गुप्त नवरात्रि | Gupt Navratri | शुभ मुहूर्त | विशेष महत्व | कैसे करें पूजन ?
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नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Gupt Navratri में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, हम सभी जानते हैं मां दुर्गा का पावन पर्व नवरात्र वर्ष में दो बार आता है। हमारे यहां कुछ राज्य जैसे पं0 बंगाल में शरद ऋतु में आयोजित नवरात्र का विशेष महत्व है। बड़े-बड़े पंडालों में मां भगवती को 9 दिनों के लिए प्रतिस्थापित किया जाता है।
पर क्या आप जानते हैं कि इनके अतिरिक्त दो और नवरात्र होते हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है ? जी हां, आपने ठीक पढ़ा है। अपने नाम के ही अनुरूप ये नवरात्र गुप्त रहते हैं तथा कुछ विशेष साधकों जिनमें तंत्र-मंत्र के साधक, कोई विशेष अनुष्ठान करने वालों के लिए ही इन नवरात्रों का विशेष महत्व होता है।
ऐसा नहीं है कि सभी भक्त इन नवरात्रों पर पूजा पाठ नहीं कर सकते। मां आदिशक्ति तो समस्त जगत की माता हैं अतः हम सभी इन नवरात्रों को शक्ति की साधना कर सकते हैं। इस पोस्ट में हम गुप्त नवरात्रि पर चर्चा करेंगे। तो आईये, पोस्ट शुरू करते हैं।
Gupt Navratri : जानें वर्ष की 4 नवरात्री
Gupt Navratri
प्रत्येक वर्ष में 4 नवरात्रि होती हैं, इनमें से दो गुप्त नवरात्रि होती हैं। पहली गुप्त नवरात्रि माघ के महीने में पड़ती है और दूसरी आषाढ़ माह में| इसकी पूजा तंत्र—मंत्र करने वालों के लिए विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है| गुप्त नवरात्रि पर मां दुर्गा के दस महाविद्या स्वरूपों की पूजा की जाती है|
दस महाविद्याओं की पूजा
मां दुर्गा के नौ रूप हैं इनमें शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री माता हैं। चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि में देवी के इन नौ रूपों की पूजा की जाती है, जबकि गुप्त नवरात्रि में इनके साथ—साथ देवी की दस महाविद्याओं की भी पूजा होती है जिनके नाम हैं —
काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरभैरवी (त्रिपुर सुंदरी), धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला। इनकी हर दिन पूजा की जाती है। देवी की ये दस महाविद्याएं अत्यंत प्रभावशाली हैं जो साधकों के लिए संसार की हर वस्तु सुलभ कर देती हैं|
सतयुग से लेकर कलयुग तक में नवरात्रि का महत्व
मार्कंडेय पुराण के अनुसार सतयुग में चैत्र नवरात्रि का महत्व रहा है, वहीं त्रेता में आषाढ़ की गुप्त नवरात्रि की मान्यता अधिक रही है। वहीं द्वापर युग में माघ माह की गुप्त नवरात्रि का समय रहा तो कलयुग में आश्विन माह की नवरात्रि की मान्यता अधिक रही है।
ये चारों नवरात्रियां चार युगों की प्रतीक हैं। इन नौ दिनों में मां दुर्गा के भक्त माता को प्रसन्न करने और अपने जीवन में उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पूजा और उपवास रखते हैं।
तंत्र— मंत्र की सिद्धि करने वाली नवरात्रि
आपको बता दें कि शुरू से ही गुप्त नवरात्रि तंत्र साधना, जादू-टोना, वशीकरण आदि के लिए ही भक्तों के बीच विशेष महत्व रखता है। गुप्त नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा को कठिन भक्ति व तपस्या से प्रसन्न किया जाता है। निशा अर्थात रात्रि में विशेष रूप से तंत्र सिद्धि की पूजा की जाती है। इतना ही नहीं भक्ति की सेवा से प्रसन्न होकर मां दुर्लभ और अतुल्य शक्ति का वरदान देती है। साथ ही सभी मनोरथ सिद्ध करती हैं।Gupt Navratri
गुप्त नवरात्रि में शक्ति के साधक देवी दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, लेकिन देवी के प्रत्येक स्वरूप की पूजा का अलग-अलग फल प्राप्त होता है। देवी के अलग-अलग स्वरूपों की अलग-अलग पूजा पद्धति बताई गई है। ऐसे में साधक को हमेशा अपनी मनोकामना के अनुसार देवी की विशेष पूजा पद्धति को अपनाते हुए साधना करनी चाहिए।
शक्ति के 3 स्वरूप – सात्विक, राजसिक और तामसिक।
भक्ती तथा शक्ति की आराधना के तीन स्वरूप माने गये हैं इसमें माता सरस्वती का सात्विक स्वरूप, माता लक्ष्मी का राजसिक तथा माता काली को तामसिक स्वरूप वाली माना जाता है। गुप्त नवरात्रि का समय देवी के इन तीनों स्वरूपों की साधना-आराधना के लिए उत्तम माना गया है।
गुप्त नवरात्रि को तंत्र-मंत्र को सिद्ध करने वाली नवरात्रि माना जाता है। तंत्र साधना वालों के लिए ये नौ दिन विशेष रूप से फलदायी माने जाते हैं। इस नवरात्रि में साधक कठिन भक्ति कर माता को प्रसन्न करते हैं। मान्यता है कि इस नवरात्रि में की जाने वाली विशेष पूजा से तमाम कष्ट दूर हो जाते हैं। गुप्त नवरात्रि की पूजा भी गुप्त रूप से की जाती है। पूजा, मंत्र, पाठ और प्रसाद सभी चीजों को गुप्त रखा जाता है, तभी साधना फलित होती है।
कैसे करें पूजन ?
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और पूजा या व्रत का संकल्प लें। कलश स्थापना से पहले मंदिर की अच्छे से साफ-सफाई करें और गंगाजल छिड़कें। इसके बाद मिट्टी के पात्र में जौ के बीज को बोएं और उसके बाद कलश रखकर स्थापना करें। गुप्त नवरात्रि के दौरान सात तरह के अनाज, पवित्र नदी के रेत, पान, हल्दी, सुपारी, चंदन, रोली, रक्षा धागा, जौ, कलश, फूल, अक्षत और गंगाजल से पूजन करें।
गुप्त नवरात्रि पर शक्ति की साधना से जुड़े नियम —
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• सबसे पहला नियम यह है कि गुप्त नवरात्रि में देवी की साधना पूरी तरह से गुप्त तरीके से करना चाहिए। भूलकर भी की जाने वाली साधना-आराधना का प्रचार या महिमामंडन नहीं करना चाहिए।
• गुप्त नवरात्रि पर शक्ति की साधना हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए। देवी की साधना शुरु करने से पहले प्रतिदिन पूजा से जुड़ी प्रत्येक वस्तु को अपने पास रख लें, जिससे पूजा के समय आपका ध्यान भंग न हो।
• देवी की साधना सदैव एक निश्चित समय तथा एक निश्चित स्थान पर करनी चाहिए। साधना करने के लिए हमेशा अपने आसन का ही प्रयोग करें, कभी भी दूसरे के आसन का प्रयोग बैठने के लिए नहीं करना चाहिए। शक्ति की साधना के लिए लाल रंग का ऊनी आसन अत्यंत ही शुभ माना गया है।Gupt Navratri
• गुप्त नवरात्रि में शक्ति की साधना के दौरान हमेशा एक निश्चित संख्या में देवी के मंत्र का जप करना चाहिए। कभी भी ज्यादा या कम मंत्र जप नहीं करना चाहिए।
• शक्ति की साधना के लिए चंदन की माला को श्रेष्ठ माना गया है। यदि चंदन की माला न मिले तो आप रुद्राक्ष की माला से जप कर सकते हैं, लेकिन ध्यान रहे कि जप हमेशा अलग माला से करें, गले में पहनने वाली माला का प्रयोग देवी के जप के लिए न करें।
• यदि आप गुप्त नवरात्रि पर धन की देवी मां लक्ष्मी का आशीर्वाद पाने के लिए साधना कर रहे हैं तो उनके मंत्रों का जप स्फटिक या कमलगट्टे की माला से करें।
• मां काली की साधना में काले रंग की वस्तुओं का विशेष महत्व होता हैं। ऐसे में माता काली की साधना करने वाले साधक को काले रंग के वस्त्र एवं काले रंग का आसन का प्रयोग करना चाहिए। इसी प्रकार मां सरस्वती के साधक को पीले रंग के वस्त्र एवं पीले रंग का आसन का प्रयोग करना चाहिए।
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