Bhishma pitamah :भीष्म ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताई थीं ये 13 बातें|
नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Bhishma pitamah में आपका स्वागत है। आज के पोस्ट में हम जानेंगे कि महाभारत काल के समय भीष्म ने युधिष्ठिर को कौन सी खास बातें बताईं थीं जिनसे हमें भी सीख लेने की जरूरत है । तो आईये, बिना देर किये पोस्ट शुरू करते हैं —
Bhishma Pitamah : पितामह भीष्म ने बताईं ये बातें
दोस्तों जब पितामह भीष्म बाणों की शैया पर लेटे हुए थे तब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा :- भीष्म जीवन और मृत्यु के बीच लटक रहे हैं। जाओ, उनसे जो कुछ पूछना है, पूछ लो।’ युधिष्ठिर, कृष्ण और पाण्डवों के साथ कुरुक्षेत्र में पहुंचे। मृत्यु शय्या पर पड़े हुए भीष्म ने जो वचन कहे थे, उनमें से कुछ अंश नीचे दिए जा रहे हैं :-
1- हे युधिष्ठिर सत्य धर्म सब धर्मों से उत्तम धर्म है। ‘सत्य’ ही सनातन धर्म है। तप और योग, सत्य से ही उत्पन्न होते हैं। सत्य ब्रह्म है, सत्य तप है, सत्य से मनुष्य स्वर्ग को जाता है, झूठ अन्धकार की तरह है, अन्धकार में रहने से मनुष्य नीचे गिरता है। स्वर्ग को प्रकाश और नरक को अन्धकार कहा है।
2- सत्य बोलना, सब प्राणियों को एक जैसा समझना, इन्द्रियों को वश में रखना, क्षमा, शील, लज्जा, दूसरों को कष्ट न देना, दुष्कर्मों से पृथक रहना, ईश्वर भक्ति, मन की पवित्रता, साहस, यह सत्य धर्म के लक्षण हैं। वेद सत्य का ही उपदेश करते हैं। सहस्रों अश्वमेध यज्ञों के समान सत्य का फल होता है।
3- ऐसे वचन बोलो जो, दूसरों को प्यारे लगें। दूसरों को बुरा भला कहना, दूसरों की निन्दा करना, बुरे वचन बोलना, यह सब त्यागने के योग्य हैं। Bhishma pitamah
4- हे युधिष्ठिर ! इस लोक में जो सुख कामनाओं को पूरा करने से मिलता है और जो सुख परलोक में मिलता है, वह उस सुख का सोलहवां हिस्सा भी नहीं है जो कामनाओं से मुक्त होने पर मिलता है। जब मनुष्य अपनी वासनाओं को अपने अन्दर खींच लेता है, जैसे कछुआ अपने सब अंग भीतर को खींच लेता है, तो आत्मा की ज्योति और महत्ता दिखाई देती है। जो पुरुष अपने आपको वश में करना चाहता है उसे लोभ और मोह से मुक्त होना चाहिए।
5- मृत्यु और अमृतत्व- दोनों मनुष्य के अपने अधीन हैं। मोह का फल मृत्यु और सत्य का फल अमृतत्व है। संसार को बुढ़ापे ने हर ओर से घेरा है। दिन जाता है, रात बीतती है। तुम जागते क्यों नहीं? अब भी उठो। समय व्यर्थ न जाने दो। अपने कल्याण के लिए कुछ कर लो। तुम्हारे काम अभी समाप्त नहीं होते कि मृत्यु घसीट ले जाती है।
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6- स्वयं अपनी इच्छा से निर्धनता का जीवन स्वीकार करना सुख का हेतु है इससे मनुष्य क्लेशों से बच जाता है। इस पथ पर चलने से मनुष्य किसी को अपना शत्रु नहीं बनाता। यह मार्ग कठिन है, परन्तु भले पुरुषों के लिए सुगम है। जिस मनुष्य का जीवन पवित्र है और इसके अतिरिक्त उसकी कोई सम्पत्ति नहीं, उसके समान मुझे दूसरा दिखाई नहीं देता।
7- मैंने तुला के एक पल्ले में निर्धनता को रक्खा और दूसरे पल्ले में राज्य को। अकिंचनता का पल्ला भारी निकला। धनवान पुरुष तो सदा भयभीत रहता है, जैसे मृत्यु ने उसे अपने जबड़े में पकड़ रखा है।
8- हे युधिष्ठिर ! त्याग के बिना कुछ प्राप्त नहीं होता। त्याग के बिना परम आदर्श की सिद्धि नहीं होती। त्याग के बिना मनुष्य भय से मुक्त नहीं हो सकता। त्याग की सहायता से मनुष्य को हर प्रकार का सुख प्राप्त हो जाता है। कामनाओं को त्याग देना; उन्हें पूरा करने से श्रेष्ठ है। आज तक किस मनुष्य ने अपनी सब कामनाओं को पूरा किया है? इन कामनाओं से बाहर जाओ। पदार्थ के मोह को छोड़ दो। शान्त चित्त हो जाओ।Bhishma pitamah
9- वह पुरुष सुखी है, जो मन को साम्यावस्था में रखता है, जो व्यर्थ चिन्ता नहीं करता। जो सत्य बोलता है, जो सांसारिक पदार्थों के मोह में फंसता नहीं, जिसे किसी काम के करने की विशेष चेष्टा नहीं होती। जो मनुष्य व्यर्थ अपने आपको सन्तप्त करता है, वह अपने रूप रंग, अपनी सम्पत्ति, अपने जीवन और अपने धर्म को भी नष्ट कर देता है।
10- जो पुरुष शोक से बचा रहता है, उसे सुख और आरोग्यता, दोनों प्राप्त हो जाते हैं। सुख दो प्रकार के मनुष्यों को मिलता है। उनको जो सबसे अधिक मूर्ख हैं, दूसरे उनको जिन्होंने बुद्धि के प्रकाश में तत्व को देख लिया है। जो लोग बीच में लटक रहे हैं, वे दुखी रहते हैं।
11- हे युधिष्ठिर ! श्रेष्ठ और सज्जन पुरुष का चिह्न यह है कि वह दूसरों को धनवान देख कर जलता नहीं। वह विद्वानों का सत्कार करता है और धर्म के सम्बन्ध में प्रत्येक स्थान से उपदेश सुनता है। जो पुरुष अपने भविष्य पर अधिकार रखता है (अपना पथ आप निश्चित करता है, दूसरों की कठपुतली नहीं बनता) जो समयानुकूल तुरन्त विचार कर सकता है और उस पर आचरण करता है, वह पुरुष सुख को प्राप्त करता है। आलस्य मनुष्य का नाश कर देता है।
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12- भोजन अकेले न खाये। धन कमाने का विचार करे तो किसी को साथ मिला ले। यात्रा भी अकेला न करे। जहां सब सोये हुए हों, वहां अकेला जागरण न करें।
13- दम के समान कोई धर्म नहीं सुना गया है। दम क्या है? क्षमा, धृति, वैर-त्याग, समता, सत्य, सरलता, इन्द्रिय संयम, कर्म करने में उद्यत रहना, कोमल स्वभाव, लज्जा, बलवान चरित्र, प्रसन्नचित्त रहना, सन्तोष, मीठे वचन बोलना, किसी को दुख न देना, ईर्ष्या न करना, यह सब दम में सम्मिलित हैं।
॥ इति ॥
तो दोस्तों आप सब भी Bhishma pitamah भीष्म पितामह द्वारा बताई गई इन बातों को अपने जीवन में उतारें और अपना जीवन खुशहाल बनायें। जल्दी ही मिलेंगे किसी अन्य पोस्ट में । धन्यवाद, आपका दिन शुभ व मंगलमय हो।
नमस्कार दोस्तों, मैं सुगम वर्मा (Sugam Verma), Jagurukta.com का Sr. Editor (Author) & Co-Founder हूँ । मैं अपनी Education की बात करूँ तो मैंने अपनी Graduation (B.Com) Hindu Degree College Moradabad से की और उसके बाद मैने LAW (LL.B.) की पढ़ाई Unique College Of Law Moradabad से की है । मुझे संगीत सुनना, Travel करना, सभी तरह के धर्मों की Books पढ़ना और उनके बारे में जानना तथा किसी नये- नये विषयों के बारे में जानकारियॉं जुटाना और उसे लोगों के साथ share करना अच्छा लगता है जिससे उस जानकारी से और लोगों की भी सहायता हो सके। मेरी आपसे विनती है की आप लोग इसी तरह हमारा सहयोग देते रहिये और हम आपके लिए नईं-नईं जानकारी उपलब्ध करवाते रहेंगे। आशा है आप हमारी पोस्ट्स को अपने मित्रों एवं सम्बंधियों के साथ भी share करेंगे। और यदि आपका कोई question अथवा सुझाव हो तो आप हमें E-mail या comments अवश्य करें।