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Lord Shiva : जानें भगवान शिव और सर्पों का संबंध

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Lord Shiva : जानें भगवान शिव और सर्पों का संबंध|

नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट lord shiva में आपका हार्दिक अभिनंदन है। दोस्तों, भगवान शिव सभी के आराध्य देव हैं ये जितने सरल हैं उतने ही रहस्यमयी भी। हमारे देश भारत में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक स्थित 12 ज्योतिर्लिंग इनके हमारे जीवन में महत्व को दर्शाते हैं।

दोस्तों, शिव शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है शि तथा व। शि का अर्थ है मंगल और व का अर्थ है दाता, इस प्रकार जो मंगलदाता हैं वही शिव हैं। श आनंद को कहते हैं और कर से करने वाला अतः जो आनंद करता हैं वही शंकर हैं। शिव तथा शंकर दोनों का अर्थ है संसार का हर तरह से कल्याण तथा मंगल करने वाले।

आज की पोस्ट में हम शिवजी उनके आभूषण सर्पों के सम्बन्ध को जानेंगे जहां अन्य देवता सोने तथा अन्य मूल्यवान रत्नजड़ित आभूषण से अपना श्रृंगार करते हैं वहीं बाबा भोलेनाथ सांपों को ही अपने आभूषण के रूप में प्रयोग करते हैं। क्या है इसका कारण, आईये इस पोस्ट के माध्यम से जानते हैं –

Lord Shiva : शिव और सर्प 

संसार में जो कुछ भी अनाकर्षक है व असुन्दर है और जिसे संसार ने ठुकराया उसे भगवान शिव ने अपनाया। जैसे कालकूट विष, आक-धतूरा, श्मशान, राख तथा सर्प। सर्पों की परोपकारता से भगवान शिव ने उन्हें अपने गले का हार बना लिया।

Lord Shiva

दोस्तों, महादेव ने जिस सर्प को अपने गले में धारण किया हुआ है वह सर्पों के राजा वासुकी हैं। कहते हैं कि ये शिवजी के कंठ में विराजमान विष की अग्नि का निरंतर पान करके उन्हें शीतलता प्रदान करते रहते हैं। भगवान शिव सांपों का मुकुट, सर्पों के कंकण तथा बाजूबंद, कमर तथा गले में भी सर्पों को धारण करते हैं यहां तक कि शिवलिंग पर ही जलहरी में सर्प की आकृति बनी होती है।

क्या सर्प  हैं संसार के लिए कल्याणकारी ?

सर्प तथा नाग देवकोटि के प्राणी हैं। उनकी सृष्टि भी उन्हीं दयामय परमात्मा ने की है जिन्होंने मनुष्यों को बनाया है। सर्पों की सृष्टि हमें हानि पहुंचाने के लिए नहीं है। सर्प वायुपान करते हैं और पर्यावरण में व्याप्त विषाक्त गैसों से संसार की रक्षा करते हैं। lord shiva

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साथ ही पर्यावरण को संतुलित रखते हैं यदि विधाता ने सर्पों को विषैली गैसों का पान करने वाला नहीं बनाया होता तो यह पृथ्वी अत्यंत विषाक्त हो गई होती। इसके अतिरिक्त हमारी कृषि-सम्पदा की कृषिनाशक जीवों से रक्षा नाग तथा सर्प करते हैं। इस प्रकार पर्यावरण की रक्षा तथा वन-सम्पदा की रक्षा में इनका महत्वपूर्ण योगदान है।

आईये, अब जानते हैं भगवान शिव का सर्पों को धारण करने का कारण –

दयालुता की पराकाष्ठा हैं शिव

देवता तथा असुरों के द्वारा समुद्र मंथन के समय सर्वप्रथम हलाहल विष निकला जिससे समस्त संसार में हाहाकार मचने लगा तब भगवान विष्णु शिवजी से बोले – आप देवाधिदेव हैं तथा हम सभी के अग्रणी महादेव हैं कृपया इस भयानक कालकूट से जगत की रक्षा कीजिए। हे शिव ! काल आपके अधीन है, आप काल से मुक्त चिदानंद हैं, आपका मंत्र ही मृत्युंजय है इस संकट से हमारी रक्षा कीजिए।

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भगवान शिव ने विचार किया यदि सृष्टि में मानव समुदाय में कहीं भी यह विष रहा तो प्राणी अशान्त होकर जलने लगेंगे। इसे सुरक्षित रखने का ऐसा स्थान हो जिससे यह किसी को हानि न पहुंचा सके। यदि हलाहल पेट में चला गया तो मृत्यु निश्चित है तथा यदि बाहर रह गया तो सारी सृष्टि भस्म हो जाएगी, इसलिए सबसे सुरक्षित स्थान स्वयं मेरा ही कण्ठ प्रदेश है।
ऐसा विचार कर राम-नाम का आश्रय लेकर महाकाल ने विष को अपनी हथेली पर रखकर आचमन कर लिया।

मुंह में विष के प्रवेश करते ही भगवान शिव को अपने उदरस्थ चराचर विश्व का ध्यान आया तो उन्होंने विष को गले में ही रोक लिया जिससे कण्ठ प्रदेश नीला हो गया। इस प्रकार संसार के कल्याण हेतु भगवान शिव ने विषपान कर लिया।

संसार के कल्याण हेतु भगवान शिव विष पीकर नीलकण्ठ हो गए तथा सर्प और नाग वातावरण की विषैली गैसें पीकर विषैले हो गए। सर्पों के संसार पर इसी उपकार को देखकर महादेव ने उन्हें अपना आभूषण बना लिया तथा व्यालप्रिय व भुजंगभूषण कहलाये।

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Mahadev : मृत्युंजय महादेव

भगवान शिव मृत्युंजय कहलाते हैं। मृत्युंजय होने के कारण मृत्यु की भी मृत्यु, काल के भी काल तथा यम के भी यम हैं। जिस वस्तु से जगत की मृत्यु होती है, उसे वह धारण कर लेते हैं। नाग व सर्पों को काल तथा मृत्युरूप माना जाता है, महाकाल होने से भगवान शिव ने उन्हें अपना आभूषण बना लिया। इस प्रकार कालकूट विष, नाग का यज्ञोपवीत तथा गले में सर्पमाला धारण कर भगवान शिव ने अपनी मृत्युंजयता प्रकट की है।

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नागेन्द्रहाराय शिव

भगवान शिव के कण्ठ में विष है तथा सर्प वायु रूप में विषपान करते हैं। संभव है कि भगवान शिव के कण्ठ की विषाग्नि की पीड़ा को नाग वायु रूप में पीकर कम कर देते हैं इसी कारण नाग के हार को धारण करने वाले शिव नागेन्द्रहाराय कहलाये।

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सभी के आराध्य हैं आशुतोष

देवों के देव महादेव ही ऐसे हैं जिन्होंने संसार में जो कुछ भी अनाकर्षक तथा असुन्दर है और जिसे सांर ने ठुकराया उसे इन्होंने अपनाया। जैसे कालकूट विष, धतूरा, श्मशान, राख, भूत-प्रेत, डाकिनी-शाकिनी आदि। तामस से तामस जीव भी उनकी सेवा में तत्पर रहते हैं यही उनकी सबके प्रति स्वीकार्यता को सिद्ध करता है। इसीलिए शिव जी मनुष्यों, पशुओं, पक्षियों, देव-दानव आदि के संयुक्त उपास्य देव कहे जाते हैं।

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एकांत प्रिय हैं शिव जी

संसार के कोलाहल से दूर रहकर मृदंग, शृंग, घण्टा, डमरू के निनाद में मग्न रहना यानि अपनी आत्मा, ब्रह्म में स्थित करके रहना ही भगवान शंकर की समाधि है। उनके कण्ठ से लिपटा नाग चिर समाधि-भाव का प्रतीक है। समाधि भाव के माध्यम से शिवजी प्राणी मात्र को स्वयं को खोजने का संदेश देते हैं।

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भूतपति हैं शिव


भगवान शिव भूतपति कहलाते हैं अर्थात सांर के समस्त प्राणियों के स्वामी चाहे वह अच्छा हो अथवा बुरा। जिस प्रकार सांप की दो जीभ होती हैं उसी प्रकार निन्दा या चुगली करने वालों की भी दो जीभ होती हैं। किन्तु जिस प्रकार एक पिता कपूत से भी प्रेम करता है उसी प्रकार शिव जी सर्प को भी गले का हार बना लेते हैं।

॥ इति ॥

दोस्तों, आशा करते हैं कि आपको lord shiva पोस्ट पसंद आई होगी। कृपया पोस्ट को शेयर करें साथ ही हमारे ब्लॉग से जुड़े रहें। अपना अमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद। आपका दिन शुभ व मंगलमय हो।


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