Saam Daam Dand Bhed : साम, दाम, दंड, भेद का अर्थ | Matsya Puran Sanvad

Saam Daam Dand Bhed : साम, दाम, दंड, भेद का अर्थ | Matsya Puran Sanvad

नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Saam Daam Dand Bhed में आपका हार्दिक अभिनंदन है। दोस्तों, हममें से अधिकांश ने कभी-न-कभी साम-दाम-दंड भेद की नीति के संबंध में सुना होगा। किसी कार्य को पूर्णरूप देने के लिये इसका प्रयोग कहावत के रूप में किया जाता है कि इस काम को साम, दाम, दंड, भेद अपनाकर कैसे भी पूर्ण करें।   

     आचार्य चाणक्य द्वारा भी साम–दाम–दंड–भेद को विस्तार से समझाया गया है। इस संसार में जितने भी शक्तिशाली लोग हुए हैं, वह इन्ही नीतिओं का अनुसरण करते हैं। लेकिन आप और हम इसका उपयोग कब और कहां करते हैं, यह हमारी बुद्धिमानी पर निर्भर रखता है।

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शास्त्रों में कहा गया है कि जो उपायों को बतलाये या पथ प्रदर्शन करे वही नीति है। मत्स्य पुराण में मनु के पूछने पर मत्स्य रूपधारी भगवान श्रीहरि ने साम दाम दंड भेद नीति का उपदेश दिया है। आइये, विस्तार से जानें कि क्या है  साम दाम दंड भेद का अर्थ  एवं इसके प्रयोग के बारे  में।

साम – नीति का वर्णन (Saam Daam Dand Bhed)

मत्स्य पुराण में भगवान श्री हरि विष्णु तथा मनु के मध्य संवाद इस प्रकार है –

मनु ने पूछा –  “भगवन ! कृपया आप साम दण्ड आदि उपायों का वर्णन कीजिये। देवश्रेष्ठ ! साथ ही उनका लक्षण और प्रयोग भी बताइये।”

मत्स्य भगवान बोले – “राजन ! साम (स्तुति – प्रशंसा), दान (दाम), दंड, भेद, उपेक्षा, माया तथा इन्द्रजाल – ये सात प्रयोग बतलाये गए हैं। उन्हें मैं बता रहा हूँ, सुनिए —”

साम तथ्य और अतथ्य दो प्रकार का कहा गया है। उनमें भी अतथ्य ( झूठी प्रशंसा ) साधु पुरुषों की अप्रसन्नता का ही कारण बन जाती है इसलिए सज्जन व्यक्ति को प्रयत्नपूर्वक सच्ची प्रशंसा से वश में करना चाहिए। जो कुलीन, सरलप्रकृति, धर्मपरायण और जितेन्द्रिय हैं वे सच्ची प्रशंसा से ही प्रसन्न होते हैं, अतः उनके प्रति झूठी प्रशंसा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

उनके प्रति तथ्य साम (सच्ची प्रशंसा) का प्रयोग, उनके कुल और शील स्वभाव का वर्णन, किये गए उपकारों की चर्चा तथा अपनी कृतज्ञता की बात कहनी चाहिए। इस प्रकार के साम से अपने धर्म में तत्पर रहने वालों को वश में करना चाहिए।

दुर्जन मनुष्यों के लिए इस प्रकार की नीति उपकारी नहीं होती। दुष्ट मनुष्य साम की बातें करने वाले को बहुत डरा हुआ समझते हैं, इसलिए उनके प्रति इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए।

हे राजन ! जो पुरुष शुद्ध वंश में उत्पन्न, विनम्र, धर्मनिष्ठ, सत्यवादी एवं सम्मानी हैं, वे ही निरंतर साम द्वारा साध्य बतलाये गए हैं। 

दाम (दान) – नीति का वर्णन (Saam Daam Dand Bhed)

मत्स्य भगवान बोले –  हे राजन ! दान सभी उपायों में सर्वश्रेष्ठ है। प्रचुर दान देने से मनुष्य दोनों लोकों को जीत लेता है।

हे राजन ! ऐसा कोई नहीं है जो दान द्वारा वश में न किया जा सके। दान से देवता लोग भी सदा के लिए मनुष्यों के वश में हो जाते हैं। दानी मनुष्य संसार में सभी का प्रिय हो जाता है, दानशील राजा शीघ्र ही शत्रुओं को जीत लेता है तथा दानशील ही संगठित शत्रुओं का भेदन करने में समर्थ हो सकता है।

यद्यपि निर्लोभी स्वभाव वाले मनुष्य स्वयं दान को स्वीकार नहीं करते, तथापि वे भी दानी व्यक्ति के प्रशंसक बन जाते हैं। संसार में दानशील व्यक्ति की हमेशा पुत्र की भांति प्रतिष्ठा होती है। इसलिए लोग सभी उपायों में श्रेष्ठतम दान की प्रशंसा करते हैं। 

Saam Daam Dand Bhed

दंड – नीति का वर्णन (Saam Daam Dand Bhed)

मत्स्य भगवान ने इसके बारे में कहा हे राजन ! जो अन्य उपायों के द्वारा वश में नहीं किये जा सकते हैं, उन्हें दंडनीति के द्वारा वश में करना चाहिए क्योंकि दंड मनुष्यों को निश्चित रूप से वश में करने वाला है। बुद्धिमान राजा को सम्यक रूप से उस दंडनीति का प्रयोग धर्मशास्त्र के अनुसार मंत्रियों और पुरोहितों की सहायता से करना चाहिए।

अदण्डनीय पुरुषों को दंड देने तथा दंडनीय पुरुषों को दंड न देने से राजा इस लोक में राज्य से च्युत हो जाता है और मरने पर नरक में पड़ता है इसलिए विनयशील राजा को कल्याण की कामना से धर्मशास्त्र के अनुसार ही दंडनीति का प्रयोग करना चाहिए।

यदि राज्य में उचित दंडनीति की व्यवस्था न रखी जाये तो बालक, वृद्ध, आतुर, सन्यासी, ब्राह्मण, स्त्री और विधवा – ये सभी आपस में ही एक दूसरे को खा जाएँ। यदि राजा दंड की व्यवस्था न करे तो सभी देवता, दैत्य, सर्पगण, प्राणी तथा पक्षी मर्यादा का उल्लंघन कर जायेंगे।

दंड देनेवाले व्यक्ति देवताओं द्वारा पूज्य हैं, किन्तु दंड न देनेवालों की पूजा कहीं भी नहीं होती। ब्रह्मा, पूषा और अर्यमा सभी कार्यों में शान्त रहते हैं, इसलिए कोई भी मनुष्य उनकी पूजा नहीं करता। जबकि  दंड देनेवाले रूद्र, अग्नि, इन्द्र, सूर्य, चन्द्रमा, विष्णु एवं अन्य देवतागणों की  पूजा सभी लोग करते हैं। दंड सभी प्रजाओं पर शासन करता है तथा दंड ही सबकी रक्षा करता है। 

भेद – नीति का वर्णन (Saam Daam Dand Bhed)

मत्स्य भगवान ने इस अंतिम नीति के संबंध में कहा –  राजन ! जो परस्पर वैर रखने वाले, क्रोधी, भयभीत तथा अपमानित हैं, उनके प्रति भेदनीति का प्रयोग करना चाहिए, क्योंकि वे भेद द्वारा साध्य माने गए हैं। लोग जिस दोष के कारण दूसरे से भयभीत होते हैं उन्हें उसी दोष के द्वारा भेदन करना चाहिए। उनके प्रति अपनी ओर से आशा प्रकट करे और दूसरे से भय की आशंका दिखलाये।

 संगठित लोग भेदनीति के बिना इन्द्र द्वारा भी दुःसाध्य होते हैं। इसलिए नीतिज्ञ लोग भेदनीति की प्रशंसा करते हैं। इस नीति को अपने मुख से तथा दूसरे के मुख से भेद्य व्यक्ति से कहे या कहलाये, परंतु अपने विषय में दूसरे के मुख से सुनी हुई भेदनीति को परीक्षा करके ही ठीक मानना चाहिए।

शत्रुओं को जीतने की इच्छा रखने वाले राजा को चाहिए कि दूसरे से भेदनीति द्वारा क्रोध पैदा कराकर उसकी जाति में भेद उत्पन्न कर दे और प्रयत्नपूर्वक अपने जातिभेद की रक्षा करे। यद्यपि संतप्त भाई – बंधू राजा की उन्नति देखकर जलते रहते हैं, तथापि राजा को दान और सम्मान द्वारा उनको मिलाये रखना चाहिए, क्योंकि जातिगत भेद बड़ा भयंकर होता है।

जाति वालों पर प्रायः लोग अनुग्रह का भाव नहीं रखते और न ही उनका विश्वास करते हैं, इसलिए राजाओं को चाहिए कि जाति में फूट डालकर शत्रु को उनसे अलग कर दे। इस भेदनीति द्वारा अलग किये गए शत्रुओं के विशाल समूह को भी संग्राम भूमि में थोड़ी सी सुसंगठित सेना से ही नष्ट किया जा सकता है। अतः नीति कुशल लोगों को सुसंगठित शत्रुओं के प्रति भी भेदनीति का ही प्रयोग करना चाहिए।

  ॥ इति ॥

दोस्तों, आशा करते हैं कि  Saam Daam Dand Bhed पोस्ट आपको पसंद आई होगी। इस लेख में हमने आपको मत्स्य पुराण में राजा मनु तथा मत्स्य रूपधारी भगवान श्रीहरि के मध्य हुये संवाद का आश्रय लेकर साम–दाम–दंड–भेद का अर्थ  एवं उनके अलग-अलग प्रयोग बताने का प्रयास किया है। यह राजनीति का एक अत्यंत महत्वपूर्ण सूत्र है जो प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक समान रूप से प्रासंगिक है।

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