Shree Hanuman Janam Katha : श्री हनुमान जन्म की कथा

Shree Hanuman Janam Katha : श्री हनुमान जन्म की कथा

 

Shree Hanuman Janam Katha रामभक्त हनुमान बल, बुद्धि तथा विद्या के स्वामी हैं कहा जाता है कि देवताओं ने उन्हें सदैव अजर तथा अमर रहने का वरदान प्रदान किया है यही कारण है कि कलयुग में भी उनके होने का संकेत कभी-न-कभी हमें मिलता ही रहता है। इनकी आराधना भगवान शिव के रूद्रावतार के रूप में की जाती है।

पौराणिक कथा के अनुसार राजा दशरथ के जब कोई संतान नहीं हुई तब उनके कुल गुरू महर्षि वशिष्ठ ने पुत्रेष्टि यज्ञ के आयोजन का परामर्श दिया। दूर-दूर से इस यज्ञ में भाग लेने के लिये एक से एक विद्वान महात्मा आये तथा यज्ञ को सफलतापूर्वक पूरा किया। यज्ञ की समाप्ति के बाद उसी कुण्ड की अग्नि में से अग्निदेव अपने हाथों में प्रसाद रूपी खीर को लेकर प्रकट हुये और प्रसाद को राजा की तीनों रानियों रानी कौशल्या, सुमित्रा तथा कैकेई को बांट दिया।

Shree Hanuman Janam Katha

कौशल्या तथा रानी कैकई ने तो अपना-अपना भाग खा लिया किन्तु जैसे ही सुमित्रा ने अपने हिस्से का प्रसाद उठाया तभी अचानक आकाश से गरूड पक्षी आया और उस प्रसाद को अपनी चोंच में दबाकर पुनः आकाश की ओर उड़ गया। ठीक उसी समय एक पर्वतीय स्थान पर महारानी अंजना पुत्र प्राप्ति हेतु तपस्या कर रही थीं।

वह प्रसाद गरूड़ से छूटकर उनकी गोद में आ गिरा। अंजना को लगा कि यह उनकी तपस्या का फल है उन्होंने उस प्रसाद को ईश्वर का आशीर्वाद समझ कर उसे खा लिया जिससे उन्हें हनुमान जी पुत्र रूप में प्राप्त हुये Shree Hanuman Janam Katha।

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उधर सुमित्रा को निराश देखकर रानी कौसल्या तथा कैकई ने रानी सुमित्रा को अपने प्रसाद में से थोड़ा-थोड़ा भाग दे दिया इसी कारण रानी सुमित्रा के दो जुड़वा संतान के रूप में लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न पैदा हुये साथ ही राजा दशरथ की रानी कौशल्या को श्रीराम तथा कैकेयी को भरत पुत्र रूप में प्राप्त हुये।

Shree Hanuman Janam Katha एक अन्य कथा हमें बताती है कि देवताओं के राजा इन्द्र के स्वर्गलोक में बहुत सी अप्सरायें रहा करती थीं, उन्हीं अप्सराओं में से एक पुंजिकस्थला नाम की अप्सरा थी। एक समय वह इंद्र की सभा में उपस्थित थीं तभी दुर्वासा ऋषि का स्वर्गलोक में आगमन हुआ। देवराज इंद्र तथा ऋषि दुर्वासा के बीच बात चल रही थी कि अप्सरा पुंजिकस्थला अपने चंचल स्वभाव के कारण एक स्थान पर न रहकर इधर-उधर आ-जा रही थीं इससे दुर्वासा ऋषि को क्रोध आ गया और अपने ध्यान में विघ्न पड़ने के कारण उन्होंने पुंजिकस्थला को वानरी हो जाने का शाप दे दिया।

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ऐसा सुनते ही वह रोने लगी तथा क्षमा याचना करने लगीं। तब राजा इन्द्र तथा अन्य देवताओं की प्रार्थना करने पर ऋषि दुर्वासा का क्रोध शान्त हुआ और उन्होंने कहा कि दिया हुआ शाप तो वापस नहीं लिया जा सकता लेकिन मैं तुम्हें ये आशीर्वाद देता हूं कि तुम्हारा जन्म पृथ्वीलोक पर वानरश्रेष्ठ राजा विरज के यहां होगा।

तुम अपनी इच्छा के अनुसार जब चाहोगी अपना रूप भी बदल सकोगी और भविष्य में तुम महापराक्रमी, महाबलशाली तथा तेजोमय पुत्र की माता बनोगी जिसकी ख्याति युगों-युगों तक स्थापित रहेगी वह भगवान श्री हरि विष्णु के अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का अनन्य भक्त तथा सेवक होगा। भगवान श्री राम के जीवन में उसकी बहुत बडी भूमिका होगी तथा वह उनके कई कार्यों को सिद्ध करेगा।

उसी शाप के परिणामस्वरूप पुंजिकस्थला का जन्म मृत्युलोक में राजा विरज की पत्नी के गर्भ से हुआ तथा उनका नाम अंजना रखा गया। अंजना जब विवाह योग्य हो गईं तो राजा विरज ने वानरराज केसरी से उनका विवाह कर दिया जिसके पश्चात श्री हनुमान जी का जन्म हुआ Shree Hanuman Janam Katha।

जिस समय भगवान श्री राम अपना वनवास खत्म करके पुष्पक यान से वापस अयोध्या लौट रहे थे तब उन्होंने हनुमान जी से माता अंजना के दर्शनों की इच्छा प्रकट की तब सभी माता अंजना के दर्शन को गये तथा श्री राम ने ऐसे तेजस्वी पुत्र को जन्म देने के लिए अंजना की प्रशंसा की।

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दोस्तों इसी तरह एक कहानी और प्रचलित है। समुद्र मन्थन की कथा तो आपने सुनी ही होगी जिस समय अमृत से भरा हुआ कलश समुद्र से निकला तो असुर उसे लेकर भागने लगे। उस समय भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धरकर असुरों को अपने रूप से मोहित करते हुये वह अमृत कलश उनसे प्राप्त कर लिया और देवताओं को अमृत पान कराया।

राहु नामक एक असुर ने धोखे से एक देवता का रूप धरकर अमृत पी लिया था लेकिन वह अमृत उसके गले से नीचे उतरने से पहले ही विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका गला काट दिया तब से राहु का केवल धड़ अमर हो गया।
कहते हैं कि श्री हरि विष्णु का वह रूप इतना सुंदर था कि भगवान शिव ने जब यह रूप देखा तो वे भी मोहित हो गये और उनका तेज स्खलित हो गया।

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भगवान शिव के उस तेज को संभाल पाना किसी के वश में नहीं था सभी देवता विचार करने लगे कि इस तेज का क्या किया जाये ? तब सभी देवताओं की सलाह मानकर विष्णु जी ने इस तेज को धारण करने की क्षमता प्रदान करते हुये तपस्या कर रही देवी अंजना के गर्भ में स्थापित कर दिया जिससे शिवजी के 11वें रूद्रावतार के रूप में महाबलशाली श्री हनुमान जी का जन्म हुआ Shree Hanuman Janam Katha।

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