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Ramcharitmanas : मानस की 9 बातें जो जीवन में दिलायेंगी सफलता।

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Ramcharitmanas : मानस की 9 बातें जो जीवन में दिलायेंगी सफलता

 

नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट ramcharitmanas में आपका स्वागत है। दोस्तों, हमारा जीवन एक यात्रा की तरह है तथा निरंतन गतिमान है। इस जगत में प्रतिदिन कोई न कोई नई घटना घटित होती है, नये विचार उत्पन्न होते हैं यदि हम विचार करें तो सम्पूर्ण सृष्टि में जितने भी पदार्थ हैं वे सभी स्वयं अपने-अपने कार्यों में संलग्न हैं।

सूर्य प्रतिदिन सवेरे समय पर उगता है, चंद्रमा शाम होते-होते स्वयं ही छिप जाता है तथा रात्रि में तारे स्वयं ही आकाश में चमकने लगते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि परमात्मा के आदेशानुसार जड़ तथा चेतन सभी पदार्थ टाईम मैनेजमेंट के अनुसार क्रियाशील हैं।

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रामचरितमानस में भगवान श्रीराम के चरित्र का चित्रण जितने प्रभवशाली तरीके से किया गया है उतने ही प्रभावशाली तरीके से भगवार राम के माध्यम से जीवन को जीने का तरीका भी बताया गया है। मानस में मनुष्य को बताया गया है कि जीवन को सफल तथा सुखी बनाना है तो राम को भजने के साथ ही सांसारिक व्यवहार का भी ध्यान  रखना आवश्यक है। 

आज की पोस्ट में हम बात करेंगे श्री रामचरित मानस में दी गई उन शिक्षाओं की जिनको अपनाकर हम भी एक व्यवस्थित जीवन-शैली के द्वारा अपना जीवन निर्वाह कर सकते हैं तथा अपने दैनिक कार्यों में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। तो आईये, पोस्ट शुरू करते हैं।

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1. शक्ति के साथ संयम का भी हो समन्वय

 

नाथ दैव कर कवन भरोसा।
सोषिअ सिंधु करिअ मन रोसा।।

कादर मन कहूँ एक अधारा।
दैव दैव आलसी पुकारा।।

रामचरित मानस में यह चौपाई उस समय की है जब भगवान श्री राम सागर पार करने के लिए सागर से रास्ता मांगने के लिए ध्यान करने जा रहे थे। लक्ष्मण जी ने तब भगवान राम को उनकी शक्ति और क्षमता को याद दिलाते हुए कहा था कि आप स्वयं इतने शक्तिशाली हैं कि एक बाण में समुद्र को सुखा सकते हैं फिर सागर से अनुनय-विनय क्यों?

भगवान राम यह सब जानते थे लेकिन फिर भी इन्होंने शक्ति से पहले शांति से परिस्थितियों को हल करने का प्रयास किया और बताया कि शक्तिशाली को संयमी होना भी जरूरी है।

2. अहंकार यानी विनाश को आमंत्रण

 

बोले बिहसि महेस तब ग्यानी मूढ़ न कोई।
जेहि जस रघुपति करहिं जब सो तस तेहि छन होई।

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रामचरित मानस के बालकांड में भगवान विष्णु के रामावतार का कारण और भगवान की लीला का उद्देश्य समझाते हुए यहां भगवान शिव कहते हैं – कोई भी इस भ्रम में न रहे कि वह सर्वज्ञान है या कोई हमेशा मूर्ख ही रहेगा। भगवान की जब जैसी इच्छा होती है, तब वह प्रत्येक प्राणी को वैसा बना देते हैं। इसलिए कभी किसी चीज का अहंकार नहीं करना चाहिए क्योंकि जो अहंकार करते हैं, वह समाज में कभी आगे नहीं बढ़ पाते।

3. पांच विकारों से सदैव रहें दूर

 

काम, क्रोध, मद, लोभ, सब नाथ नरक के पंथ।
सब परिहरि रघुबीरहि, भजहुँ भजहिं जेहि संत।।

विभीषण जी रावण को पाप के रास्ते पर आगे बढ़ने से रोकने के लिए समझाते हैं कि काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार आदि नरक के रास्ते पर ले जाने वाले हैं। काम के वशीभूत होकर ही आपने देवी सीता का हरण किया है तथा आपको जो अपने बल का अहंकार हो रहा है वह आपकी विनाश का रास्ता है। ramcharitmanas

जिस प्रकार साधू लोग सब कुछ त्यागकर भगवान का नाम जपते हैं आप भी राम के हो जाएं। मनुष्य को भी इस लोक तथा परलोक में सुख, शांति और उन्नति के लिए इन पाप की ओर ले जाने वाले तत्वों से बचना चाहिए।

 

4. परोपकारी बनें, दूसरों की सहायता करें

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जे न मित्र दुख होहिं दुखारी।
तिन्हहि बिलोकत पातक भारी।।
निज दुख गिरि सम रज करि जाना।
मित्रक दुख रज मेरु समाना।।

श्री रामचरित मानस की यह चौपाई भगवान राम और सुग्रीव की मित्रता के संदर्भ में है । चौपाई मनुष्य को यह ज्ञान देती है कि मित्रता निभाने वाले की भगवान भी सहायता करते हैं। जो लोग मित्र या फिर दूसरों के दुख को देखकर दुखी नहीं होते तथा उन लोगों की मदद नहीं करते,  ऐसे लोगों को देखने से भी पाप लगता है। जो लोग अपने दुख को भूलकर दूसरों की सहायता करते हैं ईश्वर स्वयं उसकी मदद करते हैं।

5. मित्रता सोच-विचार कर करें

 

आगे कह मृदु बचन बनाई।
पाछें अनहित मन कुटिलाई।।
जाकर चित अहि गति सम भाई।
अस कुमित्र परिहरेहिं भलाई।।

भावार्थ :- जो आपके सामने अच्छा और कोमल वचन बोलता है किंतु आपके पीछे बुराई करता है तथा मन में कुटिलता रखता है। ऐसे लोगों से मित्रता रखने में कोई भलाई नहीं है। ऐसे लोग स्वार्थी होते हैं, जो आपको कभी आगे नहीं बढ़ने देते। आगे बढ़ने के लिए ऐसे लोगों का त्याग करने में ही भलाई है। ramcharitmanas

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6. वात, पित्त तथा कफ में साधें संतुलन

 

मेह सकल ब्याधिन्ह कर मूला ।
तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला।।
काम वात कफ लोभ अपारा।
क्रोध पित्त नित छाती जारा।।

भावार्थ :- सब रोगों की जड़ मोह (अज्ञान) है। उन व्याधियों से और बहुत से शूल उत्पन्न होते हैं। काम वात है, क्रोध पित्त है तथा लोभ कफ है जो सदा छाती जलाता रहता है। ऐसे लोग जीवन में कुछ नहीं कर पाते। हमेशा आगे बढ़ने के लिए इन चीजों को त्यागना जरूर पड़ता है।

7.  सच्चा गुरू अथवा संत मिले तो बनते हैं सारे काम

 

नहिं दरिद्र सम दुख जग माहीं।
संत मिलन सम सुख जग नाहीं।।
पर उपकार बचन मन काया।
संत सहज सुभाउ खगराया।।

भावार्थ :- जगत में दरिद्रता यानी गरीबी के समान कोई दुख नहीं है तथा संतों के मिलने के समान जगत में कोई सुख नहीं है। क्योंकि मन, वचन और शरीर से परोपकार करना ही संतों का सहज स्वभाव है। महान संत/गुरु आपको अच्छे विचार देते हैं, जिससे आप समाज की भलाई के लिए काम करते हैं।

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8. दैनिक कार्य में भी सदैव रहे प्रभु का ध्यान

 

सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहुँ मुनिनाथ।
हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ।

श्री भरत जी को समर्पित यह चौपाई कहती है कि भले ही लाभ-हानि, जीवन-मरण तथा यश-अपयश ईश्वर के हाथ में हो लेकिन हानि के बाद हमें हार मानकर नहीं  बैठे जाना चाहिये, यह हमारे ही हाथ है। लाभ को हम शुभ लाभ में परिवर्तित कर लें यह भी जीव के ही अधिकार क्षेत्र में आता है।

जीवन जितना भी मिले उसे हम कैसे जिएं यह सिर्फ जीव अर्थात हम ही तय करते हैं, मरण यदि प्रभु के हाथ है, तो उस परमात्मा का स्मरण हमारे अपने हाथ में है। जब हम सदा प्रभु का स्मरण करेंगे तथा उन्हें अपने ह्रदय में धारण करेंंगे तो कोई अनुचित कार्य हमारे द्वारा नहीं हो सकता।

9. मातृभूमि की सेवा हेतु सदा समर्पित रहें।

 

अपि च स्वर्णमयी लंका, लक्ष्मण मे न रोचते।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।

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भावार्थ :- भगवान राम छोटे भाई लक्ष्मण से कहते हैं कि पूरी लंका नगरी ऊपर से नीचे तक सोने से मढ़ी हुई है, फिर भी हे लक्ष्मण ! यह मुझे तनिक भी अच्छी नहीं लग रही। मेरे लिए तो मां और जन्मभूमि स्वर्ग से भी अधिक मूल्यवान हैं। राम कहते हैं कि जो व्यक्ति अपनी जन्मभूमि से जुड़ा रहता है, वहां के मूल्यों को आगे बढ़ाता है, वही दूसरों से आगे रहता है।

॥ इति ॥

आशा करते हैं कि पोस्ट ramcharitmanas आपको पसंद आई होगी। यदि पोस्ट आपको अच्छी लगी हो तो कृपया इसे अधिक-से-अधिक शेयर करें जिससे और लोगों को भी इसका लाभ प्राप्त हो सके। आप अपने सुझाव हमें कमेंट के माध्यम से भी दे सकते हैं जिनकी हमें प्रतीक्षा रहती है। अपना अमूल्य समय देने के लिये धन्यवाद, आपका दिन शुभ तथा मंगलमय हो।

 


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