Ganesh Chaturthi 2024 : गणेश जन्म कथा | तिथि | क्या करें क्या न करें ?

Ganesh Chaturthi 2024 : गणेश जन्म कथा | तिथि |क्या करें क्या न करें ?

नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Ganesh Chaturthi 2024 में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, भगवान गणेश को शुभता का देवता माना गया है यही कारण है कि किसी भी मंगलमय कार्य, चाहे वह विवाह हो अथवा किसी व्यापारिक प्रतिष्ठान का उद्घाटन, श्री गणेश की वन्दना सभी देवी-देवताओं से पहले की जाती है। आदिदेव भगवान शिव तथा माता पार्वती ने स्वयं उन्हें प्रथम पूज्य होने तथा सभी गणों के अध्यक्ष होने का आशीर्वाद प्रदान किया है।

संस्कृत में ‘‘अथर्वशीर्ष” नाम से रची गयी दस ऋचाओं में गणेश जी को वांग्मय, चिन्मय सच्चिदानंद रूप, ज्ञानमय और विज्ञानमय का पर्याय बताया गया है कहा जाता है कि जो भी मनुष्य अथर्वशीर्ष का पाठ करता है वह श्रीगणेश जी की अनुकम्पा से सभी विघ्नों से बाहर निकल जाता है।

Ganesh Chaturthi 2024 : गणेश चतुर्थी कब है ?

इस वर्ष गणेश चतुर्थी का प्रसिद्ध उत्सव 6 सितंबर को मनाया जायेगा।

गणेश चतुर्थी पूजन मुहूर्त — गणेश स्थापना का समय सुबह 11 बजकर 03 मिनट से दोपहर 01: 34 तक रहेगा।

Ganesh Chaturthi : श्री गणेश जी की जन्म कथा

Ganesh Chaturthi 2022

हिन्दू संस्कृति और पूजा में भगवान गणेश का स्मरण सर्वप्रथम करने का विधान है। भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र गणेश की महिमा अपरंपार है। शिव महापुराण की सात संहिताओं में से एक रुद्र संहिता के अनुसार, माता पार्वती ने भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन मध्यान्ह के समय स्नान से पूर्व अपने मैल से एक पुत्र तैयार किया तथा उसका नाम गणेश रखा ।

तथा अपने द्वारपाल के रूप में इन्हें नियुक्त किया था तथा यह आज्ञा दी कि बिना मेरी अनुमति के किसी को भी भीतर प्रवेश न दिया जाये। उसी समय भगवान शंकर वहां आये तथा उन्होंने गणेश जी से उनका परिचय पूछा। गणेश जी के अपना परिचय बताने के बाद शिवजी ने उन्हें द्वार से हटने को कहा तो गणेश जी ने मना कर दिया।Ganesh Chaturthi 2024

बार-बार समझाने पर भी जब गणेश नहीं माने तब शिवजी ने अपने गणों को बलपूर्वक उस बालक को हटाने की आज्ञा दी किन्तु गजानन ने अपने मुद्गर से उन सभी गणों को युद्ध में परास्त कर दिया। शिव गणों को युद्ध में पराजित करने के पश्चात शिवजी ने त्रिशूल से उनका सिर धड़ से अलग कर दिया।

उसके बाद मां पार्वती ने अपने बालक को मृत अवस्था में देखा तथा रुष्ट होकर प्रलय की घोषणा कर दी। ऐसे में समस्त जगत में हाहाकार मच गया तथा सभी देवता घबरा गये। ऐसे में सभी देवों ने मां आदिशक्ति जगदंबा की स्तुति करते हुये उने शांत होने का अनुरोध किया। तब माता ने कहा कि यदि मेरे पुत्र को पुनः जीवन मिल जायेगा तो प्रलय को टाला जा सकता है।

तब भगवान शिव ने देवताओं से कहा कि जंगल की ओर जायें तथा जो भी प्रणी सबसे पहले दिखाई दे उसका सिर लेकर तुरंत यहां आयें। ऐसी आज्ञा सुनकर श्री विष्णु अन्य देवताओं के साथ वन को गए तथा वहां पर उन्होनें एक गज को देखा। उसके बाद विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर अलग कर दिया।
Ganesh Chaturthi 2024

Ganesh Chaturthi 2022

देवताओं ने गज का सिर लाकर गणेश के धड़ पर रख दिया शिवजी ने सिर को धड़ पर स्थापित कर उन्हें पुनर्जीवित कर दिया और उसी समय भगवान शिव ने कहा -‘‘ हे गिरिजानंदन ! आप समस्त देवों में सर्वप्रथम पूजे जाएंगे और आप सभी गणों के स्वामी भी होंगे। भाद्रपद मास की चतुर्थी तिथि को चंद्रमा के उदित होने पर आपका जन्मोत्सव गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता रहेगा।

 मान्यता है कि जो भक्त, गणेश चतुर्थी के दिन उपवास, जप, ध्यान और योग आदि करेगा, वह सभी पापों से मुक्त हो जायेगा। भविष्य पुराण के अनुसार इस दिन दान-पुण्य आदि का प्रभाव अधिक प्रभावशाली होता है। पुराणों के अनुसार, भगवान गणेश के ब्रह्मचारी रूप में जीवन बिताने के बहुत से प्रसंग हैं। बाद में देवों के प्रयास से उनकी ऋद्धि-सिद्धि नामक दो पत्नियां हुईं और शुभ तथा लाभ नामक दो पुत्र हुए।

गणेशोत्सव का प्रारम्भ

Ganesh Chaturthi 2024

Ganesh Chaturthi 2022

जिस समय अंग्रेजों ने भारत की सत्ता हासिल की तभी से उन्होंने भारतीय संस्कृति पर प्रहार करना आरम्भ कर दिया। अंग्रेजों ने हमारे उत्सवों, त्योहारों तथा अनेक धाार्मिक कार्यक्रमों पर रोक लगाना शुरू कर दिया। इसे देखते हुये महान क्रांतिकारी लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने सोचा कि हिंदू धर्म को किस प्रकार से संगठित किया जाये।

तिलक ने विचार किया कि भगवान गणेश ही एकमात्र ऐसे देवता हैं जो समाज के सभी वर्गाे में पूजनीय हैं। ऐसा विचार कर उन्होंने हिंदुओं को एकजुट करने के उद्देश्य से महाराष्ट्र के पुणे शहर में सन् 1893 में सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुआत की तथा यह तय किया गया कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक गणेश उत्सव मनाया जायेगा तभी से पूरे महाराष्ट्र में यह उत्सव 11 दिनों तक मनाया जाने लगा। 

पर्यावरण से गणेशोत्सव का सम्बन्ध

भगवान गणेश को जल तत्व के अधिष्ठाता के रूप में भी पूजा जाता है। किसी भी पूजा में चाहे वह मंगल कलश पूजा हो या गणेश चतुर्थी अथवा गणपति प्रतिमा को विसर्जित करने की परंपरा इन सबका सीधा संबंध यही है कि हम जल के महत्व को समझें।

तालाबों और नदी में गणपति विसर्जन का तात्पर्य जल स्रोतों का महत्व सिद्ध करना है जिसे देवों की पूजा के साथ जोड़ दिया गया। भगवान गणेश ने अपने एक दांत से अपनी लेखनी ही बना डाली। संस्कृत में ‘‘अथर्वशीर्ष” नाम से रची दस ऋचाओं में गणेश को अध्यात्म की दृष्टि से वांग्मय, चिन्मय के पर्याय के रूप में सिद्ध किया गया है।

इन ऋचाओं के अनुसार जो भी भक्त भगवान श्री गणेश का नित्य ध्यान-पूजन करता है वह योगियों में श्रेष्ठ योगी माना जाता है। अथर्वशीर्ष का जो भी पाठ करता है वह सभी विघ्नों से बाहर निकल जाता है। गणेश जी की पूजा में मोदक, दूर्वा आदि का विशेष महत्व है। 

नृत्य कला में भगवान गणेश को परम प्रवीण माना जाता है इसीलिए गणपति मंत्रों के साथ भरतनाट्यम सहित विभिन्न नृत्य प्रस्तुतियां शुभ मानी गई हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार गणों के स्वामी गणेश की स्तुति और देवों के मूल प्रेरक की महिमा भरे गान, गणेश अर्चना का महत्व बढ़ा देते हैं।

विद्या की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती के साथ गणेश के स्तोत्रों का उच्चारण करने से स्मरण शक्ति बढ़ती है। इसे यहां धर्मिक दृष्टि से देखा गया है। गणेश चतुर्थी के दिन गाई जाने वाली ऋचाओं और श्रुति मधुर श्लोकों के गायन से घर का वातावरण परिशुद्ध हो जाता है साथ ही सकारात्मक उर्जा की भी प्राप्ति होती है।

Ganesh Chaturthi 2024

Ganesh Chaturthi 2022

गणेशोत्सव की अवधि मे क्या करें क्या न करें ?

  • गणपति को मोदक का भोग लगायें तथा पूजा में दूर्वा एवं पुष्प का प्रयोग करें।

  • जिस अवधि के लिए आप गणपति को घर में लायें प्रतिदिन उसकी पूजा-अर्चना तथा मिष्ठान्न भोग लगायें।

  • भगवान गणेश की पूजा में नीले तथा काले कपड़े न पहनें। इस दिन लाल तथा पीले रंग के कपड़े पहन सकते हैं।

  • भगवान गणेश का वाहन मूषक है तथा ये समस्त जीव-जंतुओं से प्रेमभाव रखते हैं अतः कभी भी जीव-जंतुओं को नहीं सताना चाहिये।

  • इस उत्सव के पूरे 10 दिनों में प्याज-लहसुन, मांसाहार आदि तामसिक भोजन पूर्ण वर्जित है। इन दिनों इनका सेवन कदापि न करें।   
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  • ॥इति॥

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