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Tara Stotra : जानें मां तारा का शक्तिशाली स्तोत्र

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Tara Stotra in Hindi – जानें मां तारा का शक्तिशाली स्तोत्र

नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट tara stotra में आपका हार्दिक अभिनंदन है। दोस्तों, दस महाविद्याओं में से एक भगवती आद्याशक्ति का एक स्वरूप मां तारा का है। क्रोधरात्रि में भगवती तारा का प्रादुर्भाव हुआ था। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महाविद्या तारा की जयन्ती मनाई जाती है।

ये सर्वदा मोक्ष देने वाली तथा भवजल से तारने वाली हैं इसलिए इन्हें तारा कहा जाता है माता की आराधना जितनी सरल है उतनी ही कठिन भी। गृहस्थ मनुष्यों के साथ ही माता तंत्र विद्या के साधकों द्वारा भी बड़ी भक्ति तथा प्रेम-भाव के साथ पूजी जाती हैं। आज हम माता के स्तोत्र को जानेंगे जिसके पाठ से मनुष्य की समस्त विपत्तियों का नाश होता है। तो आईये, पोस्ट आरंभ करें –

Tara Stotra in Hindi : श्री तारा स्तोत्र

Tara Stotra

|| ध्यानम् ||

ऊं प्रत्यालीढ-पदार्चिताङ्घ्रिशवहृद् घोराट्टहासा परा
खड्गेन्दीवर-कर्त्रिकर्परभुजा हुङ्कार बीजोद्भवा ।
सर्वा नीलविशाल-पिङ्गलजटाजूटैक नागैर्युता
जाड्यन्यस्य कपालके त्रिजगतां हन्त्युग्रतारा स्वयम् ॥

शून्यस्था-मतितेजसां च दधतीं शूलाब्ज खड्गं गदां
मुक्ताहारसुबद्ध रत्न रसनां कर्पूर कुन्दोज्वलाम् ।
वन्दे विष्णुसुरेन्द्र-रुद्रनमितां त्रैलोक्य रक्षापराम्
नीलां तामहिभूषणाधि-वलयामत्युग्रतारां भजे ॥

॥ श्री तारा स्तोत्र ॥

Tara Stotra

मातर्नील-सरस्वति प्रणमतां सौभाग्यसम्पत्प्रदे
प्रत्यालीढपदस्थिते शवहृदि स्मेराननाम्भोरुहे ।
फुल्लेन्दीवरलोचने त्रिनयने कर्त्रीकपालोत्पले
खड्गं चादधती त्वमेव शरणं त्वामीश्वरीमाश्रये ॥ 1 ॥

वाचामीश्वरि भक्तिकल्पलतिके सर्वार्थ-सिद्धीश्वरि
गद्य-प्राकृतपद्यजात-रचना-सर्वार्थ-सिद्धिप्रदे ।
नीलेन्दीवर-लोचनत्रययुते कारुण्यवारान्निधे
सौभाग्या-मृतवर्धनेन कृपयासिञ्च त्वमस्मादृशम् ॥ 2 ॥

खर्वे गर्वसमूह-पूरिततनो सर्पादिवेषोज्वले
व्याघ्रत्वक्परिवीत-सुन्दरकटिव्याधूत-घण्टाङ्किते ।
सद्यःकृत्तगलद्रजःपरिमिलन्मुण्डद्वयीमूर्धजे
ग्रन्थिश्रेणि-नृमुण्डदामललिते भीमे भयं नाशय ॥ 3 ॥

मायानङ्गविकाररूप-ललनाबिन्द्वर्धचन्द्राम्बिके
हुम्फट्कारमयि त्वमेव शरणं मन्त्रात्मिके मादृशः ।
मूर्तिस्ते जननि त्रिधामघटिता स्थूलातिसूक्ष्मा परा
वेदानां नहि गोचरा कथमपि प्राज्ञैर्नुतामाश्रये ॥ 4 ॥

त्वत्पादाम्बुजसेवया सुकृतिनो गच्छन्ति सायुज्यतां
तस्याः श्रीपरमेश्वर-त्रिनयन-ब्रह्मादि-साम्यात्मनः ।
संसाराम्बुधिमज्जने पटुतनुर्देवेन्द्र-मुख्यासुरान्
मातस्ते पदसेवने हि विमुखान् किं मन्दधीः सेवते ॥ 5 ॥

Tara Stotra

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tara stotra
मातस्त्वत्पदपङ्कज-द्वयरजोमुद्राङ्ककोटीरिणस्ते

देवा जयसङ्गरे विजयिनो निश्शङ्कमङ्के गताः ।
देवोऽहं भुवने न मे सम इति स्पर्धां वहन्तः परे
तत्तुल्यां नियतं यथा शशिरवी नाशं व्रजन्ति स्वयम् ॥ 6 ॥

त्वन्नामस्मरणात्पलायनपरान्द्रष्टुं च शक्ता न ते
भूतप्रेतपिशाचराक्षसगणा यक्षश्च नागाधिपाः ।
दैत्या दानवपुङ्गवाश्च खचरा व्याघ्रादिका जन्तवो
डाकिन्यः कुपितान्तकश्च मनुजान् मातः क्षणं भूतले ॥ 7 ॥

लक्ष्मीः सिद्धिगणश्च पादुकमुखाः सिद्धास्तथा वैरिणां
स्तम्भश्चापि वराङ्गने गजघटास्तम्भस्तथा मोहनम् ।
मातस्त्वत्पदसेवया खलु नृणां सिद्ध्यन्ति ते ते गुणाः
क्लान्तः कान्तमनोभवोऽत्र भवति क्षुद्रोऽपि वाचस्पतिः ॥ 8 ॥

ताराष्टकमिदं पुण्यं भक्तिमान् यः पठेन्नरः ।
प्रातर्मध्याह्नकाले च सायाह्ने नियतः शुचिः ॥ 9 ॥

Tara Stotra

लभते कवितां विद्यां सर्वशास्त्रार्थविद्भवेत्
लक्ष्मीमनश्वरां प्राप्य भुक्त्वा भोगान्यथेप्सितान् ।
कीर्तिं कान्तिं च नैरुज्यं प्राप्त्यान्ते मोक्षमाप्नुयात् ॥ 10 ॥

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॥ इति ॥

दोस्तों, आशा करते हैं कि पोस्ट tara stotra आपको पसंद आई होगी। यदि आप हमें कुछ सुझाव देना चाहें तो कमेंट बॉक्स के माध्यम से दे सकते हैं, अपना अमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद। आपका दिन शुभ व मंगलमय हो।


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