवास करें। व्रत के दिन क्रोध न करें और झूठ न बोलें।

 

माता अन्नपूर्णा का स्वरूप

 

Annapurna Katha

 

अन्नपूर्णा देवी का रंग जवापुष्प के समान है। इनके तीन नेत्र हैं, मस्तक पर अर्धचन्द्र सुशोभित है भगवती अन्नपूर्णा अनुपम लावण्य से युक्त नवयुवती के सदृश हैं। बन्धूक के फूलों के मध्य दिव्य आभूषणों से विभूषित होकर ये प्रसन्न मुद्रा में स्वर्ण-सिंहासन पर विराजमान हैं।
देवी के बायें हाथ में अन्न से पूर्ण माणिक्य, रत्न से जड़ा पात्र तथा दाहिने हाथ में रत्नों से निर्मित कलछूल है। अन्नपूर्णा माता अन्न दान में सदा तल्लीन रहती हैं।

देवी भागवत में राजा बृहद्रथ की कथा से अन्नपूर्णा माता और उनकी पुरी काशी की महिमा उजागर होती है। भगवती अन्नपूर्णा पृथ्वी पर साक्षात कल्पलता हैं, क्योंकि ये अपने भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं। स्वयं भगवान शंकर इनकी प्रशंसा में कहते हैं – मैं अपने पांचों मुख से भी अन्नपूर्णा का पूरा गुणगान कर सकने में समर्थ नहीं हूं।

यद्यपि बाबा विश्वनाथ काशी में शरीर त्यागने वाले को तारक-मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं, तथापि इसकी याचना मां अन्नपूर्णा से ही की जाती है। गृहस्थ धन-धान्य की तो योगी ज्ञान-वैराग्य की भिक्षा इनसे मांगते हैं –

 

Maa Annapurna Stotram

 

अन्नपूर्णेसदा पूर्णेशड्करप्राणवल्लभे।
ज्ञान-वैराग्य-सिद्धव्यर्थम् भिक्षाम्देहिचपार्वति।।

मंत्र-महोदधि, तन्त्रसार, पुरश्चर्यार्णव आदि ग्रन्थों में अन्नपूर्णा देवी के अनेक मंत्रों का उल्लेख तथा उनकी साधना-विधि का वर्णन मिलता है। मंत्रशास्त्र के सुप्रसिद्ध ग्रंथ शादातिलक में अन्नपूर्णा के सत्रह अक्षरों वाले निम्न मंत्र का विधान वर्णित है –

ह्रीं नमः भगवतिमाहेश्वरिअन्नपूर्णेस्वाहा॥

मंत्र को सिद्ध करने के लिए इसका सोलह हजार बार जप करके उस संख्या का दशांश अर्थात 1600 बार घी से युक्त अन्न के द्वारा होम करना चाहिए। जप से पूर्व इस प्रकार ध्यान करना चाहिए –

रक्ताम्विचित्रवसनाम्नवचन्द्रचूडामन्नप्रदाननिरताम्स्तनभारनम्राम्।
नृत्यन्तमिन्दुशकलाभरणंविलोक्यहृष्टांभजेभग्वतीम्भवदुःखहन्त्रीम।।

अर्थात :- जिनका शरीर रक्त वर्ण का है, जो अनेक रंग के सूतों से बुना वस्त्र धारण करने वाली हैं, जिनके मस्तक पर बालचंद्र विराजमान हैं, जो तीनों लोकों के वासियों को सदैव अन्न प्रदान करने में व्यस्त रहती हैं, यौवन से सम्पन्न भगवान शंकर को अपने सामने नाचते देख प्रसन्न रहने वाली संसार के सब दुःखों को दूर करने वाली भगवती अन्नपूर्णा का मैं स्मरण करता हूं।

 

Annapurna Katha

 

प्रातःकाल नित्य 108 बार अन्नपूर्णा मंत्र का जप करने से घर में कभी अन्न धन का अभाव नहीं होता। शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन अन्नपूर्णा का पूजन-हवन करने से वे अति प्रसन्न होती हैं। करुणा मूर्ति ये देवी अपने भक्त को भोग के साथ मोक्ष प्रदान करती हैं।
सम्पूर्ण विश्व के अधिपति विश्वनाथ की अर्धांगिनी अन्नपूर्णा सबका बिना किसी भेद-भाव के भरण-पोषण करती हैं। जो भी भक्ति-भाव से इन वात्सल्यमयी माता का अपने घर में आवाहन करता है मां अन्नपूर्णा उसके यहां सूक्ष्म रूप से अवश्य वास करती हैं।

तो कैसी लगी आपको यह पोस्ट Maa Annapurna Katha  कृपया  हमें जरूर बतायें जिससे कि हम इसी प्रकार की और जानकारियों से आपको अवगत कराते रहें। धन्यवाद आपका दिन शुभ हो।