Das Mahavidya: 10 महाविद्या के नाम, उत्पत्ति पूजा, मंत्र से लाभ | Ten Mahavidya In Hindi
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नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Das Mahavidya में आपका हार्दिक अभिनंदन है। दोस्तों, प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन में तरह-तरह की अभिलाषायें तथा आकांक्षायें रखता है जिनमें से कुछ लोगों की मनोकामनायें पूर्ण हो जाती हैं तो कुछ की अपूर्ण रहती हैं। वैसे कामनाओं का पूर्ण या अपूर्ण होना हमारे अपने कर्म तथा प्रारब्ध पर निर्भर करता है।
आज हम आपको दस महाविद्याओं के संबंध में जानकारी देने वाले हैं जिनकी साधना से मनुष्य अपनी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण कर सकता है। ये दस महाविद्या मां दुर्गा का ही उग्र रूप मानी जाती हैं। प्रकृति की समस्त शक्तियों में तथा परमपिता द्वारा रचित इस ब्रह्मांण्ड के मूल में यह महाविद्यायें समाहित हैं।
इनकी साधना करके मनुष्य अपने इस लोक को तो सुधारता ही है साथ ही वह परलोक को भी सुधार सकता है। सनातन धर्म में दस के अंक का अपना ही एक महत्व है। जैसा कि हम जानते हैं कि दिशाओं की कुल संख्या भी 10 ही है तथा यह महाविद्यायें प्रत्येक दिशा की शक्तियां हैं। ये 10 Mahavidya महाविद्यायें माता आदिशक्ति का ही अवतार हैं। तो आईये, पोस्ट शुरु करते हैं।
Das Mahavidya: विभिन्न दिशाओं की विभिन्न शक्तियों के नाम
संसार की 10 दिशाओं की स्वामिनी 10 महाविद्यायें हैं। आईये जानते हैं किस दिशा की स्वामिनी कौन-सी देवी हैं –
उत्तर दिशा – भगवती “काली” तथा देवी “तारा” उत्तर दिशा की शक्ति हैं।
ईशान दिशा – श्री “विद्या” अर्थात षोडशी इस दिशा की शक्ति हैं।
पश्चिम दिशा – देवी “भुवनेश्वरी” पश्चिम दिशा की स्वामिनी हैं।
दक्षिण दिशा – श्री “त्रिपुर भैरवी” दक्षिण दिशा की शक्ति हैं।
पूर्व दिशा – पूर्व दिशा की देवी माता “छिन्नमस्ता” हैं।
अग्निक कोण या दिशा – इसकी देवी माता “धूमावती” हैं।
दक्षिण दिशा – मां “बग्लामुखी” इस दिशा की देवी हैं।
वायव्य दिशा – भगवती “मातंगी देवी” वायव्य दिशा की शक्ति हैं।
नैऋत्य दिशा – श्री “कमला” इस दिशा की अधिष्ठात्री हैं।
दो कुलों में हैं विभाजित
कहीं-कहीं पर 24 महाविद्याओं का भी विवरण मिलता है किन्तु मूलतः महाविद्याओं की संख्या 10 ही बताई जाती है। इन महाविद्याओं को दो कुलों में विभाजित किया गया है, श्री कुल और काली कुल। इन दोनों ही कुलों में नौ-नौ देवियों का वर्णन किया गया है जिससे इनकी संख्या 18 हो जाती है। विद्वानों ने इन्हें तीन रूपों में विभाजित किया है उग्र, सौम्य तथा सौम्य-उग्र।
उग्र रूवरूप में देवी काली, छिन्नमस्तिका, धूमावती व बगलामुखी हैं।
सौम्य स्वरूप में देवी त्रिपुरसुन्दरी, भुवनेश्वरी, मातंगी और महालक्ष्मी अर्थात कमला हैं।
सौम्य-उग्र में तारा तथा भैरवी हैं।
मां भगवती के इस जगत में आने तथा इनके रूपों को धारण करने का कारण जगत कल्याण, साधक की उपासना की सफलता तथा दुष्टों के नाश के लिए है।
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10 Mahavidya: पुराणों में प्रचलित कथा (महत्व)
पुराणों में एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक समय की बात है भगवान शिव की किसी बात से माता पार्वती रूष्ट हो जाती हैं माता को इतना क्रोध आया कि क्रोध से उनका शरीर काला पड़ने लगा। यह देखकर उनके क्रोध को कम करने के उद्देश्य शिवजी वहां से उठे और किसी अन्य स्थान की ओर जाने लगे।
अभी वे चले ही थे उन्होंने अपने सामने मां के दिव्य स्वरूप को देखा। फिर जब वे दूसरी दिशा की ओर मुड़े तो दूसरा तेजस्वी रूप दिखाई दिया फिर एक-एक करके महादेव दसों दिशाओं में गये तो प्रत्येक दिशा मेें माता का ही स्वरूप खड़ा दिखाई दिया। ये देखकर महादेव आश्चर्य में पड़ गये तथा सोचने लगे कि यह देवी पार्वती की ही माया तो नहीं है ?
जब उन्होंने माता पार्वती से इस रहस्य का कारण पूछा तो माता ने कहा कि आपके समक्ष काले स्वरूप में सिद्धिदात्री काली हैं, ऊपर की ओर नीलवर्णा देवी तारा हैं, पश्चिम में कटे सिर को उठाये मोक्ष प्रदान करने वाली देवी छिन्नर्मिस्तका, बांई और भुवनेश्वरी, पीछे शत्रु का स्तम्भन करने वाली देवी बगलामुखी, अग्निकोण में धूमावती, वायव्य कोण में मोहिनी विद्या वाली मातंगी, ईशान कोण में षोडशी और सामने भैरवी रूपा मैं स्वयं उपस्थित हूं।
माता ने कहा कि मेरे इन स्वरूपों की विधिवत पूजा-अर्चना करने से मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष की प्राप्ति सहजता से हो जाती है। इसके बाद महादेव की माता पार्वती से निवेदन करने पर ये समस्त महाविद्यायें माता काली में समाकर एकरूप हो गईं।
Das Mahavidya: समस्त कामनाओं को प्रदान करने वाली 10 महाविद्यायें
माता काली –
Dash Mahavidya
10 महाविद्याओं में देवी काली प्रथम हैं, माता का यह रूप साक्षात तथा जाग्रत अवस्था में है। दैत्यों के विनाश के लिए माता ने यह रूप धरा है इनका स्वरूप अत्यंत भयावह है मुण्डमाल धारण किये तथा खड्ग-खप्पर उठाये हुये मां अपने भक्तों को अभय दान देती हैं। ये रक्तबीज तथा चण्ड व मुण्ड जैसे महादैत्यों का नाश करने वाली मां शिवप्रिया साक्षात चामुण्डा का रूप हैं ।
इनका क्रोध शांत करने के लिए स्वयं महादेव को इनके चरणों के आगे लेटना पड़ा था। मां काली का शक्तिपीठ कोलकाता के कालीघाट पर दक्षिणेस्वरी काली तथा मध्य प्रदेश के उज्जैन के भैरवगढ़ में गढ़कालिका के नाम से स्थित है। इसके अलावा गुजरात के पावागढ़ में भी माता का जागृत शक्तिपीठ स्थित है।
माता काली बीज मंत्र–
ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिका
क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥
मां तारा –
Das Mahavidya
माता का यह स्वरूप मुख्यतः तांत्रिकों में पूजा जाता है। माना जाता है कि इनकी सर्वप्रथम आराधना महर्षि वशिष्ठ ने की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में माता सती के नेत्र गिरे थे इसी कारण इस पीठ को नयनतारा एवं तारापीठ भी कहा जाता है। हिमाचल की राजधानी शिमला से लगभग 13 किमी0 की दूरी पर शागी नामक स्थान पर इनका एक मंदिर है। इनकी मान्यता बौद्ध धर्म में भी है।
बीज मंत्र –
ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट्॥
त्रिपुरसुन्दरी –
चार भुजाओं तथा तीन नेत्रों वाली माता षोडशी महेश्वरी की विग्रह वाली देवी हैं इन्हें ललिता, राजराजेश्वरी तथा त्रिपुरसुन्दरी तीन नामों से जाना जाता है। षोडश कलाओं से परिपूर्ण होने के कारण इन्हें षोडशी भी कहा गया है। त्रिपुरा में जिस स्थान पर देवी सती के धारण किये वस्त्र गिरे थे वहीं इनका शक्तिपीठ स्थित है। जगत के विस्तार का समस्त कार्य इन्हीं में समाहित है। यही परा कही गई हैं।
बीज मंत्र –
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः॥
मां भुवनेश्वरी –
इन्हें आदि शक्ति तथा मूल प्रकृति कहा जाता है। माता भुवनेश्वरी ही शताक्षी तथा शाकुम्भरी देवी के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। प्रायः मनुष्य पुत्र प्राप्ति की कामना से इनकी आराधना करते हैं। इनका स्वरूप सौम्य है तथा भक्तों को अभय तथा सिद्धियां प्रदान करना इनका विशेष गुण है माता की आराधना करने से साधक को सूर्य के समान तेज और ऊर्जा प्राप्त होती है।
बीज मंत्र –
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नमः॥
माता छिन्नमस्ता
Das Mahavidya
परिवर्तनशील संसार की देवी छिन्नमस्ता Das Mahavidya मानी जाती हैं इनका सिर कटा हुआ है तथा धड़ से रक्त की तीन धारायें प्रवाहित हो रही हैं। इनकी तीन आंखें हैं गले में हड्डियों की माला तथा कन्धे पर यज्ञोपवीत विद्यमान है। शान्त भाव से उपासना करने पर यह अपने शान्त स्वरूप में दर्शन देती हैं ।
बीज मंत्र –
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट् स्वाहा॥
देवी त्रिपुरभैरवी –
इनकी उपासना से सभी बन्धन दूर हो जाते हैं। माता भैरवी के कई रूप हैं जिनमें त्रिपुरा भैरवी, चैतन्य भैरवी, सिद्ध भैरवी, भुनवनेश्वर भैरवी, संपदाप्रद भैरवी, कमलेश्वरी भैरवी, कौलेश्वर भैरवी, कामेश्वरी भैरवी, नित्याभैरवी, रूद्रभैरवी, भद्रभैरवी तथा षटकुटा भैरवी आदि हैं। इनकी चार भुजायें तथा तीन नेत्र हैं इन्हें षोडशी भी कहा जाता है।
बीज मंत्र –
ॐ ह्रीं भैरवी कलौं ह्रीं स्वाहा॥
धूमावती –
Das Mahavidya
माता धूमावती का कोई स्वामी न होने के कारण इन्हें विधवा माता कहा जाता है। इनकी आराधना करने से आत्मबल का विकास होता है तथा साधक के जीवन में निडरता तथा निश्चिंतता का भाव प्रकट होने लगता है। ऋग्वेद में इन्हें सुतरा कहा गया है। सुतरा का अर्थ है सुखपूर्वक तारने वाली।
इनकी आराधना के लिए साधक को सात्विक, सत्यनिष्ठ तथा नियमों के पालन करने वाला होना चाहिए उसे लोभ-लालच से दूर तथा शराब एवं मास से भी दूर रहना चाहिए। माता धूमावती अत्यधिक उग्र हैं एक बार भगवान शिव से भोजन मांगने से देरी होने पर इन्होंने शिवजी को ही निगल लिया था ।
ऐसा करते ही देवी के शरीर से धुंआ निकलने लगा और शिवजी अपनी माया से बाहर आ गये और देवी से कहा कि तुमने अपने पति को निगल लिया है इसलिए तुम विधवा हो गई हो। अब तुम्हें बिना किसी श्रृंगार के रहना होगा तथा जगत में धूमावती के नाम से तुम्हारी ख्याति होगी।
बीज मंत्र –
ॐ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा॥
मां बगलामुखी –
माता बगलामुखी की आराधना युद्ध में विजय तथा शत्रुओं के नाश के लिए की जाती है। कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध से पूर्व भगवान श्रीकृष्ण तथा अर्जुन ने माता बगलामुखी की ही आराधना की थी जिससे उन्हें विजय प्राप्त हुई। इनकी आराधना शत्रु भय से मुक्ति तथा वाकसिद्धि के लिए की जाती है।
बीज मंत्र –
ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै ह्लीं ॐ नमः॥
देवी मातंगी –
मातंग भगवना शिव को कहते हैं जिनकी शक्ति मातंगी हुईं। गृहस्थों के लिए इनकी आराधना विशेष फलदायी है अभीष्ठ फल की प्राप्ति तथा गृहस्थ जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए इनकी पूजा-अर्चना की जाती है। माता मातंगी भगवान शिव की ही भांति मस्तक पर चंद्रमा धारण करती हैं।
बीज मंत्र –
ॐ ह्रीं ऐं भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा॥
माता कमला –
Das Mahavidya
माता कमला को लक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है। समुद्र मंथन जब हुआ उस समय समुद्र से इनकी उत्पत्ति मानी जाती है। माता कमला ने त्रिपुरसुन्दरी की आरधना की थी। ये संसार की समस्त संपदा धन-धान्य, श्री तथा वैभव प्रदान करने वाली देवी हैं श्री लक्ष्मी को सर्वलोकमहेश्वरी की संज्ञा दी गयी है।
देवी भागवत में इन्हें भुवनेश्वरी, इन्द्र ने यज्ञ विद्या, महाविद्या तथा गुह्यविद्या कहा है। जब-जब श्री विष्णु अवतार लेते हैं तब-तब उन्हीं के अनुरूप माता अपना स्वरूप बना लेती हैं जैसे श्रीकृष्ण के साथ काली, श्री राम के साथ तारा, वरहावतार के साथ भुवनेश्वरी, नृसिंह के साथ भैरवी, वामन के साथ धूमावती, परशुराम के साथ छिन्नमस्ता, मतस्यावतार के साथ कमला, कूर्म के साथ बगला, तथा कल्कि के साथ षोडशी लक्ष्मी के ही विविध रूप हैं।
बीज मंत्र –
ॐ ह्रीं अष्ट महालक्ष्म्यै नमः॥
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Das Mahavidya : महाविद्या पाठ के लाभ
- दस महाविद्या Das Mahavidya पाठ के जाप करने से मनुष्य को मॉं पार्वती एवं शिवजी की दिव्य कृपा प्राप्त होती है।
- इस पाठ को करने से यश, समृद्धि, प्रसिद्धि, कीर्ति, विजय, और धन, लाभ की प्राप्ति होती है।
- इस पाठ से मनुष्य को होने वाले गम्भीर रोगों से सुरक्षा होती है और पुराने रोगों से मुक्ति भी मिलती है।
- इस पाठ से कुण्डलिनी जागरण, प्राणश्चेतना,ज्ञानश्चेतना, समाधि, ब्रह्मज्ञान, सम्मोहन, मोक्ष और पूर्णता की भी प्राप्त होती है ।
- इस पाठ को करने से आत्मविश्वास में बढ़ोतरी, पौरुष व बल आदि की भी प्राप्ति मनुष्य को होती हैं।
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नमस्कार दोस्तों, मैं सुगम वर्मा (Sugam Verma), Jagurukta.com का Sr. Editor (Author) & Co-Founder हूँ । मैं अपनी Education की बात करूँ तो मैंने अपनी Graduation (B.Com) Hindu Degree College Moradabad से की और उसके बाद मैने LAW (LL.B.) की पढ़ाई Unique College Of Law Moradabad से की है । मुझे संगीत सुनना, Travel करना, सभी तरह के धर्मों की Books पढ़ना और उनके बारे में जानना तथा किसी नये- नये विषयों के बारे में जानकारियॉं जुटाना और उसे लोगों के साथ share करना अच्छा लगता है जिससे उस जानकारी से और लोगों की भी सहायता हो सके। मेरी आपसे विनती है की आप लोग इसी तरह हमारा सहयोग देते रहिये और हम आपके लिए नईं-नईं जानकारी उपलब्ध करवाते रहेंगे। आशा है आप हमारी पोस्ट्स को अपने मित्रों एवं सम्बंधियों के साथ भी share करेंगे। और यदि आपका कोई question अथवा सुझाव हो तो आप हमें E-mail या comments अवश्य करें।