Shiv Chalisa : श्री शिव चालीसा
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(हिन्दी अर्थ सहित)
दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Shiv Chalisa में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, शिवजी को उनके भोले स्वभाव के कारण ही उनको भोलेनाथ, भोले भण्डारी अनेक नामों से पुकारा जाता है। हमारे इन्हीं भोले बाबा की शिव चालीसा Shiv Chalisa in Hindi पढ़ने से हमें शिव जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह चालीसा बाबा भोलेनाथ जी की कृपा पाने का सबसे सुगम मार्ग है।
इस पोस्ट में हम शिव चालीसा का अर्थ सहित पाठ करेंगे। तो आईये पोस्ट आरंभ करते हैं।
Shiv Chalisa : श्री शिव चालीसा
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन मंगल मूल सुजान,
कहत अयोध्यादास तुम देउ अभय वरदान।
अर्थ- शिव चालीसा के रचयिता श्री अयोध्यादास जी रचना प्रारम्भ करने से पूर्व गणेश जी की वंदना करते हुए लिखते हैं कि जो समस्त मंगल कार्याें के ज्ञाता हैं उन गौरीपुत्र गणेश जी की जय हो ! हे गणेश जी ! इस कार्य को निर्विघ्न समाप्त करने का वरदान देें।
जय गिरिजापति दीनदयाला।
सदा करत संतन प्रतिपाला॥
अर्थ- जो दीन-जनों पर कृपा करने वाले हैं और संत-जनों की सदा ही रक्षा करते हैं ऐसे पार्वती (गिरिजा) के पति शंकर भगवान की जय हो।
भाल चन्द्रमा सोहत नीके।
कानन कुण्डल नागफनी के॥
अर्थ- आपके मस्तक पर चन्द्रमा शोभित हैं और कानों में नागफनी के कुण्डल सुशोभित हैं।
Shiv Chalisa
अंग गौर सिर गंग बहाए।
मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
अर्थ- आपका रंग गौर वर्ण का है और सिर की जटाओं में से गंगाजी बह रही हैं, गले में मुण्डों की माला है और शरीर पर भस्म लगा रखी है।
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।
छबि को देखि नाग मुनि मोहे॥
अर्थ- आपके शरीर पर वस्त्रों के रूप में शेर की खाल शोभा देती है, यह वेषभूषा देखकर सब नर-नारी श्रद्धा से शीश झुकाते हैं।
मैना मातु की हवै दुलारी।
बाम अंग सोहत छबि न्यारी॥
अर्थ- मैना की दुलारी अर्थात् उनकी पुत्री पार्वतीजी उनके बायें भाग में सुशोभित हो रही हैं।
कर त्रिशूल सोहत छबि भारी।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
अर्थ- आपके हाथ में त्रिशूल शोभायमान हो रहा है। आप अपने इस प्रलयंकारी त्रिशूल से सदैव दुष्टों और शत्रुओं का संहार करते हैं।
नंदि गणेश सोहैं तहैं कैसे।
सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
अर्थ- भगवान शंकर के समीप नंदी व गणेश जी ऐसे सुंदर लगते हैं, जैसे सागर के मध्य कमल शोभायमान होता है।Shiv Chalisa
कार्तिक श्याम गौर गणराऊ।
या छबि को कहि जात न काऊ॥
अर्थ- श्याम वर्ण कार्तिकेय तथा गौर वर्ण श्री गणेशजी की छवि का बखान करना किसी के लिए भी सम्भव नहीं है।
देवन जबहीं जाय पुकारा।
तबहीं दुख प्रभु आप निवारा॥
अर्थ- देवताओं ने जब भी सहायता की पुकार की हे नाथ ! आपने तुरंत ही उनके दुख दूर किए।
कियो उपद्रव तारक भारी।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
अर्थ- जब ताड़कासुर नामक राक्षस ने देवताओं पर तरह-तरह के उपद्रव (अत्याचार) करना प्रारम्भ किया तो सभी देवतागण उससे छुटकारा पाने के लिए आपकी शरण में दौड़े चले आए। Shiv Chalisa
तुरत षडानन आप पठायउ।
लव निमेष महं मारि गिरायउ॥
अर्थ- देवताओें की प्रार्थना को मानते हुए आपने उसी समय स्वामी कार्तिकेय को भेजा और उन्होंने जाकर शिवजी की दी हुयी शक्ति से उस पापी राक्षस को मार डाला।
आप जलंधर असुर संहारा।
सुयश तुम्हार बिदित संसारा॥
अर्थ- आपने जलंधर नामक भयंकर राक्षस का संहार किया उससे आपका जो यश फैला, उससे सारा संसार परिचित है।
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।
सबहिं कृपा करि लीन बचाई॥
अर्थ- आपने त्रिपुर नामक भयंकर राक्षस से युद्ध करके सभी देवताओं पर कृपा की और उनको बचा लिया।
किया तपहिं भागीरथ भारी।
पुरव प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
अर्थ- जब भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए महान तप किया तब आपने ही अपनी जटाओं से गंगा की धारा को छोड़कर उनकी प्रतिज्ञा पूरी की थी।
दानिन मह तुम सम कोउ नाहीं।
सेवक अस्तुति करत सदाहीं॥
अर्थ- संसार के सभी दानियों में आपके समान बड़ा कोई दानी नहीं है। भक्त आपकी सदा ही वन्दना करते रहते हैं।
वेद माहिं महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहीं पाई॥
अर्थ- आपके अनादि (प्राचीन) होने का भेद कोई बता नहीं सका। वेदों में भी आपके नाम की महिमा गाई गई है।
प्रकटी उदधि मथन ते ज्वाला।
जरत सुरासुर भए बिहाला॥
अर्थ- जब समुद्र का मंथन हो रहा था तब उसमें से अमृत के साथ विष की ज्वाला भी निकली। उस विष रूपी ज्वाला की लपट से देवतागण और दानव दोनों जलने लगे तथा जलन से व्याकुल हो उठे।
कीन्ह दया तहं करी सहाई।
नीलकंठ तब नाम कहाई॥
अर्थ- उस संकट की घड़ी में केवल आप ही उनकी सहायता के लिए पहुंचे और सारा विष पीकर उनकी जान बचाई। इसी विष को पीने से आपका सारा शरीर नीला हो गया जिसके कारण आप “नीलकंठ“ कहलाये।
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हो।
जीति के लंक विभीषण दीन्हो॥
अर्थ- लंका पर चढ़ाई के समय रामेश्वरम में जब श्रीरामचन्द्र जी ने आपकी पूजा की तो आपकी कृपा से ही उन्होंने लंका पर विजय प्राप्त की और विभीषण को लंका का राजा बना दिया।
सहस कमल में हो रहे धारी।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
अर्थ- जब श्रीरामचन्द्रजी सहस्त्र कमलों के द्वारा आपकी पूजा कर रहे थे तो हे भोलेनाथ ! अपनी माया के प्रभाव से उनकी परीक्षा ली।
Shiv Chalisa
एक कमल प्रभु राखेउ गोई।
कमल-नैन पूजन चहं सोई॥
अर्थ- आपने एक कमल का फूल अपनी माया से लुप्त कर लिया तो उनहोंने कमल के फूल के स्थान पर अपने नयन रूपी पुष्प से पूजन करना चाहा।
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
अर्थ- जब आपने राघवेन्द्र की इस प्रकार की कठोर भक्ति देखी तो प्रसन्न होकर उन्हें मनवांछित वर प्रदान किया।
जय जय जय अनन्त अविनासी।
करत कृपा सबके घटवासी॥
अर्थ- जो अनन्त हैं और अविनाशी हैं, ऐसे भगवान शंकर की जय हो, जय हो, जय जय हो। सबके हृदय में निवास करनेवाले आप सब पर कृपा करते हैं।
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
अर्थ- दुष्ट विचार सैदव मुझे सताते रहते हैं, जिससे मेरा मन हमेशा भ्रमित रहता है और मुझे क्षणमात्र भी चैन नहीं मिलता।
त्राहि-त्राहि मैं नाथ पुकारौं।
यदि अवसर मोहि आन उबारौ॥
अर्थ- हे भोलेनाथ ! बस मैं इन चीजों से ही तंग होकर आपकी शरण में आया हूं। इस संकट के समय आप ही मेरा उद्धार कर सकते हैं।
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।
संकट तें मोहि आन उबारो॥
अर्थ- अपने त्रिशूल से मेरे शत्रुओं को नष्ट करें और संकट से मेरा उद्धार करें।
मात-पिता भ्राता सब होई।
संकट में पूछत नहीं कोई॥
अर्थ- माता-पिता और भाई इत्यादि सम्बन्धी सब सुख में ही साथी होते हैं। संकट आने पर कोई पूछता भी नहीं है।
स्वामी इक है आस तुम्हारी।
आय हरहु मम संकट भारी॥
अर्थ- हे जगत के स्वामी! आप ही ऐसे हैं जिस पर मुझे आशा लगी हुई है। आप शीघ्र ही आकर मेरे इस घोर संकट को दूर कीजिए।
धन निर्धन को देत सदाहीं।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अर्थ- आप सदैव निर्धन व्यक्तियों को धन देकर उनकी सहायता करते हैं। जो कोई आपकी जैसी भक्ति करता है वैसा ही फल उसे प्राप्त होता है।
अस्तुति केहि बिधि करौं तुम्हारी।
छमहु नाथ अब चूक हमारी॥
अर्थ- हे नाथ ! मैं किस प्रकार आपकी पूजा अर्चना करूं, यह मुझे ज्ञात नहीं है, अतः अगर आपके पूजन अर्चन में कोई भूल हो तो आप हमें क्षमा कर दीजिएगा।
शंकर हो संकट के नाशन।
विघ्न विनाशन मंगल कारन॥
अर्थ- शिव शंकर भोलेनाथ ! आप ही संकटों से मुक्त करवाने वाले हैं सारे शुभ काम आपका नाम लेने से पूरे हो जाते हैं।
योगी यति मुनी ध्यान लगावें।
नारद शारद शीश नवावें॥
अर्थ- योगीजन, यति व मुनिजन सदा आपका ही ध्यान करते हैं। नारद और सरस्वती भी आपको ही शीश नवाते हैं।
नमो नमो जय नमः शिवाय
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
अर्थ- आपके स्मरण का मूल मन्त्र “ऊं नमः शिवाय“ है। इस मन्त्र का जप करके भी ब्रह्मा आदि देवता आपका पार नहीं पा सके। Shiv Chalisa
जो यह पाठ करे मन लाई।
ता पर होत हैं शम्भु सहाई॥
अर्थ- जो व्यक्ति इस शिव चालीसा का मन लगाकर निष्ठा से पाठ करता है भगवान शंकर अवश्य ही उसकी सहायता करते हैं।
ऋनियां जो कोई हो अधिकारी।
पाठ करे सो पावनहारी॥
अर्थ- जो कोई भी प्राणी कर्ज के बोझ से दबा हुआ हो, वह अगर सच्चे मन से आपके नाम का जाप करे तो शीघ्र ही वह ऋण के बोझ से मुक्त हो जाता है।
पुत्र हीन कर इच्छा कोई।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
अर्थ- पुत्रहीन व्यक्ति यदि पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से इसका पाठ करेगा तो निश्चय ही शिव की कृपा से उसे पुत्र प्राप्त होगा।
पण्डित त्रयोदशी को लावै।
ध्यानपूर्वक होम करावै॥
अर्थ- प्रत्येक मास की त्रयोदशी को घर पर पण्डित को बुलाकर श्रद्धापूर्वक पूजन व हवन करवाना चाहिए।
त्रयोदशी ब्रत करै हमेशा।
तन नहिं ताके रहै कलेशा॥
अर्थ- जो प्रत्येक त्रयोदशी को आपका व्रत रखता है, उसके शरीर में कोई रोग नहीं रहता और किसी प्रकार के क्लेश की भावना भी उसके मन में नहीं आती।
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावै।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावै॥
अर्थ- धूप, दीप और नैवेद्य से पूजन करके शंकरजी की मूर्ति के सामने बैठकर यह पाठ करना चाहिए।
जन्म-जन्म के पाप नसावै।
अन्त धाम शिवपुर महं पावै॥
अर्थ- शिव चालीसा का पाठ करके जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में मनुष्य शिवजी के पास वास करने लगता है अर्थात मुक्त हो जाता है।
कहत अयोध्या आस तुम्हारी।
जानि सकल दुख हरहु हमारी॥
अर्थ- अयोध्या दास जी कहते हैं कि हे शंकरजी ! हमें आपकी ही आशा है। मेरे समस्त दुःखों को दूर कर आप हमारी मनोकामना पूर्ण करें।
।।दोहा।।
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करो चालीस।
तुम मेरी मनकामना पूर्ण करो जगदीस॥
मगसर छठि हेमन्त ऋतु संवत चौंसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहिं, पूर्ण कीन्ह कल्यान॥
अर्थ- प्रातःकाल के नित्यकर्म के पश्चात् शिव चालीसा का चालीस बार प्रतिदिन पाठ करने से भगवान शिव मनोकामना पूर्ण करेंगे। हेमंत ऋतु, मार्गशीर्ष मास की छठी तिथि संवत चौंसठ में यह चालीसा रूपी शिवस्तुति लोककल्याण के लिए पूर्ण हुई।
॥ इति ॥
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