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Ganesh ji ke 12 naam : भगवान गणपति के द्वादश नाम

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Ganesh ji ke 12 naam : भगवान गणपति के द्वादश नाम|

 

नमस्कार दोस्तों !  हमारे ब्लॉग पोस्ट Ganesh ji ke 12 naam में आपका हार्दिक अभिनंंदन है। दोस्तों, सनातन धर्म में किसी भी मांगलिक कार्य का आरंभ भगवान श्री गणेश जी की आराधना से ही होता है। चाहे विद्या अध्ययन का आरंभ हो, विवाह का आयोजन हो, व्यावसायिक प्रतिष्ठान का मूहुर्त हो अथवा किसी यात्रा का प्रारंभ जो भी साधक गणेश जी के 12 नामों का स्मरण करता है उसके मार्ग या उद्देश्य में कोई विघ्न नहीं आता।

इस पोस्ट में हम जानेंगे गणपति के द्वादश अर्थात 12 नाम तथा साथ ही उनका विस्तार से वर्णन। तो आईये, पोस्ट प्रारंभ करते हैं।

Ganesh ji ke 12 naam ka mantra : श्री गणेश जी का द्वादश नाम मंत्र

Ganesh ji ke 12 naam

दोस्तों, यदि आप गणपति भगवान के 12 नामों Ganesh ji ke 12 naam के जाप का फल पाना चाहते हैं तो निम्न श्लोक का प्रतिदिन पूर्ण श्रद्धाभाव के साथ जाप करें तथा श्री विघ्नहर्ता की अपार कृपा प्राप्त करें।

सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः॥

धूम्रकेतुः गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः।
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि॥

विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेश निर्गमे तथा।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते॥

भगवान गणपति के द्वादश नाम तथा उनका वर्णन

 

आईये, जानते हैं गणेश जी के नाम और साथ ही जानेंगे कि ये नाम हमें क्या प्रेरणा देते हैं।

1. सुमुख

श्री गणेश जी को सुमुख अर्थात सुन्दर मुख वाले कहा जाता है। अब प्रश्न उठ सकता है कि हाथी की सूंड, छोटी-छोटी आंखे तथा सूप जैसे लम्बे कान वाले मुख को सुमुख कैसे कहा जा सकता है ? किन्तु यदि हम विचार करें तो पायेंगे कि शारीरिक सौन्दर्य से गुणों के सौन्दर्य की महत्ता अधिक है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखें तो हम पायेंगे कि छोटी आंखें गम्भीरता की लम्बी नाक बुद्धिमत्ता की तो बड़े कान बहुलता के सूचक हैं।

2. एकदंत

श्री गणेश का दूसरा नाम एकदंत अर्थात देव जो एक दांत धारण करते हैं। यह इस बात का द्योतक है कि जीवन में मात्र वही व्यक्ति सफल होता है जिसका लक्ष्य भी एक ही हो। आपने कहावत तो सुनी ही होगी कि एक ही नाव में पैर रखने चाहिए। आईये, जानें गौरीनंदन के एकदंत बनने की कथा –

Ganesh ji ke 12 naam

एक समय शिवजी समाधि में लीन थे तथा श्री गणेश जी द्वार पर पहरा दे रहे थे। उसी समय परशुराम जी कैलाश पर पहुंचे जब वे भीतर प्रवेश करने लगे तो गणेश जी ने उन्हें प्रवेश करने से रोका जिस पर कुपित होकर परशुराम जी ने अपने फरसे से उन पर प्रहार कर दिया तथा बाल गणेश का एक दांत टूट गया। जब उन्हें अपनी भूल का ज्ञान हुआ तब परशुराम जी ने भगवान गणेश को एकदंत नाम से विश्वप्रसिद्ध होने का आशीर्वाद प्रदान किया।

3. कपिला

भगवान श्री गणेश का यह नाम कपिला से लिया गया है। कपिला यानी गाय जो समस्त प्राणियों को दूध, घी तथा दही प्रदान करती है उसी प्रकार श्री गणेश जी भी अपने भक्तों को बुद्धिरूपी दधि, समुज्जवल भावरूपी दुग्ध तथा ज्ञानरूपी घृत प्रदान करते हैं तथा पुष्ट बनाते हैं। गजानन अपने भक्तों के त्रिविध तापों दैहिक, दैविक तथा भौतिक दोषों का नाश करते हैं।

4. गजकर्ण

Ganesh ji ke 12 naam

सनातन संस्कृति में इन्हें बुद्धि का देवता माना जाता है श्री गणेश के लंबे कान सबकुछ सुनने में समर्थ हैं। यह इस बात का द्योतक हैं कि सदा अपने कान खुले रखने चाहिए तथा अपने विचार तथा आदर्श ऊँचे रखने चाहिए। श्री गणेश जी से हमें यह भी शिक्षा मिलती है कि व्यक्ति को अपने कान संकुचित यानी छोटे न रखकर विस्तृत रखने चाहिए जिससे सभी प्रकार की निंदा समा सकें तथा तथा सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास न कर व्यर्थ के वाद-विवादों में न पड़े।

5. लम्बोदर

लम्बा उदर यानी लम्बा पेट सभी प्रकार की बुरी बातों को उदरस्थ अर्थात अपने पेट में समाने की ओर प्रेरित करता है। वर्तमान में देखा जाता है कि हम किसी बात को हजम न कर दूसरों से उस पर चर्चा करने लगते हैं जिससे राई का पहाड़ बन जाता है साथ ही अनावश्यक विवाद उत्पन्न होता है। हमें यह शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए कि सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास न करके उन्हें उदरस्थ कर लें तथा आगे बढ़ जायें।

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शास्त्र कहते हैं कि भगवान शंकर द्वारा बनाये हुये डमरू की ध्वनि से श्री गणेश ने सम्पूर्ण वेदों को ग्रहण किया, माता पार्वती से संगीत की शिक्षा ग्रहण की। शिवजी के ताण्डव रूप से नृत्य सीखा, इसी प्रकार से प्राप्त विविध ज्ञान प्राप्त करने से उनका उदर लम्बा हुआ।

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6. विकट

उपर्युक्त के क्रम में आगे बढ़ें तो श्री गणेश जी का छठा नाम आता है जो है विकट। विकट अर्थात भयंकर। श्री गणेश जी का मुख तो हाथी का है तथा शरीर का शेष भाग नर रूप में है। श्री गणेश के नाम के रूप में इसका भाव है कि वे अपने नाम को सार्थक बनाते हुए समस्त प्रकार के विघ्नों की निवृत्ति के लिए विकट रूप धारण करते हैं।

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कहने का अभिप्राय यह है कि वे अपने भक्तों के लिए कल्याणप्रदायक है किन्तु उनके विघ्नों का हरण करने हेतु विकट रूप धारण किये हुये हैं। गणपत्यथर्वशीर्ष के नवम मंत्र में गणपति जी की स्तुति इस प्रकार की गई है –

विघ्ननाशिने शिवसुताय वरदमूर्तये नमः।

अर्थात – हम विघ्नों को नष्ट करने वाले, शिव के पुत्र, वरप्रदायी मूर्ति रूप में प्रकटित श्री गणेश जी को नमस्कार करते हैं।

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7. विनायक

गणेश जी के इस नाम का अर्थ है विशिष्ट नायक अथवा स्वामी। यह अर्थ पूर्ण रूप से इन्हें चरितार्थ करता है क्योंकि सभी ब्रह्मादि देवता भी स्वेच्छा से कार्य नहीं कर सकते अर्थात सभी देवताओं को गणेश जी का परामर्श लेना आवश्यक है क्योंकि भगवान श्री गणेश गणाध्यक्ष यानी कि समस्त गणों के अध्यक्ष हैं।

यह वरदान स्वयं महादेव तथा माता पार्वती ने इन्हें प्रदान किया है। यही कारण है कि सभी देवता गणेश जी के अनुग्रह से ही विघ्नरहित होकर कार्य सम्पादन करने में समर्थ होते हैं। श्रुति में श्री गणेश को ज्येष्ठराज शब्द से सम्बोधित करके उनके महत्व को दर्शाया गया है।

8. धूम्रकेतु

धूम्रकेतु का सामान्य अर्थ अग्नि है तथा अर्थ निकलता है धुयें के ध्वज वाला। भगवान श्री गणेश के रूप में इसके दो भाव प्रकट होते हैं। पहला है संकल्प यानी अस्पष्ट कल्पनाओं को भी जो धरातल पर लाकर साकार कर देते हैं तथा मूर्तरूप देकर सम्पूर्ण आकाशमण्डल में ध्वज के समान फहरा देते हैं। अर्थात गजानन के लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं है वे कल्पनाओं को भी साकार कर उन्हें स्थायित्व प्रदान कर देते हैं।

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दूसरा भाव है अग्नि जो संकेत देता है कि मानव जाति की आध्यात्मिक अथवा भौतिक प्रगति में आने वाली बाधाओं को अग्नि की भांति भस्मसात कर मानव को चरमोत्कर्ष पर पहुंचाते हैं वही श्री गणपति भगवान हैं।

9. गणाध्यक्ष

श्री गणेश जी गणों के अध्यक्ष हैं पुराणों के अनुसार गणपति जी देवता, नर, असुर तथा नाग इन चारों के संस्थापक होने के साथ-साथ धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष के भी स्थापक हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय महादेव ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से इनका सिर धड़ से अलग कर दिया जिसे हाहाकार मच गया। तब सभी के अनुरोध करने पर भगवान शिव ने गणेश जी को पुर्नजीवित कर दिया साथ ही इन्हें गणों का अध्यक्ष नियुक्त किया।

10. भालचंद्र

जो अपने मस्तक पर चंद्रमा धारण करते हैं वो भालचंद्र है। भगवान शिव की भांति श्री गणेश भी चंद्रमा को धारण करते हैं। चंद्र की उत्पत्ति विराट के मन से मानी जाती है। अतः गणेश जी के संदर्भ में इसका भाव यही है कि वे भाल पर चंद्र को धारण कर उसकी शीतल निर्मल कान्ति से विश्व के सभी प्राणियों को आनंदित करते हैं। साथ ही यह भी संकेत देते हैं कि जिस व्यक्ति का मस्तिष्क जितना शांत होगा वह कुशलता के साथ अपने दायित्वों का निर्वाह कर सकेगा।

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11. गजानन

गज अर्थात हाथी के समान आनन अर्थात मुख है जिसका वही गजानन कहलाते हैं। सभी इससे परिचित हैं कि गणेश जी का मुख हाथी का तथा नीचे का भाग नरस्वरूप में है इसे एक आश्चर्य ही कहा जायेगा। किन्तु यदि हम उन पर दृष्टिपात करते हैं तो अनेक अर्थ निकलते हैं जैसे एक विशाल हाथी को ईश्वर ने छोटी आंख प्रदान की हैं कारण कि यदि वह अपने भीमकाय शरीर को देख पाता तो वह अहंकार में भर जाता।

इसी प्रकार सभी अंगो के अपने-अपने अर्थ हैं। हाथी के दांत जो हम बाहर से देखते हैं वे अलग हैं किंतु जिनसे वह भोजन ग्रहण करता है वे उसके भीतर है अर्थात मनुष्य को किसी के बाहरी आवरण से तुरंत ही प्रभावित न होकर पूर्ण रूप से जांच-पड़ताल करनी चाहिए।

12. सिद्धिविनायक

Ganesh ji ke 12 naam

गणेश भगवान के लोकप्रिय नामों में से एक नाम है सिद्धिविनायक। यह नाम महाराष्ट्र राज्य में अत्यधिक प्रचलित है। भारत की आर्थिक राजधानी कही जाने वाले शहर मुंबई में सिद्धिविनायक नाम से प्राचीन तथा भव्य मंदिर स्थित है। गणेश भगवान अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर विघ्नों का नाश तो करते ही हैं साथ ही उन्हें कार्य सिद्धि का वरदान भी प्रदान करते हैं।
तो आईये, हम भी श्री गौरी नंदन की आराधना करें तथा अपने जीवन में समृद्धि तथा खुशहाली प्राप्त करें।

॥ इति॥

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