Asthi Visarjan : क्यों करते हैं अस्थियों को गंगा में प्रवाहित ?
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नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Asthi Visarjan में आपका हार्दिक अभिनंदन है। दोस्तों, पौराणिक काल से ही हिंदू सनातन धर्म में यह परंपरा रही है कि मृत्यु के बाद जब मनुष्यों का अंतिम संस्कार कर दिया जाता है तो मृतक की अस्थियों को संचित कर उसे गंगा जल में प्रवाहित या विसर्जित किया जाता है। किंतु क्या आप जानते हैं कि अस्थियों को गंगा जल में प्रवाहित करने के पीछे क्या कारण है ? यदि नहीं तो आईये, जानते हैं इस लेख में।
Asthi Visarjan : भगवान श्रीविष्णु तथा उनके वाहन पक्षीराज गरुड़ के मध्य वार्ता
पक्षीराज गरुड़ का प्र्श्न
गरुड़ पुराण में वर्णित कथा के अनुसार एक समय पक्षीराज गरुड़ ने भगवान विष्णु से पूछा कि हे स्वामी ! जब भी किसी मनुष्य की मृत्यु हो जाती है तो मृतक के परिजन उसका दाह संस्कार कर देते हैं परंतु मेरी समझ में यह नहीं आ रहा है कि वह मृतक की अस्थियो को संचित क्यों करते हैं?
इसलिए कृपा कर बताइए कि क्या अस्थियों को संचित करना आवश्यक है और यदि आवश्यक है तो यह दाह संस्कार के कितने दिन बाद करना चाहिए, और यह भी बताइए की उन अस्थियों को देव नदी गंगा के जल में प्रवाहित क्यों किया जाता है।
Asthi Visarjan Vidhi : भगवान विष्णु का उत्तर/अस्थि विसर्जन पूजा विधि
गरुड़ की बातें सुनकर भगवान विष्णु कहते हैं — हे पक्षीराज ! जब भी किसी मनुष्य की मृत्यु हो जाती है और उसका दाह संस्कार कर दिया जाता है तो उसके परिवार वालों को चाहिए कि दाह संस्कार के चौथे दिन अस्थि संचन के लिए श्मशान भूमि में स्नान करके पवित्र हो जाएं। फिर चिता की राख से मृतक की अस्थियों को संचयित कर लें।
तत्पश्चात सर्वप्रथम चिता स्थान को दूध से सींचे और उसके बाद उसे जल से सींच कर पवित्र करें फिर संचयित अस्थियों को पलाश के पत्ते पर रख के दूध और जल से धोएं और पुनः मिट्टी के पात्र पर रखकर यथा विधी श्राद्ध पिंडदान करें। फिर चिता की आग को एकत्र करके उसके ऊपर तिपाई रखकर उस पर खुले मुख वाला जलपूर्ण घट स्थापित करें।
तत्पश्चात चावल पकाकर उस पर दही और घी तथा मिष्ठान मिलाकर जल के सहित प्रेत को यथा विधि बलि प्रदान करें।
हे खग ! फिर उत्तर दिशा में १५ कदम जाएं और वहां गड्ढों में उस अस्थि पात्र को स्थापित करें उसके ऊपर दाह जनित पीड़ा को नष्ट करने वाला पिंड प्रदान करें और उस अस्थि पात्र को निकाल कर उसे लेकर जलाशय जाएं वह दूध और जल से उन अस्थियों का बार-बार पर्छालीत यानी धोकर उसपर चन्दन और कुमकुम का विशेष लेप लगाएं।
फिर उन्हें एक दोने में रख कर ह्रदय और मस्तक में लगा कर उनकी परिक्रमा करें तथा उन्हें नमस्कार कर के गंगा जल में विसर्जित करें।
Asthi Visarjan : गंगा में अस्थि विसर्जन का महत्व
श्री हरि विष्णु आगे कहते हैं कि हे गरुड़ ! जिस मृत प्राणी की अस्थि १० दिन के अंतर्गत गंगा जल में विसर्जित हो जाती है उसका ब्रह्मलोक से कभी भी पुनर गमन नहीं होता। गंगाजल में मनुष्य की अस्थि जब तक रहती है उतने हजारों वर्षों तक वह स्वर्ग लोक में विराजमान रहता है। इतना ही नहीं गंगाजल की लहरों को छूकर हवा जब मृतक की अस्थि का स्पर्श करती है तब उस मृतक के सारे पाप तत्क्षण ही नष्ट हो जाते हैं।
हे पक्षीराज ! जैसा कि तुम जानते हो कि महाराज भगीरथ ने उग्र तप कर गंगा देवी को अपने पूर्वजों का उद्धार करने के लिए उन्हें ब्रह्मलोक से भूलोक पर लेकर आए थे और उसके बाद गंगाजल के स्पर्श मात्र से भस्मीभूत हुए राजा सगर के सभी पुत्र स्वर्ग पहुंच गए थे, तब से गंगा जी का पवित्र यश तीनों लोकों में विख्यात है।
इसलिए सत्पुरुष को स्वतः ही अपने प्रियजनों की अस्थियों को गंगा जी में विसर्जित करना चाहिए या परिवार का कोई भी सदस्य अस्थि विसर्जन करने जा सकता है।
इसके अलावा यदि कोई व्यक्ति विदेश में , वन या चोरो के भय से मृत्यु को प्राप्त हो गया हो या उसका शव प्राप्त न हुआ हो तो जिस दिन उसके निधन का समाचार सुने उसके परिवार वालों को चाहिए कि वह उसी दिन मृतक का कुश का पुतला बनाकर पूर्व विधि के अनुसार उसका दाह संस्कार करें और उसके भस्म को लेकर गंगा जल में विसर्जित कर दें। इससे भी मृतक की आत्मा को इस मृत्यु लोक से मुक्ति मिल जाती है और वह स्वर्ग को चला जाता है।
हे गरुड़ जो भी मनुष्य मृतक के निमित्त उपरोक्त विधि का पालन करता है उसके मृत परिजन की आत्मा सारे पापों से मुक्त हो जाती है और वह आनंद पूर्वक स्वर्ग लोक में निवास करने लगता है।
Asthi Visarjan : अस्थि विसर्जन का वैज्ञानिक आधार
वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार हड्डियों में फास्फोरस और कैल्शियम होता है जो की भूमि को उपजाऊ बनाने में सहायक है और जब हम गंगा नदी में या किसी और नदी में जो दूर तक बहती जाती है उसमें अस्थियों को विसर्जित करते हैं तो ये पानी में मिल जाता है और नदी के आस पास की जमीनों को उपजाऊ बनाने में सहायक सिद्ध होता है। साथ ही यह जल में रहने वाले जीवों के लिए एक पौष्टिक आहार भी है।
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