Ekadashi Vrat : एकादशी व्रत का महत्व | व्रत की महिमा | कथा एवं विधि
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नमस्कार दोस्तो! आज की इस पोस्ट में हम आपके लिये लाये हैं एकादशी के व्रत Ekadashi Vrat की जानकारी जिस व्रत को करने से मनुष्य की सारी इच्छायें पूरी होती है ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से साधक को बैकुण्ठ की प्राप्ति होती है।
हिन्दू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है। हिन्दू नववर्ष के प्रारंभ होने के बाद आने वाली एकादशी कामदा एकादशी कहलाती है। एकादशी का दिन भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित है इस दिन श्री लक्ष्मीनारायण भगवान की पूजा-अर्चना विशेष फलदायी सिद्ध होती है।
Ekadashi Vrat : एकादशी के व्रत की महिमा
चैत्र नवरात्र के संपन्न होने के बाद चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी कहा जाता है। कामदा का अर्थ होता है सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली, अर्थात कामदा एकादशी प्रत्येक व्यक्ति की समस्त मनोकमानाओं को पूरा करती है।
दोस्तों, इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की भी पूजा की जाती है क्योंकि इन्हें विष्णु भगवान के अवतार के रूप में पूजा जाता है।
दोस्तों इस दिन गरीब तथा वंचितों को आवश्यकता की वस्तुयें तथा अन्य उपयोगी खाने-पीने की सामग्री का दान करनाअत्यंत फलदायी होता है तथा जिन कामों में अड़चने आती हैं वे सभी पूरे हो जाते हैं।
कामदा एकादशी का व्रत जो भी साधक निर्मल तथा सच्चे हृदय से करता है वह सभी प्रकार की बुराईयों तथा शाप से मुक्त हो जाता है साथ ही उसके दैहिक, दैविक तथा भौतिक तीनों प्रकार के ताप नष्ट हो जाते हैं।
ऐसी मान्यता है कि जो विवाह योग्य कन्याएं इस उपवास को अच्छे वर की प्राप्ति के लिये करती हैं उन्हें मनोवांछित वर की प्राप्ति होती है तथा जो सुहागिन स्त्रियां इस व्रत को करती हैं उन्हें अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान श्री लक्ष्मीनारायण भगवान की कृपा से मिलता है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि एकादशी का व्रत निश्चित ही हर कार्य में सफलता दिलाता है ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत का महात्म्य पढ़ने तथा सुनने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।
दोस्तों, आईये अब जानते हैं इस व्रत की कथा के बारे में –
Ekadashi Vrat : एकादशी व्रत की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार रत्नपुर नगर में पुण्डरीक नामक राजा राज्य करते थे। रत्नपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर और गन्धर्व वास किया करते थे। उसी नगर में ललित और ललिता नाम के पति-पत्नी रहा करते थे उन दोनों का आपस में बहुत स्नेह था। ललित एक गायक भी था तथा राजा के दरबार में गायन के लिये भी जाया करता था।
एक दिन ललित महाराज पुण्डरीक की सभा में कोई राग गा रहा था। राग को गाते समय अचानक उसे अपनी पत्नी का ध्यान आ गया जिससे उसका ध्यान भंग हो गया और गायन भी बिगड़ गया। इससे राजा को गुस्सा आ गया और वह बोले कि गायन के समय भी तू अपनी पत्नी को याद कर रहा है अतः तू कच्चा मांस खाने वाला राक्षस हो जायेगा।
राजा पुण्डरीक के शाप से ललित भयानक राक्षस बन गया। वह घने जंगलों में रहता तथा प्राणियां को खा जाया करता था इस तरह वह अनेक कष्ट भोग रहा था। उसकी पत्नी ललिता यह सब जानकर बहुत दुःखी हुई और उसको शाप मुक्त कराने का उपाय सोचने लगी।
एक दिन ललिता ने किसी से विंध्याचल पर्वत पर निवास करने वाले ऋषि श्रृंगी की महिमा सुनी।
उसने अपने मन में विचार किया कि उन्हीं तेजस्वी ऋषि के पास चलना चाहिये, हो सकता है कि वह मेरे पति को इस भयानक राक्षस योनी के शाप से मुक्ति दिला दें।
ऐसा सोचकर वह विंध्याचल पर्वत की ओर चल दी। जिस स्थान पर ऋषि का आश्रम था वहां पर चारों ओर हरियाली छाई हुई थी, वहां के वातावरण में एक दिव्य सुगंध थी वहां पर सभी पशु-पक्षी शान्त भाव से रहा करते थे। इन सब दृश्यों को देखते हुये ललिता श्रृंगी ऋषि के पास पहुंची और श्रद्धा भाव से उन्हें दण्डवत प्रणाम किया ,उन तेजस्वी ऋषि ने उसे अशीर्वाद देकर, उसका परिचय तथा वहां पर आने का कारण पूछा।
यह सुनकर उसने कहा कि मेरा नाम ललिता है तथा मेरे पति ललित को महाराज पुण्डरीक ने किसी बात से क्रोधित होकर भयानक राक्षस बन जाने का शाप दे डाला है जिस कारण वह भयानक जंगल में राक्षस योनी में भटक रहे हैं कृपया करके उनकी शाप मुक्ति का उपाय बतायें जिससे जल्दी-से-जल्दी उन्हें इस असहनीय पीड़ा से मुक्ति मिल सके।
ऋषि श्रृंगी कहने लगे कि इस पाप के निवारण का उपाय मैं तुम्हें बताता हूं , सो ध्यानपूर्वक सुनो। चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी कामदा एकादशी कहलाती है इसका व्रत करने से मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति मिलती है यदि तुम अपने पति को शाप मुक्त करने के उद्देश्य से इस व्रत को पूरे विधि-विधान के साथ करोगी तो तुम्हारे पति को राक्षस योनी से शीघ्र ही मुक्ति मिल जायेगी।
ऐसा सुनकर ललिता ने उन तेजस्वी ऋषि को प्रणाम किया और घर लौट आई। उसने मन में व्रत करने का संकल्प लिया तथा कामदा एकादशी का व्रत पूरे मन से किया साथ ही भगवान से प्रार्थना की कि मेरे इस व्रत का सारा पुण्य राक्षस योनी भोग रहे मेरे पति को प्राप्त हो जाये तथा वह जल्दी ही इस शाप से मुक्त हो जायें।
ललिता ने जब इस प्रकार व्रत रखा तथा प्रार्थना की तो श्री भगवान उससे प्रसन्न हो गये तथा उसके पति को शाप मुक्त कर दिया अब वे दोनों पति-पत्नि दिव्य विमान पर बैठकर स्वर्गलोक को चले गये।
दोस्तों अब जानते हैं इस उपवास की विधि के बारे में।
Ekadashi Vrat : उपवास की विधि (व्रत की विधि)
१. उपवास करने वाले साधक को एकादशी से एक दिन पहले अर्थात दसवीं वाले दिन सूर्यास्त के बाद सादा यानी सात्विक भोजन करना चाहिये तथा चावल का सेवन नहीं करना चाहिये।
२. एकादशी के दिन सुबह नहा-धोकर साफ-सुथरे कपड़े पहनकर श्री लक्ष्मीनारायण की पूजा करनी चाहिए तथा उन्हें धूप, दीप, नैवेद्य के साथ तुलसी के कुछ पत्ते अर्पित करने चाहिये।
३. इस व्रत के दौरान फलाहार सेवन करना चाहिये
४. भगवान का स्मरण करते रहना चाहिये तथा श्री विष्णु के मंत्रों का जप करते रहना चाहिये जैसे –
ऊं नमो भगवते वासुदेवायः।
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव।
५. विष्णु सहस्रनाम यानी विष्णु जी के एक हजार नाम पढ़ने चाहिये।
६. अगले दिन यानी द्वादशी के दिन किसी विद्वान तथा श्रेष्ठ ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद ही व्रत को खोलना चाहिए।
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