सम्पूर्ण शिव पंचाक्षर स्त्रोत हिन्दी अर्थ सहित : Shiv Panchakshar Stotra Hindi
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Shiv Panchakshar Stotra
नमस्कार दोस्तों, हमारे ब्लॉग में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों आज की पोस्ट में हम जानेंगे भगवान शिव के पंचाक्षर स्तोत्र Shiv Panchakshar Stotra Hindi अर्थात “नमः शिवायः” के बारे में। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए हमारे शास्त्रों में शिवजी को समर्पित बहुतायत में मंत्र तथा स्तुतियां दी गई हैं
इसका कारण यह है कि भगवान शिव को अनादि काल का देवता कहा जाता है अर्थात उन्हें काल से भी परे की संज्ञा दी गई है।
जब इस सृष्टि की रचना भी नहीं हुई थी तब भी उनका अस्तित्व था तथा जब इस सृष्टि का अंत होगा उस समय भी बाबा विश्वनाथ का अस्तित्व रहेगा। “नमः शिवायः” जिसे श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र Shiv Panchakshar Stotra कहा जाता है इसकी रचना आदि गुरु शंकराचार्य ने की है। गुरू शंकराचार्य को परम शिवभक्त माना जाता है।
“नमः शिवाय” मंत्र भगवान भोलेनाथ को समर्पित सबसे सूक्ष्म तथा विशेष फल प्रदान करने वाला मंत्र है। कोई भी व्यक्ति इसे सरलता से जप सकता है। इस मंत्र का जाप रूद्राक्ष की माला से किया जाता है किन्तु यदि कोई व्यक्ति अस्वस्थ है या फिर अपनी वृद्धावस्था के चलते पूजा में बैठने में असमर्थ है तो वह चलते-फिरते अर्थात अपने दैनिक कार्यों को करते हुये भी इस मंत्र का जाप कर सकता है।
इस स्थिति में मंत्रों की संख्या निर्धारित नहीं होती इस विधि को “अजपा जप विधि” कहा जाता है। आज के लेख में हम इस मंत्र का सम्पूर्ण अर्थ जानेंगे।
Shiv Panchakshar Stotra : श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र
श्लोक
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांगरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मै “न” काराय नमः शिवाय।।
इस श्लोक में “न” शब्द पृथ्वी तत्व से संबंधित है।
भावार्थ :- हे देवों के देव महादेव! आप अपने कंठ में नागराज वासुकि को हार स्वरूप धारण करते हैं। हे त्रिलोचन अर्थात तीन नेत्र धारण करने वाले प्रभु आप भस्म से अलंकृत नित्य (अनादि एवं अनंत) तथा शुद्ध हैं। अम्बर/आकाश को वस्त्र के समान धारण करने वाले दिगम्बर शिव आपके “न” अर्थात पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करने वाले स्वरूप को हमारा नमस्कार है।
श्लोक
मंदाकिनी सलिलचंदनचर्चिताय, नंदीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय।
मंदारपुष्पबहुपुष्प सुपूजिताय, तस्मै ”म काराय नमः शिवाय।।
श्लोक में “म” शब्द जल तत्व से संबंधित है।
भावार्थ :- हे महेश्वर ! चन्दन से अलंकृत एवं गंगा की धारा के द्वारा शोभायमान नन्दीश्वर एवं प्रमथनाथ के स्वामी आप सदा मन्दार पर्वत एवं बहुधा अन्य स्रोतों से प्राप्त पुष्पों द्वारा सदैव पूजित होते रहते हैं आपको हमारा नमस्कार है।
श्लोक
शिवाय गौरीवदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकंठाय वृषभध्वजाय, तस्मै शि काराय नमः शिवायः।।
इस श्लोक में “शि” अग्नि तत्व से संबंधित है।
भावार्थ :- हे नीलकंठ नाम से विख्यात प्रभु एक बार जब प्रजापति दक्ष को अत्यधिक अभिमान हो गया था और उसने अभिमान के वशीभूत होकर आपका भी भयंकर अपमान किया था तब आपने अभिमानी दक्ष के यज्ञ का विनाश किया था। हे माता गौरी के कमल मुख को सूर्य के समान तेज प्रदान करने वाले महाप्रभु आपको नमस्कार है।
श्लोक
वशिष्ठकुंभोद्भव गौतमाय, मुनींद्रदेवार्चितशेखराय।
चंदार्कवैश्वानरलोचनाय, तस्मै व काराय नमः शिवायः।
श्लोक में “व” वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करता है।
भावार्थ :- देवतागणों एवं ऋषियों में श्रेष्ठ वशिष्ठ, अगस्त्य तथा गौतम मुनियों द्वारा पूजित भगवन! सूर्य, चंद्रमा एवं अग्नि आपके तीन नेत्र के समान हैं। शिवजी आपके “व” अक्षर द्वारा विदित स्वरूप को हमारा नमस्कार है।
श्लोक
यज्ञस्वरूपायजटाधराय, पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय, तस्मै य काराय नमः शिवाय।।
श्लोक में “य” आकाश स्वरूप को दर्शाता है।
भावार्थ :- हे यज्ञस्वरूप वाले जटाधारी शिवजी आप पिनाक नामक धनुष को धारण करते हैं आदि, मध्य एवं अंत रहित सनातन हैं आपके य अक्षर मान्य स्वरूप को हम नमस्कार करते हैं।
श्लोक
पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसिन्निधौ।
शिवलोकंवापनोति शिवेन सह मोदते।।
भावार्थ :- जो भी प्राणी इस पंचाक्षर स्त्रोत का पाठ प्रत्येक सोमवार को अथवा प्रतिदिन शुद्ध तथा निर्मल मन के साथ करता है वह सभी पापों से मुक्त होकर भगवान शिवजी के पुण्य लोक को प्राप्त होता है तथा भगवान शिव के साथ सुखपूर्वक निवास करता है।
।।समाप्त।।
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