Mundan :क्यों कराते हैं बच्चों का मुण्डन संस्कार ?

Mundan : क्यों कराते हैं बच्चों का मुण्डन संस्कार ?

नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट mundan संस्कार में आपका हार्दिक अभिनंदन है। दोस्तों, शिशु के जन्म के बाद हमारे यहां कई प्रकार की रीति-रिवाजों का आयोजन होता है, विभिन्न प्रकार के संस्कार किये जाते हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक प्राणी के जीवनकाल को 16 संस्कारों में विभाजित किया जाता है जिसमें से एक है मुण्डन संस्कार।

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मुण्डन संस्कार को चूड़ाकरण संस्कार अथवा चौलकर्म भी कहा जाता है जिसका अर्थ है वह संस्कार जिसमें बालक को चूड़ा अर्थात शिखा दी जाए। आज की पोस्ट में हम इसी के लाभ तथा अन्य रोचक जानकारियां प्राप्त करेंगे। तो आईये, पोस्ट आरंभ करते हैं –

mundan : गर्भावस्था की अपवित्रता दूर करने के लिए किया जाता है मुण्डन संस्कार।

बच्चे का मुण्डन संस्कार कराने के पीछे हमारे ऋषि-मुनियों का अत्यंत सूक्ष्म ज्ञान रहा है। माता के गर्भ से आए सिर के बाल अपवित्र माने गये हैं। इनके मुण्डन का उद्देश्य बालक की अपवित्रता को दूर कर उसे अन्य संस्कारों जैसे वेदारंभ, यज्ञ आदि के योग्य बनाना है क्योंकि मुण्डन करते हुए इस प्रकार की धारणा तथा मंत्रोच्चार आदि किये जाते हैं कि इस बालक का सिर पवित्र हो, यह दीर्घजीवी हो आदि।

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अतः यह बालक के स्वास्थ्य तथा शरीर के लिए एक नया संस्कार होता है। इस संस्कार का अन्य कारण यह है कि जब शिशु गर्भावस्था में होता है तब जो उसके सिर के बाल होते हैं वह जन्म के पश्चात झड़ते रहते हैं जिस कारण से शिशु के तेज की वृद्धि नहीं हो पाती है।

इस प्रकार इन केशों को मुंडवाकर अर्थात कटवाकर शिखा रखी जाती है। कुछ स्थानों पर प्रथम मुण्डन संस्कार पर शिखा न छोड़कर दूसरी बार शिखा छोड़ी जाती है। शिखा अर्थात चोटी से शिशु की आयु तथा तेज की वृद्धि होती है। बालिकाओं के मुण्डन संस्कार में शिखा नहीं छोड़ी जाती।

उत्तम, मध्यम तथा अधम श्रेणी का मुण्डन संस्कार

शास्त्रों में जन्मकालीन बालों का बच्चे के प्रथम, तीसरे या पांचवे वर्ष में अथवा कुल की परम्परा के अनुसार शुभ मुहुर्त में मुण्डन करने का विधान है। जन्म से तीसरे वर्ष में मुण्डन संस्कार को सबसे उत्तम माना गया है।

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मध्यम श्रेणी का मुण्डन संस्कार

जिस शिशु का जन्म से पांचवे अथवा सातवें वर्ष में मुण्डन संस्कार किया जाता है उसे मध्यम श्रेणी का मुण्डन संस्कार माना जाता है।

अधम श्रेणी का मुण्डन संस्कार

किसी कारणवश उपरोक्त वर्षों में यदि शिशु का संस्कार नहीं कराया जाता तो जन्म के दसवें तथा ग्यारहवें वर्ष में किया गया संस्कार निम्न श्रेणी का मुण्डन संस्कार माना जाता है। प्रायः प्रथम अथवा द्वितीय श्रेणी का मुण्डन संस्कार ही अधिक प्रचलन में है। निम्न श्रेणी का मुण्डन संस्कार अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में ही किया जाता है।

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किस स्थान पर किया जाता है संस्कार ?

बच्चे का मुण्डन शुभ मुहुर्त में किन्हीं देवी-देवताओं अथवा मान्यता तथा परंपराओं के अनुसार अपने कुल देवी-देवता के स्थान पर किया जाता है। कुछ प्रांतों में किसी पवित्र नदी अथवा सरोवर के तट पर भी शिशु का मुण्डन संस्कार कराये जाने का विधान देखने को मिलता है। गंगा, यमुना अथवा किसी अन्य पवित्र नदी के तटों पर यह संस्कार कराया जाता है।

मुण्डन के पश्चात बालों का प्रयोग

शिशु का mundan मुण्डन संस्कार पूरे विधि-विधान से कराये जाने के पश्चात उसके उतरे बालों को गोत्र की परम्परा के अनुसार नदी के तट पर या फिर गौमाता की देखभाल करने वाली गोशाला की भूमि में एक ओर गड्ढा करके दबा दिया जाता है। कहीं – कहीं पर पहले इन बालों को अपने कुल देवी या देवता को समर्पित किया जाता है तत्पश्चात उसे विसर्जित कर दिया जाता है।

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सिर पर स्वास्तिक बनाने की परंपरा

मुण्डन तथा बालों को विसर्जित करने के बाद बच्चे के सिर पर दही, मक्खन, हल्दी, मलाई अथवा चंदन का लेप किया जाता है। इससे मस्तिष्क की वृद्धि होती है तथा अन्य प्रकार के किसी रोग से भी रक्षा होती है। कहीं-कहीं पर शिशु के सिर पर स्वास्तिक अर्थात सतिया बनाने की भी परंपरा है।

इस संस्कार में अपनी पारिवारिक परंपराओें तथा रीतियों के अनुसार ही पूजा-पाठ तथा दान-पुण्य आदि अन्य मांगलिक कार्यां के किये जाने का विधान है।

क्या हैं मुण्डन संस्कार कराने के लाभ ?

यजुर्वेद 3/63 में मुण्डन संस्कार पर एक श्लोक है जिससे यह स्पष्ट होता है कि किसी शिशु के मुण्डन संस्कार कराने के कितने लाभ हैं यह श्लोक इस प्रकार है –

नि वर्त्तयाम्यायुषेन्नाद्याय प्रजननाय रायस्पोषाय सुप्रजास्त्वाय सुवीर्याय ।

भावार्थ – हे बालक ! मैं तेरे दीर्घायु के लिए, उत्पादन शक्ति प्राप्त करने के लिए, ऐश्वर्य वृद्धि के लिए, सुन्दन संतान के लिए, बल तथा पराक्रम प्राप्त करने के योग्य होने के लिए तेरा मुण्डन संस्कार करता हूं।

क्या कहते हैं आचार्य चरक ?

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औषधियों के ज्ञाता तथा सुप्रसिद्ध वैद्य आचार्य चरक ने मुण्डन का महत्व बताते हुए कहा है कि इस उत्तम संस्कार से बालक की आयु, पुष्टि, पवित्रता तथा सौन्दर्य में वृद्धि होती है। मुण्डन संस्कार के समय उच्चारित किये जाने वाले मंत्रों का भी यही भाव है कि सूर्य, इन्द्र, पवन आदि सभी देवता तुझ शिशु को दीर्घायु, बल तथा तेज प्रदान करें।

वैज्ञानिक दृष्टि से लाभ

धार्मिक दृष्टि के अतिरिक्त मुण्डन संस्कार की मान्यता वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। गर्भकाल की अवधि में जो बाल बनते हैं वह जन्म के पश्चात कुछ समय में झड़ना प्रारम्भ हो जाते हैं। यूं भी जन्म के बाद किसी भी शिशु की साफ-सफाई की जाती है तथा उसकी स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है।

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इस प्रकार मुण्डन संस्कार के पश्चात सिर के बालों को उतारने से उनकी जड़ों में वृद्धि होती है तथा रोम छिद्र खुल जाते हैं जिससे वायु का प्रवेश होता है जो मस्तिष्क के विकास में सहायक होती है।

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