Gau Mata : पुराणों में गौ माता की महिमा
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नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Gau Mata में आपका स्वागत है। दोस्तों, भारतवर्ष में सदा से ही गाय का महत्व रहा है। हमारे देश में प्राचीन काल से ही गौपालन के साथ-साथ गौ पूजन की प्रथा चली आ रही है क्योंकि गाय में सभी देवी-देवताओं का वास माना गया है। ।
कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के पिता नंदबाबा के यहां एक लाख गाय पला करती थीं। आज की पोस्ट में हम गौमाता की महिमा का वर्णन करेंगे तथा यह भी जानेंगे कि हमारे प्राचीन शास्त्रों तथा वेद-पुराणों में गाय को कि प्रकार महिमामण्डित किया गया है तो चलिये, पोस्ट की शुरूआत करते हैं।
Gau Mata : गौ माता में होता है देवताओं का वास
गायों के निवास करने से वह स्थान पवित्र हो जाता है, वहां पर कोई भी दोष नहीं रहता इतना ही नहीं गौओं को मात्र स्पर्श करने से ही कई रोगों का निवारण हो जाता है। गौमाता के मस्तक और गर्दन के मध्य में मां गंगा का निवास होता है तथा इनके पूरे शरीर में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास माना गया है।
Jai Gau Mata : क्या कहते हैं हमारे पुराण ?
हमारे पुराणों में गौमाता की महिमा का वर्णन निम्न प्रकार से किया गया है –
1. गौमाता के शरीर में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास होता है यही कारण है कि गौमाता की पूजा करने से सभी देवताओं की पूजा का पुण्य सहज ही प्राप्त हो जाता है।
2. देवता, ब्राह्मण, गौ, साधु तथा साध्वी स्त्रियों के बल पर ही यह जगत टिका हुआ है इसीलिये ये सभी पूजनीय हैं। शास्त्रों के अनुसार गौमाता जिस स्थान पर जल पीती हैं वह स्थान तीर्थ के तुल्य होता है।
3. जिस घर-आंगन या फिर किसी धार्मिक अनुष्ठान के स्थान को गाय के गोबर से लीपा जाता है वहां स्वयं देवता वास करते हैं। इसके पीछे वैज्ञानिक तर्क भी है कि उस स्थान की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है।
4. वृषभ अर्थात बैल को जगतपिता तुल्य समझना चाहिये तथा गाय को माता के समान समझना चाहिये क्योंकि उनकी पूजा करने से सम्पूर्ण पितरों और देवताओं की पूजा हो जाती है।
5. मनुष्य निरंतर एक वर्ष तक स्वयं भोजन करने से पूर्व प्रतिदिन गाय को घास खिलाता है उसके घर में कभी दरिद्रता का वास नहीं होता तथा धन-धान्य के अक्षय भण्डार भरे रहते हैं।
6. जिस पोखर/तालाब तथा किसी जलराशि को गौमाता लांघते हुये पार करती हैं वह गंगा, यमुना, सरस्वती तथा सिंधू आदि नदियों के समान ही पवित्र हो जाता है।
7. गोधुलि वेला अर्थात जिस समय चरवाहे गायों को जंगल से चराकर घर वापस लौटते हैं उस समय गाय के खुरों से उत्पन्न हुई धूलि अर्थात धूल यदि किसी पर पड़ जाये तो उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं साथ-ही-साथ यह दरिद्रतारूपी अलक्ष्मी को नष्ट करने वाली भी है।
ग वै पश्याम्यहं नित्यं जाबः पश्यन्तु मां सदा।
गावोस्माकं वयं तासं यतो गावस्ततो वयम्।।
भावार्थ — मैं सदा गौओं का दर्शन करूं तथा गौएं सदैव मुझ पर अपनी कृपा दृष्टि रखें। गौएं हमारी हैं तथा हम गौओं के हैं। जिस स्थान पर गौओं का वास हो वहीं पर हम भी रहें, चूंकि गौए हैं इसीलिए हम भी हैं।
विष्णुधर्मोत्तर पुराण में हंस तथा ब्राह्मणों के मध्य गौ माता संवाद
इस पुराण के अनुसार भगवान हंस ब्राह्मणों को संबोधित करते हुये कहते हैं कि हे ब्राह्मणों ! गौओं के शरीर को सहलाने से अथवा उनके शरीर से कीटाणुओं को दूर करने से समस्त पापों का नाश होता है।
गौमाता को गो ग्रास अर्थात प्रतिदिन हरा चारा/घास खिलाने वाला व्यक्ति महान पुण्य का भागी होता है।
भगवान हंस ब्राह्मणों को संबोधित करते हुये आगे कहते हैं कि हे ब्राह्मणों ! जो मनुष्य गौओं को चराकर उन्हें जलाशय तक ले जाकर जल पिलाने का कार्य करता है उसे अनन्त युगों तक स्वर्ग में निवास मिलता है।
हे विद्वान ब्राह्मणों ! विपत्ति में फंसी हुई अथवा चोर तथा बाघ आदि के भय से व्याकुल गौ की रक्षा करने वाले मनुष्य को कई अश्वमेध यज्ञों के बराबर फल मिलता है। इसी प्रकार रुग्णावस्था अर्थात रोग से ग्रस्त दयनीय अवस्था में गौओं को औषधि प्रदान करने तथा उपचार करने से मनुष्य को सभी रोगों से मुक्ति मिल जाती है।
पद्मपुराण में श्री ब्रह्माजी तथा नारद मुनि संवाद
पद्मपुराण में श्री ब्रह्माजी नारद मुनि को गौ माता की महिमा बताते हुये कहते हैं सुनो भक्त शिरोमणी नारद ! जिसको गाय का दूध, दही तथा घी खाने का सौभाग्य प्राप्त नहीं होता ऐसे शरीर को व्यर्थ ही समझना चाहिये। अन्न पांच रात्रि तक, दूध सात रात्रि तक, दही बीस रात्रि तक तथा घी एक मास तक मानव देह में अपना प्रभाव रखता है।
वह व्यक्ति जो निरंतर एक माह तक बिना गव्य ( बिना गौ के दूध से उत्पन्न पदार्थ) का भोजन करता है उस मनुष्य के भोजन में प्रेतों को भाग मिलता है, इसलिये प्रत्येक युग में सब कार्यां के लिये एकमात्र गौ को शुभ तथा मंगल प्रदायक माना गया है। गौ माता ही धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष ये चारों पुरुषार्थ प्रदान करने वाली हैं।
भविष्य पुराण, उत्तर पर्व अध्याय 61 भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर संवाद
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे धर्मराज युधिष्ठिर ! गौमाता का माहत्मय मैं तुमसे कहता हूं, सुनो ! अत्यंत सुगन्धित गुग्गुल नामक पदार्थ गौमूत्र से ही उत्पन्न हुआ है जिसके दर्शन करने मात्र से ही जीव का कल्याण हो जाता है।
संसार के सभी मंगलप्रद एवं सुंदर से सुंदर आहार तथा मिष्ठान्न आदि गौ के दूध से ही बनाये जाते हैं। समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए अथवा जिस पंचामृत का निर्माण किया जाता है उसमें गाय के दूध का ही प्रयोग किया जाता है।
पुष्कर तथा परशुराम जी के मध्य संंवाद
राजनीति एवं धर्म शास्त्र के सम्यक ज्ञाता पुष्कर जी बोले हे भृगु नंदन परशुराम जी ! गायों को भोजन ग्रास देने से महान पुण्य की प्राप्ति होती है। अपने घर में या गौशाला में सामर्थयानुसार जितनी गौओं को रख सके रखें, पर अत्यंत सुखपूर्वक ही रखें , उनमें से किसी को भी भूखी – प्यासी न रखें।
हे परशुराम ! जो व्यक्ति अपने घर में गौओं को दुखी रखता है उसे नरक की ही प्राप्ति होती है, इसमें कोई संदेह नहीं। किसी दूसरे की गाय को भोजन देकर मनुष्य महान पुण्य का भागी होता है। पूरे जाड़े भर किसी दूसरे की गाय को ग्रास प्रदान करने वाला व्यक्ति वर्षों तक श्रेष्ठ स्वर्ग का उपभोग करता है और
भोजन के समय पहले ही यदि ६ मास तक गौ ग्रास निकालकर उन्हें नित्य प्रदान करता है तो वह स्वर्ग – सुख को प्राप्त करता है। गायों के हित में लगे हुए मनुष्यों का जो अहित चाहता है वह रौरव नरक का भागी होता है। गौभक्ति , गौभक्त के राह में बाधा पहुंंचाने वालों के पूर्वकृत सब पुण्य कर्म नष्ट हो जाते हैं।
अतः हे भृगु नन्दन ! इस मानव योनि में आकर इस दिव्य देह से पुण्य हो सके तो अत्यंत आनन्द की बात है, किंतु स्मरण रहे पापकर्मों से अवश्य बचना चाहिए।
अन्य पुराणों में गौमाता की महत्ता (महिमा)
• पद्मपुराण के अनुसार गायें जिस समय इच्छापूर्वक चरती हैं उस समय यदि कोई मनुष्य उन्हें चरने से रोकता है तो पितृदोष लगता है तथा जो मनुष्य गायों को किसी भी प्रकार से प्रताड़ि़त करता है अथवा उनके साथ किसी प्रकार की हिंसा करता है वह नरक का भागी होता है।
• जिस व्यक्ति के पास अपने पितरों के श्राद्ध के लिए कुछ भी न हो अथवा अपनी दरिद्रता या किसी अन्य कारण से असमर्थ हो तो वह यदि पितरों का ध्यान करके गो माता को श्रद्धापूर्वक घास खिला दे तो उसे श्राद्ध का पूर्ण रूप से फल प्राप्त हो जाता है साथ ही उसके पितर भी तृप्त जाते हैं।
• आदित्यपुराण के अनुसार गाय को नमकयुक्त भोजन खिलाने से पवित्र लोक की प्राप्ति होती है तथा जो मनुष्य स्वयं भोजन से पहले गाय को रोटी अथवा हरा चारा खिलाता है उसे गोदान का फल प्राप्त होता है।
श्री संपन्न बिल्व वृक्ष की उत्पत्ति
श्री संपन्न बिल्व वृक्ष गाय के गोबर से ही उत्पन्न हुआ है। बिल्व पत्र भगवान शिव को अत्यंत ही प्रिय हैं। ऐसी मान्यता है बिल्व वृक्ष में पद्महस्ता लक्ष्मी मां का निवास स्थान होता है यही कारण है कि इसे श्री वृक्ष भी कहा जाता है श्री अर्थात लक्ष्मी।
महर्षि वशिष्ठ द्वारा गौमाता के सन्दर्भ में मानव जाति को उपदेश
महर्षि वशिष्ठ ने मानव जाति को उपदेश देते हुये कहा है कि
नाकीर्तयित्वा गाः सुप्यात् तासां संस्मृत्य चोत्पतेत्।
सायंप्रातर्नमस्येच्च गास्ततः पुष्टिमाप्नुयात्॥
गाश्च संकीर्तयेन्नित्यं नावमन्येत तास्तथा।
अनिष्ट स्वप्नमालक्ष्य गां नरः सम्प्रकीर्तयेत् ॥
भावार्थ — गौओं का नामकीर्तन किये बिना कदापि नहीं सोना चाहिये तथा उनका स्मरण करके ही उठना चाहिये, सुबह शाम उन्हें नमस्कार करें जिससे मनुष्य को बल तथा पुष्टि की प्राप्ति होती है। यदि बुरे सपने दिखाई देते हैं तो उस प्राणी को गो माता का नाम लेकर ही शयन करना चाहिए।
॥ इति ॥
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