Nirvana Shatakam : निर्वाण षट्कम्
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नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Nirvana Shatakam में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, ध्यान अर्थात मेडिटेशन (Meditation) एक ऐसी अवस्था है जिसमें हम अपने भीतर की गहराई में उतरते हैं तथा शांत होते जाते हैं। यह अवस्था विचार शून्यता कहलाती है अर्थात मन में किसी भी प्रकार के विचारों का न उठना।
तब प्रश्न उठता है कि हम कौन हैं हम शरीर हैं अथवा आत्मा ? गीता में भगवान श्री कृष्ण तथा हमारे वेद शास्त्र कहते हैं कि जीव देह नहीं अपितु आत्मा है। देह तो हमें सांसारिक कार्यों के निस्तारण हेतु प्रदान की गई है जो यहीं इसी संसार में रह जानी है किन्तु आत्मा परमात्मा में जाकर मिल जाती है।ध्यान अवस्था में जो एक शब्द निकलता है वह है सोहम, शिवोहम। अर्थात जो तू है वही मैं हूं यानी आत्मा व परमात्मा भिन्न नहीं बल्कि एक ही हैं।
क्या है निर्वाण षट्कम ?
आदि गुरु श्री शंकराचार्य के अपने गुरु बाल शंकर से सर्वप्रथम भेंट के समय उनके गुरु ने उनसे पूछा की तुम्हारा परिचय क्या है ?, तुम कौन हो ? आदि गुरु शंकराचार्य जी ने इस पर जो उत्तर दिया वही निर्वाण षट्कम के रूप में जाना जाता है।
निर्वाण षट्कम में आदि गुरु श्री शंकराचार्य जी बताते हैं की जीव क्या है? और क्या नहीं है ? मूल भाव है की आत्मा जिसे जीव भी कहा जा सकता है वह किसी बंधन, आकार और मनः स्थिति में नहीं है। वह ना तो जन्म लेते है और ना ही उसका अंत होता है। वह शिव है।
आज की पोस्ट में हम इसी पर आधारित निर्वाण षट्कम Nirvana Shatakam स्तोत्र को हिन्दी अर्थ के साथ समझेंगे जो हमें एक सीमा तक यह समझाने का प्रयास करता है कि हम क्या हैं। तो आईये, पोस्ट Nirvana Shatakam प्रारंभ करते हैं।
Nirvana Shatakam : निर्वाण षट्कम्
मनोबुद्ध्यहंकार चित्तानि नाहं
न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे ।
न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥1॥
भावार्थ :— मैं न तो मन हूं, न बुद्धि, न अहंकार, न ही चित्त हूं । मैं न तो कान हूं, न जीभ, न नासिका, न ही नेत्र हूं । मैं न तो आकाश हूं, न धरती, न अग्नि, न ही वायु हूं । मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
न च प्राणसंज्ञो न वै पंचवायुः,
न वा सप्तधातुः न वा पञ्चकोशः ।
न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायु,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥2॥
भावार्थ :— मैं न प्राण हूं, न ही पंच वायु हूं । मैं न सात धातु हूं, और न ही पांच कोश हूं । मैं न वाणी हूं, न हाथ हूं, न पैर, न ही उत्सर्जन की इन्द्रियां हूं । मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
न मे द्वेषरागौ न मे लोभमोहौ,
मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः ।
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥ 3॥
भावार्थ :— न मुझे घृणा है, न लगाव है, न मुझे लोभ है, और न मोह । न मुझे अभिमान है, न ईर्ष्या । मैं धर्म, धन, काम एवं मोक्ष से परे हूं । मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं,
न मन्त्रो न तीर्थो न वेदा न यज्ञ ।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥ 4॥
भावार्थ :— मैं पुण्य, पाप, सुख और दुख से विलग हूं । मैं न मंत्र हूं, न तीर्थ, न ज्ञान, न ही यज्ञ । न मैं भोजन (भोगने की वस्तु) हूं, न ही भोग का अनुभव, और न ही भोक्ता हूं । मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः,
पिता नैव मे नैव माता न जन्मः ।
न बन्धुर्न मित्रं गुरूर्नैव शिष्यः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥ 5 ॥
भावार्थ :— न मुझे मृत्यु का डर है, न जाति का भेदभाव । मेरा न कोई पिता है, न माता, न ही मैं कभी जन्मा था मेरा न कोई भाई है, न मित्र, न गुरू, न शिष्य, । मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो,
विभुत्वाच सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् ।
न चासङ्गतं नैव मुक्तिर्न मेयः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥6॥
भावार्थ :— मैं निर्विकल्प हूं, निराकार हूं । मैं चैतन्य के रूप में सब जगह व्याप्त हूं, सभी इन्द्रियों में हूं, । न मुझे किसी चीज में आसक्ति है, न ही मैं उससे मुक्त हूं, । मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
Nirvana Shatakam Lyrics: सरल अनुवाद
ना मन हूँ, ना बुद्धि, ना चित अहंकार
ना जिव्या नयन नासिका करण द्वार
ना मन हूँ, ना बुद्धि, ना चित अहंकार
ना जिव्या नयन नासिका करण द्वार
ना चलता ना रुकता ना कहता ना सुनता
जगत चेतना हूँ, अनादि अनन्ता
ना चलता ना रुकता ना कहता ना सुनता
जगत चेतना हूँ, अनादि अनन्ता
ना मैं प्राण हूँ ना ही हूँ पंच वायु
ना मुझमें घृणा ना कोई लगाव
ना लोभ मोह इर्ष्या ना अभिमान भाव
धन धर्म काम मोक्ष सब अप्रभाव
मैं धन राग, गुणदोष विषय परियांता
जगत चेतना हूँ, अनादि अनन्ता
जगत चेतना हूँ, अनादि अनन्ता
मैं पुण्य ना पाप, सुख दुःख से विलग हूँ
ना मंत्र, ना ज्ञान, ना तीर्थ और यज्ञ हूँ
ना भोग हूँ, ना भोजन, ना अनुभव ना भोक्ता
जगत चेतना हूँ, अनादि अनन्ता
जगत चेतना हूँ, अनादि अनन्ता
ना मृत्यु का भय है, ना मत भेद जाना
ना मेरा पिता माता, मैं हूँ अजन्मा
निराकार साकार, शिव सिद्ध संता
जगत चेतना हूँ, अनादि अनन्ता
जगत चेतना हूँ, अनादि अनन्ता
मैं निरलिप्त निरविकल्,प सूक्ष्म जगत हूँ
हूँ चैतन्य रूप, और सर्वत्र व्याप्त हूँ
मैं हूँ भी नहीं, और कण कण रमता
जगत चेतना हूँ, अनादि अनन्ता
जगत चेतना हूँ, अनादि अनन्ता
ये भौतिक चराचर, ये जगमग अँधेरा
ये उसका ये इसका, ये तेरा ये मेरा
ये आना ये जाना, लगाना है फेरा
ये नाश्वर, जगत थोड़े दिन का, है डेरा
ये प्रश्नों, में उत्तर, हुनिहित दिगंत
जगत चेतना हूँ, अनादि अनन्ता
जगत चेतना हूँ, अनादि अनन्ता
ना मन हूँ, ना बुद्धि, ना चित अहंकार
ना जिव्या नयन नासिका, करण द्वार
ना मन हूँ, ना बुद्धि, ना चित अहंकार
ना जिव्या नयन नासिका, करण द्वार
ना चलता, ना रुकता, ना कहता, ना सुनता
जगत चेतना हूँ, अनादि अनन्ता
ना चलता, ना रुकता, ना कहता, ना सुनता
जगत चेतना हूँ, अनादि अनन्ता
जगत चेतना हूँ, अनादि अनन्ता॥
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Nirvana Shatakam Lyrics English (With Meaning)
mano buddhi ahankara chittani naaham
na cha shrotravjihve na cha ghraana netre
na cha vyoma bhumir na tejo na vaayuhu
chidananda rupah shivo’ham shivo’ham
I am not the mind, the intellect, the ego or the memory,
I am not the ears, the skin, the nose or the eyes,
I am not space, not earth, not fire, water or wind,
I am the form of consciousness and bliss,
I am the eternal Shiva…
na cha prana sangyo na vai pancha vayuhu
na va sapta dhatur na va pancha koshah
na vak pani-padam na chopastha payu
chidananda rupah shivo’ham shivo’ham
I am not the breath, nor the five elements,
I am not matter, nor the 5 sheaths of consciousness
Nor am I the speech, the hands, or the feet,
I am the form of consciousness and bliss,
I am the eternal Shiva…
na me dvesha ragau na me lobha mohau
na me vai mado naiva matsarya bhavaha
na dharmo na chartho na kamo na mokshaha
chidananda rupah shivo’ham shivo’ham
There is no like or dislike in me, no greed or delusion,
I know not pride or jealousy,
I have no duty, no desire for wealth, lust or liberation,
I am the form of consciousness and bliss,
I am the eternal Shiva…
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na punyam na papam na saukhyam na duhkham
na mantro na tirtham na veda na yajnah
aham bhojanam naiva bhojyam na bhokta
chidananda rupah shivo’ham shivo’ham
No virtue or vice, no pleasure or pain,
I need no mantras, no pilgrimage, no scriptures or rituals,
I am not the experienced, nor the experience itself,
I am the form of consciousness and bliss,
I am the eternal Shiva…
na me mrtyu shanka na mejati bhedaha
pita naiva me naiva mataa na janmaha
na bandhur na mitram gurur naiva shishyaha
chidananda rupah shivo’ham shivo’ham
I have no fear of death, no caste or creed,
I have no father, no mother, for I was never born,
I am not a relative, nor a friend, nor a teacher nor a student,
I am the form of consciousness and bliss,
I am the eternal Shiva…
aham nirvikalpo nirakara rupo
vibhut vatcha sarvatra sarvendriyanam
na cha sangatham naiva muktir na meyaha
chidananda rupah shivo’ham shivo’ham
I am devoid of duality, my form is formlessness,
I exist everywhere, pervading all senses,
I am neither attached, neither free nor captive,
I am the form of consciousness and bliss,
I am the eternal Shiva…
Nirvana Shatakam Lyrics Sanskrit
मनोबुद्ध्यहंकार चित्तानि नाहं
न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे ।
न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥1॥
न च प्राणसंज्ञो न वै पंचवायुः,
न वा सप्तधातुः न वा पञ्चकोशः ।
न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायु,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥2॥
न मे द्वेषरागौ न मे लोभमोहौ,
मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः ।
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥ 3॥
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं,
न मन्त्रो न तीर्थो न वेदा न यज्ञ ।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥ 4॥
न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः,
पिता नैव मे नैव माता न जन्मः ।
न बन्धुर्न मित्रं गुरूर्नैव शिष्यः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥ 5 ॥
अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो,
विभुत्वाच सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् ।
न चासङ्गतं नैव मुक्तिर्न मेयः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥6॥
॥ इति ॥
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