Chhath Puja 2023 : जानें मंत्र व पूजन विधि
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केलवा के पात पर उगेलन सुरुज मल झांके झुके
हो करेलु छठ बरतिया से झांके झुके
हो करेलु छठ बरतिया से झांके झुके……
नमस्कार दोस्तों, हमारे ब्लॉग पोस्ट में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, छठ पूजा भारत में मनाये जाने वाले मुख्य तथा विशेष पर्वों में से एक है। आम तौर पर हमारे यहां उगते हुये सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है लेकिन छठ पर्व एक ऐसा पर्व है जिसमें उगते सूर्य के साथ-साथ अस्त होते सूर्य को भी सम्मान सहित अर्घ्य दिया जाता है।
विशेषकर बिहार राज्य में इस पर्व की बहुत अधिक मान्यता है। अब तो देश ही नहीं अपितु विदेश में भी श्रद्धालु इस पर्व को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। इस पोस्ट में हम इसी पर्व के संबंध में बात करेंगे तथा इस पर्व के इतिहास तथा मान्यताओं आदि पर प्रकाश डालेंगे। तो आईये, पोस्ट शुरू करते हैं।
Chhath Puja 2023 :छठ पर्व में सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा
कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली मनाने के तुरंत बाद मनाए जाने वाले इस चार दिवसीय व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है। इसी कारण इस व्रत का नाम छठ व्रत हो गया। छठ पर्व षष्ठी तिथि का अपभ्रंश है।
सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। इस पर्व को वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है।
छठ पूजा में सूर्य देव की पूजा की जाती है और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देने वाले देवता हैं, जो पृथ्वी पर सभी प्राणियों के जीवन का आधार भी हैं। इन्हीं की कृपा से फसल पकती है। सूर्य देव के साथ-साथ छठ पर छठी मैया की पूजा का भी विधान है।
सूर्य और छठी मैया का संबंध भाई-बहिन का है। मूल प्रकृति के छठे अंश से प्रकट होने के कारण इनका नाम षष्ठी पड़ा। वह कार्तिकेय की पत्नी भी हैं। षष्ठी देवी देवताओं की देवसेना भी कही जाती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने की थी।
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वैज्ञानिक तथा पौराणिक महत्व
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो षष्ठी के दिन विशेष खगोलिय परिवर्तन होता है। तब सूर्य की पराबैंगनी किरणें असामान्य रूप से एकत्र होती हैं और इनके कुप्रभाव से बचने के लिए सूर्य की ऊषा और प्रत्यूषा के रहते जल में खड़े रहकर छठ व्रत किया जाता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार छठी मैया या षष्ठी माता संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु प्रदान करती हैं। शास्त्रों में षष्ठी देवी को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री भी कहा गया है। पुराणों में इन्हें मां कात्यायनी भी कहा गया है जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि को की जाती है। षष्ठी देवी को ही बिहार-झारखंड में स्थानीय भाषा में छठ मैया कहा जाता है।
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छठ पर्व की परंपरा
यह पर्व चार दिनों तक चलता है। भैया दूज के तीसरे दिन से यह आरंभ होता है। पहले दिन सेंधा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है। अगले दिन से उपवास आरंभ होता है। इस दिन रात में खीर बनती है तथा व्रतधारी रात में यह प्रसाद लेते हैं।
तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं। अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते है। इस पूजा में पवित्रता का ध्यान रखा जाता है लहसुन, प्याज का सेवन वर्जित होता है। जिन घरों में यह पूजा होती है, वहां भक्तिगीत गाए जाते हैं।
आजकल कुछ नई रीतियां भी आरंभ हो गई हैं, जैसे पंडाल में सूर्य देवता की मूर्ति की स्थापना करना आदि। पटाखे भी जलाए जाते हैं, कहीं-कहीं पर तो ऑर्केस्ट्रा का भी आयोजन किया जाने लगा है परंतु साथ ही साथ दूध, फल, उदबत्ती भी बांटी जाती है। पूजा की तैयारी के लिए लोग मिलकर पूरे रास्ते की सफाई करते हैं।
छठ पूजा वर्ष 2023
वर्ष 2023 में छठ पूजा का कार्यक्रम इस प्रकार है-
नहाय खाय – 17 नवंबर 2023
खरना – 18 नवंबर 2023
अस्तगामी सूर्य को अर्घ्य – 19 नवंबर 2023
उदयीमान सूर्य को अर्घ्य – 20 नवंबर 2023
जानें छठ व्रत के बारे में?
छठ उत्सव के केंद्र में छठ का व्रत है जो एक कठिन तपस्या की भांति होता है। यह प्रायः महिलाओं द्वारा किया जाता है किंतु कुछ पुरूष भी इस व्रत को धारण करते हैं। व्रत रखने वाली महिला को परवैतिन भी कहा जाता है। चार दिनों के इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना होता है। भोजन के साथ ही सुखद शैय्या का भी त्याग करना होता है। पर्व के लिए बनाए गए कमरे में व्रती फर्श पर एक कंबल या चादर के सहारे ही रात बिताई जाती है।
इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नए कपड़े पहनते हैं। पर व्रती ऐसे कपड़े पहनते हैं, जिनमें किसी प्रकार की सिलाई नहीं की होती है। महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ करते हैं। शुरू करने के बाद छठ पर्व को सालों साल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की किसी विवाहिता महिला को इसके लिए तैयार न कर लिया जाए। घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता।
ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। पुत्र की अभिलाषा रखने वाली और पुत्र की कुशलता के लिए सामान्य तौर पर महिलाएं यह व्रत धारण करती हैं साथ ही पुरुष भी यह व्रत पूरी निष्ठा के साथ रखते हैं।
छठ पूजा अर्घ्य मंत्र
ऊँ सूर्य दवें नमस्ते स्तु गृहाणं करूणा करं।
अर्घ्य च फलं संयुक्त गन्ध माल्याक्षतै युतम ॥
छठ पूजा की विधि
छठ पूजा से पहले निम्न सामग्री जुटा लें और फिर सूर्य देव को विधि विधान से अर्घ्य दें।
1. बांस की 3 बड़ी टोकरी, बांस या पीतल के बने 3 सूप, थाली, दूध और ग्लास।
2. चावल, लाल सिंदूर, दीपक, नारियल, हल्दी, गन्ना, सुथनी, सब्जी और शकरकंदी।
3. नाशपाती, बड़ा नींबू, शहद, पान, साबुत सुपारी, कैराव, कपूर, चंदन और मिठाई।
4. प्रसाद के रूप में ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पूड़ी, सूजी का हलवा, चावन के बने लड्डू।
सूर्य को अर्घ्य देने की विधि
बांस की टोकरी में उपरोक्त सामग्री रख लें। सूर्य को अर्घ्य देते समय सारा प्रसाद सूप में रखें और सूप में ही एक दीपक जलाकर रख लें। फिर नदी में उतरकर सूर्य देव को अर्घ्य दें।
पहला दिन नहाय खाय
पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘‘नहाय-खाय” के रूप में मनाया जाता है। इस दिन से छठ पूजा का पर्व प्रारंभ हो जाता है। सबसे पहले घर की साफ-सफाई कर उसे पवित्र कर लिया जाता है। इसके पश्चात छठव्रती स्नान करके पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। घर के सभी सदस्य व्रती के भोजनोपरांत ही भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू और चावल ग्रहण किया जाता है। यह दाल चने की होती है।
दूसरे दिन लोहंडा और खरना।
दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल की पंचमी को व्रतधारी दिन भर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे ‘‘खरना” कहा जाता है। खरना प्रसाद लेने के लिए आसपास के सभी लोगों को आमंत्रित किया जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है।
इन सभी में नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता। इस अवधि में पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। दूसरे दिन के अंत में खीर और रोटी के प्रसाद को व्रत धारण करने वाले से लेकर परिवार के सभी सदस्यों में बांटा जाता है तथा रात में चन्द्रमा को जल से अर्घ्य भी दिया जाता है।
तीसरे दिन संध्या अर्घ्य।
तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, के अलावा चावल के लड्डू, जिसे लडुआ भी कहा जाता है, बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया सांचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है।
शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रति के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं।
सभी छठव्रती एक निर्धारित तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं।
शाम को सूर्यास्त से पहले सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की पूजा प्रसाद भरे सूप से की जाती है। यह सूर्य देवता को छठ पूजा का पहला अर्घ्य होता है। इस दौरान कुछ घंटे के लिए मेले जैसा दृश्य बन जाता है।
चौथा दिन ऊषा अर्घ्य
पर्व के चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान यानी उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। व्रती वहीं पुनः इकट्ठा होते हैं जहां पर उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था। फिर से पिछले शाम दी गई अर्घ्य की प्रक्रिया को दोहराया जाता है। अंत में व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं। यह छठ पर्व का अंतिम दिन होता है।
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जानें छठ पूजा का पौराणिक महत्व
छठ पूजा की परंपरा तथा उसके महत्व को दर्शाने वाली अनेक पौराणिक कथायें प्रचलित हैं। आइये, उनके बारे में जानते हैं।
Chhath puja 2023
रामायण काल में मान्यता
इस मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम तथा माता सीता ने उपवास किया तथा सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।
महाभारत काल में मान्यता
कहा जाता है कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा प्रारंभ की थी। महादानी कर्ण सूर्य भगवान के परम भक्त थे। कहते हैं कि वे प्रतिदिन कई घंटे कमर तक पानी में खड़े होकर भगवान भास्कर की स्तुति किया करते व अर्घ्य दिया करते थे। सूर्य देव ने प्रसन्न होकर उन्हें कवच तथा कुण्डल प्रदान किये थे जो अभेद्य थे इन्हें पाकर कर्ण एक महान योद्धा बने थे। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है।
पांडवों की पत्नी द्रौपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख मिलता है। द्रौपदी अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना तथा लंबी आयु के लिए नियमित रूप से सूर्य की आराधना करती थीं।
षष्ठी व्रत से हुई पुत्र रत्न की प्राप्ति
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार किसी देश में प्रियवद नाम के एक राजा रहा करते थे उनका राज्य खुशहाल तथा धन-धान्य से संपन्न था । राजा को एक मात्र दुःख यह था कि उनकी कोई संतान नहीं थी। तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर प्रसाद में दी इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र तो हुआ किंतु वह मृत पैदा हुआ।
प्रियवद मृत पुत्र को लेकर दुःखी मन से श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने की तैयारी करने लगे। तभी भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं।
“हे ! राजन तुम मेरा पूजन करो तथा अन्य लोगों को भी इस हेतु प्रेरित करो।” देवी के कहे अनुसार राजा ने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को व्रत धारण किया तथा उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
छठ गीत
विश्वप्रसिद्ध लोकपर्व छठ के विभिन्न अवसरों पर जैसे प्रसाद बनाते समय, खरना के समय, अर्घ्य देने जाते समय, अर्घ्य दान के समय तथा घाट से घर वापस लौटते समय अनेकों सुमधुर तथा भाक्तिपूर्ण लोकगीत गाये जाते हैं। आइए, हम भी जानें उन गीतों के बारे में।
केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मेड़राय
काँच ही बाँस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए
सेविले चरन तोहार हे छठी मइया, महिमा तोहर अपार।
उगु न सुरुज देव भइलो अरग के बेर।
निंदिया के मातल सुरुज अँखियों न खोले हे।
चार कोना के पोखरवा
हम करेली छठ बरतिया से उनखे लागी।
भावार्थ – इस गीत में एक ऐसे तोते के बारे में बताया है जो केले के ऐसे ही एक गुच्छे के पास मंडरा रहा है। तोते को डराया जाता है कि अगर तुम इस पर चोंच मारोगे तो तुम्हारी शिकायत भगवान सूर्य से कर दी जाएगी तो तुम्हें क्षमा नहीं करेंगे। पर फिर भी तोता केले को जूठा कर देता है और सूर्य के कोप का भागी बनता है।
पर अब उसकी भार्या अर्थात पत्नी सुगनी क्या करे बेचारी ? कैसे सहे इस वियोग को। अब तो ना देव या सूर्य कोई उसकी सहायता कर सकते हैं आखिर पूजा की पवित्रता जो नष्ट कर दी उसने।
केरवा जे फरेले घवद से ओह पर सुगा मेड़राय
उ जे मरबो रे सुगवा धनुक से सुगा गिरे मुरझाय
उ जे सुगनी जे रोए ले वियोग से आदित होइ ना सहाय देव होइ ना सहाय
काँच ही बाँस के बहंगिया, बहँगी लचकति जाय…बहंगी लचकति जाय….बात जे पुछेलें बटोहिया बहंगी केकरा के जाय ? बहंगी केकरा के जाय? तू त आन्हर हउवे रे बटोहिया, बहंगी छी माई के जाय…बहँगी छठी माई के जाय….कांच ही बाँस के बहंगिया, बहँगी लचकति जाय….बहँगी लचकति जाय……केरवा जे फरेला घवध से ओह पर सुगा मेंड़राय…ओह पर सुगा मेंड़राय….खबरि जनइबो अदित से सुगा देलें जूठियाय सुगा देलें जूठियाय….ऊजे मरबो रे सुगवा धनुष से सुगा गिरे मुरझाय….सुगा गिरे मुरझाय…केरवा जे फरेला घवध से ओह पर सुगा मेंड़राय…….ओह पर सुगा मेंड़राय….पटना के घाट पर नरियर नरियर किनबे जरूर……नरियर किनबो जरूर….हाजीपुर से केरवा मँगाई के अरघ देबे जरूर…अरघ देबे जरूर….आदित मनायेब छठ परबिया बर मँगबे जरूर…..बर मंगबे जरूरपटना के घाट पर नरियर नरियर किनबे जरूर….नरियर किनबो जरूर……पाँच पुतर अन धन लछमी, लछमी मँगबे जरूर…. लछमी मँगबे जरूर….पान सुपारी कचवनिया छठ पूजबे जरूर……छठ पूजबे जरूर…….हियरा के करबो रे कंचन वर मँगबे जरूर…….वर मँगबे जरूर………. पाँच पुतर अन धन लछमी, लछमी मँगबे जरूर…. लछमी मँगबे जरूर….पुआ पकवान कचवनिया सूपवा भरबे जरूर….सूपवा भरबे जरूर….फर फूल भरबे दउरिया सेनूरा टिकबे जरूर….सेनूरा टिकबे जरूरकृदहवें जे बाड़ी छठि मईया आदित रिझबे जरूर…..आदित रिझबे जरूर…. काँच ही बाँस के बहंगिया, बहँगी लचकति जाय…बहंगी लचकति जाय….बात जे पुछेलें बटोहिया बहँगी केकरा के जाय ? बहँगी केकरा के जाय? तू त आन्हर हउवे रे बटोहिया, बहँगी छठी माइे के जाय…..बहँगी छठी माई के जाय…. बहँगी छठी माई के जाय….
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