Gorakhnath Chalisa in Hindi : श्री गोरखनाथ चालीसा|
नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Gorakhnath Chalisa में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, हमारा देश भारत विविधताओं से भरा हुआ है। भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां भिन्न-भिन्न धर्मों तथा सम्प्रदायों के अनुयायी निवास करते हैं, दूसरे शब्दों में कहें तो यह देश अध्यात्म की दृष्टि से अत्यधिक धनवान है।
भारत में पाये जाने वाले नवनाथ सम्प्रदायों में से नाथ सम्प्रदाय एक विशेष महत्व रखता है। इसी सम्प्रदाय में हुये प्रसिद्ध संत श्री मत्स्येन्द्रनाथ जी के शिष्य गोरखनाथ जी का नाम योगियों में अत्यधिक प्रसिद्ध है। गुरु श्री गोरखनाथ जी के शिष्यों की भारतीय उपमहाद्वीप में अच्छी खासी संख्या है।
उत्तर प्रदेश राज्य के जिले गोरखपुर में इनका विश्वप्रसिद्ध मंदिर स्थित है। आज की पोस्ट में हम श्री गोरखनाथ जी की चालीसा का अध्ययन करेंगे। तो आईये, पोस्ट शुरू करते हैं —
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Gorakhnath Chalisa in Hindi : श्री गोरखनाथ चालीसा
॥ दोहा ॥
गणपति गिरजा पुत्र को सुमिरु बारम्बार
हाथ जोड़ बिनती करू शारद नाम आधार॥
॥ चोपाई ॥
जय जय जय गोरख अविनाशी
कृपा करो गुरुदेव प्रकाशी ॥ 1 ॥
जय जय जय गोरख गुण ज्ञानी
इच्छा रूप योगी वरदानी ॥ 2 ॥
अलख निरंजन तुम्हरो नामा
सदा करो भक्त्तन हित कामा ॥ 3 ॥
नाम तुम्हारो जो कोई गावे
जन्म जन्म के दुःख मिट जावे ॥ 4 ॥
जो कोई गोरख नाम सुनावे
भूत पिसाच निकट नहीं आवे ॥ 5 ॥
ज्ञान तुम्हारा योग से पावे
रूप तुम्हारा लख्या न जावे ॥ 6 ॥
निराकार तुम हो निर्वाणी
महिमा तुम्हारी वेद न जानी ॥ 7 ॥
घट – घट के तुम अंतर्यामी
सिद्ध चोरासी करे परनामी ॥ 8 ॥
भस्म अंग गल नांद विराजे
जटा शीश अति सुन्दर साजे ॥ 9 ॥
तुम बिन देव और नहीं दूजा
देव मुनिजन करते पूजा ॥ 10 ॥
Gorakhnath Chalisa
चिदानंद संतन हितकारी
मंगल करण अमंगल हारी ॥ 11 ॥
पूरण ब्रह्मा सकल घट वासी
गोरख नाथ सकल प्रकाशी॥ 12 ॥
गोरख गोरख जो कोई धियावे
ब्रह्म रूप के दर्शन पावे॥ 13 ॥
शंकर रूप धर डमरू बाजे
कानन कुंडल सुन्दर साजे ॥ 14 ॥
नित्यानंद है नाम तुम्हारा
असुर मार भक्तन रखवारा ॥ 15 ॥
अति विशाल है रूप तुम्हारा
सुर नर मुनि जन पावे न पारा ॥ 16 ॥
दीनबंधु दीनन हितकारी
हरो पाप हम शरण तुम्हारी॥ 17 ॥
योग युक्ति में हो प्रकाशा
सदा करो संतान तन बासा॥ 18 ॥
प्रात : काल ले नाम तुम्हारा
सिद्धि बढे अरु योग प्रचारा॥ 19 ॥
हठ हठ हठ गोरछ हठीले
मर मर वैरी के कीले॥ 20 ॥
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Gorakhnath Chalisa
चल चल चल गोरख विकराला
दुश्मन मार करो बेहाला॥ 21 ॥
जय जय जय गोरख अविनाशी
अपने जन की हरो चोरासी ॥ 22 ॥
अचल अगम है गोरख योगी
सिद्धि दियो हरो रस भोगी ॥ 23 ॥
काटो मार्ग यम को तुम आई
तुम बिन मेरा कोन सहाई॥ 24 ॥
अजर अमर है तुम्हारी देहा
सनकादिक सब जोरहि नेहा ॥ 25 ॥
कोटिन रवि सम तेज तुम्हारा
है प्रसिद्ध जगत उजियारा ॥ 26 ॥
योगी लखे तुम्हारी माया
पार ब्रह्म से ध्यान लगाया ॥ 27 ॥
ध्यान तुम्हारा जो कोई लावे
अष्ट सिद्धि नव निधि पा जावे ॥ 28 ॥
शिव गोरख है नाम तुम्हारा
पापी दुष्ट अधम को तारा ॥ 29 ॥
अगम अगोचर निर्भय नाथा
सदा रहो संतन के साथा॥ 30 ॥
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शंकर रूप अवतार तुम्हारा
गोपीचंद भरथरी को तारा ॥ 31 ॥
सुन लीजो प्रभु अरज हमारी
कृपासिन्धु योगी ब्रहमचारी ॥ 32 ॥
पूर्ण आस दास की कीजे
सेवक जान ज्ञान को दीजे ॥ 33 ॥
पतित पावन अधम अधारा
तिनके हेतु तुम लेत अवतारा ॥ 34 ॥
अखल निरंजन नाम तुम्हारा
अगम पंथ जिन योग प्रचारा ॥ 35 ॥
जय जय जय गोरख भगवाना
सदा करो भक्त्तन कल्याना॥ 36 ॥
Gorakhnath Chalisa
जय जय जय गोरख अविनाशी
सेवा करे सिद्ध चौरासी ॥ 37 ॥
जो यह पढ़े गोरख चालीसा
होए सिद्ध साक्षी जगदीशा॥ 38 ॥
हाथ जोड़कर ध्यान लगावे
और श्रद्धा से भेंट चढ़ावे ॥ 39 ॥
बारह पाठ पढ़े नित जोई
मनोकामना पूर्ण होई ॥ 40 ॥
॥ दोहा ॥
सुने सुनावे प्रेम वश, पूजे अपने नाथ
मन इच्छा सब कामना, पुरे गोरखनाथ ॥
अगम अगोचर नाथ तुम, पारब्रह्म अवतार
कानन कुण्डल सिर जटा, अंग विभूति अपार ॥
सिद्ध पुरुष योगेश्वरो, दो मुझको उपदेश
हर समय सेवा करूँ, सुबह शाम आदेश ॥
गोरखनाथ जी की आरती
जय गोरख देवा,
जय गोरख देवा ।
कर कृपा मम ऊपर,
नित्य करूँ सेवा ॥ जय गोरख देवा
शीश जटा अति सुंदर,
भाल चन्द्र सोहे ।
कानन कुंडल झलकत,
निरखत मन मोहे ॥ जय गोरख देवा
गल सेली विच नाग सुशोभित,
तन भस्मी धारी ।
आदि पुरुष योगीश्वर,
संतन हितकारी ॥ जय गोरख देवा
नाथ नरंजन आप ही,
घट घट के वासी ।
करत कृपा निज जन पर,
मेटत यम फांसी ॥ जय गोरख देवा
रिद्धी सिद्धि चरणों में लोटत,
माया है दासी ।
आप अलख अवधूता,
उतराखंड वासी ॥ जय गोरख देवा
अगम अगोचर अकथ,
अरुपी सबसे हो न्यारे ।
योगीजन के आप ही,
सदा हो रखवारे ॥ जय गोरख देवा
ब्रह्मा विष्णु तुम्हारा,
निशदिन गुण गावे ।
नारद शारद सुर मिल,
चरनन चित लावे ॥ जय गोरख देवा
चारो युग में आप विराजत,
योगी तन धारी ।
सतयुग द्वापर त्रेता,
कलयुग भय टारी ॥ जय गोरख देवा
गुरु गोरख नाथ की आरती,
निशदिन जो गावे ।
विनवित बाल त्रिलोकी,
मुक्ति फल पावे ॥ जय गोरख देवा
॥ इति ॥
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